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शुक्रवार, 16 सितंबर 2022

Killer mining

 हत्यारा होता खनन

पंकज चतुर्वेदी



 

हरियाणा के नूंह जिला के तावडू थाना क्षेत्र के गांव पचगांव में  अवैध खनन की सूचना मिलने पर कार्यवाही को गए डीएसपी सुरेंद्र विश्नोई को 19 जुलाई को जिस तरह पत्थर के अवैध खनन  से भरे  ट्रक से कुचल कर मार डाला गया , अभी मामले की जांच पूरी हुई नहीं और 10 सितम्बर को नूह में एक अवैध खनन स्थल पर छापेमारी के दौरान अज्ञात लोगों ने पुलिस और जिला खनन विभाग की संयुक्त टीम पर हमला कर दिया . एक पुलिस वाला घायल  भी हुआ . उससे एक बार फिर खनन माफिया के निरंकुश इरादे उजागर हुए हैं . यह घटना  अरावली पर्वतमाला से अवैध खनन की है , वही  अरावली जिसका अस्तित्व है तो गुजरात से दिल्ली तक कोई 690 किलोमीटर का इलाका  पाकिस्तान की तरफ से आने वाली रेत की आंधी से निरापद है और रेगिस्तान होने से बचा है . व्ही अरावली है जहां के वन्य क्षेत्र में कथित अतिक्रमण के कारण पिछले साल लगभग इन्हीं दिनों सवा लाख लोगों की आबादी वाले खोरी गाँव को उजाड़ा गया था,  यह वही अरावली है जिसके बारे में  सुप्रीम कोर्ट ने अक्तूबर 2018 जब सरकार से पूछा कि राजस्थान की कुल 128 पहाड़ियों में से 31 को क्या हनुमानजी उठा कर ले गए? तब सभी जागरूक लोग चौंके कि इतनी सारी पांबदी के बाद भी अरावली पर चल रहे अवैध खनन से किस तरह भारत पर खतरा है.


जब चौड़ी सडकें , गगन चुम्बी इमारतें और भव्य प्रासाद किसी क्षेत्र के विकास का एकमात्र पैमाना बन जाएँ तो जाहिर है कि इसका खामियाजा वहां की जमीन , जल और  जन को ही उठाना पडेगा . निर्माण कार्य से जुडी प्राकृतिक  संपदा  का गैरकानूनी खनन खासकर पहाड़ से पत्थर और नदी से बालू , अब हर राज्य की राजनीति का हिस्सा बन गया है , पंजाब हो या मप्र या बिहार या फिर  तमिलनाडु , रेत खनन के आरोप प्रत्यारोप से कोई भी दल अछूता नहीं हैं . असल में इस दिशा में हमारी नीतियाँ हीं- “गुड खा कर गुलगुले से परहेज” की हैं.



जरा देखिये -बरसात के दिनों में छोटी –बड़ी नदियाँ सलीके से बह सकें , उनके मार्ग में नैसर्गिक गतिविधियाँ हो सकें, इस उद्देश्य से राष्ट्रीय हरित न्यायलय ने समूचे देश में नदियों से रेत निकालने पर 30 जून से चार महीने के लिए पाबन्दी लगाईं हुई है , लेकिन क्या इस तरह के आदेश जमीनी स्तर पर क्रियान्वयित होते हैं ? मप्र के भिंड  जिले में प्रशासन को खबर मिली कि लहार क्षेत्र की पर्रायच रेत खदान पर सिंध नदी में अचानक नदी में आए तेज बहाव के चलते कई ट्रक फँस गए हैं . जब सरकारी बचाव दल वहां गया तो उजागर हुआ कि 72 से अधिक डम्पर और ट्रक बीच नदी में खड़े हो कर  बालू निकाल रहे थे ..



  बस राज्य, शहर, नदी के नाम बदलते जाएँ , अवैध खनन सारे देश में  कानूनों से बेखबर ऐसे ही होता है , यह भी समझ लें कि इस तरह अवैध तरीके से निकाले गए पत्थर या रेत का अधिकांश इस्तेमाल सरकारी योजनाओं ने होता है और किसी भी राज्य में सरकारी या निजी निर्माण कार्य पर कोई रोक है नहीं, सरकारी निर्माण कार्य की तय समय- सीमा भी है – फिर बगैर  रेत-पत्थर के कोई निर्माण जारी रह नहीं सकता. जाहिर है कि कागजी कार्यवाही ही होगी और उससे प्रकृति  बचने से रही .

यह किसी से छुपा नहीं था कि यहां पिछले कुछ सालों के दौरान वैध एवं अवैध खनन की वजह से सोहना से आगे तीन पहाड़ियां गायब हो चुकी हैं। होडल के नजदीक, नारनौल में नांगल दरगु के नजदीक, महेंद्रगढ़ में ख्वासपुर के नजदीक की पहाड़ी गायब हो चुकी है। इनके अलावा भी कई इलाकों की पहाड़ी गायब हो चुकी है। रात के अंधेरे में खनन कार्य किए जाते हैं। सबसे अधिक अवैध रूप से खनन की शिकायत नूंह जिले से सामने आती है। पत्थरों की चोरी की शिकायत सभी जिलों में है।वैसे तो भूमाफिया की नजर दक्षिण हरियाणा की पूरी अरावली पर्वत श्रृंखला पर है लेकिन सबसे अधिक नजर गुरुग्राम, फरीदाबाद एवं नूंह इलाके पर है। अधिकतर भूभाग भूमाफिया वर्षों पहले ही खरीद चुके हैं। जिस गाँव में डीएसपी  श्री विश्नोई जहां शहीद  हुए  या हाल ही में जहां  सरकारी टीम पर हमला हुआ , असल में वे  गाँव भी अवैध है . अवैध खनन की पहाड़ी तक जाने का रास्ता इस गाँव के बीच से एक संकरी पगडण्डी से ही जाता है , इस गाँव के हर घर में डम्पर खड़े हैं . यहाँ के रास्तों में जगह जगह अवरोध हैं , गाँव से कोई पुलिस या अनजान गाडी गुजरे तो पहले गाँव से खबर कर दी जाती है जो अवैध खनन कर रहे होते हैं . यही नहीं पहाड़ी पर भी कई लोग इस बात की निगरानी करते हैं और सूचना देते है कि पुलिस की गाडी आ रही है .


अब  इतना सब आखिर हो यों न ! भले ही अरावली गैर खनन  क्षेत्र घोषित हो लेकिन यहाँ क्रशर धड़ल्ले से चल रहे हैं और क्रशर के लिए  कच्चा  माल तो इन अवैध खनन से ही मिलता है . हरियाणा – राजस्थान  सीमा अपर स्टे जमालपुर के बीवन पहाड़ी पर ही 20 क्रशर हैं , जिनके मालिक सभी रसूखदार लोग हैं.  सोहना के रेवासन ज़ोन में आज भी 15 क्रशर चालू हैं . तावडू में भी पत्थर दरने का काम चल रहा है. हालाँकि इन सभी क्रशर के मालिक कहते हैं कि उनको  कच्चा माल  राजस्थान से मिलता है . जबकि हकीकत तो यह है कि पत्थर उन्ही पहाड़ों का है जिन पर पाबंदी है . हरियाण के नूह जिला पुलिस डायरी बताती है कि वर्ष 2006 से अभी तक 86 बार  खनन माफिया ने पुलिस पर हमले किये . यह एक बानगी है कि खनन माफिया पुलिस से टकराने में डरता नहीं हैं .

 अभी सात दिन पहले ही आगरा के एक वीडियों वायरल हुआ जिसमें अवैध खनन वाली तेरह  ट्रेक्टर ट्रोली  टोल प्लाजा का बेरियर तोड़ कर निकल गई . आखिर इतनी हिम्मत केवल  ट्रेक्टर ड्रायवर में होती नहीं  और इतना दुसाहस करने वाले को यह भरोसा रहता है कि उसका रसूख इस अपराध के परिणाम से उन्हें बचा लेगा

नदी के एक जीवित संरचना है और रेत उसके श्वसन  तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा। भीशण गर्मी में सूख गए नदी के आंचल को जिस निर्ममता से उधेड़ा जा रहा है वह इस बार के  विश्व पर्यावरण दिवस के नारे - केवल एक धरतीऔर प्रकृति के साथ सामंजस्य से टिकाऊ जीवन ’’ के बिलकुल विपरीत है।  मानव जीवन के लिए जल से ज्यादा जरूरी जल-धारांए हैं। नदी महज पानी के परिवहन का मार्ग नहीं होती, वह  धरती के तापमान के संतुलन, जल-तंत्र के अन्य अंग जैसे जलीय जीव व पौधों के लिए आसरा होती है।  लेकिन आज अकेले नदी ही नहीं मारी जा रही, उसकी रक्षा का साहस करने वाले भी मारे जा रहे हैं . साल 2012 में मप्र  के  मुरेना में नूह की ही तरह युवा आइपीएस अफसर नरेंद्र कुमार  को पत्थर से भरे ट्रेक्टर से कुचल कर मार डाला था . कुछ दिन वहां सख्ती हुई लेकिन  फिर खनन-माफिया यथावत काम करने लगा , उसी चम्बल में सन  2015 में एक सिपाही को को मार डाला गया था . इसी मुरेना में सन 2018 में एक डिप्टी  रेंजर की ह्त्या ट्रेक्टर से कुचल कर की गई .यह लम्बा सिलसिला है . आगरा. इटावा.फतेहाबाद से ले कर  गुजरात तक ऐसी घटनाएँ हर रोज होती हैं, कुछ दिन उस पर रोष होता है और यह महज एक अपराध घटना के रूप में कहीं गूम हो जाता है  और उस अपराध के कारक अर्थात पर्यावरण संरक्ष्ण और कानून की पालना पर बात होती नहीं है .

यह जान लें की जब तक निर्माण कार्य से पहले उसमें लगने वाले पत्थर , रेत, ईंट की आवश्यकता  का आकलन और उस निर्माण का ठेका लेने वाले से पहले ही सामग्री जुटाने का स्रोत नहीं तलाशा जाता . अवैध खनन  और खनन में रसूखदार लोगों के दखल को रोका जा सकता नहीं है.  आधुनिकता और पर्यावरण के बीच समन्वयक विकास की नीति पर गंभीरता से काम करना जरुरी है .  अवैध खनन जंगल, नदी , पहाड़, पेड़  और अब जन के जान का दुश्मन बन चुका है . यह केवल  कानून का नहीं , मानवीय और पर्यावरणीय अस्तित्व का मसला है .

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