जंगल बचाना है तो हाथी बचाना होगा
पंकज चतुर्वेदी
इन दिनों झारखंड और छत्तीसगढ़ में हाथी के गांव में घुसने, तोड़फोड करने की कई घटनांए हो रही हैं। 75 साल पहले देश से लुप्त हो गए चीतों को फिर से बसाने पर सरकार ने जिस गंभीरता से काम किया, काश हाथी पर समाज को सचेत करने पर जमीनी योजना बनाई जाए। बीते तीन सालों के दौरान हाथियों के इंसान से टकराव की बढ़ती घटनाओं में 300 हाथी मारे गए तो 1401 इंसानों को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। कहने को और भले ही हम कहें कि हाथी उनके गांव-घर में घुस रहा है, हकीकत यही है कि प्राकृतिक संसाधनों के सिमटने के चलते भूखा-प्यासा हाथी अपने ही पारंपरिक इलाकों में जाता है। दुखद है कि वहां अब बस्ती, सड़क का जंजाल है। इंसान और ‘द क्रिटिकल नीड आफ एलिफेंट’ उब्लूडब्लूएफ-इंडिया की यह रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में इस समय कोई 50 हजार हाथी बचे हैं इनमें से साठ फीसदी का आसरा भारत है। देश के 14राज्यों में 32 स्थान हाथियों के लिए संरक्षित हैं। यह समझना जरूरी है कि धरती पर इंसान का अस्तित्व तभी तक है जब तक जंगल हैं और जंगल में जितना जरूरी बाघ है उससे अधिक अनिवार्यता हाथी की है।
दुनियाभर में हाथियों को संरक्षित
करने के लिए गठित आठ देशों के समूह में भारत शामिल हो गया है। भारत में इसे ‘राष्ट्रीय धरोहर पशु’ घोषित किया
गया है। इसके बावजूद भारत में बीते दो दशकों के दौरान हाथियों की संख्या स्थिर हो
गई हे। जिस देश में हाथी के सिर वाले गणेश को प्रत्येक शुभ कार्य से पहले पूजने की
परंपरा है , वहां की बड़ी आबादी हाथियों से छुटकारा चाहती है
।
पिछले एक दशक के दौरान मध्य भारत में हाथी का प्राकृतिक पर्यावास कहलाने वाले झारखंड, छत्तीसगड़, उड़िया राज्यों में हाथियों के बेकाबू झुंड के हाथों एक हजार से ज्यादा लाग मारे जा चुके हैं। धीरे-धीरे इंसान और हाथी के बीच के रण का दायरा विस्तार पाता जा रहा है। कभी हाथियों का सुरक्षित क्षेत्र कहलाने वाले असम में पिछले सात सालों में हाथी व इंसान के टकराव में 467 लोग मारे जा चुके हैं। अकेले पिछले साल 43 लोगों की मौत हाथों के हाथों हुई। उससे पिछले साल 92 लोग मारे गए थे। झारखंड की ही तरह बंगाल व अन्य राज्यों में आए रोज हाथी को गुस्सा आ जाता है और वह खड़े खेत, घर, इंसान; जो भी रास्ते में आए कुचल कर रख देता है । दक्षिणी राज्यों के जंगलों में गर्मी के मौसम में हर साल 20 से 30 हाथियों के निर्जीव शरीर संदिग्ध हालात में मिल रहे हैं ।
जानना जरूरी है कि हाथियों के 100 लीटर पानी और 200 किलो पत्ते,
पेड़ की छाल आदि की खुराक जुटाने के लिए हर रोज 18 घंटें तक भटकना पड़ता है । गौरतलब है कि हाथी दिखने में भले ही भारीभरकम
हैं, लेकिन उसका मिजाज नाजुक और संवेदनशील होता है । थोड़ी थकान या भूख उसे तोड़ कर रख देती है । ऐसे में थके जानवर के प्राकृतिक घर यानि जंगल
को जब नुकसान पहुंचाया जाता है तो मनुष्य से उसकी भिडंत होती है ।
वन पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता
को सहेज कर रखने में गजराज की महत्वपूर्ण
भूमिका हैं। पयार्वरण-मित्र पर्यटन और और
प्राकृतिक आपदाओं के बारे में पूर्वानुमान में भी हाथी बेजोड़ हैं। अधिकांश
संरक्षित क्षेत्रों में, आबादी हाथियों के
आवास के पास रहते हैं और वन संसाधनों पर निर्भर हैं। तभी जंगल में मानव अतिक्रमण
और खेतों में हाथियों की आवाजाही ने संघर्ष की स्थिति बनाई और तभी यह विशाल
जानवर खतरे है।
एक बात जान लें किसी भी जंगल के
विस्तार में हाथी सबसे बड़ा ‘बीज-वाहक
होता है। वह वनस्पति खाता है और उसकी लीद
भोजन करने के 60 किलोमीटर दूर तक जा कर करता है और
उसकी लीद में उसके द्वारा खाई गई वनस्पति के बीज होते हैं। हाथी की लीद
एक समृद्ध खाद होती है और उसमें
बीज भली-भांति प्रस्फुटित होता है।
जान लें जगल का विस्तार और ापारंपरिक वृक्षों का उन्नयन इसी तरह जीव-जंतुओं
द्वारा नैसर्गिक वाहन से ही होता हैं।
यही नहीं हाथी की लीद , कई तरह के पर्यावरण मित्र कीट-भृगों का भोजन भी होता है। ये कीट ना केवल लीद को खाते हैं बल्कि उसे जमीन के नीचे दबा भी देते हैं जहां उनके लार्वा उसे खाते हैं। इस तरह से कीट कठोर जमीन को मुलायम कर देते है। और इस तरह वहां जंगल उपजने का अनुकूल परिवेष तैयार होता हैं।
घने जंगलों में जब हाथी ऊंचे पेड़ों से
पत्ती तोड़ कर खाता है तो वह एक प्रकार से
सूरज की रोशनी नीचे तक आने का रास्ता भी बनाता है। फिर उसके चलने से
जगह-जगह जमीन कोमल होती है और उस तरह जंगल की जैव विविधता को फलने-फूलने का मौका
मिलता हैं।
हाथी भूमिगत या सूख चुके जल-साधनों को
अपनी सूंड, भारीभरकम पैर व
दांतों की मदद के खोदते हैं। इससे उन्हें तो पानी मिलता ही है, जंगल के अन्य जानवरों की भी प्यास बुझती हैं।
कहना गलत ना होगा कि हाथी जंगल का
पारिस्थितिकी तंत्र इंजीनियर है। उसके पद चिन्हों से कई छोटे जानवरों को सुरक्षित
रास्ता मिलता है। हाथी कि विशाल पद चिन्हों में यदि पानी भर जाता है तो वहां मेंढक
सहित कई छोटे जल-जीवों को आसरा मिल जाता हैं।
यह वैज्ञानिक तथ्य है कि जिस जंगल में
यह विशालकाय शाकाहारी जीव का वास होता है वहां आमतौर पर शिकारी या जंगल कटाई करने
वाले घुसने का साहस नहीं करते और तभी वहां हरियाली सुरक्षित रहती है और साथ में
बाघ, तेंदुए, भालू
जैसे जानवर भी निरापद रहते हैं।
कई-कई सदियों से यह हाथी अपनी जरूरत
के अनुरूप अपना स्थान बदला करता था । गजराज के आवागमन के इन रास्तों को ‘‘एलीफेंट कॉरीडार’’ कहा गया । जब
कभी पानी या भोजन का संकट होता है गजराज ऐसे रास्तों से दूसरे जंगलों की ओर जाता
है जिनमें मानव बस्ती ना हो। देश में हाथी
के सुरक्षित कॉरीडोरों की संख्या 88 हैं, इसमें 22 पूर्वोत्तर राज्यों , 20 केंद्रीय भारत और 20 दक्षिणी भारत में हैं। दरअसल,
गजराज की सबसे बड़ी खूबी है उनकी याददाश्त। आवागमन के लिए वे
पीढ़ी-दर-पीढ़ी परंपरागत रास्तों का इस्तेमाल करते आए हैं।
बढ़ती आबादी के भोजन और आवास की कमी को
पूरा करने के लिए जमकर जंगल काटे जा रहे हैं। उसे जब भूख लगती है और जंगल में कुछ
मिलता नहीं या फिर स्रोत सूखे मिलते हैं तो वे खेत या बस्ती की ओर आ जाते हैं
। नदी-तालाबों में शुद्ध पानी के लिए यदि मछलियों की मौजूदगी जरूरी है तो वनों के
पर्यांवरण को बचाने के लिए वहां हाथी अत्यावश्यक हैं । मानव आबादी के विस्तार, हाथियों के प्राकृतिक वास में कमी, जंगलों की कटाई और बेशकीमती दांतों का लालच; कुछ ऐसे
कारण हैं जिनके कारण हाथी को निर्ममता से मारा जा रहा है । हाथी का जंगल में रहना
कई लुप्त हो रहे पेड़-पौधों, सुक्ष्म जीव, जंगली जानवरों और पंक्षियों के संरक्षण
को सुनिश्चित रता है।
बहुत ज्ञानवर्धक लेख!
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