सावधान ! सूख रही है
यमुना
पंकज चतुर्वेदी
यह सच है कि इस बार गर्मी ने अपने तेवर जल्दी दिखा दिए लेकिन दिल्ली में अचानक यमुना का जल स्तर कम होना अलग ही खतरे की निशानी है, समझना होगा कि हमले से निकलने वाली नदियाँ तो ग्लेशियर के पिघलने से समृद्ध होती है, अर्थात यदि गर्मी जल्दी हुई तो बर्फ अधिक पिघलती है और नदी में जल का बहाव अधिक होना चाहिए . यमुना का जल स्तर घट गया है, इसकी वजह से दिल्ली के कई इलाकों में पेयजल सप्लाई प्रभावित हो रहा है। दिल्ली जल बोर्ड के अनुसार हरियाणा द्वारा यमुना में कम पानी छोड़ने की वजह से वजीराबाद तलाब का जलस्तर 674.50 फीट से घटकर 671.80 फीट पर पहुंच गया है। तालाब में पानी के कमी का असर वजीराबाद वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट पर पड़ रहा है। इसकी वजह से प्लांट की क्षमता में करीब 15 प्रतिशत तक की कमी आई है।
दिल्ली में पानी का संकट गहराता जा रहा है। बीते एक हफ्ते
में पानी की कम आपूर्ति के कारण कभी दिल्ली के जलसंयत्र को बंद करना पड़ता है तो
कभी दिल्ली में रही-बची यमुना की धार सफेद झाग के रूप में उन दावों को मुह चिढ़ाती
दिखती है जिसमें हर साल यमुना को प्रदूषण मुक्त करने या इसके किनारों को पर्यटन स्थल
बनाने के दावे होते हैं। दिल्ली हरियाण से पानी मांगता और हरियाणा सरकार ज्यादा
पानी देने से हाथ खड़े करते हुए कहती है कि चूंकि उनके यहां ही यमुना सूख चुकी है
सो वे दिल्ली को ज्यादा पानी नहीं दे सकते ।
टिहरी गढ़वाल के यमुनोत्री हिमनद से चल कर इलाहबाद के संगम
तक कोई 1376 किमी सफर तय करने
वाली यमुना की गति पर दिल्ली की सांस टिकी होती है । पानी कम हुआ तो हड़कंप मचा और
षुरू हो गया दिल्ली व हरियाणा के बीच तू-तू, मैं-मैं । यदि सतही बयानबाजी को परे रखा जाए तो यमुना में
पानी की कमी महज गरमी में पानी के टोटे तक सीमित नहीं है, हो सकता है कि भूगर्भ में ऐसे परिवर्तन हो रहे
हों, जिसका खामियाजा यहां के करोड़ो बाशिंदों को जल्दी
ही उठाना पड़े । यहां पर वाडिया इंस्टीट्श्ूट आफ हिमालयन जियोलाजी के जल विज्ञानी
डा. एस.के. बरतरिया का यह शोध गौरतलब है
कि सन 1966 से आज तक यमुना-गंगा
के उदगम पहाड़ों से जलप्रवाह में पचास फीसदी की कमी आई है। जाहिर है कि एक तरफ जहां
पानी की मांग बढ़ रही है, उसके स्त्रोत
सिकुड़ते जा रहे हैं।
यहां जानना जरूरी है कि 12 मई 1994 को केंद्र सरकार की
पहल पर पांच राज्यों के बीच यमुना के पानी के बंटवारे पर एक समझौता हुआ था । माना
गया था कि दिल्ली में ओखला बेराज तक यमुना में पानी का बहाव 11 अरब 70 करोड़ घनमीटर है । इसमें से हरियाणा को पांच अरब 73 करोड़ घनमीटर, उ.प्र. को चार अरब तीन लाख घमी, राजस्थान को एक अरब 11 करोड़ घमी, हिमाचल प्रदेश को 37 करोड़ घमी और दिल्ली को 72 करोड़ घनमीटर पानी मिलेगा । इस करार में मौसम और जल की
उपलब्धता के आधार पर पानी के निस्तारण का उल्लेख है । इस साल जब फरवरी में
अप्रत्याशित ढ़ंग से यमुना में कोई 30 फुट पानी कम हो गया तो दिल्ली वालों ने हरियाणा पर कम और
गंदा पानी छोड़ने का आरोप मढ़ दिया । हरियाणा ने भी दिल्ली पर तयशुदा संख्या से अधिक
पंप चला कर ज्यादा पानी खींचने को समस्या का कारण बता दिया । यह तय है कि जिस
रफ्तार से पानी का स्तर नीचे हुआ, उतना पानी कहीं चुरा
कर रखना या कहीं गुप्त तरीके से एकत्र करना संभव नहीं है ।
आरोप-प्रत्यारोप की इस कीचड़-उछाल में इस संकट के प्रमुख
कारण तो गौण हो गए । असल में हमारे पहाड़ जलवायु परिवर्तन की भयंकर मार झेल रहे हैं
इस बार ठंउ के मौसम में अक्तूबर से खूब बरफ गिरी, फिर डेढ महीने सूखा रहा। और फिर जब अप्रैल महीना लगा तो फिर
भयानक बरफ गिरने लगी। बरफ के अनियमित गिरने और उसके गलने के काल में फिर से ठंड हो
जाने से यमुना के उदगम से ही जल का आगम कम हुआ। गौरतलब है कि इसी बरफ के गलने से
गंगा-यमुना में पानी का बहाव आता है ।
भूवैज्ञानिक अविनाश खरे की माने तो पानी के अचानक गायब होने
के पीछे अंधाघुंध भूजल दोहन का भी हाथ हो सकता है। श्री खरे बताते हैं कि हरियाणा और दिल्ली के आसपास गहरे ट्यबवेलों की संख्या में खतरनाक सीमा तक वृद्धि हुई है ।
आमतौर पर कई ट्यूबवेल बारिश या अन्य बाहरी माध्यमों के सीपेज-वाटर पर काम करते हैं
। जब जमीन के भीतर यह सीपेज वाटर कम होता
है तो वहां निर्मित निर्वात करीब के किसी भी जल स्त्रोत के पानी को तेजी से खींच
लेता है । चूंकि यमुना के जल ग्रहण क्षेत्र में लाखों-लाख ट्यूबवेल रोपे गए हैं, संभव है कि इनमें से कुछ लाख के पानी का रिचार्ज
अचानक यमुना से होने लगा है । यहां जानना जरूरी है कि यमुना यदि के इलाकों की
भूगर्भ संरचना कठोर चट्टानों वाली नहीं है । यहां की मिट्टी सरंध्र्र है । नदी में
प्रदुषण के उच्च स्तर के कारण इसमें कई
फुट गहराई तक गाद भरी है , जोकि नदी के जलग्रहण
क्षमता को तो कम कर ही रही है , साथ ही पानी के
रिसाव के रास्ते भी बना रही है । इसका परिणाम यमुना के तटों पर दलदली भूमि के
विस्तार के तौर पर देखा जा सकता है ।
यमुना के पानी के गायब होने का एक और भूगर्भीय कारण बेहद
डरावना सच है । यह सभी जानते हैं कि पहाड़ों से दिल्ली तक यमुना के आने का रास्ता
भूकंप प्रभावित संभावित इलाकों में अतिसंवेदनशील श्रेणी मे आता हैं । प्लेट
टेक्टोनिज्म(विवर्तनीकी) के सिद्धांत के अनुसार भूगर्भ में स्थलमंडलीय प्लेटों में
हलचल होने पर भूकंप आते हैं । भूकंप के झटकों के कई महीनों बाद तक धरती के भीतर 25 से 60 किलोमीटर नीचे हलचल मची रहती है । कई बार टेक्टोनिक
प्लेटों के टकराव के बाद कई दरारें बन जाती हैं । परिणामस्वरूप कई बार भूजल
स्त्रोतों का स्तर बढ़ जाता है या कई बार पानी दरारों से हो कर तेजी से पाताल में
चला जाता है । कृत्रिम बांधों के कारण बने जलाशयों में एकत्र पानी के भार से भूतल
पर दवाब बनने और इन दवाबों के कारण षैल परतों में हलचल होना भी एक भूवैज्ञानिक
तथ्य है । सनद रहे दिल्ली तक आते-आते यमुना के प्राकृतिक बहाव पर कई जगह दरवाजे
लगाए गए हैं । यह हालत भविश्य में भयंकर भूकंप की ओर इशारा भी है । अमेरिका की
कोलेरिडा नदी पर बने बांध में एकत्र पानी के दवाब के चलते वहां भूकंप आना एक
वैज्ञानिक तथ्य है ।
बहरहाल , यमुना नदी के जल
स्तर में अचानक गिराव आना एक गंभीर समस्या है। इसके सभी संभावित कारण - अंधाधुंध
भूजल दोहन, पानी का दवाब या फिर
प्रदूषित गाद ; सभी कुछ मानवजन्य ही है । इसके प्रति सरकार के साथ-साथ समाज का संवेदनशील
होना ही दिल्ली के संभावित विस्फोटक हालात का एकमात्र बचाव है । दिल्ली में 48 किलोमीटर सफर करने के बाद यहां के पानी में इस
महानगर की कितनी गंदगी जुड़ती है, इस पर तो इस शहर को
ही सोचना होगा। यमुना के जल-ग्रहण क्षेत्र में हो रहे लगातार जायज-नाजायज निर्माण
कार्य भी इसे उथली बना रहे हैं।
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