इससे तो जंगल और खत्म हो जाएंगे
सरकारी दस्तावेज देखकर खुश होइए कि देश में जंगल बढ़ रहे। दरअसल, आपके मुहल्ले की हरियाली भी वन क्षेत्र में शामिल की जा रही। नए विधेयक से वन क्षेत्र और कम होने की आशंका
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वैश्विक तौर पर, जंगलों की स्वीकार्य परिभाषा यह है कि एक हेक्टेयर इलाके में कम-से-कम 10 प्रतिशत पेड़ों से आच्छादित इलाका हो। लेकिन भारत में आंकड़े दिखाने के लिए इसमें बाग-बगीचों, चाय बागानों, व्यावसायिक पौधरोपणों, पान के बरेजों और यहां तक कि हाउसिंग सोसाइटियों में रोपे गए पौधों, यहां तक उपनगरीय इलाकों में एक कतार में लगे पेड़ों को भी अचानक इसमें ’जंगल’ के तौर पर को भी शामिल कर लिया गया। इसलिए आश्चर्य नहीं कि आधिकारिक रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि वन क्षेत्र बढ़ रहा है
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पंकज चतुर्वेदी
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भाजपा सांसद मेनका गांधी ने 2019 में संसद में चेताया था कि सेटेलाइट से ली गई तस्वीरें भ्रमित करने वाली हो सकती हैं। उन्होंने तत्कालीन पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से कहा था कि ऐसी तस्वीरों में गन्ने के खेत को भी जंगल के तौर पर दर्ज किया जा सकता है। दरअसल, मंत्री ने इससे पहले दावा किया था कि सिर्फ एक साल में ही वन क्षेत्र एक प्रतिशत तक बढ़ गया है।
मेनका की आशंका गलत नहीं थी। इंडियन एक्सप्रेस ने खबर दी है कि इस साल के आरंभ में जारी वन रिपोर्ट, 2021 में मंत्रियों, वरिष्ठ अफसरों के बंगलों वाली लुटियन्स दिल्ली और संसद मार्ग के भारतीय रिजर्व बैंक भवन, दिल्ली आईआईटी और एम्स के हिस्सों को ’वन क्षेत्र’ के तौर पर दर्ज किया गया है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआई) भुगतान पर ’वन नक्शा’ उपलब्ध कराता है। उसने इस शर्त के साथ इसे उपलब्ध कराया कि इसकी मीडिया के साथ साझेदारी नहीं की जाएगी। एफएसआई निदेशक ने इस आधार पर इंडियन एक्सप्रेस से बात करने से मना कर दिया कि उन्हें ऐसा करने का अधिकार नहीं है!
नवीनतम रिपोर्ट में दावा किया गया है कि देश के इलाके का लगभग एक च ौथाई हिस्सा वन क्षेत्र है। कागजों में 24.62 प्रतिशत ’वन क्षेत्र’ का विकास हो रहा है। अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत राष्ट्रीय रिमोट सेन्सिंग एजेंसी (एनआरएसए) ने 1971-1975 (16.89 प्रतिशत) और 1980-1982(14.10 प्रतिशत) की अवधि के लिए उपग्रह चित्रों के माध्यम से बताया था कि केवल सात वर्षों में 2.79 प्रतिशत जंगल गायब हो गए थे। लेकिन 2021 के लिए 24.62 प्रतिशत आंकड़े के लिए बाग-बगीचों, चाय बागानों, व्यावसायिक पौधारोपणों, पान के बरेजों और यहां तक कि हाउसिंग सोसाइटियों में रोपे गए पौधों को भी शामिल कर लिया गया। इसलिए आश्चर्य नहीं कि आधिकारिक रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि वन क्षेत्र बढ़ रहा है।
वैश्विक तौर पर, जंगलों की स्वीकार्य परिभाषा यह है कि एक हेक्टेयर इलाके में कम-से-कम 10 प्रतिशत पेड़ों से आच्छादित इलाका हो। इंडियन स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (आईएसएफआर) में वन की गणना के लिए एक हेक्टेयर या उससे अधिक के ऐसे सभी भूखंडों को शामिल किया गया है जहां कम-से-कम 10 प्रतिशत वृक्ष हों, फिर वह भूमि चाहे निजी हो बगीचा हो। इसीलिए, चाय बागानों, नारियल के सघन पेड़ों वाले इलाकों, आम के बगीचों, हाउसिंग सोसाइटियों के पेड़-पौधों, यहां तक उपनगरीय इलाकों में एक कतार में लगे पेड़ों को भी अचानक इसमें ’जंगल’ के तौर पर शामिल कर लिया गया है। 1990 के दशक में बाद के वर्षों से ऐसा किया जाने लगा और इस तरह भारत के वन क्षेत्र में 38,000 वर्ग किलामीटर तक की बढ़ोतरी हो गई। केरल राज्य का क्षेत्रफल लगभग इतना ही है।
यह बात समझनी होगी कि वन और हरियाली में फर्क होता है। नैसर्गिक जंगलों के पारिस्थितिकीय, आर्थिक और सांस्कृतिक मूल्य वृहत्तर होते हैं। नैसर्गिक जंगलों को बनने में सदियों लगते हैं और वे वनस्पतियों और जीवों- दोनों की मदद करते हैं। उनकी जगह तेजी से बढ़ने वाले पेड़-पौधों को उगाने से कुछ होता-जाता नहीं है। लेकिन लगता है कि भारत सरकार का दर्शन यह है कि हर पेड़ की गणना की जा सकती है- भले ही उसकी प्रकृति कुछ भी हो।
नैसर्गिक वन ऐसे लाखों-करोड़ों लोगों को जीवन-यापन और सांस्कृतिक जीवन उपलब्ध कराता है जो तेंदु पत्ते, महुआ, जंगली फल, जलाने की लकड़ी, दवाओं आदि समेत अन्य चीजों के लिए जंगल और जंगली उत्पादों पर निर्भर होते हैं। इसके विपरीत पौधरोपण में इस किस्म की जीवन-व्यवस्था का लोप है। ’जंगल उजाड़ने के बदले में किया जाने वाले पौधरोपण’ की तुलना इसी वजह से नैसर्गिं वनों से नहीं की जा सकती।
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बड़े पैमाने पर जंगलों को काटने से होने वाले बड़े आर्थिक नुकसान और लोगों को होने वाली स्वास्थ्य कठिनाइयों को भी सरकार स्वीकार नहीं करती। 1997 और 2005 के बीच असम में सोनितपुर में बड़े पैमाने पर जंगल काटे गए। इसस फसलों का नुकसान तो हुआ ही, हाथियों और लोगों के बीच संघर्ष में दोनों की जानें गईं और मलेरिया में आठ गुना तक बढ़ोतरी हो गई।
वस्तुतः, भारत का 98 देशों में दूसरा स्थान है जहां तेजी से जंगलों को काटा जा रहा है। ब्रिटेन की यूटिलिटी बिडर की रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले 30 साल में भारत में 6,68,400 हेक्टयर वन क्षेत्र कम हुआ है। इसके बाद ब्राजील और इंडोनेशिया का स्थान है। डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के अनुसार, ऑनलाइन आवर वर्ल्ड इन डेटा में दिए आंकड़ों से संकेत मिलता है कि 1990 और 2000 के बीच के दशक में भारत में 3,84,000 हेक्टेयर जंगल कम हुए जबकि 2015 और 2020 के बीच के पांच वर्षों में 6,68,400 हेक्टेयर वन क्षेत्र की कमी हुई।
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय एक्शन प्लान के अंतर्गत आठ मिशन में से एक है- राष्ट्रीय मिशन फॉर अ ग्रीन इंडिया (जीआईएम)। इसका मकसद भारत के वन क्षेत्र की रक्षा, संरक्षण और इसमें वृद्धि है। इस मिशन के अंतर्गत वन/पेड़ आच्छादन में बढ़ोतरी के लिए वन और गैर वन भूमि पर एक करोड़ हेक्टेयर पौधे लगाना और जहां अभी जंगल हैं, वहां की गुणवत्ता बढ़ाना है। इसके अंतर्गत 2015-16 से 2021-22 के बीच 53,377 हेक्टेयर पेड़/वन क्षेत्र बढ़ाना और 1,66,565 हेक्टेयर बंजर जंगलां की गुणवत्ता बेहतर करने का लक्ष्य था। केरल के आरटीआई कार्यकर्ता गोविंदन नमपूथरी के सवाल के जवाब में पर्यावरण मंत्रालय ने स्वीकार किया कि 17 राज्यों के आंकड़े बताते हैं कि 31 दिसंबर, 2022 तक पेड़ आच्छादन/ वन क्षेत्र 26,287 हेक्टेयर तक बढ़े हैं और सिर्फ 1,02,096 हेक्टेयर में वन की गुणवत्ता बढ़ी है। इन योजनाओं के लिए केन्द्र सरकार ने 681 करोड़ आवंटित किए लेकिन इनमें से सिर्फ 525 करोड़ रुपये का उपयोग किया गया।
जंगल की जमीन पर अतिक्रमण कर वहां बस्ती या खेत बसाने के कोई अधिकृत आंकड़े तो नहीं हैं लेकिन कुछ साल पहले संसद में बताया गया था कि 1951 और 1980 के बीच 42,380 वर्ग किलोमीटर वन भूमि को गैर-वन उपयोग के लिए बदल दिया गया। सनद रहे, यह क्षेत्रफल हरियाणा राज्य के बराबर है।
जंगल में आग, खनन, विकास के लिए जमीन-उपयोग के बदलाव की अंधाधुंध मार के बीच भारतीय वन सर्वेक्षण ने 2011 में जो आंकड़े प्रस्तुत किए, उससे पता चला कि कागजों पर दर्ज जंगल के एक तिहाई हिस्से पर कोई जंगल नहीं था। दूसरे शब्दों में, भारत के पुराने प्राकृतिक वनों का लगभग एक तिहाई- 2.44 लाख वर्ग किलोमीटर (उत्तर प्रदेश से बड़ा) या भारत का 7.43 प्रतिशत पहले ही समाप्त हो चुका है।
प्राकृतिक वन सिकुड़ रहे हैं लेकिन आंकड़ों में हरियाली का विस्तार हो रहा है लेकिन जिस तेजी से जंगल का विस्तार बताया जा रहा है, असल में यह संभव ही नहीं है। यह हरियाली व्यावसायिक वृक्षारोपण, बागों, ग्रामीण घरों, शहरी आवासों के कारण तो है लेकिन यह वन नहीं है।
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संभवतः इन सवालों के जवाब से बचने के लिए ही केन्द्र सरकार ने लोकसभा में वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023 पेश किया जिसका उद्देश्य वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में संशोधन करना है। इसे राज्यसभा की आठ समितियों में से एक- विज्ञान, प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और वन संबंधी संसदीय स्थायी समिति के बजाय संसद की संयुक्त समिति को भेज दिया गया। इसमें कांग्रेस समेत किसी भी प्रमुख विपक्षी दल के सदस्य शामिल नहीं हैं।
कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने इसके खिलाफ राज्यसभा अध्यक्ष जगदीप धनगड़ को लिखा है। उन्होंने लिखा है कि ’वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023 को संयुक्त समिति में संदर्भित कर केन्द्र सरकार जानबूझकर स्थायी समिति को बायपास कर रही है जिसमें सभी हितधारकों की पूर्ण भागीदारी है और जो कानून सम्मत दायरे में विधेयक की विस्तृत समीक्षा कर सकती थी।’ वास्तव में, यह विधेयक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन संबंधी संसद की स्थायी समिति के अधिकार क्षेत्र में आता है और किसी भी संशोधन या सुझाव के लिए संसदीय स्थायी समिति ही उत्तरदायी होती है।
इस बिल की प्रस्तावना ही कह देती है कि इसका असल उद्देश्य पैसा कमाना है। विधेयक की प्रस्तावना में ‘आर्थिक आवश्यकताएं’ शब्द शामिल है। यह कहता है कि ’वनों के संरक्षण, प्रबंधन और बहाली, पारिस्थितिकीय सुरक्षा को बनाए रखने, वनों के सांस्कृतिक और पारंपरिक मूल्यों को बनाए रखने और आर्थिक आवश्यकताओं और कार्बन तटस्थता को सुविधाजनक बनाने से संबंधित प्रावधान प्रदान करना आवश्यक है।’
संशोधन बिल के प्रावधान यदि लागू हो गए तो कई जंगलों की कटाई के लिए अनापत्ति (नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट) की औपचारिकता समाप्त हो जाएगी। यह कहता है कि अंतरराष्ट्रीय सीमा के 100 किलोमीटर के भीतर सार्वजनिक सड़क, रक्षा और अर्धसैनिक बलों के लिए प्रतिष्ठान वन भूमि पर बनाए जा सकेंगे। यह रेलवे और सड़कों (0.10 हेक्टेयर तक) के साथ-साथ वन भूमि को भी छूट देता है। छूट की सूची में अब चिड़ियाघर/सफारी की स्थापना, प्रबंधन योजना में शामिल इकोटूरिज्म सुविधाएं, केन्द्र के आदेश वाली या निर्दिष्ट किसी अन्य समान उद्देश्य’ के लिए शामिल हैं।
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पंकज चतुर्वेदी पर्यावरण-संबंधी विषयों पर नियमित रूप से लिखते हैं।
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