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शुक्रवार, 26 मई 2023

Disappearing water bodies of Raipur

 राजधानी बनते ही ताल तलैया चाट गया रायपुर

पंकज चतुर्वेदी



छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में इस बार अप्रेल का मौसम इतना गर्म नहीं था लेकिन पानी की किल्लत चरम पर रही . यदि शहर की जल कुंडली देखें तो चप्पे-चप्पे पर जल निधियों की का जाल है लेकिन नल रीते हैं और भूजल पाताल में तीन साल पहले एन जी टी में सुनवाई के समय सरकारी रिकार्ड के अनुसार बताया गया था कि शहर में  कुल 227 तालाब हुआ करते थे, जिनमे से 53 तालाब सूख गए या भूमाफियाओं की भेंट चढ़ गए और 175 ही  बाकी बचे . हाल ही में नगर निगम ने बताया है कि अब शहर में 109  ही तालाब बचे हैं अर्थात तीन साल में  66 तालाब लुप्त हो गए ? सरकारी रिकार्ड ही बानगी है कि रायपुर में तालाब लुप्त होने से पहले उनका क्षेत्रफल घटता है और फिर अचानक उनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है .

 छत्तीसगढ़ राज्य और उसकी राजधानी रायपुर बनने से पहले तक यह नगर तालाबों की नगरी कहलाता था, ना कभी नलों में पानी की कमी रहती थी और ना आंख में । राज्य़ क्या बना, बहुत से दफ्तर,घर, सड़क की जरूरत हुई और देखते ही देखते ताल-तलैयों की बलि चढ़ने लगी। वैसे रायपुर में तालाबों को खुदवाना बेहद गंभीर भूवैज्ञानिक तथ्य की देन हे। यहां के कुछ इलाकों में भूमि में दस मीटर गहराई पर लाल-पीली मिट्टी की अनूठी  परत है जो पानी को रोकने के लिए प्लास्टिक परत की तरह काम करती है। पुरानी बस्ती, आमापारा, समता कालेानी इलाकों में 10 मीटर गहराई तक मुरम या लेटोविट, इसके नीचे 10 से 15 मीटर में छुई माटी या शेलयेलो और इसके 100 मीटर गहराई तक चूना या लाईम स्टोन है। तभी जहां तालाब हैं वहां कभी कुंए सफल नहीं हुए। यह जाना मान तथ्य है कि रायपुर में जितनी अधिकतम बारिश  होती है उसे मौजूद तालाबों की महज एक मीटर गहराई में रोका जा सकता था। जीई रोड पर समानांतर तालाबों  की एक श्रंखला है जिसकी खासियत है कि निचले हिस्से में बहने वाले पानी को यू-शेप  का तालाब बना कर रोका गया है। ब्लाक सिस्टम के तहत हांडी तालाब, कारी, धोबनी, घोडारी, आमा तालाब, रामकुंड, कर्बला और चौबे कालोनी के तालाब जुड़े हुए हैं। बूढा तालाब व बंधवा के ओवर फ्लो का खरून नदी में मिलना एक विरली पुरानी तकनीक रही है। बेतरतीब निर्माण ने तालाबों कं अंतर्संबंधेंा, नहरों और जल आवक रास्तो को ही निरूद्ध नहीं किया, अपनी तकदीर पर भी सूखे को जन्म दे दिया। रही बची कसर यहां के लोगों की धार्मिक आयोजनों बढती रूचि ने खड़ी कर दी। महानगर में हर साल कोंई दस हजार गणपति, दुर्गा प्रतिमा आदि की स्थापना हो रही है और इनका विसर्जन इन्ही तालाबों में हो रहा है। प्लास्टर आफ पेरिस, रासायनिक रंग, प्लास्टिक के सजावटी सामान , अभ्रक, आर्सेनिक, थर्मोकोल आदि इन तालाबों को उथला, जहरीला व गंदला कर रहे हैं।

कभी बूढ़ा तालाब शहर का बड़ा-बूढ़ा हुआ करता था। कहते हैं कि सन 1402 के आसपास राजा ब्रहृदेव ने रायपुर की स्थापना की थी और तभी यह ताल बना। सनद रहे बूढा तालाब पहले अन्य तालाबों से जुड़ा था कि इसमें पानी लबालब होते ही महाराजबंध तालाब में पानी जाने लगता था और उसके आगे अन्य किसी में। महाराजबंध  अभी आज़ादी के बाद तक 100 एकड़ का था अब महज 33 एकड़ रह गया, सरकारी एजेंसियों ने भी इस पर सडक बना कर इसकी जमीन के कब्जों को मान्यता दे दी . इन तालाब-श्रंखलाओं के कारण ना तो रायपुर कभी प्यासा रहता और ना ही तालाब की सिंचाई, मछली, सिंघाड़ा आदि के चलते भूखा। कहते हैं कि इस तालाब के किनारे से कोलकाता-मुंबई और जगन्नाथ पुरी जाने के रास्ते निकलते थे। बताते हैं कि एकबार पृथ्वीराज कपूर रायपुर आए थे तो वे बूढ़ा तालाब को देख कर मंत्र-मुगध हो गए थे। वे जितने दिन भी यहां रहे, हर रोज यहां नहाने आते थे। लेकिन आज यह जाहिरा तौर पर कूड़ा फैकने व गंदगी उड़ेलने की जगह बन गया है। वैसे आज इसका नाम विवेकानंद तालाब हो गया , क्योंकि इसके बीचों बीच विवेकानंद की एक प्रतिमा स्थापित की गई है, लेकिन यहां जानना जरूरी है कि बूढ़ा से विवेकानंद तालाब बनने की प्रक्रिया में इसका क्षेत्रफल 150 एकड़ से घट कर 60 एकड़ हो गया। बताते हैंकि जब स्वामी विवेकानंद 14 साल के थे तो रायपुर  आए थे व वे तैर कर तालाब के बीच में बने टापू तक जाते थे। जलकुंभी से पटे तालाब के बड़े हिस्से पर लोग कब्जा कर चुके हैं, जो रहा बचा है वहां जलकुभी का साम्राज्य है। यही कहानी दीगर तालाबों की है- दलदल, बदबू, सूखा, कचरा।

शहर के कई चर्चित तालाब देखते-देखते ओझल हो गए- रजबंधा तालाब का फैलाव 7.975 हैक्टर था, आज वहां चौरस मैदान है। छह हैक्टर से बड़े सरजूबंधा को पुलिस लाईन लील गई तो डेढ हैक्टर के  खंतो तालाब पर शक्तिनगर कालोनी बन गई। पचारी, नया तालाब और गोगांव ताल को उद्योग विभाग के हवाले कर दिया गया तो ढाबा तालाब(कोटा) औरडबरी तालाब(खमरडीह) पर कब्जे हो गए। ऐसे ही कंकाली ताल, ट्रस्ट तालाब, नारून तालाब आदि दसियों पर या तो कब्जे हो गए या फिर वे सिकुड कर षून्य की ओर बढ़ रहे हैं।

यहां जानना जरूरी है कि छत्तीसगढ़ में तालाब एक लोक परंपरा व सामाजिक दायित्व रहा है। यहां का लोनिया, सबरिया, बेलदार, रामनामी जैसे समाज पीढ़ियों से तालाब गढ़ते आए हैं। अंग्रेजी शासन के समय पड़े भीषण  अकाल के दौरान तत्कालीन सरकार ने खूब तालाब खुदवाए थे और ऐसे कई सौ तालाब पूरे अंचल में ‘लंकेटर तालाब’ के नाम से आज भी विद्यमान हैं।

यहां की पहली हिंदी पत्रिका कहलाने वाली  ‘छत्तीसगढ मित्र’ के मार्च-अप्रैल, 1900 के अंक का  एक आलेख गवाह है कि उस काल में भी समाज तालाबों को ले कर कितना गंभीर व चिंतित था । आलेख कुछ इस तरह था - ‘‘ रायपुर का आमा तालाब प्रसिद्ध है यह तालाब श्रीयुत् सोभाराम साव रायपुर निवासी के पूर्वजों ने बनवाया था। अब उसका पानी सूख कर खराब हो गया है। उपर्युक्त सावजी ने उसकी मरम्म्त पर 17000 रूप्ए खर्च करने का निश्चय  किया है। काम भी जोर शोर से जारी हो गया है। आपका औदार्य इस प्रदेश  में चिरकाल से प्रसिद्ध है। सरकार को चाहिए कि इसी ओर ध्यान देवे।’’

रायपुर का तेलीबांधा तालाब सन 1929-30 के पुराने राजस्व रिकार्ड में 35 एकड़ का  था,लेकिन आज इसके आधे पर भी पानी नहीं है। उस रिकार्ड के मुताबिक आज जीई रोड का गौरव पथ तालाब पर ही है। इसके अलावा जलविहार कालेनी की सड़क, बगीचा, आरडीए परिसर, लायंस क्लब का सभागार भी पानी की जगह पर बना है। यहां 12 एकड़ जमीन खाली करवा कर वहां बसे लोगों को बोरियाकला में विस्थापित किया गया। जब यह जमीन खाली हुई तो इससे दो एकड़ जमीन नगर निगम मकान बनाने के लिए मांगने लगा।

अब तो नया रायपुर बन रहा है, अभनपुर के सामने तक फैला है और इसको बनाने में ना जाने कितने ताल-तलैया, जोहड़, नाले दफन हो गए हैं। यहंा खूब चौड़ी सड़के हैं, भवन चमचमाते हुए हैं, सबकुछ उजला है, लेकिन सवाल खड़ा है कि इस नई बसाहट के लिए पानी कहां से आएगा ? तालाब तो हम हड़प कर गए हैं।

 

 

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