आखिर क्यों नहीं साकार हो रही है तीस्ता जल वितरण योजना
पंकज चतुर्वेदी
हाल ही में संपन्न जी- 20 की नई दिल्ली में संपन्न बैठक में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को उम्मीद थी कि तीस्ता नदी से उनके देश को पानी मिलने का रास्ता शायद साफ़ हो जाए . हालाँकि हमारी विदेश मंत्रालय के संसदीय स्थाई समिति ने भी यह सिफारिश कर दी है कि लम्बे समय से लटके तीस्ता जल विवाद का समाधान कर हमें बांग्लादेश से द्विपक्षीय सम्बन्ध प्रगाढ़ करना चाहिए . वैसे तो भारत और बांग्लादेश की सीमायें कोई 54 नदियों का जल साझा करती हैं और पिछले साल अक्तूबर में बांग्लादेश की प्रधान मंत्री के भारत आगमन पर कुशियारा नदी से पानी की निकासी पर भारत सरकार और बांग्ला देश के बीच समझोता भी हुआ था , जिसका लाभ दक्षिणी असम और बांग्लादेश के सिलहट के किसानो को मिलना है , लेकिन तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे का मसला हर बार विमर्श में तो आता है लेकिन उस पर सहमती नहीं बन पाती, तीस्ता नदी हमारे लिए केवल जलापूर्ति के लिए ही नहीं ,बल्कि बाढ़ प्रबंधन के लिए भी महत्वपूर्ण है.
तीस्ता नदी सिक्किम राज्य के हिमालयी क्षेत्र के पाहुनरी ग्लेशियर से निकलती है। फिर पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है और बाद में बांग्लादेश में रंगपुर से बहती हुई फुलचोरी में ब्रह्मपुत्र नदी में समाहित हो जाती है। तीस्ता नदी की लम्बाई 413 किलोमीटर है। यह नदी सिक्किम में 150 किलोमीटर , पश्चिम बंगाल के 142 किलोमीटर और फिर बांग्लादेश में 120 किलोमीटर बहती है। तिस्ता नदी का 83 फीसदी हिस्सा भारत में और 17 फीसदी हिस्सा बांग्लादेश में है। सिक्किम और उत्तरी बंगाल के छः जिलों के कोई करीब एक करोङ बाशिंदे खेती, सिंचाई और पेय जल के लिए इस पर निर्भर हैं . ठीक यही हाल बांग्लादेश का भी है चूँकि 1947 बंटवारे के समय नदी का जलग्रहण क्षेत्र भारत के हिस्से में आया था , सो इसके पानी का वितरण ब्बीते 75 साल से अनसुलझा है. सन 1972 में पाकिस्तान से अलग हो कर बांग्लादेश के बना और उसी साल दोनों देशों ने साझा नदियों के जल वितरण पर सहमती के लिए ’संयुक्त जल आयोग’ का गठन किया .
आयोग की पहली रिपोर्ट 1983 में आई ,
जिसके मुताबिक सन 1983 में भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता नदी को लेकर एक समझौता हुआ. इसके
तहत 39 प्रतिशत जल भारत को और बांग्लादेश को 36 प्रतिशत जल मिलना तय हुआ . 25 प्रतिशत जल को यूँ ही रहने दिया और बाद में भारत इसका इस्तेमाल करने लगा. इस पर
बांग्लादेश को आपत्ति रही लेकिन उसने भी
सन 1998 अपने यहाँ तीस्ता नदी पर एक बांध बना लिया और भारत से अधिक पानी की मांग करने लगा . ठीक
उसी समय भारत ने जलपाईगुड़ी जिले के मालबाजार उपखंड में
नीलफामारी में तीस्ता नदी ग़ज़लडोबा
बांध बना लिया . इससे तीस्ता नदी का नियंत्रण भारत के हाथ में चला गया। बांध में 54 गेट हैं जो तीस्ता की मुख्य धारा से पानी को विभिन्न क्षेत्रों में
मोड़ने के लिए हैं। बांध मुख्य रूप से तीस्ता के पानी को तीस्ता-महानंदा नहर में
मोड़ने के लिए बनाया गया था।
सितंबर 2011 में, भारत
के तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह जब ढाका गए तो तीस्ता जल बंटवारा समझौता
होना तय हुआ था . मसौदे के मुताबिक़ अंतरिम समझौते की अवधि 15
वर्ष थी और तीस्ता के 42.5 फीसदी पानी पर भारत का और 37.5 फीसदी पर बांग्लादेश का हक होना था. उस समय पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री
ममता बनर्जी ने विरोध किया और समझोता हो
नहीं पाया . फिर 2014 में, प्रधान
मंत्री शेख हसीना भारत का दौरे पर आई तो एक बार समझोते की उम्मीद बढ़ी. उस बार सुश्री शेख हसीना ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी
से मुलाकात भी की लेकिन ममता बनर्जी असहमत
रहीं . उनका कहना था कि इस समझोते से उत्तर
बंगाल के लोगों का पानी छीन कर बांग्लादेश दिया जा रहा है . सन 2015 में ममता
बनर्जी, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ढाका दौरे पर गई , उन्होंने समझोते के प्रति सकारात्मक बयान भी दिए थे लेकिन बात फिर कहीं अटक
गई . जान लें जब हम इस समय 62 .5 फ़ीसदी पानी का इस्तेमाल हम कर ही रहे हैं तो 42.5 पर आना तो घाटे का सौदा ही लगेगा .
विदित हो 5 जनवरी, 2021 को भारत-बांग्लादेश
संयुक्त नदी आयोग की तकनीकी समिति की संपन्न बैठक में बहुत सी नदियों के जल वितरण
के समझोते के मसौदे को अंतिम रूप दिया गया . त्रिपुरा के सबरूम शहर में पानी के
संकट को दूर करने के लिए फेनी नदी से 1.82 क्यूसेक पानी निकालने पर बांग्लादेश ने
मानवीय आधार प् सहमती भी दी लेकिन तीस्ता जल के वितरण का मुद्दा अनसुलझा ही रहा .
यह तय है कि तीस्ता भी
जलवायु परिवर्तन और ढेर सारे बांधों के कारण संकट में है .ग़ज़लडोबा बांध से पहले
जहां तीस्ता बेसिन में 2500 क्यूसेक पानी उपलब्ध था,
आज यह बहाव 400 क्यूसेक से भी कम है. 1997
में बांग्लादेश में शुष्क मौसम के दौरान, तीस्ता
में पानी का प्रवाह लगभग 6,500 क्यूसेक था, जो 2006 में घटकर 1,348 क्यूसेक
हो गया और 2014 में यह केवल 800 क्यूसेक
रह गया. नदी में जल कम होने का खामियाजा
डॉन तरफ के किसानों को उठाना पद रहा है . दुर्भाग्य है की यह सदानीरा नदी गर्मी
में बिलकुल सूख जाती है और लोग पैदल ही नदी पार करते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि
सलीके से वितरण, बाढ़ प्रबंधन और बेसिन
क्षेत्र में कम बरसात के चलते तीस्ता एक मृत नदी में बदल गई है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो न सिर्फ जनजीवन बल्कि
जैव विविधता को भी खतरा होगा। तीस्ता जल बंटवारा समझौता अब समय की मांग है। लेकिन
तीस्ता जल-साझाकरण समझौते पर भारत की शिथिलता स्थानीय राजनीती के जंजाल में फंसी
हुई है .
दोनों पडोसी देशों के बीच
समझोता न हो पाने का लाभ चीन उठा रहा है.
पेइचिंग ने बांग्ला देश को 937. 8 मिलियन डॉलर की मदद दे कर तीस्ता मेगा
परियोजना शुरू करवा दी है . इसके तहत एक
बड़े जलाशय का निर्माण , नदी के गहरीकरण के
लिए खुदाई , लभग 173 किलोमीटर पर नदी तटबंध निर्माण की योजना है . इसके पूर्ण होने
से बाढ़ के समय तीस्ता का जल
तेज प्रवाह से बांग्लादेश की तरफ जाएगा और भंडारण भी होगा, इसका सीधा असर
भारत पर पडेगा
तीस्ता नदी में अपार
संभावनाएं हैं। यदि तीस्ता जल-साझाकरण समझौते या तीस्ता परियोजना का उचित
कार्यान्वयन संभव हो जाता है तो न केवल तीस्ता तट या उत्तर बंगाल के लोग बल्कि
पूरे बांग्लादेश को इसका लाभ मिलेगा। उत्तर बंगाल की जनता के सार्वजनिक जीवन में
बदलाव आएगा। पूर्वोत्तर राज्यों में बाढ़ नियंत्रण होने से अर्थव्यवस्था समृद्ध
होगी.
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