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गुरुवार, 21 सितंबर 2023

Libya's inundation is a tragedy of mixed climate change and human negligence

        मौसम की मार  और इंसानी कोताही की मिलीजुली त्रासदी है लीबिया का जलप्लावन
पंकज चतुर्वेदी
 


कभी लीबिया के सांस्कृतिक राजधानी कहलाने समुद्र के किनारे बसे दरना में इस समय मौत नाच रही है , कोई नब्बे हज़ार आबादी के शहर में 21 हज़ार लोग या तो मारे गए हैं या  लापता हैं . शहर का आधा हिस्सा सुनामी  की तरह आय सैलाब में पूरी तरह बह गया . जलवायु परिवर्तन, बड़े बाँध, कम रखरखाव वाले बाँध किस तरह मानवीय इतिहास की भीषणतम त्रासदी ला सकते हैं, यह दुनिया को चेतावनी है. अभी दस सितम्बर को भूमध्यसागरीय चक्रवाती  तूफ़ान के साथ साथ , पहाड़ों से घिरे दरना शहर में भूस्खलन हुआ , मूसलाधार बारिश और भयंकर हवाएँ चलीं . उसके बाद इस शहर को बाढ़ से बचाने के लिए बनाए गये दो विशाल बाँध  मिटटी के ढेर से बिखर गए और पानी ने तबाही मचा दी ..

यह सभी जानते थे कि दरना शहर  बाढ़ त्रासदी को ले कर संवेदनशील रहा है . सन 1942 से अभी तक कम से कम पांच  बार यहाँ भयानक बाढ़ आई है  . शहर को बाढ़ से बचाने के लिए सत्तर के दशक में वादी- देरना जल धारा  पर यहाँ दो बाँध बनाए गये . इनमें से एक अल- बिलाद तो शहर से बमुश्किल एक किलोमीटर दूर था . कोई 45 मीटर उंचाई के इस बाँध की जलग्रहण क्षमता  1.5  मिलियन क्यूबिक मीटर थी . जबकि दूसरा बाँध अबू मंसूर शहर से कोई 13 किमी दूर था, जिसकी ऊंचाई 75 मीटर और जल क्षमता 22.5 मिलियन क्यूबिक मीटर थी . विदित हो लीबिया में कर्नल गद्दाफी की सरकार के पतन के बाद देश  विभिन्न  सशस्त्र  गिरोहों की हिंसा का शिकार है . देश के दो हिस्सों में अलग-अलग लोगों का नियन्त्रण है . ऐसे में बांधों के रखरखाव की किसी को परवाह थी नहीं . दोनों बाँध इस तरह बने थे कि एक के भरने पर दूसरा भरता था . त्रासदी के समय इनमें एक साथ इतना पानी आ गया कि पहले अल बिलाद बांध भर गया और उसके जल भराव ने पानी को पीछे की तरफ धकेला . उधर अबू मंसूर में पहले से ही पानी भरा था . वह इस रिवर्स प्रेशर से  बिखर गया और इस तरह दोनों कमजोर बाँध एक आपदा में बदल गए .

सीबा यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित पुरे एंड एप्लाइड साइंस जर्नल, वॉल्यूम 21, वर्ष 2022 में एक साल पहले ए आर आशूर , ओमर अल –मुख़्तार यूनिवर्सिटी , अलबीदा, लीबिया का एक शोध पत्र प्रकाशित हुआ था जिसमें बरसात के बढ़ते मिजाज और  बांधों की जर्जर हालत के चलते किसी बड़े खतरे की चेतावनी दी गई  थी . हालंकि यह शोध सारी दुनिया  में पढ़ा गया  लेकिन न तो लीबिया सरकार और न ही विश्व के अन्य देश या संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं ने इसकी कोई परवाह की . परिणाम मने ऐसे तबाही है जिसका खामियाजा अभी सालों भोगना है . अभी लोग वहां साफ़ पानी ना मिलने से मर रहे हैं , लाशों के शहर में फ़ैल रही बदबू ने बीमारी, मौत के नए अध्याय लिख दिए हैं, वहां न तो अस्पताल हैं , न ही डोक्टर या दवा. हर तरफ इन्सान और जानवरों के शव सड़ रहे हैं .

वैसे इस तबाही  को केवल  जर्जर बाँध के सर नहीं मढ़ा जा सकता . भले ही अभी इस बात को स्वीकारने में हिचकिचाहट हो, लेकिन 24 घंटे में 16 इंच अर्थात कोई 411 मिलीमीटर बरसात , जलवायु परिवर्तन के कुप्रभाव की तरफ भी इशारा है . सनद रहे जिन नदियों पर बाँध हैं वे आमतौर पर सूखी ही रहती हैं . मुसलाधार बरसात ने   शहर को घेरे हुए पहाड़ों से ताकतवर जलधाराओं का तेजी से नीचे गिरना और उसके साथ जबर्दस्त भूमि कटाव का काम किया . उल्लेखनीय है कि दरना ,  जेबेल अख़दर के पूर्वी छोर पर स्थित है.  लीबिया में वैसे ही बहुत कम जंगल हैं लेकिन यह इलाका हरा हरा है . शुष्क जलवायु के कारण, लीबिया जंगल केवल 0.1% है। दरना को  पूर्वी लीबिया का उपजाऊ इलाका माना जाता है. यह देश का सर्वाधिक पानीदार क्षेत्र है, जहाँ सालाना लगभग 600 मिलीमीटर (24 इंच) वर्षा होती है. दुर्भाग्य से दस सितम्बर को एक ही दिन में इतना पानी गिर गया .  

 

इस शहर की स्थापना 15वीं शताब्दी में एक प्राचीन यूनानी उपनिवेश डार्निस द्वारा की गई थी. यहा अमेरिकी भी आये और फ़्रांसिसी भी और इटालियन भी, ब्रितानी उपनिवेश भी रहा . तभी सफेद रंग से एक से पुते घर , ढेर सारे झरने, ताड़ के घने  बाग़  के सताह-साथ यहा सब्जी- फल के बड़े बागन हुआ करते थे . यह एक कपड़ा मिल भी थी . इलाके का सुंदर पर्यटन स्थल अब कीचड, दलदल और रेत से पट गया है .

दुनियाभर  में यह बात अब  सभी जान गए हैं कि  जलवायु परिवर्तन के कारण, बेमौसम, अचानक और तीव्र मौसम हो रहा है. इस तरह की बारिश  से भारत और दक्षिणी एशिया अछूता नहीं हैं . डेढ़ दशक पहले विश्व बाँध आयोग चेतावनी दे चुका था कि  बड़े बाँध (जो 45 मीटर से अधिक ऊँचे है ) मानवीय जीवन के लिए बड़ी त्रासदी बन्ने जा रहे हैं . भारत में भी ऐसे कोई 28बाँध  ऐसे है जिनकी निर्धारित उम्र बीत चुकी है और अभी भी उनका इस्तेमाल हो रहा है . हमारे यहाँ हर साल दसियों जगह बाढ़ से  नुक्सान का साल कारण बांधो का क्षमता तक भर जाना और उसके बाद उनके दरवाजे खोल देना हैं . यह सटीक समय है कि हम अपने बड़े बांधों को जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर आंके, उनका प्रबंधन करें और भविष्य में सिंचाई और जल संचयन के लिए छोटी – सठिय और पारम्परिक जल परियोजनाओं पर अधिक ध्यान दें . 

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