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बुधवार, 18 अक्तूबर 2023

If ponds are saved, earthquakes will be less.

                            तालाब बचेंगे तो कम आयेंगे भूकम्प

पंकज चतुर्वेदी



04 अक्तूबर 2023 को लगभग सारे उत्तरी भारत के साथ दिल्ली एनसीआर  में कोई 15 सेकंड तक धरती  थरथराई . यह झटका रेक्टर स्केल पर पर  6.2 का था , जिसे अति गंभीर माना जाता है . राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (एनसीएस) ने दिल्ली एनसीआर में भूकम्प के बीते 63 सालों के आंकड़ों के आकलन  में पाया है कि अतिक्रमण व अवैध कब्जों की भेंट चढ़ रहे जलाशयों के ऊपर इमारतें भले खड़ी हो गई हों, लेकिन उनके नीचे पानी अभी ही भूकंप के झटके लगते रहते हैं। एनसीएस के मुताबिक एक जनवरी 1960 से लेकर 31 मार्च 2023 के दरम्यान 63 साल में दिल्ली-एनसीआर में अधिकेंद्र वाले कुल 675 भूकंप आए हैं। लेकिन सन् 2000 तक 40 वर्षों में जहां केवल 73 भूकंप दर्ज किए गए, वहीं इसके बाद 22 वर्षों में 602 भूकंप रिकार्ड किए गए। साल 2020 में दिल्ली व उसके आसपास के दायरे में कुल 51 बार घरती थर्राई।

भारत के कुल् क्षेत्रफल का 54 फीसदी भूकंप संभावित क्षेत्र के रूप में चिन्हित है । दिल्ली को खतरे के लिए तय जोन चार में आंका है। अर्थात यहां भूकंप आने की संभावनांए गंभीर स्तर पर हैं। भूकंप संपत्ति और जन हानि के नजरिए से सबसे भयानक प्राकृतिक आपादा है, एक तो इसका सटीक पूर्वानुमान संभव नहीं, दूसरा इससे बचने के कोई सषक्त तरीके हैं नहीं। महज जागरूकता और अपने आसपास को इस तरह से सज्ज्ति करना कि कभी भी धरती हिल सकती है, बस यही है इसका निदान। हमारी धरती जिन सात टेक्टोनिक प्लेटों पर टिकी है, यदि इनमें कोई हलचल होती है तो धरती कांपती है।

एनसीएस के मुताबिक दिल्ली- एनसीआर में आने वाले भूकंप अरावली पर्वतमाला के नीचे बने छोटे-मोटे फाल्टों के कारण आते हैं, जो कभी-कभी ही सक्रिय होते हैं। यहां प्लेट टेक्टोनिक्स की प्रक्रिया भी बहुत धीमी है। शुरुआत में भूकम्प झटके बहुत सामान्य थे जिनकी तीव्रता 1.1 से 5.1 तक थी लेकिन जैसे जैसे इस समग्र महानगर में जल निधियां सूखना  शुरू हुई , सन  2000 के बाद भूकंप  की तीव्रता में तेजी आ रही है . खासकर यमुना के सूखने और उसकी कचार की जमीन पर निर्माण ने भूकम्प से नुकसान की सम्भावना को प्रबल आकर दिया है .  यमुना कई लाख साल पुराणी नदी है और धरती की भीतर भी  पैलियों चैनल अर्थात भीतरी जल मार्ग हैं और इन जल मार्गों के सूखने और नष्ट होने से धरती के धंसने और हिलने की सम्भावना में इजाफा हुआ हैं .

 विदित हो भारत आस्ट्रेलियन प्लेट पर टिका है और हमारे यहां अधिकतर भूकंप इस प्लेट के यूरेशियन प्लेट से टकराने के कारण उपजते हैं।  भूकंप के झटकों का कारण भूगर्भ से तनाव-उर्जा उत्सर्जन होता है। यह उर्जा अब भारतीय प्लेट के उत्तर दिशा में बढ़ने और फॉल्ट या कमजोर जोनों के जरिये यूरेशियन प्लेट के साथ इसके टकराने के चलते एकत्र हुई है। जानना जरूरी है कि हिमालयी भूकंपीय क्षेत्र में भारतीय प्लेट का यूरेशियन प्लेट के साथ टकराव होता है और इसी से प्लेट बाउंड्री पर तनाव ऊर्जा संग्रहित हो जाती है जिससे क्रस्टल छोटा हो जाता है और चट्टानों का विरुपण होता है। ये ऊर्जा भूकंपों के रूप में कमजोर जोनों एवं फाल्टों के जरिए सामने आती है ।

हालांकि कोई भूकंप कब, कहां और कितनी अधिक ऊर्जा (मैग्निीट्यूट) के साथ आ सकता है, इसकी अभी कोई सटीक तकनीकी विकसित हो नहीं पाई है , केवल किसी क्षेत्र की अति संवेदनशीलता को उसकी पूर्व भूकंपनीयता, तनाव बजट की गणना, सक्रिय फाल्टों की मैपिंग आदि से समझा जा सकता है। आज जरूरी है कि जिन इलकों में बार बार धरती डोल रही है वहां भू वैज्ञानिक अध्ययनों का पूरी तरह उपयोग करते हुए उपसतही संरचनाओं, ज्यामिति तथा फाल्टों एवं रिजों के विन्यास की जांच की जानी है। चूंकि नरम मृदाएं संरचना के बुनियादों को सहारा नहीं दे पातीं, भूकंप प्रवण क्षेत्रों में बेडरौक या सख्त मृदा की सहारा वाली संरचनाओं में कम नुकसान होता है। इस प्रकार, नरम मृदाओं की मोटाई के बारे में जानने के लिए  मृदा द्रवीकरण अध्ययन किए जाने की भी आवश्यकता है। सक्रिय फाल्टों को निरुपित किया जाना है और जीवनरेखा संरचनाओं या अन्य अवसंरचनाओं को नजदीक के सक्रिय फाल्टों से बचा कर रखे जाने और उन्हें भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के मार्गदर्शी सिद्धांतों के अनुरूप निर्माण किए जाने की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सवा तीन करोड़ लोगों की बसावट का चालीस फीसदी इलाका अनाधिकृत है तो 20 फीसदी के आसपास बहुत पुराने निर्माण। बाकी रिहाइशों  में से बमुश्किल पांच फ़ीसदी का निर्माण या उसके बाद यह सत्यापित किया जा सका कि यह भूकंपरोधी है। शेष  भारत  में भी आवासीय परिसरों के हालात कोई अलग नहीं है। एक तो लोग इस चेतावनी को गंभीरता से ले नहीं रहे कि उनका इलका भूकंप के आलोक में कितना संवेदनषील है, दूसरा उनका लोभ उनके घरों को संभावित मौत घर बना रहा है। बहुमंजिला मकान, छोटे से जमीन के टुकड़े पर एक के उपर एक डिब्बे जैसी संरचना, बगैर किसी इंजीनियर की सलाह के बने परिसर, छोटे से घर में ही संकरे स्थान पर रखे ढेर सारे उपकरण व फर्नीचर--- भूकंप के खतरे से बचने कीे चेतावनियों को नजरअंदाज करने की मजबूरी भी हैं और कोताही भी। वल्नेरेबिलिटी काउंसिल ऑफ इंडिया की बिल्डिंग मैटीरियल एंड टेक्नोलॉजी प्रमोशन काउंसिल द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में दावा किया गया था कि दिल्ली के 91.7 प्रतिशत मकानों की दीवारें पक्की ईंटों से जबकि कच्ची ईंटों से 3.7 प्रतिशत मकानों की दीवारें बनी हैं। एक्सपर्ट के अनुसार, कच्ची या पक्की ईंटों से बनी इमारतों में भूकंप के दौरान सबसे ज्यादा तबाही होती है।

राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआइ) , हैदराबाद के एक शोध से स्पष्ट हुआ है कि भूकंप का एक बड़ा कारण धरती की कोख से जल का अंधाधुंध दोहन करना भी है। भू-विज्ञानी के अनुसार भूजल को धरती के भीतर लोड यानि की एक भार के तौर पर उपस्थित होता है। इसी लोड के चलते फाल्ट लाइनों में भी संतुलन बना रहता है।

समझना जरूरी है कि देश के जिन भी इलाकों में यदा-कदा धरती काँपती रहती हैं , उन सभी शहर, जिलों  में पारेम्परिक जल-निधियों- जैसे तालाब, झील, बावड़ी, छोटी नदियों को पानीदार बनाए रखना जरूरी है । साथ ही आज जरूरत है कि शहरों  में आबादी का घनत्व कम किया जाए, जमीन पर मिट्टी की ताकत मापे बगैर कई मंजिला भवन खड़े करने और बेसमेंट बनाने  पर रोक लगाई जाए। भूजल के दोहन पर सख्ती हो, इसके साथ ही देष के भूकंप संभावित इलकों के सभी मकानों में  भूकंप रोधी रेट्रोफिटिंग करवाई जाए . सबसे बड़ी बात अपने पारम्परिक जल निधियों को सूखने से जरुर बचाया जाये .

 

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