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गुरुवार, 8 फ़रवरी 2024

Patri Bazar becomes New Delhi World Book Fair

 

पटरी बाजार बनता नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला

पंकज चतुर्वेदी

 

बात करती हैं किताबें, सुनने वाला कौन है ?

सब बरक यूं ही उलट देते हैं पढ़ता कौन है ?’ अख्तर नज्मी

 


लेखकों, प्रकाशकों, पाठकों को बड़ी बेसब्री से इंतजार होता है हर सर्दियों में साल लगने वाले नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला का। इसे दुनिया के सबसे बड़े पुस्तक मेलों में गिना जाता है . हालांकि फेडरेशन आफ इंडियन पब्लिशर्स(एफआईपी) हर साल अगस्त में दिल्ली के प्रगति मैदान में ही पुस्तक मेला लगा रहा है और इसमें लगभग सभी ख्यातिलब्ध प्रकाशक आते हैं, बावजूद इसके नेशनल बुक ट्रस्ट के पुस्तक मेले की मान्यता अधिक है। क्योंकि यह मेला किताब खरीदने- बेचने के स्थान से कहीं अधिक एक साहित्यिक और सांस्कृतिक उत्सव और लेखकों के मेलमिलाप की तरह होता है . वैश्वीकारण के दौर कें हर चीज बाजार बन गई है, लेकिन पुस्तकें अभी इस श्रेणी से दूर हैं। इसके बावजूद पिछले कुछ सालों से नई दिल्ली पुस्तक मेला पर वैश्वीकरण का प्रभाव देखने को मिल रहा है।  हर बार 1300 से 1400 प्रकाशक/विकेंता भागीदारी करते हैं, लेकिन इनमें बड़ी संख्या पाठ्य पुस्तकें बेचने वालों की होती हे। दरियागंज के अधिकांश विक्रेता यहां स्टाल लगाते हैं। परिणामतः कई-कई स्टालों पर एक ही तरह की पुस्तकें  दिखती हैं।



यह बात भी तेजी से चर्चा में है कि इस पुस्तक मेले में विदेशी भागीदारी लगभग ना के बराबर होती जा रही है। यदि श्रीलंका और नेपाल को छोड़ दें तो विश्व बैंक, विश्व श्रम संगठन, विश्व स्वास्थ्य संयुक्त राश्ट्र, यूनीसेफ आदि के स्टाल विदेशी मंउप में अपनी प्रचार सामग्री प्रदर्शित करते दिखते हैं। फै्रंकफर्ट और अबुधाबी पुस्तक मेला के स्टाल भागीदारों को आकर्शित करने के लिए होते हैं।  अरब और ईरान के स्टाल दिल्ली स्थित उनके दूतावास लगाते हैं और वहन अधिकांश धार्मिक पुस्तकें होती हैं. कुछ साल पहले तक विदेशी मंडप में पाकिस्तान की आमद ताक़तवर होती थी. आठ से दस प्रकाशक आते थे और ख़ूब बिक्री भी होती थी. दोनों देशों के बीच ताल्लुकात खराब हुए तो बाकी तिजारत तो जारी रही, बस एक दुसरे के पुस्तक मेलों में सहभागिता बंद हो गई. “विशेष अतिथि देश” के मंडप में जरुर किताबें होती है लेकिन केवल प्रदर्शनी के लिए वह भी कुछ ही दिन को . इक्का-दुक्का स्टालों पर विदेशी पुस्तकों के नाम पर केवल ‘रिमेंडर्स’ यानी अन्य देशों की फालतू या पुरानी पुस्तकें होती हैं। ऐसी पुस्तकों को प्रत्येक रविवार को दरियागंज में लगने वाले पटरी-बाजार से आसानी से खरीदा जा सकता है।



नई दिल्ली पुस्तक मेला में बाबा-बैरागियों और कई तरह के धार्मिक संस्थाओं के स्टालों में हो रही अप्रत्याशित बढ़ौतरी भी गंभीर पुस्तक प्रेमियों के लिए चिंता का विषय  है। इन स्टालों पर कथित संतों के प्रवचनों की पुस्तकें, आडियों कैसेट व सीडी बिकती हैं। कुरान शरीफ और बाईबिल से जुड़ी संस्थाएं भी अपने  प्रचार-प्रसार के लिए विश्व पुस्तक मेला का सहारा लेने लगी हैं। दुखद यह है कि पिछले पांच सालों में ऐसे स्टाल झगड़े और टकराव के स्थान बन गए हैं . आये रोज वहां कोई संगठन आ कर उधम करता है . सबसे बड़ी बात ऐसे स्टाल पर दिन भर तेज आवाज़ में ऑडियो- विडियो चलते हैं और धर्म के कारण उस पर कोई दखल देता नहीं, लेकिन उससे बाकी भागीदारों को दिक्कतें होती हैं



पुस्तक मेला के दौरान बगैर किसी गंभीर योजना के सेमिनारों, पुस्तक लोकार्पण आयोजनों का भी अंबार होता है।  कई बार तो ऐसे कार्यक्रमों में वक्ता कम और श्रोता अधिक होते है। यह बात भी अब किसी से छिपी नहीं है कि अब लेखक अमनच पर एक ख़ास विचारधारा के लोगों का कब्जा है, जबकि ये स्थान  पुस्तक मेले में भागीदारी करने वाले प्रकाशकों के लिए बनाए गए थे, ताकि वे अपने स्टाल पर पुस्तक विमोचन ना करें, जिससे आवागमन के रास्ते बंद हो जाते हैं. जान कर आश्चर्य होगा कि पिछले साल अंग्रेजी के आथर्स  कोर्नर में एक ऐसा सेमिनार हुआ जिसमें कठुआ में एक छोटी बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या के मामले में आरोपियों का बचाव किया जा रहा था.

पुस्तक मेला के दौरान प्रकाशकों, धार्मिक संतों, विभिन्न एजेंंसियों द्वारा वितरित की जाने वाली निशुल्क सामग्री भी एक आफत है। पूरा प्रगति मैदान रद्दी से पटा दिखता है। कुछ सौ लोग तो हर रोज ऐसा ‘‘कचरा’’ एकत्र कर बेचने के लिए ही पुस्तक मेला को याद करते हैं। एक बात और बुद्धिजीवियों को खटक रही है कि पुस्तक मेले को राजनितिक दलों के नेताओं के होर्डिंग –पोस्टरों से पाट दिया जाता है , दुनिया के किसी भी पुस्तक मेले में वहां के मंत्री या एताओं के प्रचार की सामग्री नहीं लगी जाती है . छुट्टी के दिन मध्यवर्गीय परिवारों का समय काटने का स्थान, मुहल्ले व समाज में अपनी बौद्धिक ताबेदारी सिद्ध करने का अवसर और बच्चों को छुट्टी काटने का नया डेस्टीनेशन भी होता है- पुस्तक मेला। यह बात दीगर है कि इस दौरान प्रगति मैदान के खाने-पीने के स्टालों पर पुस्तक की दुकानों से अधिक बिक्री होती है।

बीते साल से नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला नए प्रगति मैदान में लगने लगा है लेकिन आयोजन और स्टाल  डिजाइन की प्रक्रिया वही पुरानी है . आम लोगों को स्टाल  नम्बर से अपना पसंदीदा प्रकाशक तलाशने में दिक्कत होती है . वहीँ शोर और आने और जाने के एक ही रस्ते से भीड़ में दुविधाएं भी . यह समय आ गया है कि आय्ज्कों को प्रकाशक या आगंतुकोंकी भीड़ बढ़ने के स्थान पर इसके वैश्विक स्वरुप में सुधर के लिए काम करना चाहिए .

 

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