My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

रविवार, 19 मई 2024

life giving water is poison

 

  • जहर होता जीवनदायी जल
  • पंकज चतुर्वेदी

 


वैसे तो इंदिरपुरम का  वैभव खंड गाजियाबाद में आता है  लेकिन इसकी दिल्ली से दूरी बमुश्किल तीन किलोमीटर है ।  यहाँ साया गोल्ड एवेन्यू में दूषित पानी के कारण 762 लोगों को अब तक डायरिया हो चुका है। नहाने से  त्वचा रोग के मरीज लगभग हर घर में हैं । यहाँ हंगामा हुआ, पुलिस आई तो बात सभी के सामने खुल गई  लेकिन गाजियाबाद- नॉयडा  में यह हाल लगभग हर  ऊंची इमारतों वाली सोसायटी का है । अधिकांश में जल आपूर्ति  भूमिगत जल से है और पीने के जल का आश्रय या तो  बोतल बंद पानी से या फिर खुद के आर ओ । छत्तीसगढ़ के कबीरधाम के कोयलारी गांव में कुएं का दूषित पानी पीकर एक बुजुर्ग महिला की मौत हो गई. वहीं, 50 से अधिक लोग डायरिया की चपेट में आ गए। मध्य प्रदेश  के बुरहानपुर से भी कई बच्चों के  दूषित जल पीने से बीमार होने की खबर है । देश के अलग-अलग हिस्से  अब नल से  बदबूदार पानी आने या फिर हेंडपम्प से गंदे पानी की शिकायतों से  परेशान हैं । गर्मी में पानी  धरती के लिए प्राण है लेकिन यदि जल दूषित हो तो यह प्राण हर भी सकता है । हमारे विकास के बड़े बड़े दावे कहीं जल जैसी मूलभूत सुविधा के सामने या कर ठिठक जाते हैं । बहुत सी सरकारी योजनाएं हर घर स्वच्छ जल के वायदे करती रही हैं  लेकिन  आपूर्ति पर केंद्रित ये योजनाएं हर समय  सुरक्षित जल-स्रोत विकसित करने में  असफल ही रही हैं ।

कितना दुखद है कि पाँच साल पहले राजधानी के करीबी पश्चिम  उ.प्र के सात जिलों में पीने के पानी से कैंसर से मौत का मसला जब गरमाया तो एनजीटी में प्रस्तुत रिपोर्ट के मुताबिक इसका कारण हैंडपंप का पानी पाया गया। अक्तूबर 2016 में ही एनजीटी ने नदी के किनारे के हजारों हैंडपंप बंद कर गांवों में पानी की वैकल्पिक व्यवस्था का आदेश  दिए थे । कुछ हैंडपंप तो बंद भी हुए , कुछ पर लाल निशान की औपचारिकता हुई लेकिन सुरक्षित जल का विकल्प ना मिलने से मजबूर ग्रामीण वही जहर पी रहे हैं।

अतीत में झांकें तो केंद्र सरकार की कई योजनाएं, दावे और नारे फाईलों में  तैरते मिलेंगे, जिनमें भारत के हर एक नागरिक  को सुरक्षित पर्याप्त जल मुहैया करवाने के सपने थे। इन पर अरबों खर्च भी हुए लेकिन आज भी  कोई करीब 3.77 करोड़ लोग हर साल दूषित पानी के इस्तेमाल से बीमार पड़ते हैं। लगभग 15 लाख बच्चे दस्त से अकाल मौत मरते हैं । अंदाजा है कि पीने के पानी के कारण बीमार होने वालों से 7.3 करोड़ कार्य-दिवस बर्बाद होते हैं। इन सबसे भारतीय अर्थव्यवस्था को हर साल करीब 39 अरब रूपए का नुकसान होता है।

हर घर जल  की केंद्र की येाजना इस बात में तो सफल रही है कि  गाव-गांव में हर घर तक पाईप बिछ गए, लेकिन आज भी इन पाईपों में आने वाला 75 प्रतिषत जल भूजल है । गौरतलब है कि ग्रामीण भारत की 85 फीसदी आबादी अपनी पानी की जरूरतों के लिए भूजल पर निर्भर है।  एक तो भूजल का स्तर लगातार गहराई में जा रहा है , दूसरा भूजल एक ऐसा संसाधन है जो यदि दूषित हो जाए तो उसका निदान बहुत कठिन होता है। यह संसद में बताया गया है कि करीब 6.6 करोड़ लोग अत्यधिक फ्लोराइड वाले पानी के घातक नतीजों से जूझ रहे हैं, इन्हें दांत खराब होने , हाथ पैरे टेड़े होने जैसे रोग झेलने पड़ रहे हैं।  जबकि करीब एक करोड़ लोग अत्यधिक आर्सेनिक वाले पानी के शिकार हैं। कई जगहों पर पानी में लोहे (आयरन) की ज्यादा मात्रा भी बड़ी परेशानी का सबब है।

नेशनल सैंपल सर्वे आफिस(एनएसएसओ) की 76वीं रिपोर्ट बताती है कि देश  में 82 करोड़ लोगों को उनकी जरूरत के मुताबिक पानी  मिल नहीं पा रहा है। देश  के महज 21.4 फीसदी लोगों को ही घर तक सुरक्षित जल उपलब्ध है।  सबसे दुखद है कि नदी-तालाब जैसे भूतल जल का 70 प्रतिशत बुरी तरह प्रदूशित है।  यह सरकार स्वीकार रही है कि 78 फीसदी ग्रामीण और 59 प्रतिषत शहरी घरों तक स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं हैं। यह भी विडंबना है कि अब तक हर एक को पानी पहुंचाने की परियोजनाओं पर 89,956 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होने के बावजूद, सरकार परियोजना के लाभों को प्राप्त करने में विफल रही है। आज लगभग 19,000 गाँव ऐसे भी हैं जहां साफ पीने के पानी का कोई नियमित साधन नहीं है।

पूरी दुनिया में, खासकर विकासशील देशों जलजनित रोग एक बड़ी चुनौती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनिसेफ का अनुमान है कि अकेले भारत में हर रोज 3000 से अधिक लोग दूषित पानी से उपजने वाली बीमारियों का शिकार हो कर जान गंवा रहे हैं।  गंदा पानी पीने से दस्त और आंत्रशोथ, पेट में दर्द और ऐंठन, टाइफाइड, हैज़ा, हेपेटाइटिस जैसे रोग अनजाने में षरीर में घर बना लेते हैं।

यह भयावह आंकड़े सरकार के ही हैं कि भारत में करीब 1.4 लाख बच्चे हर साल गंदे पानी से उपजी बीमारियों के चलते मर जाते हैं। देश के 639 में से 158 जिलों के कई हिस्सों में भूजल खारा हो चुका है और उनमें प्रदूषण का स्तर सरकारी सुरक्षा मानकों को पार कर गया है। हमारे देश में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले तकरीब 6.3 करोड़ लोगों को पीने का साफ पानी तक मयस्सर नहीं है। इसके कारण हैजा, मलेरिया, डेंगू, ट्रेकोमा जैसी बीमारियों के साथ-साथ कुपोषण के मामले भी बढ़ रहे हैं।

पर्यावरण मंत्रालय और केंद्रीय एजेंसी ’एकीकृत प्रबंधन सूचना प्रणाली’ (आईएमआईएस) द्वारा सन 2018 में पानी की गुणवत्ता पर करवाए गए सर्वे के मुताबिक राजस्थान में सबसे ज्यादा 19,657 बस्तियां और यहां रहने वाले 77.70 लाख लोग दूषित जल पीने से प्रभावित हैं। आईएमआईएस के मुताबिक पूरे देश में 70,736 बस्तियां फ्लोराइड, आर्सेनिक, लौह तत्व और नाइट्रेट सहित अन्य लवण एवं भारी धातुओं के मिश्रण वाले दूषित जल से प्रभावित हैं। इस पानी की उपलब्धता के दायरे में 47.41 करोड़ आबादी आ गई है।

देश के पेय जल से जहर के प्रभाव को शुन्य करने के लिए जरूरी है कि पानी के लिए भूजल पर निर्भरता कम हो और नदी-तालाब आदि सतही जल में गंदगी  मिलने से रोका जाए। भूजल के अंधाधुंध इस्तेमाल को रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं, लेकिन भूजल को दूषित करने वालों पर अंकुश के कानून किताबों से बाहर नहीं आ पाए हैं । नदी- तालाब को जहरीला बनाने में तो किसी ने भी कसर छोड़ी नहीं।  समाज को 20 रुपये का एक लीटर पानी पीना मंजूर है लेकिन पुश्तों से सेवा कर रहे पारंपरिक जल- संसाधनों को सहेजने में लापरवाही । यह अंदेशा सभी को है कि आने वाले दशकों में पानी को ले कर सरकार और समाज को बेहद मशक्कत करनी होगी ।

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Why do paramilitary forces commit suicide in Bastar?

  आखिर बस्तर में क्यों खुदकुशी करते हैं अर्ध सैनिक बल पंकज चतुर्वेदी गत् 26 अक्टूबर 24 को बस्तर के बीजापुर जिले के पातरपारा , भैरमगढ़ में...