देखना ! फिर डूबेगी प्यासी दिल्ली
देश की राजधानी दिल्ली भी अजब है, अभी यहाँ के कंठ तर करने के लिए बीते आठ सालों की ही तरह फिर सुप्रीम कोर्ट को दाखल देना पड़ा और अब हिमाचल प्रदेश से अधिक पानी लिया जा रहा है । इंतजार करें एक महीने , जो आँखें आसमान की तरफ एक एक बूंद बरसात के लिए तरस रही हैं, वे कुदरत की नियामत बरसते ही इसए कोसते दिखेंगे । बेपानी विशालकाय शहर की पूरी सड़कें, कालेनियां पानी से लबालब हो जाएंगी । कभी कोई सोचता नहीं कि दिल्ली की बाढ़ और सुखाड का असल कारण तो कालिंदी के किनारों की क्रूरता है , जिसने नदी को नाले से बदतर कर दिया । यदि केवल यमुना को अविरल बहने दिया जाए और उसमें गंदगी न डाली जाए तो दिल्ली से दुगने बड़े शहरों को पानी देने और बारिश के चरम पर भी हर बूंद को अपने में समेत ले की क्षमता इसमें हैं ।
सरकारी अनुमान है कि दिल्ली की आबादी तीन करोड़
चालीस लाख के आक्रीब पहुँच गई है और यहाँ हर दिन पानी की मांग प्रतिदिन
1290 मिलियन गेलन (एम एल डी) है जबकि
उपलब्ध पानी महज 900 एम एल डी है । इसमें से लगभग आधे पानी का अजारिया
यमुना ही है , शेष जल ऊपरी गंगा नहर,
भाखड़ा बांध आदि से आता है। काफी कुछ जमीन की कोख खोद कर भी आपूर्ति होती है ।
दिल्ली में यमुना को जीवित करने के लिए कोई
चार दशक से कई हजार करोड़ फूंकने के बाद भी गंदे नालों का उसमें गिरना बंद हुआ नहीं । यमुना नदी दिल्ली में 48
किलोमीटर बहती है। यह नदी की कुल लंबाई का महज दो फीसदी है। जबकि इसे
प्रदूषित करने वाले कुल गंदे पानी का 71 प्रतिशत और बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड यानी बीओडी का 55 प्रतिशत यहीं से इसमें घुलता है। अनुमान है कि दिल्ली
में हर रोज 3297 एमएलडी गंदा पानी और 132 टन
बीओडी यमुना में घुलता है। दिल्ली में अकेले यमुना से 724
मिलियन
घनमीटर पानी आता है, लेकिन
इसमें से 580 मिलियन घन मीटर पानी
बाढ़ के रूप में यहां से बह भी जाता है।
फरवरी-2014
कं अंतिम हफ्ते में ही शरद यादव की अगुवाई वाली संसदीय समिति ने जो कहा था वह आज
दस साल बाद भी यथावत है । रिपोर्ट में दर्ज है कि यमुना सफाई के नाम पर व्यय 6500
करोड़ रूपए बेकार ही गए हैं क्योंकि नदी पहले से भी ज्यादा गंदी हो चुकी है। समिति
ने यह भीक हा कि दिल्ली के तीन नालों पर इंटरसेप्टर सीवर लगाने का काम अधूरा है।
विडंबना तो यह है कि इस तरह की चेतावनियां, रपटें
ना तो सरकार के और ना ही समाज को जागरूक कर पा रही हैं।
दिल्ली में यमुना के संकट का कारण केवल गंदगी मिलना ही नहीं है , यहाँ नदी गाद और कचरे की कारण इतनी उथली हो गई है कि यदि महज एक लाख क्यूसेक पानी या जाए तो इसमें बाढ़ या जाती है । नदी की जल ग्रहण क्षमता को काम करने में बड़ी मात्रा में जमा गाद (सिल्ट), रेत, सीवरेज, पूजा-पाठ सामग्री, मलबा और तमाम तरह के कचरे का योगदान है । नदी की गहराई काम हुई तो इसमें पानी भी काम आता है । आजादी के 77 साल में कभी भी नदी की गाद साफ करने का कोई प्रयास हुआ ही नहीं , जबकि नदी में कई निर्माण ऑपरियोजनाओं के मलवे को डालने से रोकने में एन जी टी के आदेश नाकाम रहे हैं । सन 1994 से लेकर अब तक यमुना एक्शन प्लान के तीन चरण आ चुके हैं, हजारों करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं पर यमुना में गिरने वाले दिल्ली के 21 नालों की गाद भी अभी तक नहीं रोकी जा सकी। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश भी बेमानी ही साबित हो रहे हैं।
एक बात और दिल्ली में यमुना का खतरे का निशान 204.8 मीटर
और चेतावनी का निशान 204 मीटर अब प्रासंगिक है नहीं । यतों अंग्रेज सरकार ने तब निर्धारित किया था जब यमुना का बहाव और हाथी
डुब्बा गहराई आज के मयूर विहार, गांधी नगर, ओखला, अक्षरधाम तक हुआ करती थी । एक तरफ नदी कि चौड़ाई
काम की गई तो दूसरी तरफ गहराई में गाद बाहर दी – इस तरह जीवनदायी पावन जल के मार्ग
को कूड़ा ढोने की धार बना दिया गया ।
दुर्भाग्य है कि कोई
भी सरकार दिल्ली में आबादी को बढ़ने से रोकने पर काम कर नहीं रही और इसका खामियाजा
भी यमुना को उठाना पड़ रहा है , हालांकि
इसकी मार उसी आबादी को पड़ रही है ।
यह सभी जानते हैं कि दिल्ली जैसे विशाल आबादी वाले इलाके में हर घर पानी और
मुफ़्त पानी एक बड़ा चुनावी मुद्दा है और जब नदी-नहर पानी की कमी पूरी आकर नहीं पाते
तो जमीन में छेद पकार पानी उलिछा जाता है , यह जाने बगैर कि इस तरह भूजल स्तर से
बेपरवाही का सर यमुना के जल स्तर पर ही पड़ रहा है । मसला आब्दि को बसाने का हो या
उनके लिए सुचारु परिवहन के लिए पूल या मेट्रो बनाने का, हर बार यमुना की धारा के
बीच ही खंभे गाड़े जा रहे हैं । वजीराबाद और ओखला के बीच यमुना पर कुल 22
पुल बन
चुके हैं और चार निर्माणधीन हैं और इन सभी ने यमुना के नैसर्गिक प्रवाह , गहराई और
चौड़ाई को नुकसान किया है । रही बची कसर अवैध आवासीय
निर्माणों ने कर दी । इस तरह देखते ही देखते यमुना का कछार , अर्थात जहां तक नदी अपने पूरे यौवन में लहरा सके , को ही हड़प गए । कछार में अतिक्रमण ने नदी के फैलाव को ही रोक दिया और
इससे जल-ग्रहण क्षमता कम हो गई । तभी इसमें पानी आते ही , कुछ ही दिनों में बह जाता
है और फिर से कालिंदी उदास सी दिखती है ।
यह बात
सरकारी बस्तों में दर्ज है कि यमुना के दिल्ली प्रवेश वजीराबाद बैराज से लेकर ओखला
बैराज तक के 22 किलोमीटर में 9700 हेक्टेयर की कछार
भूमि पर अब पक्के निर्माण हो चुके हैं और इसमें से 3638 हैक्टेयर को दिल्ली विकास प्राधिकरण खुद
नियमित अर्थात वैध बना चुका है । कहना न होगा यहाँ पूरी तरह सरकारी अतिक्रमण हुआ- जैसे 100 हेक्टेयर में अक्षरधाम मंदिर,
खेल गांव
का 63.5 हेक्टेयर, यमुना बैंक मेट्रो डिपो 40
हैक्टेयर
और शास्त्री पार्क मेट्रो डिपो 70 हेक्टेयर। इसके
अलावा आईटी
पार्क, दिल्ली
सचिवालय, मजनू का
टीला और अबु फजल एनक्लेव जैसे बड़े वैध- अवैध अतिक्रमण अभी भी हर साल बढ़ रहे हैं ।
सेंटर फॉर
साइंस एंड एनवायरनमेंट के एक शीध के मुताबिक यमुना के बाढ़
क्षेत्र में 600 से अधिक आर्द्रभूमि और जल निकाय थे, लेकिन “उनमें से 60% से अधिक अब सूखे हैं। यह बरसात के पानी को
सारे साल सहेज कर रखते लेकिन अब इससे शहर में बाढ़
आने का खतरा है।” रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि “यमुना बाढ़ क्षेत्र में यमुना से जुड़ी कई जल- तिजोरियों का संपर्क तटबंधों के
कारण नदी से टूट गया ।”
वैसे एन जी टी सन 2015 में ही दिल्ली के तटों पर निर्माण पर पाबंदी लगा चुका है ल इससे बेपरवाह सरकारें मान नहीं रही । अभी एक साल के भीतर ही लाख आपत्तियों के
बावजूद सराय कालेखान के पास “बांस घर” के
नाम से केफेटेरिया और अन्य निर्माण हो गए
।
जब दिल्ली बसई ही इस लिए थी कि यहाँ यमुना
बहती थी , सो जान लें कि दिल्ली बचेगी भी तब ही जब यमुना अविरल बहेगी । दिल्ली की
प्यास और बाढ़ दोनों का निदान यमुना में ही
है। यह बात कोई जटिल रॉकेट साइंस है नहीं लेकिन बड़े ठेके, बड़े दावे , नदी से निकली
जमीन पर और अधिक कब्ज का लोभ यमुना को जीवित रहने नहीं दे रहा । तैयार रहिए , भले
ही अदालत जाइए, अपनी संपदा यमुना को चोट
पहुँचने के चलते दिल्ली डूबेगी ही ।
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