कैसे कम होगी देश की दस करोड आबादी ?
पंकज
चतुर्वेदी
हालांकि झारखंड की कोई भी सीमा बांग्लादेश या किसी अन्य देश को नहीं छूती है , इसके बावजूद वहाँ विधान सभा चुनाव में बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा गरम है । यह कड़वा सच हैं कि हमारे देश के दूरस्थ अंचलों तक बांग्लादेश और वहीं के रास्ते म्यांमार के रोहांगीय घुसे हुए हैं । इनमें से बड़ी संख्या में इन अवैध निवासियों ने मतदाता कार्ड, आधार आदि भी बनवा लिए हैं । हालांकि दिसंबर -23 में केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में बताया चुकी है कि सरकार के पाद अवैध निवासियों की संख्या का कोई ठीक-ठाक आंकड़ा है नहीं । नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए (2) विषयक एक सुनवाई में सरकार ने कोर्ट को हलफनामे में बताया था कि सन 2017 से 2022 के बीच अकेले असम से अवैध रूप से रह रहे 14346 लोगों को बांग्लादेश वापिस भेजा गया।
हमारे देश के सामने असली
चुनौती तो इस देश में घुल-मिल गए बगैर बुलाए मेहमानों को पहचानने व उन्हें वापिस
करने की है। उनकी भाषा, रहन-सहन
और नकली दस्तावेज इस कदर हमारी जमीन से घुलमिल गए हैं कि उन्हें विदेशी सिद्ध करना
लगभग नामुमकिन हो चुका है। ये लोग आते तो दीन हीन याचक बन कर हैं,
फिर
अपने देश को लौटने को राजी नहीं होते हैं । ऐसे लोगो को बाहर खदेड़ने के लिए जब कोई
बात हुई, सियासत व वोटों की
छीना-झपटी में उलझ कर रह गई । गौरतलब है कि पूर्वोत्तर राज्यों में अशांति के मूल
में ये अवैध बांग्लादेशी ही हैं। आज जनसंख्या विस्फोट से देश की व्यवस्था लडखड़ा गई
है । मूल नागरिकों के सामने भोजन, निवास,
सफाई,
रोजगार,
शिक्षा,
स्वास्थ्य
जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव दिनों -दिन गंभीर
होता जा रहा है । ऐसे में अवैध
बांग्लादे और रोहांगीया कानून को धता बता
कर भारतीयों के हक नाजायज तौर पर बांट रहे हैं । ये लोग यहां के बाशिंदों की रोटी
तो छीन ही रहे हैं, देश
के सामाजिक व आर्थिक समीकरण भी इनके कारण गड़बड़ा रहे हैं ।
कुछ साल पहले साल मेघालय हाई कोर्ट ने भी स्पष्ट कर दिया था कि सन 1971
के बाद आए सभी बांग्लादेशी अवैध रूप से यहां रह रहे है। अनुमान है कि आज कोई दस
करोड़ के करीब बांग्लादेशी हमारे देश में जबरिया रह रहे हैं। 1971
की लड़ाई के समय लगभग 70
लाख बांग्लादेशी(उस समय का पूर्वी पाकिस्तान) इधर आए थे । अलग देश बनने के बाद कुछ
लाख लौटे भी । पर उसके बाद भुखमरी, बेरोजगारी
के शिकार बांग्लादेशियों का हमारे यहां घुस आना अनवरत जारी रहा । पश्चिम बंगाल,
असम,
बिहार,
त्रिपुरा के सीमावर्ती
जिलों की आबादी हर साल बैतहाशा बढ़ रही है । नादिया जिला (प बंगाल) की आबादी
1981 में 29
लाख थी । 1986 में यह 45
लाख, 1995 में 60
लाख और 2011 की जनगणना में 51 लाख
67 हजार 600 हो गई थी । अनुमान हैं आज यह 80
लाख को पार कर चुकी है । बिहार में पूर्णिया,
किशनगंज,
कटिहार,
सहरसा
आदि जिलों की जनसंख्या में अचानक वृद्धि का कारण वहां बांग्लादेशियों की अचानक आमद
ही है ।
अरूणाचल प्रदेश में मुस्लिम आबादी में बढ़ौतरी सालाना 135.01 प्रतिशत है, जबकि यहां की औसत वृद्धि 38.63 है । इसी तरह पश्चिम बंगाल की जनसंख्या बढ़ौतरी की दर औसतन 24 फीसदी के आसपास है, लेकिन मुस्लिम आबादी का विस्तार 37 प्रतिशत से अधिक है । यही हाल मणिपुर व त्रिपुरा का भी है । जाहिर है कि इसका मूल कारण बांग्लादेशियों का निर्बाध रूप से आना, यहां बसना और निवासी होने के कागजात हांसिल करना है । कोलकता में तो अवैध बांग्लादेशी बड़े स्मगलर और बदमाश बन कर व्यवस्था के सामने चुनौति बने हुए हैं ।
राजधानी दिल्ली में
सीमापुरी हो या यमुना पुश्ते की कई किलोमीटर में फेली हुई झुग्गियां,
लाखें
बांग्लादेशी डटे हुए हैं । ये भाषा , खानपान
, वेशभूशा के कारण स्थानीय
बंगालियों से घुलमिल जाते हैं । इनकी बड़ी संख्या इलाके में गंदगी,
बिजली,
पानी
की चोरी ही नहीं, बल्कि
डकैती, चोरी,
जासूसी
व हथियारों की तस्करी बैखौफ करते हैं । सीमावर्ती नोएडा व गाजियाबाद में भी इनका
आतंक है । इन्हें खदेड़ने के कई अभियान चले । कुछ सौ लोग गाहे-बगाहे सीमा से दूसरी
ओर ढकेले भी गए । लेकिन बांग्लादेश अपने ही लोगों को अपनाता नहीं है । फिर वे बगैर
किसी दिक्कत के कुछ ही दिन बाद यहां लौट आते हैं । जान कर अचरज होगा कि
बांग्लादेशी बदमाशों का नेटवर्क इतना सशक्त है कि वे चोरी के माल को हवाला के जरिए
उस पार भेज देते हैं । दिल्ली व करीबी नगरों में इनकी आबादी 10
लाख से अधिक हैं । सभी नाजायज बाशिंदों के आका सभी सियासती पार्टियों में हैं ।
इसी लिए इन्हें खदेड़ने के हर बार के अभियानों की हफ्ते-दो हफ्ते में हवा निकल जाती
है ।
सरकारी आंकड़ा है कि
सन 2000 से 2009
के बीच कोई एक करोड़ 29
लाख बांग्लादेशी बाकायदा पासपोर्ट-वीजा ले कर भारत आए व वापिस नहीं गए। असम तो
अवैध बांग्लादेशियों की पसंदीदा जगह है।
राज्य की अदालतों में अवैध निवासियों की पहचान और उन्हें वापिस भेजने के कोई 40
हजार मामले लंबित हैं। अवैध रूप से घुसने व रहने वाले स्थानीय लोगों में शादी करके
यहां अपना समाज बना-बढ़ा रहे हैं।
दिनों -दिन गंभीर हो
रही इस समस्या से निबटने के लिए सरकार तत्काल ही कोई अलग से महकमा बना ले तो बेहतर
होगा, जिसमें प्रशासन,
पुलिस
के अलावा मानवाधिकार व स्वयंसेवी संस्थाओं के लोग
भी हों । साथ ही सीमा को चोरी -छिपे पार करने के रैकेट को तोड़ना होगा । हाल ही में एन आई ए ने देशभर
में छापामारी की तो लोगों को अवैध रूप से देश में घुसाने की बड़ी साजिश सामने आई । वैसे तो हमारी सीमाएं बहुत बड़ी हैं,
लेकिन
यह अब किसी से छिपा नहीं हैं कि बांग्लादेश व पाकिस्तान सीमा पर मानव तस्करी का
बाकायदा धंधा चल रहा है, जो
कि सरकारी कारिंदों की मिलीभगत के बगैर संभव ही नहीं हैं ।
यहां बसे विदेशियों
की पहचान और फिर उन्हें वापिस भेजना एक जटिल प्रक्रिया है । बांग्ला देश अपने
लोगों की वापिसी सहजता से नहीं करेगा । इस मामले में सियासती पार्टियों का संयम भी
महति है । यदि सरकार में बैठे लोग ईमानदारी से इस दिशा में पहल करते है तो एक झटके
में देश की आबादी को कम कर यहां के संसाधनों, श्रम
और संस्कारों पर अपने देश के लोगों का हिस्सा बढाया जा सकता है।
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