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शुक्रवार, 27 जून 2025

Puri rath yatar and muslim devotee of jagannath

                                 मुस्लिम सालबेगा के बगैर पूरी नहीं होतीपुरी  की रथ यात्रा

पंकज  चतुर्वेदी



श्री जगन्नाथ पुरी में  मंदिर से रथ चला गुंडेचा मंदिर के तरफ लेकिन रास्ते में एक ही जगह वह रुकता है - वह है भक्त सालबेगा की मजार जगन्नाथ का मुस्लिम अनन्य भक्त ।  ओडिसी  नृत्य हो या  शास्त्रीय गायन या दूरस्थ अंचल की कोई धार्मिक सभा, सलबेगा द्वारा रचित  भजन  के बगैर उसे अधूरा ही माना जाता है । भगवान जगन्नाथ के  भक्त सलबेगा को ओडिया  भक्ति संप्रदाय में  विशिष्ट स्थान मिला हुआ है । कह सकते हैं की वे अपने दौर के क्रांतिकारी रचनाकार थे जो इस्लाम को भी मानते थे और प्रभु जगन्नाथ को भी शीश नवाते थे । भक्त सालबेगा की सबसे प्रसिद्ध  रचना  आज भी सभी धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रमों में सस्वर गाया जाना लगभग अनिवार्य माना जाता  है –

आहे नीला शैला; प्रबल मत्त वरण

मो आराता नलिनी बन कु कर दलना!

सालबेगा के प्रारम्भिक जीवन के बारे में तथ्यों से अधिक किवदंतियाँ चर्चित  हैं । भक्त सालबेगा (1607/1608 - अज्ञात; उड़िया) 17 वीं शताब्दी की शुरुआत के एक ओडिया भाषा के धार्मिक कवि थे। उनका जन्म मुगल सेना के मुस्लिम योद्धा लालबेगा के यहाँ हुआ । उन दिनों मुगल हमेशा श्री मंदिर को गिराने के लिए कब्जा करने की कोशिश कर रहे थे। एक बार जब मुगल योद्धा लाल बेग, पुरी के डंडा मुकुंदपुर इलाके के पास पुरी से लौट रहे थे, तो उन्होंने एक सुंदर युवा ब्राह्मण विधवा को स्नान घाट से लौटते हुए पाया। उसने महिला का अपहरण कर लिया और अंत में मजबूरी में उससे शादी कर ली, जो बाद में फातिमा बीवी के नाम से जानी जाने लगी। सालबेगा फातिमा बीवी और लालबेगा के पुत्र थे। बचपन से ही उन्होंने अपनी माँ से भगवान जगन्नाथ, भगवान कृष्ण और भगवान राम के बारे में सुना। वह उनकी ओर आकर्षित हो गया। वह उनकी भक्ति करता , उन पर गीत लिखता ।

फातिमा बीवी की मृत्यु के समय  भक्त सालबेगा एक बच्चा था.  एक बार वह एक गंभीर बीमारी से ग्रसित हो गया और सभी वेद्ध – हकीमों  ने यह उम्मीद छोड़ दी कि भक्त सालबेगा जीवित नहीं रह सकता। एक दिन जब वह बिस्तर पर था तो उसने भजन सुना और सोचा कि महान भगवान जगन्नाथ जो कि दुनिया के भगवान हैं, मुझे ठीक करने में सक्षम होंगे। सालबेगा भगवान जगन्नाथजी की भक्ति में इतना खो गया था कि वो दिन-रात पूजा-अर्चना और भक्ति करने लगा। इसी भक्ति और पूजा-अर्चना के चलते सालबेगा को मानसिक शांति और जीवन जीने की शक्ति मिलने लगी। मुस्लिम होने के कारण सालबेगा को मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता। वह मंदिर के बाहर ही बैठकर भगवान की भक्ति करने लगता। ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ जी उसे सपने में आकर दर्शन दिया करते। भगवान उसे सपने में आकर घाव पर लगाने के लिए भभूत देते और सालबेगा सपने में ही उस भभूत को अपने माथे पर लगा लेता। उसके लिए हैरान करने वाली बात यह थी कि उसके माथे का घाव सचमुच में ठीक हो गया था। मुस्लिम होने के कारण सालबेगा कभी भी भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन नहीं कर पाया और उसकी मृत्यु हो गई। अपनी मृत्यु से पहले सालबेगा ने कहा था, ‘यदि मेरी भक्ति में सच्चाई है तो मेरे प्रभु मेरी मजार पर जरूर आएंगे।

 मृत्यु के बाद सालबेगा की मजार जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर के रास्ते में बनाई गई थी। इसके कुछ महीने बाद जब जगन्नाथजी की रथयात्रा निकली तो सालबेगा की मजार के पास आकर भगवान का रथ रुक गया और लाख कोशिशों के बाद भी रथ इंच भर भी आगे नहीं बढ़ा। तभी पुरोहितों और राजा ने सालबेगा की सारी सच्चाई जानी और भक्त सालबेगा के नाम के जयकारे लगाए। जयकारे लगाने के बाद रथ चलने लगा। बस तभी से हर साल मौसी के घर जाते समय जगन्नाथजी का रथ सालबेगा की मजार पर कुछ समय के लिए रोका जाता है। भक्त सालबेगा के बनाए भजन, आज भी लोगों को याद हैं।

किवदंती यह  भी है कि उड़ीसा के बालासोर में भी भगवान  जगन्नाथ ने  सालबेगा के लिए चमत्कार दिखाया था.  कहते हैं कि सालबेगा बालासोर होते हुए दिल्ली से पुरी आ रहा था और श्यामसुंदर के मंदिर के पास ठहरा हुआ था। शाम की प्रार्थना के दौरान सालबेगा भगवान को अंदर देखना चाहता था, चूंकि वह मुस्लिम था  सो मंदिर के भीतर जा नहीं पाया । एक शाम पुजारी ने पाया कि प्रभु अपने सिंहासन से गायब हैं। उसी रात बालासोर के राजा को स्वप्न आया कि भगवान का एक बड़ा भक्त भगवान के दर्शन के लिए बाहर प्रतीक्षा कर रहा है। फिर उसने दीवार में छेद करने की व्यवस्था की ताकि सालबेगा भगवान को देख सके। जैसे ही उसने देवताओं के सिंहासन को देखा, देवता फिर से प्रकट हो गए।

भक्त सालबेगा सारा जीवन मंदिर के बाहर बैठकर ही भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन की आस लगाए रहा। प्रभु का नाम जपता और उनके भजन लिखता । धीरे-धीरे उसके भजन अन्य भक्तों की जुबान पर भी चढ़ने लगे। यह है भारतीय अध्यात्म व भारतीय संस्कृति की ताकत,जिसके सामने धर्म,संप्रदाय की दीवारें भी कभी बाधक नहीं बन सकीं , न तो प्राचीन काल में, न ही आज भी। सलबेला द्वारा रचित गीतों के साथ कहानियाँ भी हैं , एक बार सालबेगा  बृंदावन में थे और रथ यात्रा के दिन आ गए । उन्हे लगा की बहुदा जात्रा के समय  उनका पहुँचना मुश्किल हैं । उन्होने गीत लिखा

जगबंधु है गौसाईं

तुमभा श्रीचरन बिणु

अन्य गति नाहीं

और  भगवान का रथ थम गया , जब तक सालबेगा पहुँच नहीं गया ।

सालबेगा की  रचनाएं में  भगवान जगन्नाथ के स्तुति के साथ साथ – कृष्ण – कविता , चौपड़ी और भजन की विधा में हैं और उनमें और राम , ब्राह्मणजन और शक्ति व शिव की आराधना  का भी  आख्यान है ।
उनकी कम से कम 120 रचनाएँ पुरानी ताड़ के पत्तों की पांडुलिपियों के साथ-साथ ओडिशा की सड़कों पर भिखारियों द्वारा गाए जाने वाले गीतों से भी मिली बांग्ला आलोचक  सुकुमार सेन की पुस्तक “हिस्ट्री  ऑफ ब्रिज बोली लिट्रेचर “ ने सालबेगा को उडिया के साथ –साथ हिन्दी और बांगाल में गीत लिखने वाले के रूप में उल्लेखित किया गया है ।

 

Puri rath yatar and muslim devotee of jagannath

                                          मुस्लिम सालबेगा के बगैर पूरी नहीं होतीपुरी  की रथ यात्रा पंकज  चतुर्वेदी श्री जगन्नाथ पुरी में...