My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

सोमवार, 5 अक्तूबर 2015

Sea pollutin on alarm

धरती पर जीवन के लिए जरूरी है समुद्र को बचाना

पंकज चतुर्वेदी

उन दिनों इंसान के लिए समुद्र एक अनबुझ पहेली की तरह था । समुद्री यात्राएं मौत का पर्याय मानी जाती थीं और बहुत कम लोग महासागर की रोमांचक यात्रा कर जिंदा वापिस लौट पाते थे । आज मानव ने समुद्र की गहराईयों को बहुत हद तक नाप लिया  है । भौतिक सुखों का माध्यम बन गई हैं यह अथाह जल निधि । समुद्र केवल परिवहन या मछली का साधन नहीं रह गया, वहां से ईंधन, दवाई व बहुत कुछ प्राप्त किया जा रहा है। लेकिन इंसान के लिए भले ही यह उपलब्धि हो, लेकिन समुद्र के लिए तो यह अस्तित्व का खतरा बन रही है । आज जब पर्यावरण संरक्षण पर हर स्तर पर हल्ला-गुल्ला मचा हुआ है, ऐसे में  भी समुद्रों की अनूठी पारिस्थिती व्यवस्था के छिन्न-भिन्न होने पर कम ही चर्चा हो रही है ।
पृथ्वी के अधिकांष हिस्से पर कब्जा जमाए सागरों की विषालता व निर्मलता मानव जीवन को काफी हद तक प्रभावित करती है , हालांकि आम आदमी इस तथ्य से लगभग अनभिज्ञ है । जिस गृह ‘‘प्ृाृथ्वी ’’ पर हम रहते हैं, उसके मौसम और वातावरण में नियमित बदलाव का काफी कुछ दारोमदार समुद्र पर ही होता है । विष्व की बढ़ती जनसंख्या के लिए भोजन, रोजगार और उर्जा मुहैया करवाने का दारोमदार भी अब समुद्रों पर ही आ गया है । कहना अतिषियोक्ति नहीं होगा कि आने वाले दिनों में धरती पर जीवन का दारोमदार समुद्रों पर ही होगा । इसके बावजूद समुद्रों के दूशित होने के मसले को नदी या वायु प्रदूशण की तरह गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है ।
समुद्र वैज्ञानिक इस बात से चिंतित हैं कि सागर की निर्मल गहराईयां खाली बोतलों, केनों, अखबारों व षौच-पात्रों कें अंबार से पटती जा रही हैं । मछलियों के अंधाधुंध षिकार और मंूगा की चट्टानों की बेहिसाब तुड़ाई के चलते सागरों का पर्यावरण संतुलन गड़बड़ाता जा रहा है । धरती के बाष्ंिादे समुद्रों के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं । षहरों की गंदी नालियां, कचरा और कारखानों का अपषिश्ट सीधे ही समुद्रों में उड़ेला जा रहा है । आज समुद्र-प्रदूशण का 70 फीसदी धरती के निवासियों की लापरवाही के कारण है ।
यह आष्चर्यजनक लेकिन सत्य है कि गंदी नालियेों की सीमित मात्रा यदि समुद्र जल में मिले तो फायदेमंद है । घरों की निकासी में मौजूद नाईट्रेट और फास्फेट समुद्र को उपजाऊ बनाते हैं । इससे छोटे पौधों की पैदावार बढ़ती है और इससे मछलियों को बेहतरीन भोजन मिलता है । लेकिन यदि इन लवणों की मात्रा बढ़ जाए तो इससे समुद्र को खतरा बढ़ जाता है । छोटे पौधों की संख्या बढ़ने से जल की गहराई में काई की परत मोटी हो जाती है । फलस्वरूप सूर्य का प्रकाष भीतर तक नहीं जा पाता है और प्रकाष संष्लेशण की क्रिया या तो कम हो जाती है या फिर पूरी तरह रुक जाती है । साथ ही कार्बन डाय आक्साईड की अधिक मात्रा उत्सर्जित होने लगती है व इस प्रक्रिया में आक्सीजन का खर्च बढ़ जाता है ।  सनद रहे कि यह आक्सीजन पानी में घुली आक्सीजन से ही प्राप्त होती है । इस तरह एल्गी यानी काई नश्ट होने लगती है । निर्जीव एल्गी में वैक्टेरिया उत्पन्न हो जाते हैं व इससे पानी में सड़न पैदा हो जाती है । इस तरह पानी में प्राण वायु का स्तर बेहद कम हो जाता है और तभी वहां जल-जीव मरने लगते हें ।
ठीक यही हालत समुद्र में तेल रिसने पर होती है । खाड़ी देषों में लगातार युद्ध के चलते गत एक दषक में कई लाख गैलन तेल समुद्र में फैलता रहा है और इसका सीधा असर वहां के जीवों के जीवन पर पड़ा है ।  जब तटों के करीब की मछलियां षहरी प्रदूशण के कारण मरीं तो मछली मारने ककी बड़ी मषीनों ने गहराई में जाना षुरू कर दिया । अनुमान है कि हर साल 150,000 मीट्रिक टन प्लास्टिक के जाल व रस्सियां समु्रद में पड़ी रह जाती हैं और उसे खा कर लाखों व्हेल, सील व डाल्फीन जैसी मछलियां बेमौत मारी जाती है । भारत में तो गणेष या दुर्गा पूजा के बाद प्रतिमाओं के विसर्जन ने कई किलोमीटर तक समुद्र को जीव-विहीन बना दिया है ।
कारखानों से निकला दूशित मलवा सागरों के लिए बड़ा खतरा है । साथ ही समुद्र में बढ़ता यातायात भी वहां के पर्यावरण का दुष्मन बन गया है । समुद्री जहाजों से गिरने वाला तेल, पेट्रोलियम पदार्थ, कीटनाषक, विशैली गैसों के खाली सिलेंडर, औद्योगिक प्रषीतन जी आदि दिनों-दिन समुद्र के मिजाज को जहरीला बना रहे हैं । इस बढ़ते प्रदूशण के चलते समुद्र तटों, खाडि़यों, आदि में मछली पकड़ने वालेां पर विपरित असर पड़ रहा है । पानी के विशैला होने के कारण जलचर जीवों के विकास, वृद्धि, भोजन, ष्वसन क्रिया और उनमें रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो रही है ।
भारत में पष्चिम के गुजराम से नीचे आते हुए कोकण, फिर मलाबार और कन्याकुमारी से ऊपर की ओर घूमते हुए कोरामंडल और आगे बंगाल के सुंदरबन तक ंकोई 5600 किलोमीटर सागर तट है। यहां नेषनल पार्क व सेंचुरी जैसे 33 संरक्षित क्षेत्र हैं। इनके तटों पर रहने वाले करोड़ों लोगों की आजीविका का साधन समुद्र से उपजह मछली व अन्य उत्पाद ही हैं । लेकिन विडंबना है कि हमारे समुद्री तटों का पर्यावरणीय संतुलन तेजी से गड़बड़ा रहा है।  मुंबई महानगर को कोई 40 किलोमीटर समुद्र तट का प्राकृतिक-आषीर्वाद मिला हुआ है, लेकिन इसके नैसर्गिग रूप से छेड़-छाड़ का ही परिणाम है कि यह वरदान अब महानगर के लिए आफत बन गया है। इस महानगर में कई ‘‘चैपाटियां’8 है जो कि पर्यावरणीय त्रासदी की वीभत्स उदाहरण हैं।  कफ परेड से गिरगांव चैपाटी तक कभी केवल सुनहरी रेत, चमकती चट्टानें और नारियल के पेड़ झूमते दिखते थे। कोई 75 साल पहले अंग्रेज षासकों ने वहां से पुराने बंगलों को हटा कर मरीन ड्राईव और बिजनेस सेंटर का निर्माण करवा दिया। उसके बाद तो मुंबई के समुद्री तट गंदगी, अतिक्रमण और बदबू के भंडार बन गए।  जुहू चैपाटी के छोटे से हिस्से और फौज के कब्जे वाले नवल चैपाटी(कोलाबा) के अलावा समूचा समुद्री किनारा कचरे व मलवे के ढेर में तब्दील हो गया है । तभी थेाड़ी साी बरसात या ज्वार-भाटाा में षहर कराहने लगता है।
देष की पर्यटन राजधानी कहलाने वाले गोवा के  कालानगुटे , बागा, अंजुना, बागटोर आदि चर्चित समुद्री तट पर्यटकों द्वारा फैंके गए कचरे से पट रहे हैं। षहर का कचरा भी लहरों के साथ किनारे पर आ जाता है और कीचड़ की गहरी परत छोड़ जाता है। चैन्ने के मरीना बीच के सौंदर्यीकरण पर तो खूब खरचा हो रहा है, लेकिन पर्यावरणीय छेड़छाड़ पर कोई रोक-टोक नहीं है। पुरी में हाईकोर्ट के सख्त आदेष के बावजूद समुद्र से 500 मीटर के दायरे में कई होटल बन गए हैं। समुद्र के किनारे बसे षहरों व होटलों से उत्सर्जित कचरे व अपषिश्टों के चलते जीवन-रेखा कहलाने वाले समुद्र तट बंजर और वीरान हो गए हैं । मछली पकड़ने के लिए बड़ी व षक्तिषाली मोटर बोटों की व्यवस्था करना बहुत कम मछुआरों के लिए ही संभव है । इस तरह समुद्री प्रदूशण लाखों लोगों के लिए रोजी-रोटी का संकट भी बन गया है । समुद्र तटों के संरक्षण के कई कानून हैं , कई अदालतों ने भी निर्देष दिए हैं; लेकिन इस दिषा में समाज से जिस जागरूकता की अपेक्षा है, उसका सर्वथा अभाव दिखता है ।

पंकज चतुर्वेदी
सहायक संपादक
नेषनल बुक ट्रस्ट इंडिया
 नेहरू भवन, वसंत कुंज इंस्टीट्यूषनल एरिया फेज-2
 वसंत कुंज, नई दिल्ली-110070
 संपर्क- 9891928376

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Do not burn dry leaves

  न जलाएं सूखी पत्तियां पंकज चतुर्वेदी जो समाज अभी कुछ महीनों पहले हवा की गुणवत्ता खराब होने के लिए हरियाणा-पंजाब के किसानों को पराली जल...