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बुधवार, 8 जनवरी 2014

सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक हजरत गुलाब शाह बाबा

सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक हजरत गुलाब शाह बाबा
कभी नौगांव बुंदेलखंड की राजधानी हुआ करता था, ऐ छोटा सा कस्‍बा सौ से ज्‍यादा चौराहों वालाा बुंदेलखंड की सभी रियासतों के 'हाउस' हुआ करते थे वहांा आज उसी नौगांव, बुंदेलखंड की एक ऐसी कहानी बता रहा हूं जो मुल्‍क में धर्म के नाम पर वितंडा खडा करने वालों की आंखें खोल देगाा यहां हर साल अक्‍तूबर में बाबा गुलाब शाह की मजार पर उर्स होता हैा हर जाति धर्म के लोग यहां आते हैंा दिलचस्‍प बात यह है कि एक इस्‍लामी सूफी की मजार पर 'बिस्‍मिल्‍लाह' यानी 786 और ओम नम- शिवय साथ साथ लखिा हैा मजार की दीवारों पर हर धर्म के चित्र, वाक्‍य खुदे हैंा यहां आने वाले किसी भी मुसलमान या हिंदू का कभी धर्म भ्रष्‍ट नहीं हुआा इसके बारे में कई चमत्‍कारी कहानियां भी हें जिन पर मैं भरोसा तो नहीं करता लेकिन यहां का सौहार्द एक शास्‍वत सत्‍य है और इसे किसी चमत्‍कार नहीं माना जाये क्‍योंकि हमारा मुल्‍क है ही ऐसा, मिलाजुला सांझा संस्‍क़ति वाला
हजरत बाबा गुलाब शाह रहमत उल्लाह अलैह का संबंध हजरत बाबा ताजूउद्दीन ओलिया सरकार नागपुर से है, वे इनके गुरु थे। बाबा गुलाब शाह नौगांव निवासी थे। उनका जन्म लगभग 1858 में हुआ था। उनका परदा 1966 में हुआ। करीब 108 वर्ष पूर्व मजार में भगवान कृष्ण की मूर्ति बाबा ने अपने सामने बनवाई। बाबा गुलाब शाह कृष्ण उपासक थे लेकिन वे सभी धर्मों को मानने वाले थे। आज भी इनकी दरगाह में सभी धर्मों के लोगों का आना होता है और सरीफ सभी लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

बाबा के चमत्कार:

यहां धारणा है कि इन्होंने मुर्दों को भी जिंदा किया। पहली घटना इनके शिष्य परसादी दादा (कुशवाहा) बाबा के सामने इनका स्वर्गवास हो गया था। लेकिन बाबा साहब ने इनको पुन: जीवित किया और इन्होंने 10 वर्ष तक जीवित रहे। दूसरी घटना नागौद के राजा को जिंदा करने की है। जिस दिन नागौद के राजा का निधन हुआ उसी दिन उनकी लडक़ी की शादी हुई थी। ग्रामीणों ने बताया कि नौगांव में एक बुजुर्ग फकीर है उनको लेकर जाए शायद कुछ उनकी कृपा से करिश्मा हो जाए। राजा के कुछ संतरी बाबा से मिलने आए, बाबा समझ गए और बाबा ने उन्हें फटकार लगाते हुए कहां कि कुआं प्यासे के पास आता है कि प्यासा कुआं के पास जाता है। फिर संतरी राजा को नौगांव लेकर आए नौगांव में बाबा के चरणों में डाल दिया। बाबा साहब अपनी मस्ती की जलाली हालात में आएं। बाबा ने राजा के पैर से ठोकर मारी और वे जीवित हो गए।और राजा ने आंखें खोली और बीड़ी वाले बाबा के नाम से पुकारने लगे।

बाबा गुलाबशाह के हाथ में हमेशा बीड़ी जलती रहती थी। बाबा ने कहां शादी करने के बाद हमारे पास आना। राजा ने यहां पर एक कुआं भी बनवाया जो आज भी है। और इसका पानी खारा निकला तो बाबा ने कुआं का पानी गिलास में लेकर पिया और उसी पानी को कुआं में डाला तो वह मीठा हो गया। आज भी पानी मीठा है। 


बाबा साहब ने मना किया कि न यहां धर्म पेटी लगाए, न चंदा करें, न कोई कमेटी बनाना। इस आदेश का पालन यहां आज भी हो रहा है। बाबा साहब का उर्स 8 अक्टूबर से 14 अक्टूबर में मनाया जाता है। जन्म उत्सव 8 जनवरी को मनाया जाता है। चांद की 26 तारीख को प्रत्येक माह भी छोटा उर्स मनाया जाता है।

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