My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

मंगलवार, 7 जनवरी 2014

वरिष्‍ठ पत्रकार श्री शंभुनाथ शुक्‍ल के ब्‍लाग http://tukdatukdazindagi.blogspot.in/2014/01/blog-post.html पर

राहुल गाँधी ने कहा तो सही था



आखिर राहुल गांधी ने ऐसा क्या गलत कहा था ?

पंकज चतुर्वेदी

शामली के दो लड़कों ने दिल्ली की एक अदालत में बाकायदा धारा 164 के तहत  मजिस्ट्रेट के सामने कलमबद्ध बयान दर्ज कराए हैं कि लश्‍कर ए तैयबा के लोगों ने उनसे संगठन में शामिल होने के लिए संपर्क किया था। याद करें विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस उपध्यच राहुल गांधी के इस बयान पर बड़ा बवाल काटा था कि मुजफ्फरनगर के दंगा पीडि़तों से आर्इएसआर्इ के लोग संपर्क कर रहे हैं। सनद रहे दिल्ली पुलिस एक पूरे नेटवर्क को तलाश रही है जिसमें से दो लड़के हरियाणा के मेवात से दो महीने पहले पकड़े गए थे। याद करें भाजपा ने इस मामले की शिकायत चुनाव अरायोग को की थी और आयोग ने भी मामले की गंभीरता को समझे बगैर राहुल गांधी को चेतावनी दी थी।

बात दिसंबर-2007 की है, मैं एक पुस्तक मेला में भागीदारी के लिए कराची(पाकिस्तान) गया था, वहां बहुत बड़ा वर्ग बेहद सहयोगी व गर्मजोषी से स्वागत करने वाला था। पहले दिन से ही पुस्तक मेला में एक व्यकित हमारे पास आया व अपना नाम 'शाह' बताया। वह पूरे दिन साथ रहता, जहां जाता, साये की तरह साथ लगा रहता। खूब सेवा भी करता। वह अच्छी तरह से हिंदी लिख लेता था, पढ़ लेता था। उसे दिल्ली के जामिया नगर से ले कर गाजियाबाद के कैला भटटा तक और मुजफ्फरनगर के कैराना तक के चप्पे-चप्पे की जानकारी थी और वह वहां के बारे में मुझसे खूब बात करता रहा। बता रहा था कि वह कर्इ-कर्इ बार महीनों के लिए मुजफ्फरनगर में रहा है। उसने इलाके के कर्इ रूतबेदार नेताओं के नाम व उनके घर के इलों की भी खूब चर्चा की। कहने की जरूरत नहीं है कि मेरा क्या शक था उसके बारे में व वह कौन होगा ?? यह बात सभी जानते हैं कि पाकिस्तान मे ंजाने वाले हर भारतीय को, भले ही वह किसी भी जाति का हो, रा का आदमी मान कर शक किया जाता है और भारत में दूर-दूर तक केवल आर्इएसआर्इ ही नहीं दुनिया के कर्इ मुल्क के लोगों के लिए काम करने वाले स्लीपर सेल हैं जो व्यापर, सियासत, से ले कर विकास व टकराव तक की खबरें सहजता से अपने मुल्कों तक पहुंचाते हैं।

जरा सन 2003 के मुबर्इ की ओर ले जाना चाहूंगा- उस साल वहां बम धमाकों की चार घटनांए हुर्इ , जिसमें कुल मिला कर 65 लोग मारे गए थे। 27 जनवरी 2003 को विले पार्ले में सार्इकिल पर रखे बम के फटने से एक व्यकित की मौत हुर्इ, 14 मार्च को मुलुंड में ट्रेन में बम फटा व 10 लोग मारे गए, 28 जुलार्इ को घाटकोपर में फटे एक बम ने चार लोगों की जान ली, 25 अगस्त को झवेरी बाजार व गेटवे आफ इंडिया पर टैक्सी में बम फटने से 50 लोग मारे गए। उस समय जब भारत ने राजनयिक स्तर पर जब पाकिस्तान को घेरने की कोषिश की गर्इ तब पाकिस्तान ने इसके लिए भारत के स्थानीय आतंकवाद को दोशी ठहराया था। इसके जवाब में भारत का यही दावा था कि भारत में आतंकवाद पाकिस्तान की देन है और इसमें कोर्इ भी भारतीय शामिल नहीं है। ठीक वही बिंदु था तब पाकिस्तान ने आपन भारत-विरोधी मुहिम की दिशा व दशा बदल दी थी। वो वक्त था तब पाकिस्तान की शैतान एजेंसी ने ऐसे मुसिलम युवाओं को टटोलना शुरू कर दिया था। कहने को सिमी यानी स्टुडेंट इस्लामिक मुवमेंट आफ इंडिया की स्थापना अप्रैल 1977 में अलीगढ में हो गर्इ थी व 1981 में सिमी के कार्यकर्ताओं ने फलीस्तीन के नेता यासेर अराफात के भारत दौरे पर विरोध दर्ज की अपने तेवर स्पष्‍ट कर दिए थे।

सिमी का असली चेहरा 2003 के आसपास ही सामने आना शुरू हुआ। गोरखपुर धाम के हिंदु अतिवादी रवैये और सटे हुए ''हिंदु राष्‍ट्र नेपाल में आर्इएसआर्इ के मजबूत गढ़ों ने आजमगढ में असंतोष के बीजों को पुशिपत-पलिलवत किया। इसमें कोर्इ शक नहीं कि शयद ही भारत का कोर्इ मुसलमान मिलेगा जो पाकिस्तान मेें अपना भविष्‍य देखता होगा, पाकिस्तान- एक असफल, लुटा-पिटा मुल्क । बिहार, कनार्टक या उ.प्र. के किसी मुसलमान को अलग कश्‍मीरसे कोर्इ वास्ता नहीं है। यहां जान लें कि कश्‍मीर के अलगाववादी, देश भारत के मुसलमानों के प्रति बेहद नफरत की भाव रखते हैं । गुजरात या देश के किसी दीगर हिस्से में दंगों में यदि मुसलमान मारा जाता था तो कश्‍मीरी उसकी परवाह नहीं करते थे। यहां तक कि गुजरात दंगों के बाद श्रीनगर की जामा मसिजद में जुमे की नमाज के बाद गुजरात में हलाक मुसलमानों की आत्मा की षांति के लिए दुआ करने से भी इस लिए मना कर दिया गया था कि जब कष्मीर में कर्इ हजार मुसलमान मर गए तो षेश हिंदुस्तान की किस मसिजद में दुआ हुर्इ। सनद रहे कि इस मसिजद के इमाम पाकिस्तान समर्थक अलगाववादी गुट के अगुआ नेता हैं। ठीक उसी तरह हिंदुस्तान के किसी भी हिस्से में कष्मीर की समस्या को मुसलमान की समस्या समझ कर कभी प्रतिक्रिया नहीं हुर्इ। लेकिन गुजरात में दंगों के बाद इंडियन मुजाहिदीन या ऐसे ही कतिपय नाम से कर्इ-कर्इ पढ़े-लिेखे मुसलमान भी सामने आए जिन्हे लगा कि सरकार के स्तर पर उनके साथ अन्याय व भेदभाव हुआ है। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे असंतोश को हवा देने, उस गुस्से को गलत तरीके से प्रकट करने का हवा-पानी-खाद आर्इएसआर्इ ने ही मुहैया करवार्इ।

हमारी विडंबना है कि हम आतंकवाद जैसे मसले पर छिछोरी राजनीति करने से नहीं चूकते हैं। जब देष में एनसीटीसी के गठन की बात आर्इ तब मोदी-समर्थकों ने इस पर विरोध दर्ज किया। जब साध्वी प्रज्ञा व कर्नल पुराेंहित की बात आती है तो आडवाणीजी उनसे जेल में मिलने जाने पर कोर्इ लज्जा नहीं महसूस करते हैं व 'परिवार के लोग जाहिरा कहते हैं कि कोर्इ हिंदू आतंकवादी हो ही नहीं सकता, यानि तेरा बम आतंकवाद व मेरा बम सातिवक प्रतिरोध। यह रिकार्ड गवाह है कि गुजरात के दंगों के बाद ही उ.प्र. में काषी-लखनऊ, पुणे, जयपुर , दिल्ली आदि में हुर्इ आतंकवादी घटनाओं में सीधे-सीधे हमारे मुल्क के ही गुमराह युवकों का हाथ सामने आया है और उन्हें गुमराह करने वालों ने उनके साथ धर्म को ले कर होने वाले भेदभाव व दंगों के ही सच्चे-झूठे किस्से दिमांग में भरे थे।

मुजफ्फरनगर में दंगे में मारे गए लोगों के सर ना गिने, जरा  वहां हुर्इ संपत्ति के नुकसान, औरतों की बेज्जती तथा आज भी गांवों में व्याप्त खौफ पर गौर करें। इदहुल जुहा जैसे त्योहार में धूलभरे मैदानेां में फटे टैंटों में रह रहे कर्इ हजार लोगों की आंखे चांद को और अपनी गुरबत व मुफलिसी को कोस रही थीं। जो कल तक दो मंजीला मकान, कारखानों के मालिक थे, आज कपडे व दूसरों की मेहरबानी से पहने रहे हैं।  जिनके साथ पीढि़यों के रिष्ते थे, उन्हें हिंसक बनते देखने के वाकिये वे भुला नहीं पाा रहे हें, उसके ऊपर पुलिस व सरकारी महकमे अभी भी उनके हालातों पर गैरसंवेदनषील हैं। दोशी नेता हीरो की तरह अदालतों मे ंसमर्पण कर रहे हैं । यह मानना पड़ेगा कि ऐसे हताष, बेरोजगार, अनिष्चित भविश्य वाले कर्इ सौ युवाओं में बेहद निराशा है। और ऐसे हताश, निराश युवकों को आर्इएसआर्इ अपना निशाना बनाता रहा है- बदले के नाम पर, धर्म के नाम पर और धन के नाम पर। इस जानकारी के लिए कोर्इ बहुत गोपनीय रपट या खुफियागिरी की जरूरत नहीं है। अपने घर जाने के लिए तड़प रहे और उनके घर के नाम पर महज राख पाने वाले किसी 18-20 साल के युवा से जरा दिल से बात कर देखें, उसका आक्रोष किस स्तर तक उफान पर है- इस बात को टटोलने के लिए एजेंट विनोद जैसी फिल्मी खुफियागिरी की नहीं, महज इंसान बन कर गुफ्तगु करने की जरूरत है। रही बची कसर उ.प्र सरकार नपे पूरी कर दी है - अने घर-गांव ना लौटने वालों को नगद पांच लाख के मुआवजे की घोशणा वैसे तो बेहद लुभावनी दिख रही है, लेकिन यह असल में गांवों के विविधतपूर्ण संस्Ñति की इतिश्री के लक्षण हैं। लोगों में विष्वास बहाली या घर वापिसी की कोशशिों के बनिस्पत उन्हें अलग रहने या अपने ही संप्रदाय के बीच ढकेलने में यह पैसा बहुत बड़ी भूमिका अदा करेगा और इसे अपनी जमीन से उखडे लोगों को बरगलाना सरल होता हे।

यह बात मोदी भी जानते हैं और उनकी 'मसितष्‍क-संस्था संघ भी कि दंगों में उजड़े, लुटे-पिटे मुसिलम युवकों को गुमराह करना बेहद सरल है और पिछले एक दषक में यह होता रहा है। चूंकि यह राहुल गांधी ने बोला है तो इसकी मजाक बनाना जरूरी है और यदि यही बात सुबह-सुबह षाखा में पढ़ार्इ जाए तो वह राष्‍ट्रवाद होता है ? ध्यान रहे हम इस तरह की बातों की जड़ में जाए बगैर महज इसे वोट से जोड़ कर देखेंगे तो अपने ही लोगों को भटकने से रोक नहीं पाएंगे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

How will the country's 10 crore population reduce?

                                    कैसे   कम होगी देश की दस करोड आबादी ? पंकज चतुर्वेदी   हालांकि   झारखंड की कोई भी सीमा   बांग्...