ऐसे महाराज का तो पतन ही बेहतर होगा
पंकज चतुर्वेदी
दिनांक 23 दिसंबर 2013, दिल्ली से लखनऊ जाने वाले ‘‘महाराज’ में सात बजे तक सवारियां आ चुकी थीं। सात बजे दरवाजे बंद हो गए,उड़ने का निर्धारित समय सवा सात जो था। साढे सात हो चुके थे,जहाज उड़ा लखनऊ पहंुूच गया। फिर आवाज गूंजी कि चूंकि कोहरा ज्यादा है सो वापिस दिल्ली जाना पड़ रहा है। दिल्ली लौट कर जहाज तीन घंटे खड़ा रहा। भूखे-प्यासे यात्री हैरान-परेषान से जहाज-जेल में बंद रहे। साढे दस बजे यह फिर से लखनऊ उड़ कर गया। 25 दिसंबर 2013 दिल्ली से खजुराहो जाने वाले कम से कम दस यात्री काउंटर पर हल्ला कर रहे थ, क्योंकि उन्हें यह कह कर छोड़ दिया गया था कि सवारी पूरी हो गई हैं, हमने दस फीसदी ज्यादा बुकिंग ले ले ली थी। उन यात्रियों को एक पांच सितारा होटल में ठहरा कर अगले दिन भेजने का वायदा किया गया। अभी 16 दिसंबर को ही मुंबई से उड़ने वाली एक उड़ान इस लिए पांच घंटे लेट हो गई क्योंकि पायलट व स्टाफ एक साथी की जन्मदिन मना रहे थे। कभी कू्र मेंबर नहीं पहुंचे तो कभी जहाज ही हवाई अड्डे नहीं पहुंचा, कभी पायलेट की कमी हो गई ..... भारत की सरकारी विमान कंपनी में यह आए रोज की बात है। बेचारे सरकारी कर्मचारियों पर पाबंदी है कि उन्हें अपने सरकारी दौरे इसी एयर लाईन्स से करने हैं , सो जहाज में लोग दिखते भी है। बेहद जर्जर प्रबंधन, लागातर घाटे व आम लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने में अक्षम रही एयर इंडिया को अब सरकारी इमदाद के बल पर जिंदा रखना हमारे संसाधनों का दुरूपयोग ही दिखता है।
कभी भारत सरकार के लिए गौरव रहे एयर इंडिया को जिलाने की सभी कोषिषें किस हद तक असफल रही हैं इसकी बानगी यह है कि पिछले साल एयर इंडिया का कुल घाटा सात हजार करोड़ पर पहुंच गया था। इस साल कई प्रयोग करने के बावजूद घाटा राषि 4270 करोड़ पर पहुंच गई है । यह राषि बिहार, छत्तीसगढ़ जैसे गरीब राज्यों पर सालभर में खर्च महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना पर व्यय राषि से कहीं ज्यादा है। सनद रहे कि बिहार की आबादी दस करोड़ है जबकि एयर इंडिया के कर्मचारियों की संख्या कोई 28 हजार। इन कर्मचारियों के वतन पर हर साल तीन हजार करोड खर्च किए जाते हैं। जिस तरह सालाना घाटा बढ़ रहा है, साथ ही कर्मचारियों में असंतोश है कि उन्हें अपेक्षित सुख-सुविधाएं नहीं मिल पा रही है; इसको व्यापक तौर पर देखें तो बेहतर होगा कि सरकार कर्मचारियों को घर बैठा कर ऐसे ही वेतन देते रहे, कम से कम हजारों करोड के घाटे तो नहीं झेलने पडेंगे। सनद रहे कि सरकारी जहाज कंपनी 46 हजार करोड के घाटा-कर्ज में दबी हुई है। अभी-अभी सात ड्रीमलाईनर विमान बेच कर 84 करोड़ डालर जुटाने की जो बात प्रबंधन ने कही है, उससे भी और कर्ज उठाने की योजना है। दुनिया की सबसे घटिया एयर लाईंस में तीसरे नंबर पर षुमार एयर इंडिया का घाटा खतम करने के लिए सरकार पिछले नौसाल में तीस हजार करोड़ व्यय कर चुकी है। इस धन से कष्मीर से कन्याकुमारी तक और गुजरात से असम तक दो लेन के हाईवे बन सकते थे।
अपने खर्च घटाने के नाम पर एय इंडिया ने घरेलू उड़ानों में गीला टिषु पेपर, टाॅफी देना बंद ही कर दिया। स्वल्पाहार की ‘क्वालिटी और क्वांटिटी’’ दोनो ही देायम दर्जें तक कम कर दी हैं। इसके बावजूद उने विमानों की कुर्सियां टूटी दिखती हैं, लगेज रखने के केबिन खराब पाए जाते हैं। एयर इंडिया में कुप्रबंधन का स्तर देखने लिए किसी भी दिन दिल्ली के हवाई अड्उे पर सुबह पांच से छह बजे के बीच एयर इंडिया की बोर्डिंग पास काउंटरों पर नजर डालें । यात्री एक से दो घंटे खड़े रहते हैं और उनका बोर्डिंग पास नहीं बनता - कभी सिस्टम खराब या स्लो हो जाता हे तो कभी स्टाफ कम पड़ जाता है। इधर जहाज के उड़ने का समय हो जाता है तो इंडियन का स्टाफ हाय तौबा मचा कर एक साथ पूरे बोर्डिंग पास निकाल लेता है और फिर चूरन की पुडि़या की तरह आवाज लगा लगा कर बांट देता है - इससे बेपरवाह कि कोई दूसरे का पास ले सकता है या गलत पास ले सकता है।
सार्वजनिक क्षेत्र की विमानन कंपनी एयर इंडिया आईआईएम अमदाबाद के प्रो. रवीन्द्र ढोलकिया के अगुवाई में बने विषेश दल ने बचत बढ़ाने व खर्च घटाने के लिए निजी एयर लाईंस से सबक लेने की सलाह दी है। इस बीच धर्माधिकारी समिति कर्मचारियों के वेतनमान व भत्तों को अंतिम रूप दे रही है। ढोलकिया कमेटी ने नागरिक उड्डयन मंत्रालय को एक रिर्पोट सौंपी है जिसमें कुल 46 सिफारिषें हैं। इसमें कहा गया है कि प्रति दिन 14 करोड़ के परिचालन घाटे को कम करने के लिए एयर लाईंस को कर्मचारियांे की संख्या और कम करनी होगी। सनद रहे कि जब इतने कर्मचरियों के हाने पर भी मानवीय कमियों के कारण परिचालन व प्रबंधन में इतनी अव्यवस्थाएं हैं तो कर्मचारी कम होने पर इसका क्या हाल होगा। यह समिति एयर इंडिया के कर मुक्ति 10 हजार करोड़ के बांड जारी करने की बात भी कहती है - जरा सोचंे कि इतने बड़े घाटे व कुव्यवस्था को झेल रही कंपनी के बांड कौन लेगा ?
ढोलकिया समिति का सुझाव है कि ट्रेवल एजेंट को दिया जाने वला एक प्रतिषत कमीषन बंद किया जाए, इसके ऐवज में एजेंट ग्राहक से सुविधा षुल्क ले लें। यह किसी से छिपा नहीं है कि निजी एयर लाईंस एजेंटों को ज्यादा मुनाफा देती है।ं ऐसे में उनका एक फीसदी भी बंद हो जाने पर एयर इंडिया का टिकट कौन बेचना चाहेगा। यदि केवल सरकारी कर्मचारियों के बदौलत एयर लाईंस चलानी है तो सरकार के एक जेब से पैसा निकाल कर दूसरी जेब में देने की इस घाटे व घोटालों भरी प्रक्रिया पर विराम लग जाना ही बेहतर होगा । एयर इंडिया के अधिकांष उड़ानों के समय पर निजी एयर लाईंस पहले ही कब्जा किए हुए हैं, निजी कंपनियों का स्टाफ बेहद प्रोफेषनल तरीके से सवारियों से व्यवहार करता है उनके विमानों के देरी से उड़ने का प्रतिषत बहुत कम है- जाहिर है कि इनसे मुकाबला करना या पार पाना ‘‘महाराज’’ के बस का नहीं है, क्योंकि राजा तो कभी कुछ गलत करता ही नहीं है , सो उसके सुधरने की कोई गुजाईष नहीं है।
पंकज चतुर्वेदी
दिनांक 23 दिसंबर 2013, दिल्ली से लखनऊ जाने वाले ‘‘महाराज’ में सात बजे तक सवारियां आ चुकी थीं। सात बजे दरवाजे बंद हो गए,उड़ने का निर्धारित समय सवा सात जो था। साढे सात हो चुके थे,जहाज उड़ा लखनऊ पहंुूच गया। फिर आवाज गूंजी कि चूंकि कोहरा ज्यादा है सो वापिस दिल्ली जाना पड़ रहा है। दिल्ली लौट कर जहाज तीन घंटे खड़ा रहा। भूखे-प्यासे यात्री हैरान-परेषान से जहाज-जेल में बंद रहे। साढे दस बजे यह फिर से लखनऊ उड़ कर गया। 25 दिसंबर 2013 दिल्ली से खजुराहो जाने वाले कम से कम दस यात्री काउंटर पर हल्ला कर रहे थ, क्योंकि उन्हें यह कह कर छोड़ दिया गया था कि सवारी पूरी हो गई हैं, हमने दस फीसदी ज्यादा बुकिंग ले ले ली थी। उन यात्रियों को एक पांच सितारा होटल में ठहरा कर अगले दिन भेजने का वायदा किया गया। अभी 16 दिसंबर को ही मुंबई से उड़ने वाली एक उड़ान इस लिए पांच घंटे लेट हो गई क्योंकि पायलट व स्टाफ एक साथी की जन्मदिन मना रहे थे। कभी कू्र मेंबर नहीं पहुंचे तो कभी जहाज ही हवाई अड्डे नहीं पहुंचा, कभी पायलेट की कमी हो गई ..... भारत की सरकारी विमान कंपनी में यह आए रोज की बात है। बेचारे सरकारी कर्मचारियों पर पाबंदी है कि उन्हें अपने सरकारी दौरे इसी एयर लाईन्स से करने हैं , सो जहाज में लोग दिखते भी है। बेहद जर्जर प्रबंधन, लागातर घाटे व आम लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने में अक्षम रही एयर इंडिया को अब सरकारी इमदाद के बल पर जिंदा रखना हमारे संसाधनों का दुरूपयोग ही दिखता है।
कभी भारत सरकार के लिए गौरव रहे एयर इंडिया को जिलाने की सभी कोषिषें किस हद तक असफल रही हैं इसकी बानगी यह है कि पिछले साल एयर इंडिया का कुल घाटा सात हजार करोड़ पर पहुंच गया था। इस साल कई प्रयोग करने के बावजूद घाटा राषि 4270 करोड़ पर पहुंच गई है । यह राषि बिहार, छत्तीसगढ़ जैसे गरीब राज्यों पर सालभर में खर्च महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना पर व्यय राषि से कहीं ज्यादा है। सनद रहे कि बिहार की आबादी दस करोड़ है जबकि एयर इंडिया के कर्मचारियों की संख्या कोई 28 हजार। इन कर्मचारियों के वतन पर हर साल तीन हजार करोड खर्च किए जाते हैं। जिस तरह सालाना घाटा बढ़ रहा है, साथ ही कर्मचारियों में असंतोश है कि उन्हें अपेक्षित सुख-सुविधाएं नहीं मिल पा रही है; इसको व्यापक तौर पर देखें तो बेहतर होगा कि सरकार कर्मचारियों को घर बैठा कर ऐसे ही वेतन देते रहे, कम से कम हजारों करोड के घाटे तो नहीं झेलने पडेंगे। सनद रहे कि सरकारी जहाज कंपनी 46 हजार करोड के घाटा-कर्ज में दबी हुई है। अभी-अभी सात ड्रीमलाईनर विमान बेच कर 84 करोड़ डालर जुटाने की जो बात प्रबंधन ने कही है, उससे भी और कर्ज उठाने की योजना है। दुनिया की सबसे घटिया एयर लाईंस में तीसरे नंबर पर षुमार एयर इंडिया का घाटा खतम करने के लिए सरकार पिछले नौसाल में तीस हजार करोड़ व्यय कर चुकी है। इस धन से कष्मीर से कन्याकुमारी तक और गुजरात से असम तक दो लेन के हाईवे बन सकते थे।
अपने खर्च घटाने के नाम पर एय इंडिया ने घरेलू उड़ानों में गीला टिषु पेपर, टाॅफी देना बंद ही कर दिया। स्वल्पाहार की ‘क्वालिटी और क्वांटिटी’’ दोनो ही देायम दर्जें तक कम कर दी हैं। इसके बावजूद उने विमानों की कुर्सियां टूटी दिखती हैं, लगेज रखने के केबिन खराब पाए जाते हैं। एयर इंडिया में कुप्रबंधन का स्तर देखने लिए किसी भी दिन दिल्ली के हवाई अड्उे पर सुबह पांच से छह बजे के बीच एयर इंडिया की बोर्डिंग पास काउंटरों पर नजर डालें । यात्री एक से दो घंटे खड़े रहते हैं और उनका बोर्डिंग पास नहीं बनता - कभी सिस्टम खराब या स्लो हो जाता हे तो कभी स्टाफ कम पड़ जाता है। इधर जहाज के उड़ने का समय हो जाता है तो इंडियन का स्टाफ हाय तौबा मचा कर एक साथ पूरे बोर्डिंग पास निकाल लेता है और फिर चूरन की पुडि़या की तरह आवाज लगा लगा कर बांट देता है - इससे बेपरवाह कि कोई दूसरे का पास ले सकता है या गलत पास ले सकता है।
सार्वजनिक क्षेत्र की विमानन कंपनी एयर इंडिया आईआईएम अमदाबाद के प्रो. रवीन्द्र ढोलकिया के अगुवाई में बने विषेश दल ने बचत बढ़ाने व खर्च घटाने के लिए निजी एयर लाईंस से सबक लेने की सलाह दी है। इस बीच धर्माधिकारी समिति कर्मचारियों के वेतनमान व भत्तों को अंतिम रूप दे रही है। ढोलकिया कमेटी ने नागरिक उड्डयन मंत्रालय को एक रिर्पोट सौंपी है जिसमें कुल 46 सिफारिषें हैं। इसमें कहा गया है कि प्रति दिन 14 करोड़ के परिचालन घाटे को कम करने के लिए एयर लाईंस को कर्मचारियांे की संख्या और कम करनी होगी। सनद रहे कि जब इतने कर्मचरियों के हाने पर भी मानवीय कमियों के कारण परिचालन व प्रबंधन में इतनी अव्यवस्थाएं हैं तो कर्मचारी कम होने पर इसका क्या हाल होगा। यह समिति एयर इंडिया के कर मुक्ति 10 हजार करोड़ के बांड जारी करने की बात भी कहती है - जरा सोचंे कि इतने बड़े घाटे व कुव्यवस्था को झेल रही कंपनी के बांड कौन लेगा ?
ढोलकिया समिति का सुझाव है कि ट्रेवल एजेंट को दिया जाने वला एक प्रतिषत कमीषन बंद किया जाए, इसके ऐवज में एजेंट ग्राहक से सुविधा षुल्क ले लें। यह किसी से छिपा नहीं है कि निजी एयर लाईंस एजेंटों को ज्यादा मुनाफा देती है।ं ऐसे में उनका एक फीसदी भी बंद हो जाने पर एयर इंडिया का टिकट कौन बेचना चाहेगा। यदि केवल सरकारी कर्मचारियों के बदौलत एयर लाईंस चलानी है तो सरकार के एक जेब से पैसा निकाल कर दूसरी जेब में देने की इस घाटे व घोटालों भरी प्रक्रिया पर विराम लग जाना ही बेहतर होगा । एयर इंडिया के अधिकांष उड़ानों के समय पर निजी एयर लाईंस पहले ही कब्जा किए हुए हैं, निजी कंपनियों का स्टाफ बेहद प्रोफेषनल तरीके से सवारियों से व्यवहार करता है उनके विमानों के देरी से उड़ने का प्रतिषत बहुत कम है- जाहिर है कि इनसे मुकाबला करना या पार पाना ‘‘महाराज’’ के बस का नहीं है, क्योंकि राजा तो कभी कुछ गलत करता ही नहीं है , सो उसके सुधरने की कोई गुजाईष नहीं है।
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