My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

शनिवार, 18 जनवरी 2014

KANGER VALLY, BASTAR,KUTUMSAR LIME CAVES



























बस्‍तर में सुकमा वाले मार्ग पर कांगेर संरक्षित वन क्षेत्र है , वहां कुटुमसर में चूने और पानी के मिलन से बनने वाली गुफाओं और उसके भीतर की अजब दुनिया को देखना विलक्षण अनुभव हेा आप अचानक कई लाख साल पीछे की दुनिया में चले जाते हैं , इस गुफा में नीचे उतरने के लिए सबसे पहले आपका मोटापा आडे आ सकता है क्‍योंकि पहला ही मार्ग बामुश्किल तीन फुट रेडियस का हैा भीतर पतली सी पट्रटी पर चलना है कोई 370 मीटर गहराई में घुप्‍प अंधेरा, हवा की गुंजाईश नहीं बस एक गाईड के हाथ में ली हुई सोलर लालटेन के सहारे चूने की कठोर हो गई आक़तियों को देखें, यहां एक चित्र में वे छोटी छोटी मछली भी दिखेंगी जिनकी आंखें नहीं होती, क्‍योंकि वे पीढियों से घुप अंधेरे में हैंा यहां नई बन रही आक़तियां भी हैं और सदियों पुरानी संगमरमर की तरह चिकनी हो गई भीा लगातार लोगों के आवागमन और रोशनी के कारण कार्बन डाय आक्‍साईड व मोनो आक्‍साईड का प्रभाव इन धवल आक़तियों पर दिखने लगा हेा ये सफेद उजली से धुंधली हो रही हैं ा मैंने यहां पत्‍थरों की देा लेयर में बीच करैत सांप का बच्‍चा सोते हुए देखा ा एक अध्ययन से पता चला है कि करोड़ों वर्ष पूर्व प्रागैतिहासिक काल में बस्तर की कुटुमसर की गुफाओं में मनुष्य रहा करते थे।

फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी अहमदाबाद, इंस्टीट्यूट आफ पेलको बाटनी लखनऊ तथा भूगर्भ अध्ययन शाला लखनऊ ने यह जानकारी दी है।

विश्व प्रसिद्ध बस्तर की कुटुमसर की गुफाएँ कई रहस्यों को अभी भी अपने में समेटे हुए है जिनका भूगर्भ शास्त्रियों द्वारा लगातार अध्ययन किया जा रहा है।

भूगर्भशास्त्रियों का कहना है कि करोड़ों वर्ष पूर्व क्षेत्र में कुटुमसर की गुफाऐं स्थित हैं वह क्षेत्र पूरा पानी में डूबा हुआ था। गुफाओं का निर्माण प्राकृतिक परिवर्तनों साथ साथ पानी के बहाव के कारण हुआ।

कुटुमसर की गुफाऐं जमीन से 55 फुट नीचे हैं । इनकी लंबाई 330 मीटर है। इस गुफा के भीतर कई पूर्ण विकसित कक्ष हैं जो 20 से 70 मीटर तक चौड़े हैं। फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी अहमदाबाद के शोधकर्त्ताओं ने इन्हीं कक्षों के अध्ययन के बाद निष्कर्ष पर पहुँचे है कि करोड़ों वर्ष पूर्व यहाँ के आस पास के लोग इन गुफाओं में रहा करते थे। संभवत: यह प्रागैतिहासिक काल था।

चूना पत्थर से बनी कुटुमसर की गुफाओं के आंतरिक और बाह्य रचना के अध्ययन के उपरांत भूगर्भशास्त्री कई निष्कर्षों पर पहुँचे हैं। उदाहरण के लिए चूना पत्थर के रिसाव, कार्बनडाईक्साइड तथा पानी की रासायनिक क्रिया से सतह से लेकर छत तक अद्भूत प्राकृतिक संरचनाएँ गुफा के अंदर बन चुकी हैं।
ये वर्ष १९०० में खोजी गई तथा वर्ष १९५१ में डॉ. शंकर तिवारी ने सर्वेक्षण किया । इसका मुख्य मार्ग ३३० मीटर लम्बा है तथा २० से ७२ मीटर चौड़ा है । इसकी दीवारों पर हाथी की सूंड सी रचनायें (ड्रिप स्टोन) जमीन से उठती (स्टेलेग्माइट) एवं छत से लटकती (स्टेलेक्टाइट) शुभ्र धवल चूने के पत्थर की संरचनायें प्रमुख आकर्षण का केन्द्र है । ये संरचनायें अत्यंत धीमी गति से बनती है तथा इनका बनना अभी भी जारी है । गुफा के निर्माण में प्रकृति को कितना समय लगा होगा, बता पाना कठिन है । गुफा के कई साइड कम्पार्टमेंट है । गुफा के धरातल में कई छोटे-छोटे पोखर है । जिनमें प्रसिद्ध अंधी मछलियां एवं मेंढक पाये जाते है । इसके अतिरिक्त गुफा में अंधेरे में पलनेवाले झींगुर, सांप, मकडी, चमगादड, दीमक आदि पाये जाते है । गुफा के अंत में स्टेलेग्माइट  शिवलिंग है । गुफा में सोलार लेम्प एवं गाइड की सहायता से घूमा जाता है ।
 कांगेर घाटी के जंगल में उडने वाली गिलहरी और बोलने वाली मैनेा नहीं देख पाया, ये दोनो जीव अल्‍सुबह ही दिख पाते हैं, यहां के जल प्रपातों की चर्चा आगे कभी करूंगा

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