यमुना को वादों की नहीं इरादों की दरकार है
पंकज चतुर्वेदी
अब उत्तर प्रदेष सरकार ने दिल्ली को खत लिख कर ध्मका दिया कि यदि यमुना में गंदगी घोलना बंद नहीं किया तो राजधानी का गंगा-जल रोक देंगे। हालांकि दिल्ली सरकार ने इस खत को कतई गंभीरता से नहीं लिया है, ना ही इस पर कोई प्रतिक्रिया दी है, लेकिन यह तय है कि जब कभी यमुना का मसला उठता है,, सरकार बड़े-बड़े वादे करती है लेकिन क्रियान्वयन स्तर पर कुछ होता नहीं है। एक सपना कामनवेल्थ खेलों के पहले दिखाया गया था कि अक्तूबर-2010 तक लंदन की टेम्स नदी की ही तरह देष की राजधानी दिल्ली में वजीराबाद से ले कर ओखला तक षानदार लैंडस्केप, बगीचे होंगे, नीला जल कल-कल कर बहता होगा, पक्षियों और मछलियों की रिहाईष होगी। लेकिन कामनवेल्थ खेल तो बदबू मारती, कचरे व सीवर के पानी से लवरेज यमुना के तट पर ही हुए। याद करें 10 अप्रैल 2001 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेष दिया था कि 31मार्च 2003 तक यमुना को दिल्ली में न्यूनतम जल गुणवŸाा प्राप्त कर ली जानी चाहिए, ताकि यमुना को ‘मैली‘ न कहा जा सके। उस समय-सीमा को बीते ग्यारह सालों के बाद भी दिल्ली क्षेत्र में बहने वाली नदी में आॅॅक्सीजन का नामोनिषान ही नहीं रह गया है यानी पूरा पानी जहरीला हो चुका है और यमुना मर चुकी है। अभी पिछले साल ही मार्च के पहले सप्ताह में मथुरा से कई हजार लोग यमुना बचाने को दिल्ली के लिए पैदल आए थे और उस समय भी केंद्र सरकार ने फरीदाबाद से पहले लोगों को राक कर यमुना के उद््धार का आष्वासन दिया था, भीड़ छंटी और सरकार वादे भूल गई।
जहां-जहां से नदियां निकलीं, वहां-वहां बस्तियां बसती गईं और इस तरह विविध संस्कृतियों, भाशाओं, जाति-धर्मो का भारत बसता चला गया। तभी नदियां पवित्र मानी जाने लगीं-केवल इसलिए नहीं कि इनसे जीवनदायी जल मिल रहा था, इस लिए भी कि इन्हीं की छत्र-छाया में मानव सभ्यता पुश्पित-पल्लवित होती रही। गांगा और यमुना को भारत की अस्मिता का प्रतीक माना जाता रहा है। लेकिन विडंबना है कि विकास की बुलंदियों की ओर उछलते देष में अमृत बांटने वाली गंगा-यमुना आज खुद जहर पीने को अभिषप्त है। यमुना की दुर्दषा तो और भी अधिक विचारणीय है, कारण- यह देष के षक्ति-केंद्र दिल्ली में ही सबसे अधिक दूशित होती है। यमुना की पावन धारा दिल्ली में आ कर एक नाला बन जाती है। आंकडों और कागजों पर तो इस नदी की हालत सुधारने को इतना पैसा खर्च हो चुका है कि यदि उसका ईमानदारी से इस्तेमाल किया जाता तो उससे एक समानांतर धारा की खुदाई हो सकती थी।
ओखला में तो यमुना नदी में बीओडी स्तर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय स्तर से 40-48 गुना ज्यादा है। पेस्टीसाइडस् और लोहा, जिंक आदि धातुएं भी नदी में पाई गई हैं। एम्स के फारेन्सिक विभाग के अनुसार, 2004 में 0.08 मिग्रा. आर्सेनिक की मात्रा पाई गई जो वास्तव में 0.01 मिग्रा होनी चाहिए। केंद्रीय प्रदूशण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने यमुना का सर्वे करते हुए आर्सेनिक की मात्रा को नजरअंदाज कर दिया। पानी में मौजूद फास्फेट और नाइट्रेट का ी कोई जिक्र नहीं किया गया है। ऊपरी यमुना का पानी तो किसी लायक नहीं ही रहा। लेकिन यह विडम्बना ही है कि यमुना की
निचली धारा जहां बहती है, वहां के लोग (मथुरा, आगरा, इलाहाबाद आदि) पीने के पानी के लिये यमुना के पानी पर ही निर्भर हैं।
यमुना जब देहरादून की घाटी में पहुंचती है तो वहां कालसी-हरीपुर के पास उसमें टौस (तमसा) आ मिलती है। षिवालिक पहाड़ों में तेजी से घूमते-घामते यमुना फैजाबाद में मैदानों पर आ जाती है। फिर इससे कई नहरें निकलती है। पहले-पहल जिन नदियों पर नहरें बनीं, उनमें यमुना एक है। 600 साल पहले दिल्ली के षासक फिरोजषाह तुगलक ने फैजाबाद के पास यमुना में एक नहर खुदवाई थी। पष्चिमी यमुना नहर के नाम से मषहूर यह नहर अंबाला, हिसार, करनाल आदि जिलों के खेतों को सींचती हैं। यह नहर कुछ सालों बाद बंद हो गई। 200 साल बाद अकबर ने इसे ठीक कराया, क्योंकि उससे हांसी-हिसार के षिकार-गाहों को पानी पहुंचाना था। षाहजहां इसकी एक षाखा दिल्ली तक ले गया था। 50 साल के बाद इसमें फिर खराबी आ गई थी। सन 1818 में लार्ड हेस्टिंगस के निर्देष पर कप्तान क्लेन ने इसे फर षुरू करवाया था।
कोई 200 साल पहले इससे दोआब नहर भी निकाली गई थी। इससे सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ जिलों को पानी मिलता है। यह भी दिल्ली के करीब यमुना में आ कर मिलती है। यह नहर भी बार-बार बिगड़ती और सुधरती रही। इसे पूर्वी यमुना नहर भी कहते हैं। नहरों के कारण यमुना का बहाव धीमा हो जाता है। बहुत दूर तक यह हरियाणा और उत्तरप्रदेष की सीमा निर्धारित करती है। एक ओर पानीपत, रोहतक जिले हैं तो दूसरी ओर मेरठ, मुजफ्फरनगर आदि। और फिर यमुना आती है दिल्ली में। यह इस नगर के कई बार उजड़ने-बसने, मुल्क का आजादी की जंग और विकास की मूक साक्षी बनती है। यहां से ओखला होते हुए यमुना आगे बढ़ती है तो दनकौर में हिंडन नदी इसके साथ हो लेती है। सनद रहे कि हिंडन भी गाजियाबाद से उपजे प्रदूशण से हलकान है और इसके पानी में अब मछलियां पैदा होना भी बंद हो गया है। एक बार फिर हरियाणा और उत्तरप्रदेष की सीमा बनी इस नदी के एक तरफ फरीदाबाद होता है तो दूसरी ओर बुलंदषहर, नोएडा जिला।
यमुना के इस संघशभरे सफर का सबसे दर्दनाक पहलू इसकी दिल्ली-यात्रा है। यमुना नदी दिल्ली में 48 किलोमीटर बहती है। यह नदी की कुल लंबाई का महज दो फीसदी है। जबकि इसे प्रदूशित करने वाले कुल गंदे पानी का 71 प्रतिषत और बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड यानी बीओडी का 55 प्रतिषत यहीं से इसमें घुलता है। अनुमान है कि दिल्ली में हर रोज 3297 एमएलडी गंदा पानी और 132 टन बीओडी यमुना में घुलता है। दिल्ली की ऐतिहासिंक और सांस्कृतिक धरोहर कही जाने वाली यमुना का राजधानी में प्रवेष उत्तर में बसे पल्ला गांव से होता है। पल्ला में नदी का प्रदूशण का स्तर ‘ए’ होता है। लेकिन यही उच्च गुणवत्ता का पानी जब दूसरे छोर जैतपुर पहुचता है तो ‘ई’ श्रेणी का हो जाता है। सनद रहे कि इस स्तर का पानी मवेषियों के लिए भी अनुपयुक्त कहलाता है। हिमालय के यमनोत्री ग्लेषियर से निर्मल जल के साथ आने वाली यमुना की असली दुर्गति दिल्ली में वजीराबाद बांध को पार करते ही होने लगती है। इसका पहला सामना होता है नजफगढ़ नाले से, जो कि 38 षहरी व चार देहाती नालों की गंदगी अपने में समेटे वजीराबाद पुल के पास यमुना में मिलता है। इसके अलावा दिल्ली महानगर की कोई डेढ़ करोड़ आबादी का मल-मूत्र व अन्य गंदगी लिए 21 नाले यमुना में मिलते हैं, उनमें प्रमुख हैं- मैगजीन रोड,स्वीयर कालोनी, खैबर पास,मेंटकाफ हाउस, कुदेसिया बाग, यमुनापार नगरनिगम नाला, मोरीगेट, सिविल मिल, पावर हाउस, सैनी नर्सिंग होम, नाला नं. 14, बारापुल नाला, महारानी बाग, कालकाजी और तुगलकाबाद नाला। इसके बाद आगरा के चमड़ा कारखाने व मथुरा के रंगाई कारखानों का जहर भी इसमें घुलता है।
दिल्ली मे यमुना को साफ-सुथरा बनाने की कागजी कवायद कोई 40 सालों से चल रह है। सन अस्सी में एक योजना नौ सौ करोड़ की बनाई गई थी। दिसंबर-1990 में भारत सरकार ने यमुना को बचाने के लिए जापान सरकार के सामने हाथ फैलाए थे। जापानी संस्था ओवरसीज इकोनोमिक कारपोरेषन फंड आफ जापान का एक सर्वें दल जनवरी- 1992 में भारत आया था। जापान ने 403 करेड़ की मदद दे कर 1997 तक कार्य पूरा करने का लक्ष्य रखा था। लेकिन यमुना का मर्ज बढ़ता गया और कागजी लहरें उफनती रहीं। अभी तक कोई 1800 करोड़ रूपए यमुना की सफाई के नाम पर साफ हो चुके हैं। इतना धन खर्च होने के बावजूद भी केवल मानसून में ही यमुना में आॅॅक्सीजन का बुनियादी स्तर देखा जा सकता है। इसमें से अधिकांष राषि सीवेज और औद्योगिक कचरे को पानी से साफ करने पर ही लगाई गई।
यमुना की सफाई के दावों में उत्तरप्रदेष सरकार भी कभी पीछे नहीं रही। सन 1983 में उ.प्र. सरकार ने यमुना सफाई की एक कार्ययोजना बनाई। 26 अक्तूबर 1983 को मथुरा में उ.प्र. जल निगम के प्रमुख आरके भार्गव की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय बैठक हुई थी। इसमें मथुरा के 17 नालों का पानी परिषोधित कर यमुना में मिलाने की 27 लाख रूपए की योजना को इस विष्वास के साथ मंजूरी दी गई थी कि काम 1985 तक पूरा हो जाएगा। ना तो उस योजना पर कोई काम हुआ, और ना ही अब उसका कोई रिकार्ड मिलता है। उसके बाद तो कई-कई करोड़ के खेल हुए, लेकिन यमुना दिन-दुगनी, रात चैगुनी मैली होती रही। आगरा में कहने को तीन सीवर षोधन संयत्र काम कर रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी 110 एमएलडी सीवरयुक्त पानी हर रोज नदी में मिल रहा है। संयत्रों की कार्यक्षमता और गुणवत्ता अलग ही बात है। तभी आगरा में यमुना के पानी को पीने के लायक बनाने के लिए 80 पीपीएम क्लोरीन देनी होती है। सनद रहे दिल्ली में यह मात्रा आठ-दस पीपीएम है।
दो साल पहले एक बार फिर यमुना को अपने जीवन के लिए सरकार से उम्मीद बंधी थी जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निर्देष पर यमुना नदी विकास प्राधिकरण(वाईआरडीए) का गठन किया गया था। दिल्ली के उपराज्यपाल की अध्यक्षता में दिल्ली जल बोर्ड, प्रदूशण बोर्ड सहित कई सरकारी व गैर सरकारी संगठनों को साथ ले कर एक तकनीकी सलाहकार समूह का गठन हुआ था। उस समय सरकार की मंषा थी कि एक कानून बना कर यमुना में प्रदूशण को अपराध घोशित कर राज्यों व स्थानीय निकायों को इसका जिम्मेदार बना दिया जाए। लेकिन वह सबकुछ कागजों से आगे बढ़ा ही नहीं ।
यमुना हमारी मान्यताओं के मुताबिक महज एक पानी का जरिया मात्र नहीं है। बच्चे के जन्म के बाद मुंडन से ले कर अंतिम संस्कार के बाद अस्थि विसर्जन तक यमुना की पावनता इंसान के जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। महात्मा गांधी, लालबहादुर षास्त्री, इंदिराजी, सहित कई महान नेताओं की समाधियां इसी यमुना के तट पर हैं। दिल्ली सहित अन्य दर्जनों षहरों के नलो ंमें आने वाले पानी का मुख्य स्त्रोत यही नदी है। मुहर्रम के ताजियें हो ंया फिर गणेष या दुर्गा प्रतिमाएं, यमुना को कैसे भूला जा सकता है ? लेकिन आज यमुना जिस हाल में है, उसका अस्तित्व ही खतरे में है। मथुरा और दिल्ली में हर साल कुछ संस्थाएं नदी के किनारे की कीचड़ व गंदगी साफ करने के आयोजन करते हैं। हो सकता है कि उनकी भावना पावन हो, लेकिन उनके इस प्रयासों से नदी की सफाई में कहीं कोई इजाफा नहीं होता है। यदि यमुना को एक मरे हुए नाला बनने से बचाना है तो इसके उद्धार के लिए मिल सरकारी पैसों का इस्तेमाल ईमानदारी से करना जरूरी है। वरना यह याद रखना जरूरी है कि मानव-सभ्यता का अस्तित्व नदियों का सहयात्री है और इसी पर निर्भर है।
पंकज चतुर्वेदी
सहायक संपादक
नेषनल बुक ट्रस्ट इंडिया
नेहरू भवन, वसंत कुंज इंस्टीट्यूषनल एरिया फेज-2
वसंत कुंज, नई दिल्ली-110070
संपर्क- 9891928376
पंकज चतुर्वेदी
अब उत्तर प्रदेष सरकार ने दिल्ली को खत लिख कर ध्मका दिया कि यदि यमुना में गंदगी घोलना बंद नहीं किया तो राजधानी का गंगा-जल रोक देंगे। हालांकि दिल्ली सरकार ने इस खत को कतई गंभीरता से नहीं लिया है, ना ही इस पर कोई प्रतिक्रिया दी है, लेकिन यह तय है कि जब कभी यमुना का मसला उठता है,, सरकार बड़े-बड़े वादे करती है लेकिन क्रियान्वयन स्तर पर कुछ होता नहीं है। एक सपना कामनवेल्थ खेलों के पहले दिखाया गया था कि अक्तूबर-2010 तक लंदन की टेम्स नदी की ही तरह देष की राजधानी दिल्ली में वजीराबाद से ले कर ओखला तक षानदार लैंडस्केप, बगीचे होंगे, नीला जल कल-कल कर बहता होगा, पक्षियों और मछलियों की रिहाईष होगी। लेकिन कामनवेल्थ खेल तो बदबू मारती, कचरे व सीवर के पानी से लवरेज यमुना के तट पर ही हुए। याद करें 10 अप्रैल 2001 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेष दिया था कि 31मार्च 2003 तक यमुना को दिल्ली में न्यूनतम जल गुणवŸाा प्राप्त कर ली जानी चाहिए, ताकि यमुना को ‘मैली‘ न कहा जा सके। उस समय-सीमा को बीते ग्यारह सालों के बाद भी दिल्ली क्षेत्र में बहने वाली नदी में आॅॅक्सीजन का नामोनिषान ही नहीं रह गया है यानी पूरा पानी जहरीला हो चुका है और यमुना मर चुकी है। अभी पिछले साल ही मार्च के पहले सप्ताह में मथुरा से कई हजार लोग यमुना बचाने को दिल्ली के लिए पैदल आए थे और उस समय भी केंद्र सरकार ने फरीदाबाद से पहले लोगों को राक कर यमुना के उद््धार का आष्वासन दिया था, भीड़ छंटी और सरकार वादे भूल गई।
जहां-जहां से नदियां निकलीं, वहां-वहां बस्तियां बसती गईं और इस तरह विविध संस्कृतियों, भाशाओं, जाति-धर्मो का भारत बसता चला गया। तभी नदियां पवित्र मानी जाने लगीं-केवल इसलिए नहीं कि इनसे जीवनदायी जल मिल रहा था, इस लिए भी कि इन्हीं की छत्र-छाया में मानव सभ्यता पुश्पित-पल्लवित होती रही। गांगा और यमुना को भारत की अस्मिता का प्रतीक माना जाता रहा है। लेकिन विडंबना है कि विकास की बुलंदियों की ओर उछलते देष में अमृत बांटने वाली गंगा-यमुना आज खुद जहर पीने को अभिषप्त है। यमुना की दुर्दषा तो और भी अधिक विचारणीय है, कारण- यह देष के षक्ति-केंद्र दिल्ली में ही सबसे अधिक दूशित होती है। यमुना की पावन धारा दिल्ली में आ कर एक नाला बन जाती है। आंकडों और कागजों पर तो इस नदी की हालत सुधारने को इतना पैसा खर्च हो चुका है कि यदि उसका ईमानदारी से इस्तेमाल किया जाता तो उससे एक समानांतर धारा की खुदाई हो सकती थी।
ओखला में तो यमुना नदी में बीओडी स्तर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय स्तर से 40-48 गुना ज्यादा है। पेस्टीसाइडस् और लोहा, जिंक आदि धातुएं भी नदी में पाई गई हैं। एम्स के फारेन्सिक विभाग के अनुसार, 2004 में 0.08 मिग्रा. आर्सेनिक की मात्रा पाई गई जो वास्तव में 0.01 मिग्रा होनी चाहिए। केंद्रीय प्रदूशण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने यमुना का सर्वे करते हुए आर्सेनिक की मात्रा को नजरअंदाज कर दिया। पानी में मौजूद फास्फेट और नाइट्रेट का ी कोई जिक्र नहीं किया गया है। ऊपरी यमुना का पानी तो किसी लायक नहीं ही रहा। लेकिन यह विडम्बना ही है कि यमुना की
निचली धारा जहां बहती है, वहां के लोग (मथुरा, आगरा, इलाहाबाद आदि) पीने के पानी के लिये यमुना के पानी पर ही निर्भर हैं।
यमुना जब देहरादून की घाटी में पहुंचती है तो वहां कालसी-हरीपुर के पास उसमें टौस (तमसा) आ मिलती है। षिवालिक पहाड़ों में तेजी से घूमते-घामते यमुना फैजाबाद में मैदानों पर आ जाती है। फिर इससे कई नहरें निकलती है। पहले-पहल जिन नदियों पर नहरें बनीं, उनमें यमुना एक है। 600 साल पहले दिल्ली के षासक फिरोजषाह तुगलक ने फैजाबाद के पास यमुना में एक नहर खुदवाई थी। पष्चिमी यमुना नहर के नाम से मषहूर यह नहर अंबाला, हिसार, करनाल आदि जिलों के खेतों को सींचती हैं। यह नहर कुछ सालों बाद बंद हो गई। 200 साल बाद अकबर ने इसे ठीक कराया, क्योंकि उससे हांसी-हिसार के षिकार-गाहों को पानी पहुंचाना था। षाहजहां इसकी एक षाखा दिल्ली तक ले गया था। 50 साल के बाद इसमें फिर खराबी आ गई थी। सन 1818 में लार्ड हेस्टिंगस के निर्देष पर कप्तान क्लेन ने इसे फर षुरू करवाया था।
कोई 200 साल पहले इससे दोआब नहर भी निकाली गई थी। इससे सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ जिलों को पानी मिलता है। यह भी दिल्ली के करीब यमुना में आ कर मिलती है। यह नहर भी बार-बार बिगड़ती और सुधरती रही। इसे पूर्वी यमुना नहर भी कहते हैं। नहरों के कारण यमुना का बहाव धीमा हो जाता है। बहुत दूर तक यह हरियाणा और उत्तरप्रदेष की सीमा निर्धारित करती है। एक ओर पानीपत, रोहतक जिले हैं तो दूसरी ओर मेरठ, मुजफ्फरनगर आदि। और फिर यमुना आती है दिल्ली में। यह इस नगर के कई बार उजड़ने-बसने, मुल्क का आजादी की जंग और विकास की मूक साक्षी बनती है। यहां से ओखला होते हुए यमुना आगे बढ़ती है तो दनकौर में हिंडन नदी इसके साथ हो लेती है। सनद रहे कि हिंडन भी गाजियाबाद से उपजे प्रदूशण से हलकान है और इसके पानी में अब मछलियां पैदा होना भी बंद हो गया है। एक बार फिर हरियाणा और उत्तरप्रदेष की सीमा बनी इस नदी के एक तरफ फरीदाबाद होता है तो दूसरी ओर बुलंदषहर, नोएडा जिला।
यमुना के इस संघशभरे सफर का सबसे दर्दनाक पहलू इसकी दिल्ली-यात्रा है। यमुना नदी दिल्ली में 48 किलोमीटर बहती है। यह नदी की कुल लंबाई का महज दो फीसदी है। जबकि इसे प्रदूशित करने वाले कुल गंदे पानी का 71 प्रतिषत और बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड यानी बीओडी का 55 प्रतिषत यहीं से इसमें घुलता है। अनुमान है कि दिल्ली में हर रोज 3297 एमएलडी गंदा पानी और 132 टन बीओडी यमुना में घुलता है। दिल्ली की ऐतिहासिंक और सांस्कृतिक धरोहर कही जाने वाली यमुना का राजधानी में प्रवेष उत्तर में बसे पल्ला गांव से होता है। पल्ला में नदी का प्रदूशण का स्तर ‘ए’ होता है। लेकिन यही उच्च गुणवत्ता का पानी जब दूसरे छोर जैतपुर पहुचता है तो ‘ई’ श्रेणी का हो जाता है। सनद रहे कि इस स्तर का पानी मवेषियों के लिए भी अनुपयुक्त कहलाता है। हिमालय के यमनोत्री ग्लेषियर से निर्मल जल के साथ आने वाली यमुना की असली दुर्गति दिल्ली में वजीराबाद बांध को पार करते ही होने लगती है। इसका पहला सामना होता है नजफगढ़ नाले से, जो कि 38 षहरी व चार देहाती नालों की गंदगी अपने में समेटे वजीराबाद पुल के पास यमुना में मिलता है। इसके अलावा दिल्ली महानगर की कोई डेढ़ करोड़ आबादी का मल-मूत्र व अन्य गंदगी लिए 21 नाले यमुना में मिलते हैं, उनमें प्रमुख हैं- मैगजीन रोड,स्वीयर कालोनी, खैबर पास,मेंटकाफ हाउस, कुदेसिया बाग, यमुनापार नगरनिगम नाला, मोरीगेट, सिविल मिल, पावर हाउस, सैनी नर्सिंग होम, नाला नं. 14, बारापुल नाला, महारानी बाग, कालकाजी और तुगलकाबाद नाला। इसके बाद आगरा के चमड़ा कारखाने व मथुरा के रंगाई कारखानों का जहर भी इसमें घुलता है।
दिल्ली मे यमुना को साफ-सुथरा बनाने की कागजी कवायद कोई 40 सालों से चल रह है। सन अस्सी में एक योजना नौ सौ करोड़ की बनाई गई थी। दिसंबर-1990 में भारत सरकार ने यमुना को बचाने के लिए जापान सरकार के सामने हाथ फैलाए थे। जापानी संस्था ओवरसीज इकोनोमिक कारपोरेषन फंड आफ जापान का एक सर्वें दल जनवरी- 1992 में भारत आया था। जापान ने 403 करेड़ की मदद दे कर 1997 तक कार्य पूरा करने का लक्ष्य रखा था। लेकिन यमुना का मर्ज बढ़ता गया और कागजी लहरें उफनती रहीं। अभी तक कोई 1800 करोड़ रूपए यमुना की सफाई के नाम पर साफ हो चुके हैं। इतना धन खर्च होने के बावजूद भी केवल मानसून में ही यमुना में आॅॅक्सीजन का बुनियादी स्तर देखा जा सकता है। इसमें से अधिकांष राषि सीवेज और औद्योगिक कचरे को पानी से साफ करने पर ही लगाई गई।
यमुना की सफाई के दावों में उत्तरप्रदेष सरकार भी कभी पीछे नहीं रही। सन 1983 में उ.प्र. सरकार ने यमुना सफाई की एक कार्ययोजना बनाई। 26 अक्तूबर 1983 को मथुरा में उ.प्र. जल निगम के प्रमुख आरके भार्गव की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय बैठक हुई थी। इसमें मथुरा के 17 नालों का पानी परिषोधित कर यमुना में मिलाने की 27 लाख रूपए की योजना को इस विष्वास के साथ मंजूरी दी गई थी कि काम 1985 तक पूरा हो जाएगा। ना तो उस योजना पर कोई काम हुआ, और ना ही अब उसका कोई रिकार्ड मिलता है। उसके बाद तो कई-कई करोड़ के खेल हुए, लेकिन यमुना दिन-दुगनी, रात चैगुनी मैली होती रही। आगरा में कहने को तीन सीवर षोधन संयत्र काम कर रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी 110 एमएलडी सीवरयुक्त पानी हर रोज नदी में मिल रहा है। संयत्रों की कार्यक्षमता और गुणवत्ता अलग ही बात है। तभी आगरा में यमुना के पानी को पीने के लायक बनाने के लिए 80 पीपीएम क्लोरीन देनी होती है। सनद रहे दिल्ली में यह मात्रा आठ-दस पीपीएम है।
दो साल पहले एक बार फिर यमुना को अपने जीवन के लिए सरकार से उम्मीद बंधी थी जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निर्देष पर यमुना नदी विकास प्राधिकरण(वाईआरडीए) का गठन किया गया था। दिल्ली के उपराज्यपाल की अध्यक्षता में दिल्ली जल बोर्ड, प्रदूशण बोर्ड सहित कई सरकारी व गैर सरकारी संगठनों को साथ ले कर एक तकनीकी सलाहकार समूह का गठन हुआ था। उस समय सरकार की मंषा थी कि एक कानून बना कर यमुना में प्रदूशण को अपराध घोशित कर राज्यों व स्थानीय निकायों को इसका जिम्मेदार बना दिया जाए। लेकिन वह सबकुछ कागजों से आगे बढ़ा ही नहीं ।
यमुना हमारी मान्यताओं के मुताबिक महज एक पानी का जरिया मात्र नहीं है। बच्चे के जन्म के बाद मुंडन से ले कर अंतिम संस्कार के बाद अस्थि विसर्जन तक यमुना की पावनता इंसान के जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। महात्मा गांधी, लालबहादुर षास्त्री, इंदिराजी, सहित कई महान नेताओं की समाधियां इसी यमुना के तट पर हैं। दिल्ली सहित अन्य दर्जनों षहरों के नलो ंमें आने वाले पानी का मुख्य स्त्रोत यही नदी है। मुहर्रम के ताजियें हो ंया फिर गणेष या दुर्गा प्रतिमाएं, यमुना को कैसे भूला जा सकता है ? लेकिन आज यमुना जिस हाल में है, उसका अस्तित्व ही खतरे में है। मथुरा और दिल्ली में हर साल कुछ संस्थाएं नदी के किनारे की कीचड़ व गंदगी साफ करने के आयोजन करते हैं। हो सकता है कि उनकी भावना पावन हो, लेकिन उनके इस प्रयासों से नदी की सफाई में कहीं कोई इजाफा नहीं होता है। यदि यमुना को एक मरे हुए नाला बनने से बचाना है तो इसके उद्धार के लिए मिल सरकारी पैसों का इस्तेमाल ईमानदारी से करना जरूरी है। वरना यह याद रखना जरूरी है कि मानव-सभ्यता का अस्तित्व नदियों का सहयात्री है और इसी पर निर्भर है।
पंकज चतुर्वेदी
सहायक संपादक
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संपर्क- 9891928376
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