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शनिवार, 1 नवंबर 2014

KASHMIR NEEDS MORE ATTENTION FOR RELIEF

अभी भी कराह रहा है कश्‍मीर

THE SEA EXPRESS, AGRA 2-11-14http://theseaexpress.com/Details.aspx?id=67545&boxid=30957752
                                                             पंकज चतुर्वेदी
 अब झेलम एक मरी हुई नागिन सी पसरी है, पानी इतना कम कि इंसान भी बामुश्‍किल डूब पाए, लेकिन एक महीने पहले उसकी तबाही के निशान दशकों तक लोगों के दिलो दिमाग पर बसे रहेंगे। जब देश के अधिकांश हिस्से में मुस्लिम धर्मावलंबी हजरत इब्राहिम द्वारा अपने बेटे को खुदा की राह में कुर्बान करने को याद करते हुए ईद उल जुहा मना रहे थे, कश्‍मीर के कई लाख लोग उदास, हताश, निराश निगाहों से बस परवरदिगार से दुआ कर रहे थे कि ऐसे दिन किसी दुश्मन को भी ना दिखाए। दीवाली भी वहां अमावस्या की रात की तरह काली रही।  प्रधानमंत्री के आने की तैयारी में कुछ राहत शिविरों के दिन फिर, लेकिन जिंदगी की असल चुनौतियां सामने मुंह बाएं खड़ी हैं। सिर पर छत नहीं, तन पर कपड़ा नहीं, खाना भी वही जो ख्ैारात में मिल जाए। किसी के बाग थे तो किसी के खेत तो किसी के शिकारे या दुकान, लेकिन अब सबकुछ अतीत बन कर रह गया है। श्रीनगर में अभी भी कुछ इलाकों में पानी भरा है। प्रशासन कई सौ टन कचारा रोज निकाल रहा है तो भी यहां की बस्ती-बाजार सामान, मवेशियों की लाशो से गंधा रहे हैं जब यह हालात राजधानी के हैं तो भीतरी गांवों पर क्या कयामत होगा? बस कल्पना ही की जा सकती हे। दिक्कत केवल आज की हीं है, आने वाले दिन तो और भी कठिन होंगे, आसमान से बर्फ गिरेगी और सर पर छत नहीं होगी, जब पेट की आग कुलबुलाएगी तो रोजगार नहीं होगा। जाहिर है फौज अपने काम में लगी है, लेकिन इमदाद के लिए जरूरी मशीनरी, इंधन, दवाई, डाक्टर, पुनर्निमाण के लिए मूलभूत सामग्री तो सरकार को ही जुटानी होगी, औरा राज्य सरकार बाढ़ की मार से इतनी विकलांग हो गई कि अभी उसे खड़े होने में समय लगेगा। अब राज्य में चुनाव की घोषणा हो चुकी हैं तो राहत में सियासत की गोटियां अलग चली जा रही हैं। जिसका शिकार तो आम कश्‍मीरी  ही हो रहा है ।
यदि सरकारी आंकड़ों पर ही भरोसा करें तो बीते महीने धरती की जन्नत पर कयामत ले कर आया जल-विप्लव 12 लाख परिवारों की बर्बादी का कारण बना है।  कुल 5642 गांव तबाह हुए, जिनमें से 2489 गांव कश्‍मीर घाटी के व शेष जम्मू संभाग के हैं। अभी तक 281 लोगों के मारे जाने व 29 लोगों के गुमशुदा होने की खबर है। बाढ़ का सबसे ज्यादा कहर मकानों, दुकानों व अन्य संपत्तियों पर हुआ, जिसका हिसांब लगाना बड़ा मुश्‍किल है। फिर भी 83044 पक्के मकान पूरी तरह समाप्त होने और 96089 पक्के मकान आंशिंक तौर पर नष्‍ट होने की प्रारंभिक खबर है। कोई एक लाख झोपडि़यों, अनाज व मवेशी रखने के कच्चे घरोंदो के पूरी तरह नेस्तनाबूद होने के भी प्रमाण हैं।  सड़क, पुल, बिजली व दूरसंचार की लाईनें जैसी मूलभूत सुविधाओं का नुकसान अभी तो तीन हजार करोड़ आंका गया है।
श्रीनगर व उसके आसपास की आबादी का पेट पालने का जरिया या तो पर्यटन है या फिर खेती किसानी। श्रीनगर का अस्सी फीसदी पूरी तरह खतम हो गया है। इलाके की झीलें, बगीचे, बाजार सबकुछ तबाह हो गए हैं और उनको पुराने रूप में लौटाने में दो साल लगना लाजिमी है। शिकारे, हाउस बोट, होटल, टैक्सी, सबकुछ तो समाप्त हो गया है। हस्तशिल्प की दुकानें, कारखाने कुछ भी प्रकृति की मार से अछूता नहीं रहा।  खेती की हालत  तो और बुरी है। लगभग साढ़े छह लाख एकड़ खेतों में झेलम का पानी बैठ गया है। इसमें 4043 करोड़ की खड़ी फसलें और 1568 करोड़ के फलों के बाग जड़ से मिट गए हैं।  पचास हजार से ज्यादा तो पालतू मवेशी मारे गए है।
हालांकि फौज दिन-रात लग कर वहां सामान्य हालत बनाने का प्रयास कर रही है, लेकिन जिस तरह सड़ा हुआ घरेलू सामान, खाने-पीने की चीजें, जानवर, कपड़े सड़कों -गलियों में पड़े हैं, ऊपर से बहुत से स्थानों पर जल-भराव बरकरार है, इससे हालात बेकाबू हैं। एक तो लोगों को काम करने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं, दूसरा भारी मशीनों व उसको चलाने के लिए डीजल की कमी है, तीसरे कतिपय अलगाववादी तत्व इस विशम हालात में लोगों के गुस्से व हताषा को अपने पक्ष में मोड़ने का गंदा खेल खेल रहे हैं।
श्रीनगर व घाटी की इन दिनों सबसे बड़ी समस्या है, भरे पानी को निकालना, कीचड़ हटाना, मरे जानवरों व इंसानों का निस्तारण करना और सफाई करना। इसके लिए तत्काल जरूरत है पानी के बड़े पंपों की, जेसीबी मशीन, टिप्पर व डंपर कीर्, इंधन की, गेती-फावड़ा दस्ताने, गम बूट की। जब तक गंदगी, मलवा, पानी हटेगा नहीं, तब तक जीवन को फिर से पटरी पर लाना मुष्किल है। यह भी तय है कि किसी भी सरकारी सिस्टम में इतनी भारी व महंगी मशीने तत्काल खरीदना संभव  नहीं होता। यदि समाज के लोग इस तरह के औजार-उपकरण खरीद कर राज्य सरकार को भेंट दें तो पुनर्वास कार्य सही दिशा में चल पाएंगे। इसके साथ ही वहां जरूरत है साफ पीने के पानी की तो बगैर बिजली वाले फिल्टर, बड़े आरओ, बैटरी, इन्वर्टर व आम लोगों के लिए मोमबत्तियां व माचिस की वहां बेहद जरूरत है। कारण, वहां बिजली की सप्लाई सामान्य करने में बहुत से अडंगे हैं। बिजली के तार खंभे, इंस्लेटर व उसे स्थापित करने वाला स्टाफ .... महीनों का काम है। ऐसे में छोटे जनरेटर, इन्वर्टर, बेहद महत्वपूर्ण हैं।
कश्‍मीर में बाजार बह गए हैं। वाहन नष्‍ट हो गए हैं। ऐसे में हुए जान-माल के नुकसान के बीमा दावों का तत्काल व सही निबटारा एक बड़ी राहत होता है। चूंंिक राज्य सरकार का बिखरा-लुटा-पिटा अमला अभी खुद को ही संभालने में लगा हैं। उधर जाड़ा षुरू होते ही राजधानी जम्मू लाने की तैयारी हांे रही है । ऐसे में हुए नुकसान के आकलन, दावों को प्रस्तुत करना, बीमा कंपनियों पर तत्काल भुगतान के लिए दवाब बनाने आदि कार्यों के लिए बहुत से पढ़े-लिखें लोगों की वहां जरूरत है। ऐसे लोगों की भी जरूरत है जो दूर दराज में हुए माल-असबाब के नुकसान की सूचना, सही मूल्यांकन को सरकार तक पहुंचा सकें व यह सुनिश्‍चित करंे कि केंद या राज्य सरकार की किन योजनाआंे का लाभ उन्हें मिल सकता है। 
कश्‍मीर में स्कूल, बच्चों के बस्ते, किताबें सब कुछ सैलाब में बह गया है। इस समय कोई  साठ हजार बच्चों को बस्ते, कापी-किताबों, पैंसिल, पुस्तकों की जरूरत है। हर घर से यदि एक-एक बच्चे के लिए बस्ता, कंपास, टिफिन बाक्स, वाटर बोटल, पांच नोट बुक, पेन-पैंसिल का सैट वहां चला जा तो कश्‍मीर के भविश्य के सामने छाया धुंधलका छंटने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।  वहां की पाठ्य पुस्तकों को फिर से छपवाना पड़ेगा, ब्लेक बोर्ड व फर्नीचर बनावाना पड़ेगा, । इसके लिए राज्य के छोटे-छोटे क्लस्टर में , मुहल्लों में संस्थागत या निजी तौर पर बच्चों के लिए काम करने की जरूरत है। इसके साथ उनके पौष्‍टिक आहार के लिए बिस्किट, सूखे मेवे जैसे खराब ना होने वाले  भोज्य पदार्थ की मांग वहां है। सबसे बड़ी बात ठंड सिर पर खड़ी है और वहां 10 दिन बाद तापमान शून्य के नीचे होगा व ऐसे में खुले आसमान के नीचे रातें काटना मौत से मुलाकात के बराबर होगा। ऐसे में वहां वाटर प्रूफ टैंट की बड़ी जरूरत होगी।
कश्‍मीर में तबाही से भयभीत लोगों में मानसिक रोगी बढ़ रहे हैं, वहां शारीरिक व्याधियां बढ़ रही हैं, ऐसे में अस्पतालों, खून आदि की जांच करने वाली लेबोरेटरियों, ब्लड प्रेशर, ईसीजी जैसे उपकरणों की जरूरत तो है ही , इससे जुड़े चिकित्सकों व तकनीकी कर्मचारियों की भी मांग है। चुनौतियां चैातरफा हैं और आगे की पुलिया संकरी। इससे जूझने के लिए पूरे देष को कष्मीर के साथ खड़ा होना होगा,वरना वहां के वाशिंदे यही सोचेंगे कि पर्यटन के लिए तो कश्‍मीर सारे देश का है, लेकिन मुसीबतों में नहीं ।

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