My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

शनिवार, 27 दिसंबर 2014

websites. emails only for show


हाथी के दांत --

द सी एक्‍सप्रेस, आगरा 28 दिसंबर 14 http://theseaexpress.com/epapermain.aspx


                                                                    पंकज चतुर्वेदी
पारदर्शी, निश्पक्ष, सर्वसुलभ और ना जानें ऐसे ही भारी-भरकम जुमलों के साथ सरकारी महकमों के कंप्यूटरीकरण पर बीते कई सालों में करोड़ों रूपए खर्च किए गए। केंद्र क्या, राज्य सरकारों ने भी अपनी-अपनी वेबसाईटें बना ली हैं और उस पर बाकायदा विभाग के प्रमुख के ईमेल दिए जा रहे हैं- कोई समस्या हो, परेशानी हो, संपर्क करो। मशीनें इंसान द्वारा संचालित होती हैं और वे उसके प्रवृति को बदल नहीं सकती हैं। ऐसे ही कुछ अनुभव मैेंने किए, जिनसे पता चलता है कि कंप्यूटरीकरण का मुख्य उद्देश्‍य महज अपने बजट को खर्चना होता है, जन-सरोकार से उसका कोई वास्ता ही नहीं है।
इन दिनेां उ.प्र. के कई महकमों की वेबसाईट को ही लें, उसमें कई अधिकारियों के नाम पुराने वाले ही चल रहे हैं। इस साईट पर दर्ज किसी भी ईमेल का कभी कोई जवाब नहीं आता है।
कुछ साल पहले गाजियाबाद में एक ऐसे एसएसपी आए थे, जोकि अपना ब्लाग बना कर जनता से जुड़ने जैसे खूब पब्लिसिटी पा चुके थे। साहिबाबाद थाना इलाके में सरेआम मोबाईल स्नेचिंग करने वाले बदमाशो को एक युवक ने पकड़ा और पुलिस चैाकी ले गया। वहां उस युवक का मोबाईल पुलिस वालों ने रख लिया और बाद में बदमाश को भी छोड़ दिया। इस बाबत मैंने टैक्नोक्रेट एसएसपी और तब के डीजीपी को ईमेल किए। कुछ दिन तक उत्साह रहा कि मैंने लंका जीत ली, पर बाद में बताया गया कि चाहे एसएसपी हो या लखनऊ में बैठे डीजीपी, उनकी सरकारी  ईमेल आईडी को कभी कोई देखता ही नहीं है। यही नहीं एसएसपी साहब के ब्लाग पर भी उसे लिखा-हिंदी व अंग्रेजी दोनों में, पर लगा कि वह ब्लाग तो उन्होंने अपनी उपलब्ध्यिों का गान करने के लिए बनाया था, ना कि दूसरों की दिक्कतें सुनने के लिए।
मेरे आवासीय इलाके में पीएनजी के लिए खुदाई की गई और गहरे गड्ढे एक महीने तक ऐसे ही पड़े रहे। कुछ बच्चे व मवेशी उसमें गिरे भी। वहां लगे बोर्ड पर दर्ज हेल्प लाईन नंबर पर फोन करने पर भी जब किसी ने नहीं सुना तो आईजीएल की वेबसाइर्दट पर जा कर ‘‘हेल्प मी’’ कालम पर एक ईमेल छोड़ दिया। कई दिन बीत गए-नतीजा वही ढाक के तीन पात रहा, आखिरकार खुद का मजदूर लगा कर आसपास के गडढे भरवाए। साफ लगा कि ये गडढे व्यवस्था के हैं, जिन्हे कोई ईमेल नहीं भर सकता । ठीक ऐसे ही मेरे ईमेल पर लगातार विदेशी लाटरी , ईनाम जीतने जैसे मेल आ रहे थे। मेंने उन्हें सीबीआई की वेबसाईट पर ‘‘संपर्क’’ वाले पते पर अग्रेशित कर दिया। मैं उम्मीद करता रहा कि कम से कम एक धन्यवाद का जवाब तो आएगा ही, लेकिन मेरी उम्मीदों पर सरकारी तंत्र की ढर्राषाही भारी रही।
इसी तरह सरकारी सफेद हाथी एयर इंडिया की विभागीय साईट पर सीधे टिकट ना बुक होने और किसी एजेंट के माध्यम से टिकट लेने पर तत्काल मिल जाने की शिकायत विभाग के मंत्री से ले कर नीचे तक ईमेल के जरिए करने का नतीजा भी षून्य ही रहा।
उत्तरप्रदेश के परिवहन विभाग ने अपनी एक बेहतरीन वेबसाईट बना रखी है, जिसमें कई फार्म डाउनलोड करने की सुविधा है, ड्रायविंग लाईसेंस से ले कर  बस परमिट पाने के कायदे दर्ज है।। साथ ही प्रत्येक जिले के परिवहन अधिकारी/सहायक परिवहन अधिकारियों के विभागीय ईमेल की सूची भी दी गई है। हाल ही में मुझे अपना ड्रायविंग लाईसेंस का नवीनीकरण करवाना था। एक आदर्श नागरिक की तरह मैंने गाजियाबाद के दोनों ईमेल पर अपना निवेदन तथा मुझे क्या साथ ले कर आना होग, कब आना होग, जानने का निवेदन भेजा। पूरा एक सप्ताह इंतजार किया, कोई जवाब नहीं आया। मेल वापिस नहीं आया, जाहिर है कि अपेक्षित मेलबाक्स में गया भी। मैंने फोन करने का प्रयास किया, जान कर आश्‍चर्य होगा कि विभाग के सभी नंबरों पर फैक्स टोन आती थी। आखिरकार दफ्तर गया और पता चला कि वहां ईमेल या फोन का कोई काम नहीं है, सभी जगह दलाल हैं जोकि आपका कोई भी काम ईमेल से भी तेज गति से करवा देते हैं, बस हाथ में महात्मा गांधी होना चाहिए।
वैसे तो कई ऐसे असफल प्रयोग मेरे पास हैं, लेकिन सबसे दुखद अनुभव सीबीएसई से हुआ। सेंट्रल बोर्ड आफ स्कूल एजुकेशन;, जोकि सभी बच्चों को ज्ञानवान, अनुषासित और आदर्ष नागरिक बनाने के लिए कृतसंकल्पित होने का भरोसा अपनी वेबसाईट पर देता है। हुआ यूं कि इकलौती बच्चियों को कक्षा 11-12वीं के लिए सीबीएसई की ओर से वजीफा देने बाबत एक अखबार में आलेख छपा था। साथ मे ंयह भी कि विस्तृत जानकारी के लिए सीबीएसई की वेबसाईट देखें। मैं वेबसाईट को अपने बुद्धि और विवेक के अनुसार भरपूर तलाशा, लेकिन कहीं कुछ मिला नहीं। आखिरकार मैंने महकमे की जनसंपर्क अधिकारी का ईमेल पता वेबसाईट से ही लिया और मेल भेज दिया। दो महीना बीत गया, अभी तक तो उसका कोई जवाब आया नहीं है, लगता है कि आएगा भी नहीं।
ऐसा नहीं कि सभी विभाग के यही हाल हैं- दिल्ली पुलिस को भेजे जाने वाले प्रत्येक मेल का सही जवाब मिलता है और कार्यवाही भी होती है। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के व्हाट्सएप् पर संदेश देते ही कुछ घंटों में जवाब आता है व कार्यवाही भी होती है। इससे साफ है कि महकमा भले ही कितना व्यस्त, भ्रष्‍ट या लापरवाह हो, चाहे तो ईमेल के जवाब दे सकता है।  सरकार महकमे सही कर्मचारी ना होने, ठीक ट्रैनिंग ना होने, समय की कमी का रोना रोते रहते हैं, यदि ऐसा है तो वेबसाईट बनाने व उसके मेंटेनेंस पर हर साल लाखों रूपए खर्च करने से पहले खुद के प्रशिक्षण की बात क्यों नहीं उठाई जाती है ? असल बात तो यह है कि इस संवादहीनता का असली कारण लापरवाही, पारदर्शिता से बचने की आदत और शासक-भाव है। इससे उबरने का अभी कोई साफ्टवेयर बना ही नहीं है।



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