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रविवार, 8 फ़रवरी 2015

causes of failure in popular schemes

दैनिक  हिंदुस्तान ९-२-15http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/article1-Pankaj-Chaturvedi-senior-journalist-village-school-economic-conditions-poor-57-62-470602.html
भारत सरकार कालाधन रखनेवाले 60 खाताधारकों के नाम उजागर करेगी।

चलते ही क्यों थम गया वह पहला कदम
पंकज चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार

हाल ही में उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग ने अपने अफसरों से ही कस्तूरबा स्कूलों का सर्वे करवाया, तो सामने आई हकीकत बेहद शर्मनाक थी। राज्य के  454 स्कूलों में गंदगी का अंबार मिला। कई बच्चियां बीमार थीं। लाइब्रेरी में शब्दकोश भी नहीं थे। आज पूरे देश में कोई 2,500 ऐसे विद्यालय चल रहे हैं, जिनमें दर्ज बच्चियों की संख्या 19 लाख से अधिक है। इस तरह के प्रत्येक विद्यालय को बनाने, उसके लिए सामग्री जुटाने के लिए सरकार 26.25 लाख रुपये देती है। 100 बच्चियों के हिसाब से छात्राओं के रहने, भोजन, कॉपी-किताबों के लिए 19.05 लाख रुपये सालाना दिए जाते हैं, जबकि ‘पहला कदम’ में हर बच्ची से हर महीने 60  रुपये नगद या अनाज या सब्जी की शक्ल में लिए जाते थे।

बहरहाल, शिक्षकों की भर्ती में भी उनकी रुचि की बजाय राजनीतिक या स्थानीय दवाब को आधार बनाया जाने लगा। इस अव्यवस्था का असल कारण है इस योजना की मूल आत्मा को न समझ पाना। न तो उस भावना के शिक्षक मिल पा रहे हैं,  जिस आस्था के साथ गैर-सरकारी संगठन और यूनीसेफ ने लोगों को तलाशा और प्रशिक्षित किया था। पहला कदम इस बात का उदाहरण है कि सरकारी योजनाएं हकीकत में क्यों औपचारिकता मात्र रह जाती हैं,  सक्रियता बस एक ही चीज में दिखती है- सरकारी धन की लूट में।

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