पश्चिमी उत्तर प्रदेश: तालाबों पर कब्जे से रूठा पानी
पंकज चतुर्वेदी
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PRABHAT, MEERUT, 12-2-2015 |
दिल्ली के पूर्वी हिस्से की सड़कों से सटा हुआ
है उत्तरप्रदेश का गाजियाबाद जिला। कहने को देश-दुनिया का सबसे तेजी से विस्तार
पाता जिला है। आखिर हों भी क्यों ना ,गाजियाबाद भले ही उ.प्र में हो लेकिन शहरीकरण
व उससे संबद्ध त्रासदियों में वह दिल्ली के कदम-दर-कदम साथ है। यहां भी भयंकर
जनसंख्या विस्फोट है, यहां भी अनियोजित शहरीकरण है, यहां
भी जमीन की कीमतें बेशकीमती हैं और उसी तरह यहां भी जब जिसे मौका मिला तालाब को
हड़प कर कंक्रीट के जंगल रोपे गए। कई-कई पूरी कोलोनियां, सरकारी भी,
तालाबों
को सुखा कर बसा दी गईं। गगनचुंबी इमारतों में रहने वाले सर पर छत के सपने के पूरा
होने पर इतने मुग्ध थे कि उन्हें खबर ही नहीं रही कि जीने के लिए जल भी जरूरी है,
जिसे
सुखा कर उन्होंने अपना सपना पूरा किया है।
गाजियाबाद जिले में कुल 1288 हेक्टेयर भूभाग
में 65 तालाब व झीलें हैं, जिनमें से 642 हेक्टेयर ग्राम समाज,
68.5
मछली पालन विभाग और 588 हेक्टेयर निजी लोगों के कब्जे में है। तकरीबन सौ तालाबों
पर लोगों ने कब्जा कर मकान-दुकान बना लिए हैं। यहां पर दो पांच एकड़ क्षेत्रफल के
53 तालाब हैं, पांच से 10 हैक्टर वाले 03, 10
से 50 हैक्टर का एक तालाब कागजों पर दर्ज है। इनमें से कुल 88 तालाब पट्टे वाले और
13 निजी हैं। जिले की 19.2 हैक्टर में फैली मसूरी झील, इलाके सबसे बड़ी
हसनपुर झील(37.2 हैक्टर), 4.8 हैक्टर वाली सौंदा झील और धौलाना
का 7.9 हैक्टर में फैला तालाब अभी भी कुछ आस जगाते हैं। गाजियाबद शहर यानी नगर निगम के तहत कुछ दशक
पहले तक 138 तालाब हुआ करते थे, इनमें से 29 पर तो कुछ सरकारी महकमों
ने ही कब्जा कर लिया। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण ने रहीसपुर, रजा
पुर, दमकनपुर, सिहानी आदि 10 तालाबों पर तो अपनी कालोनियां ही
बना डालीं। आवास विकास परिशद ने 05,
यूपीएसआईडीसी
ने 12 और सीपीडब्लूडी व नगर निगम ने एक-एक तालाब पर अपना कब्जा ठोक दिया। शहर के
28 तालाब अभी भी अपने अस्तित्व की लड़ाई समाज से लड़ रहे हैं जबकि 78 तालाबों को
रसॅूखदार लोग पी गए। जाहिर है कि जब बाड़ ही खेत चर रही है तो उसका बचना संभव ही
नहीं है। अब एक और हास्यास्पद बात सुनने में आई है कि कुछ सरकारी महकमे हड़प किए
गए तालाबों के बदले में और कहीं जमीन देने व तालाब खुदवाने की बात कर रहे हैं।
हाल ही में ग्राम ढरगल में जोहड़ को पाट कर जल
निगम द्वारा पानी की टंकी खड़ी करने का मामला सामने आया हे। गांव के लोगों ने जब
लड़ाई लड़ी तो पता चला कि जहां 300 वर्ग गज में जल-निधि थी, उस पर बगैर किसी
मंजूरी के पानी की टंकी निर्मित कर दी गई। अब जांच हो रही है, लेकिन
सुप्रीम कोर्ट के आदेषों के उल्लंघन कर पारंपरिक जल स्त्रोत को पाटने वाले
निष्चिंत है कि उनके खिलाफ कोई कार्यवाही होगी। बिहारीपुरा में 15 दिनों से आदंोलन
चल रहा है, क्योंकि वहां के पुराने तालाब को ट्रेक्टरों से
मिट्टी डाल कर पाटा जा रहा है ताकि उस पर कब्जा किया जा सके। प्रषासन को खबर की गई,
पूरा
गांव जमा हो कर विरोध भी कर रहा है, लेकिन माफिया को अपनी ताकत व प्रषासन
पर अपनी पहुंच का पूरा भरोसा है सो बिहारीपुर का तालबा किसी भी दिन अतीत बन
जाएगा। गाजियाबद नगर निगम ने वर्ष 2014-15
में अपने अधीन आने वाले तालाबों के संरक्षण हेतु दो करोड़ बे बजट का प्रावधान किया
था, अब फरवरी बीत चुका है, लेकिन इस मद का एक भी टका खर्च नहीं
हुआ। यही नहीं इस मद के डेढ करोड़ रूपए दीगर मद में स्थानांतरित भी कर दिए गए। असल
में निगम भी नहीं चाहता कि तालाब बचें , यदि उसके संरक्षण पर व्यय किया तो उसका
रिकार्ड बन जाएगा।
गाजियाबाद महानगर पुरानी बस्ती है, यहां
थोड़ी भी बारिश हो जाए तो पूरा शहर जलमग्न हो जाता है। मुख्य सड़के एक घंटे की बारिश
में घुटने-घुटने पानी से लबा-लब होती हैं, लेकिन शहर के रमतेराम रोड़ स्थित
पुराने तालाब में एक बूंद पानी नहीं रहता है। सनद रहे कि इस तालाब के रखरखाव पर
विकास प्राधिकरण ने पूरे पांच करोड़ खर्च किए है। असल में हुआ यह कि तालाब के
चारों आरे जम कर कंक्रीट पोता गया, सीढि़यां पक्की कर दी गई, लेकिन
बारिश का पानी जिन सात रास्तों से तालाब तक पहुंचता था, उन्हें भी
कंक्रीट से बंद कर दिया गया। अब रमतेराम रोड़ पर पानी भरता है, लेकिन
तालाब में नहीं, जबकि कभी यह तालाब पूरे शहर को पानी आपूर्ति
करता था। कोई चार सौ साल पुराने इस तालाब का क्षेत्रफल अभी तीन दशक पहले तक 17
हजार वर्गमीटर दर्ज था। अब इसके नौहजार वर्गमीटर पर कब्जा हो चुका है और रही बची
कसर इसके चारों आरे पक्की दीवार खड़ी कर पूरी हो गई है। अब यह एक सपाट मैदान है
जहां बच्चे खेलते हैं या भैंसे चरती हैैं या फिर लोग कूड़ा डालते हैं। जाहिर है कि
कुछ साल इसमें पानी आएगा नहीं और इसकी आड़ लेकर वहां कब्जा हो जाएगा। ठीक यही
कहानी मकनपुर के तालाब की है, इसे पक्का बना दिया गया, यह
विचारे बगैर कि तालाब की तली को तो कच्चा ही रखना पड़ता है।
शहर के मोहन नगर के करीब अर्थला तालाब कभी
करीबी हिंडन के सहयोग से सदा-नीरा रहता था। राज्य के सरकारी महकमे ग्रामीण
अभियंत्रण सेवा यानी आरईएस की ताजा रपट में बताया गया है कि वर्ष 2008 से 2010 के
बीच इस झील की जमीन पर 536 मकान बनाए गए। इंजीनियरों ने मकान में लगगे मटेरियल की
जांच कर उनकी उम्र निर्धारित की और उसकी रपट कमिष्नर को सौंप दी। अब कुछ अफसर अपनी
नौकरी व मकान मालिक अपने घर बचाने के लिए सियाासती जुगत लगा रहे हैं।
कहने की जरूरत नहीं है कि प्रकृति के साथ हुए
इस अमानवीय व्यवहार पर यहां की अदालतें भी कागजी षेर की तरह बस आदेश ही देती रहीं।
गाजियाबाद में तालाबों के सम्ृद्ध दिन लौटाने के लिए संघर्श कर रहे एक वकील संजय
कष्यप ने जब सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी तो बताया गया कि सन 2005 में
बनाए गए मास्टर प्लान में जिन 123 तालाबों का वजूद स्वीकारा गया था, उनमें
से 82 पर अवैध कब्जे हो गए है। पता नहीं इतनी बड़ी स्वीकरोक्ति में प्रषासन की
मासूमियत थी या लाचारी । हालांकि राजस्व रिकार्ड गाजियाबद नगर निगम सीमा के भीतर
147 तालाबों की बात कहता है, जबकि नगर निगम का सर्वे 123 की। सरकारी
अफसर कहते हैं कि इनमें से केवल 45 तालाब ही ऐसे हैं जिन्हे बचाया जा सकता है। शहर
के मकनपुर, सिहानी, मोरटा, षाहपुर,
बम्हेटा,
सादिक
नगर, काजीपुरा, नायफल, कोटगांव, भोपुरा, पसेांडा,
सिकंदरपुर,
रहीसपुर,
महरौली,
रजापुर,
झंडापुर,
साहिबाबाद
गांव,महाराजपुर आदि इलाकों में रिकार्ड में तालाब है लेकिन हकीकत में वहां
कालेानियां खड़ी है। यह पूरा घोटाला कई-कई अरब का है और इसमें हर दल-गुट- माफिया
के लोग षामिल है। भूजल का स्तर बढ़ाने के नाम पर राज्य में कई साल से आदर्ष तालाब
निर्माण योजना चल रही है और इसे आंकड़ों की कसौटी पर देखें तो पाएंगे कि तालबों
में नोटों की खेप तो उतारी गई, लेकिन बदले में नतीजा षून्य ही रहा।
अकेले गाजियाबाद जिले में बीते छह सालों के दौरान जिन 814 तालाबों पर कई करोड़
रूपए खर्च किए गए उनमें से 324 तो बारिश में भी रीते पड़े हैं। आंकडे कहते है। कि
गाजियाबद जिले की कुल 405 ग्राम पंचायतों में 2431 छोटे-बड़े ताल-तलैया हैं,
जिनमें
से 93 को आदर्ष तालाब घोशित किया गया है। इन पर अभी तक कोई 15 करोड़ रूपए का
सरकारी व्यय किया जा चुका है। सरकारी रिकार्ड यह भी स्वीकार करता है कि ग्रामीण
इलाकों के 302 तालाबों पर कतिपय असरदार लोगों ने अवैध कब्जे कर रखे हैं। हालांकि
इस बात को बड़ी चतुराई से छिपाया जाता है कि इन कब्जे वाले इलकों में अब षायद ही
तालाब का कोई अस्तित्व बचा है।
जिस तेजी से गाजियाबाद जिले का शहरीकरण हुआ,
वहां
की समृद्ध तालाब परंपरा पर कागजों पर करोड़ो खर्च किए गए, जबकि असल में
तालाबों की संख्या हजारों में है। इन तालाबों को पाट कर कालेानी, बारातघर,
स्कूल
आदि बने, जिनके अब बाकायदा पक्के रिकार्ड हैं। यहां हर घर-कालेनी में पानी का
संकट खड़ा है। शहर का तीन-चैथई हिस्सा भूजल पर निर्भर है और जिस तेजी से तालाब
समाप्त हुए, उसके चलते यहां का भूजल स्तर भी कई सौ फुट नीचे
जा चुका है और इसे खतरनाक जल स्तर वाले क्षेत्र के तौर पर अधिसूचित किया गया है।
बगैर पानी के बस रही कालोनियां मनवीय सभ्यता के विकास की सहयात्री तो हो नहीं
पाएंगी, आखिर समस्या को हमने ही न्योता दिया है तो भुगतना भी हमें ही पड़ेगा।
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