
विकारुद्दीन कोई शरीफ इंसान नहीं था, उस पर पुलिस बल पर हमला करने जैसे कई मामले विचाराधीन थे। अक्टूबर, 2010 में उसे गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री व आज देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश के अपराध में शामिल पाया गया था। उस पर आरोप तो हैदराबाद की मक्का मस्जिद में बम धमाका करने का भी था, जिसे देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी एनआईए फर्जी साबित कर चुकी थी व उस आरोप में स्वामी असीमानंद आदि पर मुकदमा चल रहा है। मक्का मस्जिद मामले में तो बेकसूरों को जेल में डालने पर उसे मुआवजा भी मिलना था। हालांकि जो फोटो सामने आए, उसमें पांचों तथाकथित आतंकवादी हथकड़ियों से बंधे थे व उनकी हथकड़ी का दूसरा सिरा पुलिस की बस की सीट पर बंधा था, जो चीख-चीखकर कह रहा था कि पुलिस की कहानी में झोल ही झोल हैं। यह घटना है 7 अप्रैल, 2015 मंगलवार सुबह साढ़े दस बजे की। वारंगल जिले की सीमा से सटे नालगोंडा जिले की अल्यार के पास कंडीगड्डा के जंगलों की। यह एक हाईवे है। तीन वाहनों में सवार 17 सदस्यों के पुलिस बल के पास एसएलआर जैसे हथियार थे और वे विकारूद्दीन व उसके चार साथियों को वारंगल जेल से हैदराबाद की नामेपल्ली अदालत ले कर जा रहे थे। रास्ते में विकारुद्दीन ने पेशाब करने के बहाने पुलिस के वाहन को रुकवाया व पुलिस के हथियार छीनकर भागने का प्रयास किया। यही हरकत उसके अन्य चार साथियों ने भी की और जवाब में पुलिस की गोलीबारी में पांचों मारे गए। इस झगड़े में किसी भी पुलिस वाले को खरोंच भी नहीं आई। जबकि पुलिस द्वारा जारी किए गए फोटो में कथित आतंकवादियों के हथकड़ी से जकड़े हाथों में पुलिस की एसएलआर भी है। सनद रहे कि मारा गया हनीफ नाम का व्यक्ति यूनानी डाक्टर का काम करता था व उसका कभी कोई आपराधिक रिकार्ड भी नहीं था। पुलिस के अनुसार, विकारुद्दीन की गिरफ्तारी हनीफ के घर से हुई थी, वैसे वह मूलरूप से गुजरात का रहने वाला था। हनीफ ने हैदराबाद की लड़की से शादी की थी व वह हैदराबाद के मुशिराबाद में क्लीनिक चलाता था। डॉ. हनीफ की पत्नी की मानें तो उसके पति विकारुद्दीन को केवल एक ग्राहक के तौर पर जानते थे, जो बीमार होने पर अक्सर दवा लेने आता था। जरा गौर करें कि जिस इंसान ने कभी बंदूक को हाथ न लगाया हो, वह क्या कभी अत्याधुनिक हथियार चलाने की कोशिश करेगा? मारा गया एक अन्य युवक इजहार लखनऊ के एक कालेज से ग्रेजुएट था व कॉलेज छात्र संघ का उपाध्यक्ष रहा चुका था। गिरफ्तारी से पहले उस पर कोई भी आपराधिक आरोप नहीं थे। वह लॉ कालेज में एडमिशन लेना चाहता था कि पुलिस ने विकारुद्दीन को हथियार सप्लाई करने के आरोप में उठाया व चार केस ठोक दिए, दो गुजरात में व दो हैदराबाद में। इजहार के तीन भाई सऊदी अरब में नौकरी करते हैं, उसके पिता का इंतकाल काफी पहले हो गया था। उसे सन 2010 में यूपी पुलिस ने पकड़ कर आंध्र प्रदेश पुलिस को सौंप दिया था।
 |
PRABHAT, MEERUT, 19-4=15 |
विकारुद्दीन व उसके साथियों पर आरोप था कि उन्होंने सन् 2007 के मक्का मस्जिद धमाके में निर्दोष लोगों को फंसाए जाने से उपजे असंतोष को आतंकवाद में बदलने के लिए तहरीक गल्बा ए इस्लाम नामक संगठन बनाया था और वे कई बार पुलिस पर हमले कर चुके थे। विकारुद्दीन को हैदराबाद पुलिस ने 14 जुलाई, 2010 को पकड़ा था, बाद में उसे गुजरात पुलिस को दे दिया गया, क्योंकि उसके गिरोह पर नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश का भी आरोप था। इन पांचों लोगों को लंबे समय से एहसास था कि उनको फर्जी मुठभेड़ में मारा जा सकता है। इसी भय के चलते उनकी ओर से अदालत में अर्जी दी गई थी कि चूंकि उनके सभी मुकदमे हैदराबाद में ही हैं, सो उन्हें हैदराबाद की चेरलापल्ली या चंचलगुडा जेल में रखा जाए। वारंगल से अदालत की दूरी डेढ़ सौ किलोमीटर से ज्यादा है। यह अदालत की जानकारी में है कि कुछ महीने पहले भी इन पांचों को अदालत लाते समय एकांत में वाहन खड़े कर उन्हें भागने को कहा गया था। यही नहीं, जिस दिन उन पांचों की हत्या हुई, उसी दिन को ढाई बजे अदालत को उनकी जेल को हैदराबाद करने पर फैसला सुनाना था। यह बात भी सामने आ गई है कि उस सुबह नौ बजे वारंगल जेल से निकलते ही विकारुद्दीन और पुलिस वालों का झगड़ा भी हुआ था। एक सिपाही ने ऑफ द रिकार्ड यह भी कहा कि उस सुबह गुस्से में आ कर विकारुद्दीन ने सब इंस्पेक्टर उदय भास्कर के मुंह पर थूक दिया था और उसी समय उन पांचों के जीवन की उल्टी गिनती शुरू हो गई थी। यह भी रिकार्ड में हैं कि बीते पांच सालों से जेल में बंद इन पांचों के खिलाफ पुलिस के पास कोई ठोस सबूत भी नहीं थे और अदालत में पुलिस मुकदमों को गवाह न आने के नाम पर लटका रही थी। जो लोग पांच साल से जेल में हों, जिनके हाथ बंधे हुए हों, जिन पर सत्रह सशस्त्र पुलिस वालों का पहरा हो, जिन्हें पता हो कि उनके सभी मुकदमों में बरी होना तय है, ऐसे में कौन भागने की सोचेगा? कहने को राज्य सरकार ने मजिस्ट्रियल जांच की बात कही है, लेकिन यह एक बड़ा धोखा ही है। कोई भी संदिग्ध मृत्यु हो, उसकी मजिस्ट्रयल जांच होती ही है और कई बार उसे नायब तहसीलदार स्तर का अधिकारी ही कर देता है, यह हमारा विधायी सिस्टम कहता है न कि मामले की जांच की यह कोई अलग से व्यवस्था है। इस बात के लिए भी समाज व पुलिस को सतर्क रहना होगा कि इस तरह की बेरहम हत्याएं अपराध भले ही कम कर दें, लेकिन एक पूरी कौम के मन में अविश्वास, नफरत का भाव भी पैदा करती हैं और इस तरह के अन्याय का हवाला दे कर मासूम युवाओं को रास्ते से भटकाना आसान होता है। कई संगठनों ने इस हत्याकांड की जांच की मांग की तो राज्य सरकार ने एक विशेष जांच बल के गठन की घोषणा की है, लेकिन हाल के हाशिमपुरा कांड के अदालती फैसले के बाद लोगों को यह भरोसा कतई नहीं है कि पुलिस द्वारा पुलिस के खिलाफ की गई कोई जांच कभी अंजाम तक पहुंचेगी। इस बीच विकारुद्दीन के पिता द्वारा हैदराबाद हाई कोर्ट में दी गई याचिका स्वीकार कर ली गई है, जिसमें पांच लोगों की हत्या की जांच सीबीआई से करवाने तथा पुलिस वालों पर हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मांग की गई है। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को 23 अप्रैल तक अपना पक्ष रखने के आदेश दिए हैं। इस बीच पुलिस की धरपकड़ जारी है, एक युवक को लखनऊ से फिर उठाया गया है, जबकि मारे गए लोगों के परिवार के सभी युवा गायब हो गए हैं। आतंकवादियों पर कार्रवाई की आड़ में हो रहे अनैतिक कार्यों पर लोग मौन रहने पर मजबूर हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें