पत्तियों को नहीं तकदीर को जलाता है समाज
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने बड़े सख्त लहजे में कहा है कि पेड़ों से गिरने वाली पत्तियों को जलाना दंडनीय अपराध है। वैसे, इस बारे में समय-समय पर कई अदालतें व महकमे आदेश देते रहे हैं, लेकिन कानून के पालन को सुनिश्चित करने वाली संस्थाओं के पास इतने लोग व संसाधन हैं ही नहीं कि हरित न्यायाधिकरण के निर्देश का शत-प्रतिशत पालन करवाया जा सके। कई जगह तो नगर को साफ रखने का जिम्मा निभाने वाले स्थानीय निकाय खुद ही कूड़े के रूप में पेड़ से गिरी पत्तियों को जला देते हैं। असल में पत्तियों को जलाने से उत्पन्न प्रदूषण तो खतरनाक है ही, सूखी पत्तियां कई मायनों में बेशकीमती हैं व प्रकृति के विभिन्न तत्वों का संतुलन बनाए रखने में उनकी बड़ी भूमिका है। वैसे, इन्हीं पत्तियों को जलाने के बारे में दिल्ली हाईकोर्ट ने 1997 में एक आदेश दिया था, जो कहीं ठंडे बस्ते में गुम हो गया और अब यह बात सामने आई कि दिल्ली-एनसीआर की आबोहवा इतनी दूषित हो चुकी है कि पांच साल के बच्चे तो इसमें जी नहीं सकते। पेड़ की हरी पत्तियों में मौजूद क्लोरोफिल हमें ऑक्सीजन देता है और पेड़ों के लिए शर्करायुक्त भोजन उपजाता है। जब पत्तियों का क्लोरोफिल चुक जाता है और वे पीली या भूरी पड़ जाती हैं, तब भी उनमें नाइट्रोजन, प्रोटीन, विटामिन, स्टार्च और शर्करा आदि का खजाना होता है। ऐसी पत्तियों को जब जलाया जाता है, तो कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन व कई बार सल्फर से बने रसायन उत्सर्जित होते हैं। इसके कारण वायुमंडल की नमी और ऑक्सीजन तो नष्ट होती ही है, इससे निकली तमाम दम घोटने वाली गैसें वातावरण को जहरीला बना देती हैं। इन दिनों अजरुन, नीम, पीपल, इमली, जामुन, ढाक, अमलतास, गुलमोहर,शीशम जैसे पेड़ों से पत्ते गिर रहे हैं और यह पूरी मई तक चलेगा। अनुमान है कि दिल्ली-एनसीआर में दो हजार हेक्टयर से ज्यादा इलाके में हरियाली है। इससे रोजाना 200 से 250 टन पत्ते गिरते हैं। इसका बड़ा हिस्सा जलाया जाता है। एक बात और। पत्ताें के तेज जलने की तुलना में उनके धीरे-धीरे सुलगने पर ज्यादा प्रदूषण फैलता है। एक अनुमान है कि सर्दी के तीन महीनों के दौरान दिल्ली-एनसीआर इलाके में जलने वाले पत्तों से पचास हजार वाहनों से निकलने वाले जहरीले धुएं के बराबर जहर फैलता है। अगर केवल एनसीआर की हरियाली से गिरे पत्ताें को धरती पर यूं ही पड़ा रहने दें, तो जमीन की गरमी कम होगी, मिट्टी की नमी भयंकर गरमी में भी बरकरार रहेगी। यदि इन पत्तियों को कंपोस्ट खाद में बदल लें, तो लगभग 100 टन रासायनिक खाद का इस्तेमाल कम किया जा सकता है। इस बात का इंतजार करना बेमानी है कि पत्ती जलाने वालों को कानून पकड़े व सजा दे। इससे बेहतर होगा कि समाज तक यह संदेश भली-भांति पहुंचाया जाए कि सूखी पत्तियां पर्यावरण-मित्र हैं और उनके महत्व को समझना, संरक्षित करना सामाजिक जिम्मेदारी है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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