दैनिक भास्कर, मधुरिमा, 2 जून 2015 |
मोबाइल फोन, टीवी, कम्प्यूटर से मिलने वाली सुविधा और निकलने वाले विकिरण के बारे में आप जानते ही हैं। अब इनमें भरे ज़हर के बारे में भी जानिए।तकनीक का तीसरा पहलू |
क्या है ई-कचरा हम इस बात पर गर्व कर सकते हंै कि देश में मोबाइल फोन, लैपटॅाप, कम्प्यूटर की संख्या कुल आबादी से अधिक हो गई है। इसमें रंगीन टीवी, माइक्रोवेव अवन, मेडिकल उपकरण, फैक्स मशीन , टैबलेट, सीडी, एयर कंडीशनर आदि को भी जोड़ लें, तो संख्या दो अरब के पार होगी। हर दिन इनमें से कई हज़ार ख़राब होते हैं या पुराने होने के कारण कबाड़ में डाल दिए जाते हैं। सभी इलेक्ट्राॅनिक उपकरणों का मूल आधार ऐसे रसायन होते हैं जो जल, ज़मीन, वायु, इंसान और समूचे पर्यावरण को इस हद तक नुक़सान पहुंचाते हैं कि उबरना लगभग नामुमकिन है। यही ई-कचरा है।
कितना ख़तरनाक है यह कबाड़ यह कितना ख़तरनाक है, इसका अंदाज़ा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसमें 38 विभिन्न प्रकार के विषैले रासायनिक तत्व शामिल होते हैं। जैसे टीवी व पुराने कम्प्यूटर मॉनिटर में लगी सीआरटी (कैथोड रे ट्यूब) को रीसाइकल करना मुश्किल होता है। इस कचरे में लेड, मरक्यूरी, कैडमियम जैसे घातक तत्व भी होते हैं। सबसे ख़तरनाक कूड़ा तो बैटरियों, कम्प्यूटरों और मोबाइल फोन का है। इसमें पारा, कोबाल्ट जैसे कई क़िस्म के ज़हरीले तत्व होते हैं। कैडमियम से फेफड़े प्रभावित होते हैं, जबकि उसके धुएं और धूल के कारण फेफड़े व किडनी दोनों को गम्भीर नुक़सान पहुंचता है। एक कम्प्यूटर में 1.90 ग्राम सीसा, 0.693 ग्राम पारा और 0.04936 ग्राम आर्सेनिक होता है, जो जलाए जाने पर सीधे वातावरण में घुलते हैं। ठीक इसी तरह का ज़हर बैटरियों व बेकार मोबाइलों से भी फैल रहा है। इनसे निकलनेवाले ज़हरीले तत्व और गैसें मिट्टी व पानी में मिलकर उन्हें बंजर और विषैला बना देती हैं। फ़सलों और पानी के ज़रिए ये तत्व हमारे शरीर में पहुंचकर कैंसर जैसी गम्भीर बीमारियों को जन्म देते हैं।
अनुमान है कि देश में हर साल 10 लाख टन ई-कचरा निकल रहा है, जिसमें से बमुश्किल दो फ़ीसदी का ही उचित निस्तारण हो पाता है। शेष को अवैज्ञानिक तरीक़े से जलाकर, एसिड में गलाकर या तोड़कर क़ीमती धातुएं निकाली जाती हैं और बचे हुए को कहीं भी फेंक दिया जाता है। इस आधे-अधूरे निस्तारण से मिट्टी और जलस्रोतों में रासायनिक तत्व मिल जाते हैं, जो पेड़-पौधों के लिए भी ख़तरा हंै। पारा, क्रोमियम, कैडमियम, सीसा, सिलिकॉन, निकेल, ज़िंक, मैंगनीज, कॉपर, जैसे तत्व भूजल पर भी असर डालते हैं। इस सम्बंध में नियम-क़ानून भी हैं, पर उनकी परवाह किसे है!
अब हम क्या करें जागरूकता व बचाव ही एकमात्र समाधान है। ई-वेस्ट से निबटने का सबसे अच्छा मंत्र रिड्यूज़, रीयूज़ और रीसाइकिलिंग का है।
Á रिड्यूज़, यानी कम से कम कचरा पैदा होने दें। जब तक ज़रूरी न हो, इलेक्ट्राॅनिक उपकरण न बदलें- महज़ फैशन या दिखावे के लिए तो क़तई नहीं। उपकरण काम कर रहा है, तो उसे कबाड़ में डालने से बेहतर है कि किसी ज़रूरतमंद को दे दें।
Á रीयूज़, यानी फिर से इस्तेमाल। उपकरण में कोई मामूली कमी है, तो उसकी मरम्मत करवाकर अधिक दिनों तक प्रयोग में लाएं।
Á रीसाइकिलिंग का अर्थ है उसके क़ीमती हिस्सों और तत्वों का फिर से इस्तेमाल। लेकिन यह आपके या कबाड़ी के बस का नहीं है। कई कम्पनियां ई-कचरे का निबटारा वैज्ञानिक तरीक़े से करती हैं। बेकार उपकरण ऐसी कम्पनियों को दें। नया इलेक्ट्राॅनिक उपकरण ख़रीदते समय ध्यान दें कि कौन-सी कम्पनियां पुराने उपकरणों को लेती हैंै।
Á सरकार पर दबाव बनाएं कि वह कम्पनियों को पुराने, बेकार उपकरणों की रीसाइकिलिंग की व्यवस्था के लिए बाध्य करे।
 लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।
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