भूजल पर मंडराता खतरा
JANSANDESH TIMES LUCKNOW 4-6-15 |
सनद रहे कि देष के 360 जिलों को भूजल स्तर में गिरावट के लिए खतरनाक स्तर पर चिन्हित किया गया है । भूजल रिचार्ज के लिए तो कई प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन खेती, औद्योगिकीकरण और षहरीकरण के कारण जहर होते भूजल को ले कर लगभग निश्क्रियता का माहौल है । बारिष, झील व तालाब, नदियों और भूजल के बीच यांत्रिकी अंतर्संबंध है । जंगल और पेड़ रिचार्ज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । इसी प्रक्रिया में कई जहरीले रसायन जमीन के भीतर रिस जाते हैं । ऐसा ही दूशित पानी पीने के कारण देष के कई इलाकों में अपंगता, बहरापन, दांतों का खराब होना, त्वचा के रोग, पेट खराब होना आदि महामारी का रूप ले चुका है । ऐसे अधिकांष इलाके आदिवासी बाहुल्य हैं और वहां पीने के पानी के लिए भूजल के अलावा कोई विकल्प उपलब्ध नहीं हैं ।
भारत में खेती, पेयजल व अन्य कार्यों के लिए अत्यधिक जल दोहन से धरती का भूजल भंडार अब दम तोड़ रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर 5723 ब्लॉकों में से 1820 ब्लॉक में जल स्तर खतरनाक हदें पार कर चुका है. जल संरक्षण न होने और लगातार दोहन के चलते 200 से अधिक ब्लॉक ऐसे भी हैं, जिनके बारे में केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने संबंधित राज्य सरकारों को तत्काल प्रभाव से जल दोहन पर पाबंदी लगाने के सख्त कदम उठाने का सुझाव दिया है. लेकिन देश के कई राज्यों में इस दिशा में कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया जा सका है. उत्तरी राज्यों में हरियाणा के 65 फीसदी और उत्तर प्रदेश के 30 फीसदी ब्लॉकों में भूजल का स्तर चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया है. लेकिन वहां की सरकारें आंखें बंद किए हुए हैं. इन राज्यों को जल संसाधन मंत्रालय ने अंधाधुंध दोहन रोकने के उपाय भी सुझाए हैं. इनमें सामुदायिक भूजल प्रबन्धन पर ज्यादा जोर दिया गया है. इसके तहत भूजल के दोहन पर रोक के साथ जल संरक्षण और संचयन के भी प्रावधान किए गए हैं. राजस्थान जैसे राज्य में 94 प्रतिषत पेयजल योजनाएं भूजल पर निर्भर हैं। और अब राज्य के तीस जिलों में जल स्तर का सब्र समाप्त हो गया है। भूजल विषेशज्ञों के मुताबिक आने वाले दो सालों में राज्य के140 ब्लाकों में षायद ही जमीन से पानी उलेचा जा सके।
भूजल के बेतहाषा दोहन की ही त्रासदी है कि उत्तर प्रदेष के कई जिले- कानपुर, लखनउ, आगरा आदि भूकंप संवेदनषील हो गए हैं व चेतावनी है कि यहां कभी भी बड़ा भूकंप व्यापक जन हानि कर सकता है। पष्चिमी उप्र में तो भूजल में जहर इस कदर घुल गया है कि गांव के गांव कैंसर जैसी बीमारियों के गढ़ बन गए हैं। देश में वैसे जल की कमी नहीं है. हमारे देश में सालाना 4 अरब घन मीटर पानी उपलब्ध है. इस पानी का बहुत बड.ा भाग समुद्र में बेकार चला जाता है इसलिए बरसात में बाढ. का, तो गर्मी में सूखे का संकट पैदा हो जाता है. पानी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जो सरकार लोगों को पानी न मुहैया करा सके, उसे शासन करने का कोई अधिकार नहीं है. अदालत के निर्देश पर एक उच्चस्तरीय समिति खारे पानी को पीने लायक बनाने और बरसाती पानी के प्रबंधन के सस्ते और आसान तरीके ढूंढने के लिए बनाई गई थी. इस समिति की रिपोर्ट पर क्या हुआ कोई नहीं जानता?
देष की राजधानी दिल्ली , उससे सटे हरियाणा व पंजाब की जल कुंुंडली में जहरीले गृहों का बोलबाला है । यहां का भूजल खेतों में अंधाधुंध रासायनिक खादों के इस्तेमाल और कारखानों की गंदी निकासी के जमीन में रिसने से दूशित हुआ है । दिल्ली में नजफगढ् के आसपास के इलाके के भूजल को तो इंसानों के इस्तेमाल के लायक नहीं करार दिया गया है । गौरतलब है कि खेती में रासायनिक खादों व दवाईयों के बढ़ते प्रचलन ने जमीन की नैसर्गिक क्षमता और उसकी परतों के नीचे मौजूद पानी को अपूरणीय क्षति पहुंचाई है । उर्वरकों में मौजूद नाईट्रोजन, मिट्टी के अवयवों से मिल कर नाईट्रेट के रूप में परिवर्तित हो कर भूजल में घुल जाते हैं ।
मध्यप्रदेष में तो पूरा जल-तंत्र ही भूजल पर निर्भर हो गया है, जबकि बुंदेलखंड जैसे इलाके, जहां ग्रेनाईट संरचना है, भूजल के लिए माकूल ही नहीं हैं। वहां बारिष के सीपेज वाटर पर हैंडपंप रोप कर झूठी वाह वाही लूटी जाती है और गर्मी आने पर उससे पानी निकलना बंद हो जता है। आता भी है तो साथ में बीमारियां लेकर आता है। राजस्थान के कोई 20 हजार गांवेंा में जल की आपूर्ति का एकमात्र जरिया भूजल ही है और उसमें नाईट्रेट व फ्लोराईड की मात्रा खतरनाक स्तर पर पाई गई है । एक तरफ प्यास है तो दूसरी ओर जमीन की गहराई से निकला जहरीला पानी । लोग ट्यूबवेल का पानी पी रहे हैं और बीमार हो रहे हैं । ‘‘चमकते गुजरात’’ के तो 26 में से 21 जिले खारेपन की चपेट में हैं और 18 में फ्लोराईड की मार।
दिल्ली सहित कुछ राज्यों में भूजल के अंधाधुंध इस्तेमाल को रोकने के लिए कानून बनए गए हैं, लेकिन भूजल को दूशित करने वालों पर अंकुष के कानून किताबों से बाहर नहीं आ पाए हैं । यह अंदेषा सभी को है कि आने वाले दषकों में पानी को ले कर सरकार और समाज को बेहद मषक्कत करनी होगी । ऐसे में प्रकृतिजन्य भूजल का जहर होना मानव जाति के अस्तित्व पर प्रष्न चिन्ह लगा सकता है ।
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