अनियोजित शहरीकरण: पर्यावरण का सबसे बड़ा संकट
पंकज चतुर्वेदीजागरण , १२ जून १५ |
हमारे देश में संस्कृति, मानवता और बसावट का विकास नदियों के किनारे ही हुआ है । सदियों से नदियों की अविरल धारा और उसके तट पर मानव-जीनव फलता-फूलता रहा है । बीते कुछ दशकों में विकास की ऐसी धारा बही कि नदी की धारा आबादी के बीच आ गई और आबादी की धारा को जहां जगह मिली वह बस गई । और यही कारण है कि हर साल कस्बे नगर बन रहे हैं और नगर महानगर । बेहतर रोजगार, आधुनिक जनसुविधाएं और, उज्जवल भविष्य की लालसा में अपने पुश्तैनी घर-बार छोड़ कर शहर की चकाचांैंध की ओर पलायन करने की बढ़ती प्रवृति का परिणाम है कि देश में एक लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की संख्या 302 हो गयी है । जबकि 1971 में ऐसे शहर मात्र 151 थे । यही हाल दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की है । इसकी संख्या गत दो दशकों में दुगुनी होकर 16 हो गयी है । पांच से 10 लाख आबादी वाले शहर 1971 में मात्र नौ थे जो आज बढ़कर आधा सैंकड़ा हो गये हंैं । विशेषज्ञों का अनुमान है कि आज देश की कुल आबादी का 8.50 प्रतिशत हिस्सा देश के 26 महानगरों में रह रहा है । विष्व बैंक की ताजा रिपोर्ट बताती है कि आने वाले 20-25 सालों में 10 लाख से अधिक आबादी वाले षहरों की संख्या 60 से अधिक हो जाएगी जिनका देष के सकल घरेलू उत्पाद मे ंयोगदान 70 प्रतिषत होगा। एक बात और बेहद चैकाने वाली है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी की रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या षहरों में रहने वाले गरीबों के बराबर ही है । यह संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है, यानी यह डर गलत नहीं होगा कि कहीं भारत आने वाली सदी में ‘अरबन स्लम’ या शहरी मलिन बस्तियों में तब्दील ना हो जाए। देष की लगभग एक तिहाई आबादी 31.16 प्रतिषत अब शहरों में रह रही हैं। 2011 की जनगणना के आंकड़े गवाह हैं कि गांव छोड़ कर षहर की ओर जाने वालों की संख्या बढ़ रही है और अब 37 करोड 70 लाख लोग शहरों के बाशिंदे हैं । सन 2001 और 2011 के आंकड़ों की तुलना करें तो पाएंगे कि इस अवधि में शहरों की आबादी में नौ करोड़ दस लाख का इजाफा हुआ जबकि गावंो की आबादी नौ करोड़ पांच लाख ही बढ़ी।
लेकिन षहर भी दिवास्वप्न से ज्यादा नहीं ंहै, देष के चारों महानगर अब आबादी का बोझ सहने लायक नहीं ंहैं जबकि दीगर 9735 षहर भले ही आबादी से लबालब हों, लेकिन उनमें से मात्र 4041 को ही सरकारी दस्तावेज में शहर की मान्यता मिली है। शेष 3894 श हरों में श हर नियोजन या नगर पालिका तक नहीं है। यहां बस खेतों को उजाड़ कर बेढब अधपक्के मकान खड़े कर दिए गए हैं जहां पानी, सड़क, बिजली आदि गांवों से भी बदतर है।
दिल्ली, कोलकाता, पटना जैसे महानगरों में जल निकासी की माकूल व्यवस्था न होना शहर में जल भराव का स्थाई कारण कहा जाता है । मुंबई में मीठी नदी के उथले होने और सीवर की 50 साल पुरानी सीवर व्यवस्था के जर्जर होने के कारण बाढ़ के हालात बनना सरकारें स्वीकार करती रही है। बंगलौर में पारंपरिक तालाबों के मूल स्वरूप में अवांछित छेड़छाड़ को बाढ़ का कारक माना जाता है । शहरों में बाढ़ रोकने के लिए सबसे पहला काम तो वहां के पारंपरिक जल स्त्रोतों में पानी की आवक और निकासी के पुराने रास्तों में बन गए स्थाई निर्माणों को हटाने का करना होगा । यदि किसी पहाड़ी से पानी नीचे बह कर आ रहा है तो उसका संकलन किसी तालाब में ही होगा । विडंबना है कि ऐसे जोहड़-तालाब कंक्रीट की नदियों में खो गए हैं । परिणामतः थोड़ी ही बारिश में पानी कहीं बहने को बहकने लगता है ।
महानगरों में भूमिगत सीवर जल भराव का सबसे बड़ा कारण हैं । जब हम भूमिगत सीवर के लायक संस्कार नहीं सीख पा रहे हैं तो फिर खुले नालों से अपना काम क्यों नहीं चला पा रहे हैं ? पोलीथीन, घर से निकलने वाले रसायन और नष्ट न होने वाले कचरे की बढ़ती मात्रा, कुछ ऐसे कारण हैं, जोकि गहरे सीवरों के दुश्मन हैं ।
शहर के लिए सड़क चाहिए, बिजली चाहिए, मकान चाहिए, दफ्तर चाहिए, इन सबके लिए या तो खेत होम हो रहे हैं या फिर जंगल। जंगल को हजम करने की चाल में पेड़, जंगली जानवर, पारंपरिक जल स्त्रोत, सभी कुछ नश्ट हो रहा है। यह वह नुकसान है जिसका हर्जाना संभव नहीं है। शहरीकरण यानी रफ्तार, रफ्तार का मतलब है वाहन और वाहन हैं कि विदेषी मुद्रा भंडार से खरीदे गए ईंधन को पी रहे हैं और बदले में दे रहे हैं दूषित वायु। शहर को ज्यादा बिजली चाहिए, यानी ज्यादा कोयला जलेगा, ज्यादा परमाणु संयंत्र लगेंगे। शहरीकरण के लिए ज्यादा ईंटें, रेत व सीमेंट चाहिए, जाहिर है कि इसके लिए प्राकृतिक संसाधनों पर ही निरंकुष जोर पड़ता है।
श हर का मतलब है औद्योगिकीकरण और अनियोजित कारखानों की स्थापना जिसका परिणाम है कि हमारी लगभग सभी नदियां अब जहरीली हो चुकी हैं। नदी थी खेती के लिए, मछली के लिए , दैनिक कार्यों के लिए , नाकि उसमें गंदगी बहाने के लिए। गांवों के कस्बे, कस्बों के शहर और शहरों के महानगर में बदलने की होड़, एक ऐसी मृग मरिचिका की लिप्सा में लगी है, जिसकी असलियत कुछ देर से खुलती है। दूर से जो जगह रोजगार, सफाई, सुरक्षा, बिजली, सड़क के सुख का केंद्र होते हैं, असल में वहां सांस लेना भी गुनाह लगता है।
शहरों की घनी आबादी संक्रामक रोगों के प्रसार का आसान जरिया होते हैं, यहां दूषित पानी या हवा भीतर ही भीतर इंसान को खाती रहती है और यहां बीमारों की संख्या ज्यादा होती है। देश के सभी बड़े शहर इन दिनों कूड़े को निबटाने की समस्या से जूझ रहे हैं। कूड़े को एकत्र करना और फिर उसका शमन करना, एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। एक बार फिर शहरीकरण से उपज रहे कचरे की मार पर्यावरण पर ही पड़ रही है।
असल में शहरीकरण के कारण पर्यावरण को हो रहा नुकसान का मूल कारण अनियोजित शहरीकरण है। बीते दो दषकों के दौरान यह पवृति पूरे देष में बढ़ी कि लोगों ने जिला मुख्यालय या कस्बों की सीमा से सटे खेतों पर अवैध कालोनियां काट लीं। इसके बाद जहां कहीं सड़क बनी, उसके आसपास के खेत, जंगल, तालाब को वैध या अवैध तरीके से कंक्रीट के जंगल में बदल दिया गया। देष के अधिकांष उभरते षहर अब सड़कों के दोनेां ओर बेतरतीब बढ़ते जा रहे हैं। ना तो वहां सार्वजनिक परिवहन है, ना ही सुरक्षा, ना ही बिजली-पानी की न्यूनतम मांग। असल में देष में बढ़े काले धन को जब बैंक या घर मे ंरखना जटिल होने लगा तो जमीन में निवेष के अंधे कुंए का सहरा लिया जाने लगा। इससे खेत की कीमतें बढ़ीं, खेती की लागत भी बढ़ी और किसानी लाभ का काम नहीं रहा गया। पारंपरिक षिल्प और रोजगार की त्यागने वालों का सहारा षहर बने और उससे वहां का अनियोजित व बगैर दूरगामी सोच के विस्तार का आत्मघाती कदम उभरा।
विकास के नाम पर मानवीय संवेदनाओं में अवांछित दखल से उपजती आर्थिक विषमता, विकास और औद्योगिकीकरण की अनियोजित अवधारणाएं और पारंपरिक जीवकोपार्जन के तौर-तरीकेां में बाहरी दखल- शहरों की ओर पलायन को प्रोत्साहित करने वाले तीन प्रमुख कारण हैं । इसके लिए सरकार और समाज दोनो को साझा तौर पर आज और अभी चेतना होगा ।, अन्यथा कुछ ही वर्षों में ये हालात देश की सबसे बड़ी समस्या का कारक बनेंगें - जब प्रगति की कहानी कहने वाले महानगर बेगार,लाचार और कुंठित लोगों से ठसा-ठस भरे होंगे, जबकि देश का गौरव कहे जाने वाले गांव मानव संसाधन विहीन पंगु होंगे ।
पंकज चतुर्वेदी
यूजी-1, 3/186 ए राजेन्द्र नगर
सेक्टर-2
साहिबाबाद
गाजियाबाद 201005
9891928376, 0120-4241060
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें