कब कम होगी देश की दस करोड आबादी
पंकज चतुर्वेदी
RAJ EXPRESS, 8-6-15 |
भारत के प्रधानमंत्री ने जब बंगाल में अपने प्रचार
के दौरान यह घोशणा की थी कि यदि उनकी सरकार आएगी तो बांग्लादेशियों को उनके देश वापिस भेज दिया जाएगा तो उनके इस बयान का व्यापक
रूप से स्वागत हुआ था। इन दिनों प्रधानमंत्रीजी बांग्लादेश की यात्रा पर भी हैं और दुनिया का भूगोल बदलने वाले
एक बड़े समझौते पर हस्ताक्षर हो गए हैं जिसके
तहत दोनो देश अपनी ऐसी जमीनों की अदला-बदली
कर रहे हैं जो एक दूसरे देश की सीमा के भीतर है। आम लोग उम्मीद कर रहे हैं कि
जमीन अदला-बदली के साथ कुछ ऐसी भी होगा कि देश की सुरक्षा एजंसियों के लिए चुनौती बने बांग्लादेशी
अवैध प्रवासियों की वापिसी भी सहज हो सकेगी।
निशाने पर बांग्लादेशी हैं। उनकी भाषा, रहन-सहन और नकली दस्तावेज इस कदर हमारी जमीन से घुलमिल गए हैं कि उन्हें विदेशी
सिद्ध करना लगभग नामुमकिन हो चुका है। ये लोग आते तो दीन हीन याचक बन कर हैं, फिर अपने देश को लौटने को राजी नहीं होते
हैं । ऐसे लोगो को बाहर खदेड़ने के लिए जब कोई बात हुई, सियासत व वोटों की छीना-झपटी में उलझ कर रह गई । गौरतलब है कि पूर्वोत्तर राज्यों
में अषांति के मूल में ये अवैध बांग्लादेशी ही हैं। आज जनसंख्या विस्फोट से देश की व्यवस्था लडखड़ा गई है । मूल नागरिकों के सामने
भोजन, निवास, सफाई, रोजगार, षिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं
का अभाव दिनों -दिन गंभीर होता जा रहा है ।
ऐसे में अवैध बांग्लादेशी कानून को धता बता कर भारतीयों के हक नाजायज तौर पर
बांट रहे हैं । ये लोग यहां के बाषिंदों की रोटी तो छीन ही रहे हैं, देश के सामाजिक व आर्थिक समीकरण भी इनके
कारण गड़बड़ा रहे हैं ।
हाल ही में मेघालय हाई कोर्ट ने भी स्पश्ट कर दिया
है कि सन 1971 के बाद आए सभी बांग्लादेशी अवैध रूप् से यहां रह रहे है। अनुमान है कि आज कोई
दस करोड़ के करीब बांग्लादेशी हमारे देश में जबरिया रह रहे हैं। 1971 की लड़ाई के समय लगभग 70 लाख बांग्लादेशी (उस समय का पूर्वी पाकिस्तान) इधर आए थे । अलग देश बनने के बाद कुछ लाख लौटे भी । पर उसके बाद भुखमरी, बेरोजगारी के षिकार बांग्लादेशियों का
हमारे यहां घुस आना अनवरत जारी रहा । पष्चिम बंगाल, असम, बिहार, त्रिपुरा के सीमावर्ती जिलों की आबादी हर साल बैतहाषा बढ़ रही है । नादिया
जिला (प बंगाल) की आबादी 1981 में 29 लाख थी । 1986 में यह 45 लाख, 1995 में 60 लाख और आज 65 लाख को पार कर चुकी है । बिहार
में पूर्णिया, किश नगंज, कटिहार, सहरसा आदि जिलों की जनसंख्या में
अचानक वृद्धि का कारण वहां बांग्लादेशियों की अचानक आमद ही है ।
असम में 50 लाख से अधिक विदेशियों के होने पर सालों
खूनी राजनीति हुई । वहां के मुख्यमंत्री भी इन नाजायज निवासियों की समस्या को स्वीकारते
हैंे, पर इसे हल करने की बात पर चुप्पी
छा जाती है । सुप्रीम कोर्ट के एक महत्वपूर्ण निर्णय के बाद विदेषी नागरिक पहचान कानून
को लागू करने में राज्य सरकार का ढुलमुल रवैया राज्य में नए तनाव पैदा कर सकता है ।
अरूणाचल प्रदेश में मुस्लिम आबादी में बढ़ौतरी
सालाना 135.01 प्रतिश त है, जबकि यहां की औसत वृद्धि 38.63 है । इसी तरह पष्चिम बंगाल की जनसंख्या बढ़ौतरी की दर औसतन 24 फीसदी के आसपास है, लेकिन मुस्लिम
आबादी का विस्तार 37 प्रतिश त से अधिक है । यही हाल
मणिपुर व त्रिपुरा का भी है । जाहिर है कि इसका मूल कारण बांग्लादेशियों का निर्बाध रूप से आना, यहां बसना और निवासी होने के कागजात हांसिल करना है । कोलकता में तो अवैध बांग्लादेशी
बड़े स्मगलर और बदमाश बन कर व्यवस्था के सामने चुनौति बने हुए हैं ।
राजधानी दिल्ली में सीमापुरी हो या यमुना पुष्ते
की कई किलोमीटर में फेैली हुई झुग्गियां, लाखेंा बांग्लादेशी डटे हुए हैं । ये भाशा, खनपान, वेश भूशा के कारण स्थानीय बंगालियों
से घुलमिल जाते हैं । इनकी बड़ी संख्या इलाके में गंदगी, बिजली, पानी की चोरी ही नहीं, बल्कि डकैती, चोरी, जासूसी व हथियारों की तस्करी बैखौफ करते हैं । सीमावर्ती नोएडा व गाजियाबाद में
भी इनका आतंक है । इन्हें खदेड़ने के कई अभियान चले । कुछ सौ लोग गाहे-बगाहे सीमा से
दूसरी ओर ढकेले भी गए । लेकिन बांग्लादेश अपने
ही लोगों को अपनाता नहीं है । फिर वे बगैर किसी दिक्कत के कुछ ही दिन बाद यहां लौट
आते हैं । जान कर अचरज होगा कि बांग्लादेशी बदमाषों का नेटवर्क इतना सश क्त है कि वे चोरी के
माल को हवाला के जरिए उस पार भेज देते हैं । दिल्ली व करीबी नगरों में इनकी आबादी 10 लाख से अधिक हैं । सभी नाजायज बाषिंदों के आका सभी सियासती पार्टियों में हैं
। इसी लिए इन्हें खदेड़ने के हर बार के अभियानों की हफ्ते-दो हफ्ते में हवा निकल जाती
है ।
सीमा सुरक्षा बल यानी बीएसएफ की मानें तो भारत-बांग्लादेश
सीमा पर स्थित आठ चेक पोस्टों से हर रोज कोई
6400 लोग वैध कागजों के साथ सीमा पार
करते हैं और इनमें से 4480 कभी वापिस
नहीं जाते। औसतन हर साल 16 लाख बांग्लादेशी
भारत की सीमा में आ कर यहीं के हो कर रह जाते
हैं।सरकारी आंकड़ा है कि सन 2000 से 2009 के बीच कोई एक करोड़ 29 लाख बांग्लादेशी बाकायदा पासपोर्ट-वीजा
ले कर भारत आए व वापिस नहीं गए। असम तो अवैध बांग्लादेशियों की पसंदीदा
जगह है। सन 1985 से अभी तक महज 3000 अवैध आप्रवासियों को ही वापिस भेजा जा सका है। राज्य की अदालतों में अवैध निवासियों की पहचान और
उन्हें वापिस भेजने के कोई 40 हजार मामले लंबित हैं। अवैध रूप से घुसने व रहने वाले स्थानीय लोगों में षादी
करके यहां अपना समाज बना-बढ़ा रहे हैं।
भारत में बस गए करोडों़ से अधिक विदेशियों के खाने -पीने, रहने, सार्वजनिक सेवाओं के उपयोग का खर्च
न्यूनतम पच्चीस रूपए रोज भी लगाया जाए तो यह राषि सालाना किसी राज्य के कुल बजट के
बराबर हो जाएगी । जाहिर है कि देश में उपलब्ध
रोजगार के अवसर, सरकारी सबसिडी वाली सुविधाओं पर
से इन बिन बुलाए मेहमानों का नाजायज कब्जा हटा दिया जाए तो भारत की मौजूदा गरीबी रेखा
में खासा गिराव आएगा ।
इन घुसपैठियों की जहां भी बस्तियां होती हैं, वहां गंदगी और अनाचार का बोलबाला होता है । ये कुंठित लोग पलायन से उपजी अस्थिरता
के कारण जीवन से निराश होते हैं । इन सबका
विकृत असर हमारे सामाजिक परिवेश पर भी बड़ी
गहराई से पड़ रहा है । हमारे पड़ोसी देषों से हमारे ताल्लुकात इन्हीं घुसपैठियों के
कारण तनावपूर्ण भी हैं । इस तरह ये विदेषी हमारे सामाजिक, आर्थिक और अंतरराश्ट्रीय पहलुओं को आहत कर रहे हैं ।
दिनों -दिन गंभीर हो रही इस समस्या से निबटने के
लिए सरकार तत्काल ही कोई अलग से महकमा बना ले तो बेहतर होगा, जिसमें प्रषासन, पुलिस के अलावा मानवाधिकार व स्वयंसेवी
संस्थाओं के लेाग भी हों ं। साथ ही सीमा को चोरी -छिपे पार करने के रैक्ेट को तोड़ना
होगा । वैसे तो हमारी सीमाएं बहुत बड़ी हैं, लेकिन यह अब किसी से छिपा नहीं हैं कि बांग्लादेश व पाकिस्तान सीमा पर मानव तस्करी का बाकायदा धंधा
चल रहा है, जो कि सरकारी कारिंदों की मिलीभगत
के बगैर संभव ही नहीं हैं ।
आमतौर पर विदेशियों को खदेड़ने की बातें सांप्रदायिक रंग ले लेती हैं
। सबसे पहले तो इस समस्या को किसी जाति या संप्रदाय के विरूद्ध नहीं अपितु देश के लिए खतरे के रूप में लेने की सश क्त राजनैतिक
इच्छा श क्ति का प्रदर्षन करना होगा । इस देश में देश का मुसलमान गर्व से और समान अधिकार से रहे, यह सुनिष्चित करने के बाद इस तथ्य पर आम सहमति बनाना जरूरी है कि ये बाहरी लोग
हमारे संसाधनों पर डाका डाल रहे हैं और इनका किसी जातिविषेश से कोई लेना देना नहीं
है ।
यहां बसे विदेशियों की पहचान और फिर उन्हें वापिस भेजना एक जटिल प्रक्रिया
है । बांग्ला देश अपने लोगों की वापिसी सहजता
से नहीं करेगा । इस मामले में सियासती पार्टियों का संयम भी महति है । वर्ग विषेश के
वोटों के लालच में इस सामाजिक समस्या को धर्म आधारित बना दिया जाता है । यदि सरकार
में बैठे लोग ईमानदारी से इस दिषा में पहल करते है तो एक झटके में देश की आबदी को कम कर यहां के संसाधनों, श्रम और संस्कारों पर अपने देश के लोगों
का हिस्सा बढाया जा सकता है।
पंकज चतुर्वेदी
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