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रविवार, 7 जून 2015

Terrorism in North East on boiling point

राष्ट्रीय सहारा ]८ जून 15

पूर्वोत्तर में आतंक की अनदेखी का अंजाम


                                             पंकज चतुर्वेदी 
चार  जून को मणिपुर में सेना पर हुए हमले से पहले दो अप्रैल और छह फरवरी को अरुणाचल में सेना पर हमले हो चुके है। इन सभी हमलों का शक नगालैंड के पृथकतावादी संगठन नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल आफ नगालैंड के खपलांग गुट पर है। मुल्क में जब कभी आतंकवाद से निबटने का मुद्दा सामने आता है तो क्या आम लोग और क्या नेता और अफसरान , सभी कश्मीर पर आंसू बहाने लगते हैं। लंबे समय से यह बात नजरअंदाज की जाती रही है कि हमारे ‘‘सेवन सिस्टर्स’ राज्यों में अलगाववाद और आतंकवाद कश्मीर से कहीं ज्यादा है और उससे सटी सीमा के देशों- चीन, म्यांमार, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश ही नहीं थाईलैंड, जापान तक इन संगठनों के आका बैठकर अपनी समानांतर हुकूमत चला रहे हैं। अभी मणिपुर की सरकार म्यांमार से सहयोग मांग रही है। उत्तर-पूर्वी राज्यों मणिपुर, असम, नगालैंड, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम में कोई पच्चीस उग्रवादी संगठन सक्रिय हैं। यहां बीते बारह सालों के दौरान कोई बीस हजार लोग मारे गए जिनमें चालीस फीसद सुरक्षाकर्मी हैं। जब किसी राज्य में कुछ महीने शांति रहती है तो माना जाता है कि सरकार ने उग्रवादी संगठनों को मनमाने तरीके से उगाही की छूट दे दी है। हालांकि पूर्वोत्तर में उग्रवाद का संबंध चीन के कम्यूनिस्ट आंदोलन से जोड़ा जाता है, लेकिन यह भी गौरतलब है कि पूरे क्षेत्र में कभी र्चच या मिशिनरी के किसी भी दल, संपत्ति या गतिविधि पर उग्रवादी मार नहीं पड़ी।असम में उल्फा, एनडीबीएफ, केएलएनएलएफ और यूपीएसडी के लड़ाकों का बोलबाला है। अकेले उल्फा के पास अभी भी 1600 लड़ाके हैं जिनके पास 200 एके राइफलें, 20 आरपीजी और 400 दीगर किस्म के असलहा हैं। राजन दायमेरी के नेतृत्व वाले एनडीबीएफ के आतंकवादियों की संख्या 600 है जो 50 एके तथा 100 अन्य किस्म की राइफलों से लैस हैं। बीते साल असम में बड़े नरसंहार करने वाले एनडीबीएफ के सांगबीजित गुट का मुखिया आईके संगबीजित म्यांमार में रह कर अपने व्यापार करता है। आश्र्चयजनक है कि बोडो के नाम पर खूनखराबा करने वाला यह अपराधी खुद बोडो नहीं है। नगालैंड में पिछले एक दशक के दौरान अलग देश की मांग के नाम पर डेढ़ हजार लोग मारे जा चुके हैं। वहां एनएससीएन के दो घटक- आईएम और खपलांग- बाकायदा सरकार के साथ युद्धविराम की घोषणा कर जनता से चौथ वसूलते हैं। इनके आका विदेश में रहकर भारत सरकार से संपर्क में रहते हैं और इनके गुगरे को अत्याधुनिक प्रतिबंधित हथियार लेकर सरेआम घूमने की छूट होती है। यहां तक कि राज्य की सरकार का बनना और गिरना भी इन्हीं उग्रवादियों के हाथों में होता है। यह बात हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में सामने आ चुकी है। कांग्रेस बहुत प्रचार कर रही थी कि आईएम गुट के साथ जल्दी ही शांति समझौता हो जाएगा, लेकिन सत्ताधारी नगा
RAJ EXPRESS BHOPAL 9-6-15
नेशनल फ्रंट आईएम गुट को यह विास दिलाने में सफल रहा कि उसकी सरकार फिर से बनने पर उनके लिए राहत होगी। बांग्लादेश की सीमा से सटे त्रिपुरा में एनएलएफटी और एटीटीएफ की तूती बोलती है। इन दोनों संगठनों के मुख्यालय, ट्रेनिंग कैंप और छिपने के ठिकाने बांग्लादेश में हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इन संगठनों को उकसाने व मदद करने का काम हुजी व हरकत उल अंसार जैसे संगठन करते हैं। छोटे राज्य मणिपुर में स्थानीय प्रशासन पूरी तरह पीएलए, यूएनएलएफ और पीआरइपीएके जैसे संगठनों का गुलाम हैं। यहां सरकारी कर्मचारियों को अपने वेतन का एक हिस्सा आतंकवादियों को देना ही होता है। बाहरी लोगों की यहां खैर नहीं है। केवाईकेएल यानि कांग्लेई यावोल कन्न ललुप संगठन भी राज्य के पहाड़ी इलाकों में सक्रिय है। बीते दस सालों के दौरान यहां पांच हजार से ज्यादा लोग अलगाववाद के शिकार हो चुके हैं। इसके अलावा नगा-कुकी तथा कुकी-जोमियो संघर्ष में सात सौ से ज्यादा जानें गई हैं। यहां सबसे ज्यादा ताकतवर संगठन यूनाइटेड नेशनलिस्ट लिबरेशन फ्रंट है जिसके पास 1500 लोग हैं। दूसरे सबसे खतरनाक संगठन पीपुल लिबरेशन आर्मी के 400 सदस्य हैं। ये सभी संगठन अत्याधुनिक हथियारों व संचार उपकरणों से लैस हैं। मेघालय में एएनयूसी और एचएनएलएल नामक संगठन अलगाववाद के झंडाबरदार हैं, वहीं मिजोरम में एनपीसी और बीएनएलएफ राष्ट्र की मुख्यधारा से अलग हैं। इसके अलावा असम को आधार बनाकर कई गुमनाम संगठन भी अलगाववाद की रट लगाए हैं। इनमें से कई सीधे-सीधे पाकिस्तानी आईएसआई की पैदाइश हैं। असम में छोटे-बड़े 36 आतंकवादी संगठनों का अस्तित्व सरकारी रिकार्ड स्वीकार करता है। मणिपुर में 39, मेघालय में पांच, मिजोरम में दो, नगालैंड में तीन, त्रिपुरा में 30 और अरुणाचल प्रदेश में महज एक अलगाववादी संगठन है। इनमें से अधिकांश को पाकिस्तान और बांग्लादेश में बने बेस कैंपों से खाद-पानी मिलता है। उत्तर-पूर्वी राज्यों में बहुत से संगठन सक्रिय हैं और वहां उग्रवाद कश्मीर से कहीं ज्यादा है। इसके बावजूद श्रीनगर में हथगोला फटने की खबर टीवी व अखबारों पर छायी होती है, जबकि उत्तर-पूर्व के भीषण नरसंहार भी बमुश्किल जगह पाते हैं। यहां यह भी जानना जरूरी है कि बांग्लादेश से लगी सीमा के 4096 किलोमीटर पर भारत सरकार पहले ही कंटीले तारों की बाड़ लगा चुकी हैं, जबकि म्यांमार से सटी सीमा पर 1643 किलोमीटर पर गहरी खाई हैं। इसके अलावा सीमा सुरक्षा बल, सशस्त्र सीमा बल आदि के हजारों जवान भी लगे हैं। साफ जाहिर है कि इन राज्यों में आतंकवादियों को सीमापार आने के लिए आंख चुराकर आने की जरूरत नहीं पड़ती है। वे कई बार फर्जी पासपोर्ट या अन्य जरियों से भीतर आते-जाते रहते हैं। अनूप चेतिया और परेश बरुआ के मामले में सामने आ चुका है कि इन लोगों ने बैंकाक और ढाका में पांच सितारा होटल से लेकर जहाज कंपनी तक के व्यापार विधिवत खोल रखे हैं। यह तय भारत सरकार की खुफिया एजेंसियों को कई साल पहले पता था कि बांग्लादेश का काक्स बाजार बंदरगाह हथियारों के सौदागरों का प्रमुख अड्डा बना हुआ है और वहां पहुंचने के लिए अंडमान सागर का इस्तेमाल किया जाता है। एक अमेरिकी खुफिया रपट बताती है कि गोल्डन ट्राइंगल से म्यामार के रास्ते हथियारों के बदले नशीली दवाओं के व्यापार पर भारत सरकार न जाने क्यों कड़ी कार्रवाई करने से बचती है। यह वही जगह है जहां से श्रीलंका में खूनखराबे के दिनों में लिट्टे तक हथियारों की खेप पहुंचती थी। जिस तरह से उत्तर-पूर्वी राज्यों के उग्रवादी अत्याधुनिक हथियारों तथा उसके लिए जरूरी गोला-बारूद से लैस रहते हैं, उससे यह तो साफ है कि कोई तो है जो दक्षिण-पूर्व एशिया में अवैध खतरनाक हथियारों की खपत बनाए रखे हुए है। बंदूक के बल पर लोकतंत्र को गुलाम बनाने वालों को हथियार की सप्लाई म्यांमार, थाईलैंड, भूटान, बांग्लादेश से हो रही है। मणिपुर को, जहां सबसे ज्यादा उग्रवाद है, नशे की लत से बेहाल और उससे उपजे एड्स के लिए देश का सबसे खतरनाक राज्य कहा जाता है। कहना गलत नहीं होगा कि यहां नारकोटिक्स व्यापार के बदले हथियार की खेप पर कड़ी नजर रखना जरूरी है। 


     

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