धुएं में उड़ गया कानून
पंकज चतुर्वेदी
तंबाकू उत्पादन के मामले में भारत दुनिया भर में तीसरे नंबर पर आता है । यहां की सालाना पैदावार 51 करोड 90 लाख किलो है । इसमें से 41 करोड किलो देषवासी फूंक डालते हैं । अनुमान है कि कोई 11करोड महिलाओं सहित 33 करोड़ लोग तंबाकू का सेवन करती हैं । इनमें से 70 फीसदी लोग बीड़ी पीते हैं, षेश या तो इसे सीधे खाते हैं या फिर सिगरेट के जरिए । सरकारी आंकड़े हैं कि भारत में । सालाना 90 अरब बीडि़यों का धुआं उड़ता है । 55 करोड़ सिगरेट प्रतिदिन का गणित अलग है । बात अब और बिगड रही है क्योंकि औसतन साढ़े पांच हजार नए लोग हर रोज इस जहर के भक्षण में शामिल हो रहे हैं । वार्षिक 2.1 फीसदी की दर से खपत में बढ़ोतरी होना एक खतरे की घंटी है । दुष्परिणाम सामने हैं-भारत में हर साल कोई 15 लाख लोग फैफडे के कैंसर से मर रहे हैं, क्योंकि ये सभी तंबाकूबाज होते हैं ।
खतरनाक तंबाकू के सेवन से हतोत्साहित करने के लिए 1992 में केन्दª सरकार ने एक विधेयक का मसौदा तैयार किया था, पर आम राय बनाने के नाम पर वह कहीं ठंडे बस्ते में बंधा पड़ा है । याद हो 1975 में भी एक विधेयक इस दषा में लाया गया था । जिसके तहत तंबाकू उत्पादों पर वैधानिक चेतावनी लिखना जरूरी घोशित किया गया था । उसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चेतावनी के चित्र भी छपने लगी। लेकिन इस जहर का इस्तेमाल करने वालों के लिए वह चेतावनी ‘‘काला अक्षर भैंस बराबर’’ के मानिंद है। एक विध्ेायक भी लाया गया था, जिसमें देष भर में तंबाकू उम्पादों के विझापनों से ले कर खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के प्रायोजन में सिगरेट कंपनियों की भागीदारी पर पाबंदी लगाए जाने,सिगरेट की तंबाकू में निकोटिन और टार की मात्रा के लिए निष्चित मापदंड तय करने और उसकी जांच हेतु राष्ट्रीय प्रयोग शा ला खोलने का भी प्रावधान था । उस विधेयक में टीवी और अन्य सरकारी प्रचार माध्यमों पर तंबाकू सेवन के दुश्परिणामों के अधिक कार्यक्रम देने ; ऐसे कार्यक्रमों के प्रसारण पर रोक लगाने, जिनमें अदाकार तंबाकू सेवन या धूम्रपान कर रहा हो, आदि का जिक्र था । षैक्षिक संस्थाओं की 100 मीटर परिधि में सिगरेट-तंबाकू की बिक्री को गैर कानूनी घोशित करने को भी उस विधेयक में रखा गया था । ये सभी बाते कागजो से आगे बढ़ नहीं पाईं क्योंकि धूम्रपान या तंबाकू दोनों के मामले में सरकार की नीतियों, मंषाओं और घोशणाओं में जमीन आसमान का अंतर रहा है । बिल्कुल ‘‘गुड़ खा कर गुलगुले से परहेज करने’’ की तरह ।
वैसे तो 25 साल पहले सन 1990 में कई राज्य सरकारों ने अफ्ने दफतरों में धुम्रपान पर रोक के आदेष जारी किए थे । पर आज भी कालेज के प्राचार्य से लेकर सरकारी अस्पताल के डाक्टर तक और कलेक्टर से लेकर मुख्यमंत्रियों तक के हाथों से ‘‘धीमा जहर’’ छूटा नहीं है । साथ ही सभी दफतरों में ऐष ट्रे और तंबाकू खाने वालों के लिए थूकने के लिए पीकदान यथावत मौजूद हैं । परिवहन मंत्रालय का कहना है कि राज्य परिवहन निगम की बसों में धूम्रपान कानूनन जुर्म है । यदि कोई यात्री बीडी -सिगरेट पीता है तो उसे जुर्माना हो सकता है पर इस कानून को लागू कराने वाले बस के ड्राईवर-कंडक्टर स्वयं जब धुआं उड़ाते हैं तो यात्रियों को कौन रोकेगा । परिवहन निगमों में ड्राइवर-कंडक्टर की भर्ती में धूम्रपान ना करने वाले को प्राथमिकता देना षायद इस कानून के पालन में सहयोगी हो सकता है । ‘‘खेल और कला तंबाकू रहित’’ का नारा केन्दªीय स्वास्थय मंत्रालय ने 1996 में दिया था । उल्लेखनीय है कि लगभग सभी चर्चित क्रिकेट, फुटबाल, टेनिस या राफिटंग टूर्नामेंटों में सिगरेट कंपनियां प्रायोजक हैं और उनका लेबल लगाकर खेलने में स्टार खिलाड़ी फक्र महसूस करते हैं । इसका प्रसारण मय विज्ञापनों के सरकारी दूरदर्ष़न पर षान से होता है ।
तंबाकू प्रयोग नियंत्रण में सरकार के प्रयास जिस तरह से चल रहे हैं उससे स्पश्ट है कि षासन में बैठे लोग किसी दवाबवष इस जहर व्यापार पर रोक नहीं लगा पा रहे हैं । षायद सरकार को उस 2500 करोड रूपये के घाटे की चिंता है, जो उसे हर साल तंबाकू उत्पाद बिक्री पर लगे एक्साइज टैक्स से प्राप्त होता है । खुद सरकार ने सिगरेट बनाने वाली कंपनियों में 28.42 करोड रूपयों का निवेष कर रखा है । सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने तंबाकू पैदा करने वाले किसानों को पांच सौ करोड रूपये के कर्जे दे रखे हैं । बीड़ी-सिगरेट के कारखानों के मालिकों को होने वाले मुनाफे से विभिन्न राजनैतिक पार्टियों को कोशपूर्ति भी इसमें एक बड़ा बाधक है ।
उत्तर प्रदेष के उरई कस्बे में आधा सैंकडा से अधिक गुटखा कारखाने हैं । यहां तंबाकू में कत्था, चूना, सुपारी, पिपरमेंट आदि मिलाकर गुटखे तैयार किए जाते हैं । इस किस्म के तैयार तंबाकू के पाउच सारे देष में करोड़ो की तादाद में यहां से सप्लाई हो रहे हैं । पिछले साल बुंदेलखंड के कुछ जागरूक डाक्टरों ने इस पर षोध किया तो पाया गया कि इन गुटखों को खाने वालों का 30 प्रतिषत मुंह के कैंसर के षिकार हो गए हैं । इसके सेवन से आंतों में अल्सर होना तय होता है । इन गुटखों को आधिक नषीला और अधिक बिक्री योग्य बनाने के लिए उनमें अन्य अवांछित पदार्थ मिलाना भी पाया गया । जब ये रपट अखबारों में छपी तो तुरत-फुरत पुलिस ने इन गुटखा कारखानों पर छापे पड़ेे, उन्हें सील किया गया । पर चर्चित ब्रांड के गुटकों की बाजार में सप्लाई यथावत बनी रही । बाद में ये जांच-पड़ताल भी राजनैतिक दावपेंचों में उलझ कर खत्म हो गई । आज इस जहर की बिक्री जोषोखरोस से जारी है । कहने को मध्यप्रदेष देष का पहला और केरल दूसरा ऐसा राज्य बन गया है, जहां गुटके की बिक्री पर पूरी तरह पाबंदी है, लेकिन इसके ये सभी प्रयास नारों के तौर पर तो बहुत लुभावने हैं, लेकिन व्यावहारिकता के लिए आम लोगों का इससे सहमत होना जरूरी है।
तंबाकू सेवन पर नियंत्रण न सिर्फ देषवासियों की स्वास्थय सुरक्षा का सवाल है बल्कि कार्यरत लोगों की कार्यक्षमता बढ़ाने का भी जरिया है । हमारे देष में तंबाकू सेवन से उपजे रोगों के इलाज में 248 करोड रूपये सालाना खर्च होते हैं। फिर इन बीमार लोगों के काम ना करने से उद्योग धंधो को प्रतिवर्श 300 करोड़ का घाटा होता है सो अलग । तंबाकू सेवन पर जहां सरकार को कड़ाई से कदम उठाने होंगे वहीं प्रषिक्षित और अभिजात्य समाज को इस विशय में अपना नजरिया बदलना होगा ।
सिगरेट पीने की शुरूआत शान दिखाने के रूप में होती है, फिर यह षौक और आगे चल कर आदत बन जाती है । चूंकि तंबाकू सैंकड़ों किसानों की रोजी-रोटी है, करोड़ों परिवार इससे बीड़ी बना कर अपना पेट भरते हैं । ऐसे में इन लोगों के लिए रोजगार के अन्य अवसर दिए बिना उन पर रोक लगाना भी अमानवीय ही होगा । इस प्रकार तंबाकू पाबंदी की कोषिषें सामाजिक, आर्थिक, और कानूनी तीनों समीकरणों में माकूल बदलाव के बाद ही सफल हो पाएंगी ।
पंकज चतुर्वेदी
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