rashtriy sahara 3-7-15 |
पंकज चतुव्रेदी
युक्त राष्ट्र के खाद्य व कृषि संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 19.4 करोड़ लोग भूखे सोते हैं। हालांकि सरकार के प्रयासों से पहले से ऐसे लोगों की संख्या कम हुई है। भूख, गरीबी, कुपोषण व उससे उपजने वाली स्वास्य, शिक्षा, मानव संसाधन प्रबंधन की दिक्क्तें देश के विकास में सबसे बड़ी बाधक हैं। हमारे यहां न अन्न की कमी है और न रोजगार के लिए श्रम की। कागजों पर योजनाएं भी हैं। नहीं हैं तो योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार स्थानीय स्तर मशीनरी में जिम्मेदारी व संवेदना की। जिस देश में अनाज भंडारण के लिए गोदामों में जगह न हो, जहां सामाजिक जलसों में परोसा जाने वाला आधे से ज्यादा भोजन कूड़ाघर का पेट भरता हो, वहां कई लोग भोजन के अभाव में दम तोड़ देते हैं। पिछले महीने छत्तीसगढ़ में एक बच्चा भूख से मर गया। बंगाल के बंद हो गए चाय बागानों में मजूदरों के भूख के कारण दम तोड़ने की बात हो या महाराष्ट्र में शिरडी मंदिर के पास मेलघाट में बच्चों की कुपोषण से मौत की खबर या राजस्थान के बारां जिले में सहरिया आदिवासियों की बस्ती में पैदा बच्चों में से अस्सी फीसद का उचित खुराक न मिलने के कारण बचपन में ही दम तोड़ना। इस देश में यह हर रोज हो रहा है लेकिन भ्रष्ट शासन-व्यवस्था और खाये अघाये वर्ग का इससे लेना-देना नहीं।जहां खाद्य और पोषण सुरक्षा की कई योजनाएं अरबों रपए की सब्सिडी पर चल रही हैं, जहां मध्याह्न भोजन योजना के तहत 12 करोड़ बच्चों को दिन का भरपेट भोजन देने का दावा हो, जहां हर हाथ को काम व हर पेट को भोजन के नाम पर हर दिन करोड़ों का सरकारी फंड खर्च होता हो, वहां भूख से मौत दर्शाता है कि योजनाओं व हितग्राहियों के बीच अब भी पर्याप्त दूरी है। भारत में हर साल पांच साल से कम उम्र के दस लाख बच्चों के भूख या कुपोषण से मरने के आंकड़े संयुक्त राष्ट्र ने जारी किए हैं। ऐसे में नवरात्र पर गुजरात के गांधीनगर जिले के एक गांव में माता की पूजा के नाम पर 16 करोड़ रपए दाम के साढ़े पांच लाख किलो शुद्ध घी को सड़क पर बहाने, मध्यप्रदेश में एक राजनीतिक दल के महासम्मेलन के बाद नगर निगम के सात ट्रकों में भर पूड़ी व सब्जी कूड़ेदान में फेंकने की घटनाएं दुभाग्यपूर्ण व शर्मनाक हैं।
Daily News Jaipur 9-7-15 |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें