My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

रविवार, 30 अगस्त 2015

PANI WALE MASTER JI . (Teacher on the work of water awareness )

पानी वाले मास्टरजी



Author: 
 पंकज चतुर्वेदी

शिक्षक दिवस पर विशेष


.‘‘अरे जल्दी से टोटी बन्द कर ले, मास्टरजी आ रहे हैं।’’ ऐसी पुकार गाज़ियाबाद के आसपास के गाँवों में अक्सर सुनाई दे जाती है। त्रिलोक सिंह जी, गाज़ियाबाद से सटे गाँव गढ़ी के हैं। गाज़ियाबाद के सरस्वती विद्या मन्दिर में अंग्रेजी के अध्यापक हैं, लेकिन क्या स्कूल और क्या समाज, उनकी पहचान ही ‘पानी वाले मास्टरजी’ की हो गई है।

बीते दस सालों में मास्टरजी भी सौ से ज्यादा गाँवों में पहुँच चुके हैं, पाँच हजार से ज्यादा ग्रामीणों और दस हजार से ज्यादा बच्चों के दिल-दिमाग में यह बात बैठ चुके हैं कि पानी किसी कारखाने में बन नहीं सकता और इसकी फिजूलखर्ची भगवान का अपमान है। उनकी इस मुहिम में उनकी पत्नी श्रीमती शोभा सिंह भी महिलाओं को समझाने के लिये प्रयास करती हैं।

त्रिलोक सिंह जी अपने विद्यालय में बेहद कर्मठता से बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाते हैं और उसके बाद बचे समय के हर पल को अपने आसपास इस बात का सन्देश फैलाने में व्यतीत करते हैं कि जल नहीं बचाया तो जीवन नहीं बचेगा। मास्टर त्रिलोक सिंह जी ना तो किसी संस्था से जुड़े हैं और ना ही कोई संगठन बनाया है.... बस लोग जुड़ते गए कारवाँ बनता गया.... की तर्ज पर उनके साथ सैंकड़ों लोग जुड़े गए हैं।

घर से आर्थिक रूप से सम्पन्न श्री त्रिलोक सिंह जी ने अंग्रेजी में एमए और फिर बीएड करने के बाद सन् 1998 में एक शिक्षक के रूप में समाज की सेवा करने का संकल्प लिया। उन्होंने अपना गाँव गढ़ी नहीं छोड़ा व वहीं से गाज़ियाबाद आना-जाना जारी रखा। बात सन् 2006 की गर्मियों की थी, गढ़ी गाँव में हर घर में सबमर्सिबल पम्प लग रहे थे। लेकिन बिजली का संकट तो रहता ही था। जैसे ही बिजली आती, सारा गाँव अपने-अपने पम्प खोल लेता, कोई कार धोता तो कोई भैंसे नहलाता।

गाँव की पुरानी जोहड़ों पर अवैध कब्जे हो चुके थे, सो बहते पानी को जाने का कोई रास्ता नहीं होता था। सारा पानी ऐसे ही गलियों में जमा हो जाता। बिजली जाती तो पूरे गाँव में पानी का संकट हो जाता, बस तभी मास्टरजी के दिमाग में यह बात आई कि हम जिस पानी को निर्ममता से फैला रहे हैं वह बड़ी मुश्किल से धरती की छाती चीर कर उपजाया जा रहा है और इसकी भी एक सीमा है।

श्री सिंह ने सबसे पहले इस बात को अपनी पत्नी को समझाया। मास्टरजी के अनुसार,‘‘पत्नी को समझाना बेहद कठिन होता है, सो सबसे पहले मैंने अपनी पत्नी को ही बताया कि जरूरत से ज्यादा पानी बहाना अच्छी बात नहीं है। जब वह समझ गई तो पास-पड़ोस को बताया फिर मुहल्ले को और उसके बाद पूरे गाँव को यह समझाने में दिक्कत नहीं हुई।’’

श्री सिंह बताते हैं कि पहले जब हैण्डपम्प थे तो लोग बस अपनी जरूरत का पानी निकालते थे, लेकिन बिजली की मोटर के कारण एक बाल्टी पानी की जरूरत पर दो बाल्टी फैलाने लगे हैं। मास्टर त्रिलोक सिंह ने अपने गाँव गढ़ी के बाद उस गाँव को चुना जहाँ से उन्होंने प्राइमरी स्कूल किया था, यानी सिकरोड। फिर तो यह सिलसिला चल निकला। रजापुर ब्लाक के 32 गाँव, मुरादनगर के 36 और भोजपुर के दस गाँवों में मास्टरजी की चौपाल हो चुकी है।

वहाँ पानी व्यर्थ ना बहाने, पारम्परिक जोहड़ व तालाबों के संरक्षण और भूजल के बचाने की बात जीवन का मूलमंत्र बन चुकी है। कई गाँवों के प्रधानों ने अपने तालाब-जोहड़ से अतिक्रमण हटवाए, उन पर बाउंड्री वाल बनवाई। श्री सिंह के प्रयासों से जल संरक्षण के कई मामले राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) भी गए। स्वयं उनके गाँव गढ़ी में तालाब की ज़मीन पर पानी की टंकी बनाने के मामले में एनजीटी सरकरी टंकी को हटाने के आदेश दे चुकी है।

श्री सिंह इन दिनों पारम्परिक बम्बे यानि नालों में अविरल जल बहाव के लिये संघर्ष कर रहे हैं। सुल्तानपुर, असालतपुर, सिकरोड, हरसावा से गुजरने वाले पारम्परिक बम्बे के बन्द होने से बारिश के पानी के प्रवाह में दिक्कत हो रही है। मास्टरजी अब उन गाँवों में जाकर श्रमदान के जरिए नाले को खोलने पर काम कर रहे हैं।

मास्टरजी अपने स्कूल के बच्चों को छोटी-छोटी आदतें डलवाते हैं-जैसे स्कूल से घर लौटने पर यदि पानी की बोतल में पानी शेष हो तो उसे नाली में बहाने की जगह गमलों में डालना, अपने घर में वाहन धोने के लिये पाइप के स्थान पर बाल्टी का इस्तेमाल, गिलास में उतना ही पानी लेना जितनी प्यास हो।

दिसम्बर-2014 में त्रिलोक सिंह जी ने गाज़ियाबाद शहर में हजारों बच्चों की एक जागरुकता रैली निकाली, जिसके समापन पर कलेक्टर को ज्ञापन देकर भूजल के व्यावसायिक देाहन कर रहे टैंकर माफ़िया पर कड़ाई से रोक की माँग की गई और उसका असर भी हुआ।

‘‘आप स्कूल में शिक्षण के बाद इतना समय कैसे निकाल लेते हैं?’’ इस प्रश्न के जवाब में श्री सिंह कहते है, ‘‘मैं बच्चों को कभी ट्यूशन नहीं पढ़ाता। स्कूल के बाद जो भी समय बचता है या घर से स्कूल आने-जाने के रास्ते में जब कभी, जहाँ कहीं भी अवसर मिलता है, मैं लोगों को जल संरक्षण का सन्देश देने में अपना समय लगाता हूँ। यही मेरा शौक है और संकल्प भी।’’

मास्टर त्रिलोक सिंह बानगी हैं कि विद्यालय स्तर पर पर्यावरण संरक्षण की बात करने के लिये किसी पाठ्यक्रम या पुस्तकों से ज्यादा जरूरत है एक दृढ़ इच्छा शक्ति व स्वयं अनुकरणीय उदाहरण बनने की।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

How will the country's 10 crore population reduce?

                                    कैसे   कम होगी देश की दस करोड आबादी ? पंकज चतुर्वेदी   हालांकि   झारखंड की कोई भी सीमा   बांग्...