My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

गुरुवार, 28 जनवरी 2016

Vrikshayurved : traditional knowledge of organic farming Peoples Samachar


वृक्षायुर्वेद यानि सस्ती व सुरक्षित खेती की परंपरा

Peoples samachar 29-1-16
                                       पंकज चतुर्वेदी


बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए अधिक पैदावार का दवाब लगातार जमीन के सत्व को खत्म कर रहा है । हरित क्रांति की नई आंधी सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को ही मार रही है । खेतों में बढ़ती उर्वरकों की मात्रा का ही दुष्परिणाम है कि जमीन के पोषक तत्व जिंक, लोहा, तांबा, मैगजीन, आदि लुप्त होते जा रहे हैं । दूसरी तरफ कीटनाशकों के बढ़ते इस्तेमाल से खाद्ध पदार्थ जहरीले हो रहे हैं । यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि भारतीय लोग दुनिया भर के लोगों के मुकाबले कीटनाशकों के सबसे ज्यादा अवशेष अपने भोजन के साथ पेट में पहुंचाते हैं । हमारी अर्थ व्यवस्था के मूल आधार खेती व पशुपालन की इस दुर्दशा से हताश वैज्ञानिकों की निगाहें अब प्राचीन मान्यताओं और पुरातनपंथी मान लिए गए शास्त्रों पर गई है ।

कुछ साल पहले थियोसोफीकल सोसायटी, चैन्नई में कोई पचास से अधिक आम के पेड़ रोगग्रस्त हो गए थे । आधुनिक कृषि-डाक्टरों को कुछ समझ नहीं आ रहा था । तभी समय की आंधी में कहीं गुम हो गया सदियों पुराना ‘‘वृक्षायुर्वेद’’ का ज्ञान काम आया । सेंटर फार इंडियन नालेज सिस्टम (सीआईकेएस) की देखरेख में नीम और कुछ दूसरी जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया गया । देखते ही देखते बीमार पेड़ों में एक बार फिर हरियाली छा गई । ठीक इसी तरह चैन्नई के स्टेला मेरी कालेज में बाटनी के छात्रों ने जब गुलमेंहदी के पेड़ में ‘‘वृक्षायुर्वेद’’ में सुझाए गए नुस्खों का प्रयोग किया तो पता चला कि पेड़ में ना सिर्फ फूलों के घने गुच्छे लगे , बल्कि उनका आकार भी पहले से बहुत बड़ा था । वृक्षायुर्वेद के रचयिता सुरपाल कोई एक हजार साल पहले दक्षिण भारत के शासक भीमपाल के राज दरबारी थे । वे वैद्ध के साथ-साथ अच्छे कवि भी थे । तभी चिकित्सा सरीखे गूढ़ विषय पर लिखे गए उनके ग्रंथ वृक्षायुर्वेद को समझने में आम ग्रामीण को भी कोई दिक्कत नहीं आती है ।उनका मानना था कि जवानी,आकर्षक व्यक्तित्व, खूबसूरत स्त्री,बुद्धिमान मित्र, कर्णप्रिय संगीत, सभी कुछ एक राजा के लिए अर्थहीन हैं, यदि उसके यहां चित्ताकर्षक बगीचे नहीं हैं । सुरपाल के कई नुस्खे अजीब हैं -जैसे, अशोक के पेड़ को यदि कोई महिला पैर से ठोकर मारे तो वह अच्छी तरह फलता-फूलता है , या यदि कोई सुंदर महिला मकरंद के पेड़ को नाखुनों से नोच ले तो वह कलियों से लद जाता है । सुरपाल के कई नुस्खेे आसानी से उपलब्ध जड़ी-बूटियों पर आधारित हैं । महाराष्ट्र में धोबी कपड़े पर निशान लगाने के लिए जिस जड़ी का इस्तेमाल करते हैं, उसे वृक्षायुर्वेद में असरदार कीटनाशक निरुपित किया गया है । भल्लाटका यानि सेमीकार्पस एनाकार्डियम का छोटा सा टुकड़ा यदि भंडार गृह में रख दिया जाए तो अनाज में कीड़े नहीं लगते हैं और अब इस साधारण सी जड़ी के उपयोग से केंसर सरीखी बीमारियों के इलाज की संभावनाओं पर शोध चल रहे हैं ।
पंचामृत यानि गाय के पांच उत्पाद- दूध,दही,घी,गोबर और गौमू़़़त्र के उपयोग से पेड़-पौधों के कई रोग जड़ से दूर किए जा सकते हैं ।‘ वृक्षायुर्वेद ’ में दी गई इस सलाह को वैज्ञानिक रामचंद्र रेड्डी और एएल सिद्धारामैय्या ने आजमाया । टमाटर के मुरझाने और केले के पनामा रोग में पंचामृत की सस्ती दवा ने सटीक असर किया । इस परीक्षण के लिए टमाटर की पूसा-रूबी किस्म को लिया गया सुरपाल के सुझाए गए नुस्खे में थोड़ा सा संशोधन कर उसमें यीस्ट और नमक भी मिला दिया गया । दो प्रतिशत घी, पांच प्रतिशत दही और दूध, 48 फीसदी ताजा गोबर, 40 प्रतिशत गौ मूत्र के साथ-साथ 0.25 ग्राम नमक और इतना ही यीस्ट मिलाया गया । ठीक यही फार्मूला केले के पेड़ के साथ भी आजमाया गया, जो कारगर रहा ।
सीआईकेएस में बीते कई सालों से  वृक्षायुर्वेद और ऐसे ही पुराने ग्रंथों पर शोध चल रहे हैं । यहंा बीजों के संकलन, चयन, और उन्हें सहेज कर रखने से ले कर पौधों को रोपने, सिंचाई, बीमारियों से मुक्ति आदि की सरल पारंपरिक प्रक्रियाओं को लोकप्रिय बनाने के लिए आधुनिक डिगरियों से लैस कई वैज्ञानिक प्रयासरत हैं । पशु आयुर्वेद, सारंगधर कृत उपवन विनोद और वराह मिरीह की वृहत्त्त संहिता में सुझाए गए चमत्कारी नुस्खों पर भी यहां काम चल रहा है । सीआईकेएस में वैज्ञानिक डा के विजयलक्ष्मी अपने बचपन का एक अनुभव बताती हैं कि उनके घर पर लौकी की एक बेल में फूल तो खूब लगते थे, लेकिन फल बनने से पहले झड़ जाते थे ।एक बूढ़े माली ने उस पौधे के पास एक गड्ढा खोद कर उसमें हींग का टुकड़ा दबा दिया । दो हफ्ते में ही फूल झड़ना बंद हो गए और उस साल सौ से अधिक फल लगे । डा विजयलक्ष्मी ने इस घटना के 15 साल बाद जब वृक्षायुर्वेद का अध्यन किया तो पाया कि हींग मूलरूप से ‘वात दोष’ के निराकरण में प्रयुक्त होती है । फूल से फल बनने की प्रक्रिया में ‘वात दोष’ का मुख्य योगदान होता है । इसकी मात्रा में थोड़ा भी असंतुलन होने पर फूल झड़ने लगते हैं । सनद रहे हींग भारतीय रसोई का आम मसाला है और इसका इस्तेमाल मानव शरीर में वात दोष निवारण में होता है । वृक्षायुर्वेद का दावा है कि मानव शरीर की भांति पेड़-पौधों में भी वात, पित्त और कफ के लक्षण होते हैं और इनमें गड़बड़ होने पर वनस्पति बीमार हो जाती हैं ।
इसी प्रकार मवेशियों की सामान्य बीमारियों के घरेलू इलाज के लिए रचित ‘पशु-आयुर्वेद’ भी इन दिनों खासा लोकप्रिय हो रहा है । इस प्राचीन ग्रंथ में पशुओं के जानलेवा रोग खूनी दस्तों की दवा ‘कुटजा’ को बताया गया है । ‘होलोरेना एंटीडायसेंट्रीका’ के वैज्ञानिक नाम वाली यह जड़ी बड़ी सहजता से गांव-खेजों में मिल जामी है । आंव-दस्त में यह बूटी इतनी सुरक्षित है कि इसे नवजात शिशु को भी दिया जा सकता है । ‘पशु-आयुर्वेद’ के ऐसे ही जादुई नुस्खों पर दो कंपनियों ने दवाईयां बना कर बेचना शुरू कर दिया है ।
खेती-किसानी के ऐसे ही कई हैरत अंगेज नुस्खे भारत के गांव-गांव में पुराने, बेकार या महज भावनात्मक साहित्य के रूप में बेकार पड़े हुए हैं । ये हमारे समृद्ध हरित अतीत का प्रमाण तो हैं ही, प्रासंगिक और कारगर भी हैं । अब यह बात सारी दुनिया मान रही है कि प्राचीन भारतीय ज्ञान के इस्तेमाल से कृषि की लागत घटाई जा सकती है । यह खेती का सुरक्षित तरीका भी है, साथ ही इससे उत्पादन भी बढ़ेगा ।

पंकज चतुर्वेदी
यूजी-1, 3/186 ए राजेन्द्र नगर
सेक्टर-2
साहिबाबाद
गाजियाबाद 201005
9891928376, 0120-4241060
                                

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

How National Book Trust Become Narendra Book Trust

  नेशनल बुक ट्रस्ट , नेहरू और नफरत पंकज चतुर्वेदी नवजीवन 23 मार्च  देश की आजादी को दस साल ही हुए थे और उस समय देश के नीति निर्माताओं को ...