My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

शनिवार, 26 मार्च 2016

Police boots on scribes of Bastar



बस्तर में आईजी कल्लूरी की सरकार ! 6 महीने में 6 पत्रकार शिकार

छह महीने में छह पत्रकार हुये शिकार, अब प्रभात सिंह पर बर्बरता

पंकज चतुर्वेदी

कांकेर। उत्तर बस्तर का जिला मुख्यालय कांकेर। 20 मार्च को होली के पहले का आखिरी रविवार। आमतौर पर यह मौसम जनजातियों के मदमस्त हो कर गीत-संगीत में डूबने का, अपने दुख -दर्द भूल कर प्रकृति के साथ तल्लीन हो जाने का होता है, लेकिन पूरा बाजार उदास था, कुछ सहमा सा। ना मांदर बिक रहे थे ना रंग खरीदने वालों में उत्साह। करीबी जंगलों से आदिवासी ना के बराबर हाट में आए थे। यदि दक्षिण बस्तर यानि सबसे विषम हालात वाले इलाकों की बात करें तो वहां होली या तो सुरक्षाकर्मी मना रहे थे या फिर कुछ सरकारी योजनाओं के तहत पैसा पाने वाले सांस्कृतिक दल। कोई घर से बाहर झांकने को तैयार नहीं, पता नहीं किस तरफ से कोई आकर अपनी चपेट में ले ले। बस्तर अब एक ऐसा क्षेत्र बन चुका है जहां पुलिस कार्यवाही के प्रति प्रतिरोध जताने का अर्थ है, जेल की हवा। यह भी संभावना रहती है कि जेल से बाहर निकलो तो माओवादी अपना निशाना बना ले। पिछले छह महीनों में छह पत्रकार जेल में डाले जा चुके हैं, वह भी निमर्मता से। कुछ पत्रकारों को जबरिया इलाका छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा तो कुछ को धमकियां मिली।

यह जान लें कि बस्तर में पुलिस का हर कानून आईजी, शिवराम कल्लूरी की मर्जी ही है।

माथे पर भभूत का बड़ा सा तिलक लगाए कल्लूरी को रमन सिंह सरकार से छूट है कि वे किसी को भी उठाएं, बंद करें, पीटें, धमकी दें।
यहां एक बात गौर करने वाली है कि पिछले एक साल के दौरान कल्लूरी ने जितने कथित माओवादी मारे या आत्मसमर्पण करवाए, शायद उतने असली माओवादी जंगल में हैं भी नहीं। रही बची कसर पूरी कर दी है भारतीय जनता पार्टी से जुड़े लेागों द्वारा बनाए गए एक संगठन सामाजिक एकता मंच ने। मान लें कि यह संगठन सलवा जुडूम भाग दो ही है। इसके कार्यकर्ता शहरी इलाकों में लोगों को डरा-धमका रहे हैं।
गौर करें कि अभी पिछले चुनाव तक जब बस्तर की बारह विधान सभा सीटों पर भजपा का वर्चस्व रहता था तब ये नेता अपने घर बैठकर तमाशा देखते थे, लेकिन इस बार झीरम घाटी कांड में कई बड़े कांग्रेसी नेताओं के मारे जाने के बाद बस्तर में कांग्रेस का दबदबा बढ़ गया, तो ये नेता नक्सलियों के कथित विरोध में खड़े हो रहे हैं, इसके पीछे की सियासत को जरा गंभीरता से समझना होगा।
इसी संगठन की गुंडागर्दी के चलते लंबे समय से जगदलपुर में रह कर विभिन्न अंग्रेजी अखबारों के लिए काम कर रही मालिनी सुब्रहण्यम को बस्तर छोडकर कर जाना पड़ा। असल में मालिनी उस समय आंख की किरकिरी बन गई थीं जब उन्होंने बीजापुर जिले के बासागुउ़ा थाने के तहत तलाशी के नाम पर 12 आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार की खबर की थी। उसके बाद मालिनी के मकान मलिक को थाने में बैठा लिया गया, उनके घर काम करने वाले नौकरों को पूरे परिवार सहित उलटा लटका कर मारा गया। बाजार में कह दिया गया कि इनको कोई सामान ना बेचे। हार कर फरवरी में मालिनी को बस्तर छोड़ना पड़ा।
कहने की जरूरत नहीं कि इन शिकायतों का कोई अर्थ नहीं है।
ताजा मामला दंतेवाड़ा के पत्रकार प्रभात सिंह की गिरफ्तारी का है। वे पत्रिकाके लिए काम करते हैं और लंबे समय से जंगलों में सुरक्षा बलों द्वारा आदिवासियों पर अत्याचार तथा पुलिस की झूठी कहानियों का पर्दाफाश करते रहे। कुछ महीनों पहले पकड़े गए पत्रकार द्वय सोमारू नाग व संतोश यादव की रिहाई के लिए अभियान चला रहे प्रभात की किसी समय भी गिरफ्तारी होने की आशंका को लेकर लंबे समय से विभन्न अखबारों में खबरें छप रहीं थी। इस आशंका की शिकायत भी की गयी थी, लेकिन एक सप्ताह पहले प्रभात को घर से उठाया गया, फिर दो दिन बाद आईटी एक्ट में गिरफ्तारी दिखाई गई। मसला एक व्हाट्सएप संदेश का था जिसमें गाडकी जगह हिंदी में गलती से चंद्र बिंदु टाईप हो गया था। उसके बाद चार ऐसे ही बेसिर पैर के मामले लादे गए।
पुलिस अभिरक्षा में प्रभात को निर्ममता से पीटा गया, खाना नहीं दिया गया और कहा गया कि पुलिस का विरोध कर रहे थे अब उससे सहयोग की उम्मीद मत रखना।
प्रभात के मामले में मानवाधिकार आयोग ने भी राज्य शासन को नोटिस भेजा है, लेकिन यह किसी से छिपा नहीं है कि ये नोटिस व आयोग तहज हाथी के दांत होते हैं व राज्य शासन की रिपोर्ट को ही आधार मानते हैं।
यहां पत्रकार नेमीचंद जैन व साईं रेड्डी को याद करना भी जरूरी है। कुछ साल पहले देानेां को पुलिस ने माओवादी समर्थक बता कर जेल भेजा। अदालतों ने लचर मामलों के कारण उन्हें रिहा कर दिया, लेकिन बाद में माओवादियों ने उन्हें यह कहकर मार दिया कि वे पुलिस के मुखबिर थे। हालांकि पुलिस कहती है कि दोनों को माओवादियों ने मारा, लेकिन अंदर दबी-छिपी खबरें कुछ और भी कहती है।
बीबीसी के स्थानीय संवाददता आलोक पुतुल और दिल्ली से गए वात्सल्य राय से तो कल्लूरी ने जो कह कर मिलने से इंकार किया, वह बानगी है कि बस्तर में पत्रकारिता किस गंभीर दौर से गुजर रही है। कल्लूरी ने कहा
आपकी रिपोर्टिंग निहायत पूर्वाग्रह से ग्रस्त और पक्षपातपूर्ण है। आप जैसे पत्रकारों के साथ अपना समय बर्बाद करने का कोई अर्थ नहीं है। मीडिया का राष्ट्रवादी और देशभक्त तबका कट्टरता से मेरा समर्थन करता है, बेहतर होगा मैं उनके साथ अपना समय गुजारूं। धन्यवाद।
यह एक लिखित संदेश भेजा गया था। बस्तर के आईजी शिवराम प्रसाद कल्लुरी से कई बार संपर्क करने की कोशिशों के जवाब में उन्होंने पुतुल को यह मैसेज मोबाईल पर भेजा था। कुछ ही देर बाद लगभग इसी तरह का जवाब बस्तर के एसपी आरएन दास ने भेजा,
आलोक, मेरे पास राष्ट्रहित में करने के लिए बहुत से काम हैं। मेरे पास आप जैसे पत्रकारों के लिए कोई समय नहीं है, जो कि पक्षपातपूर्ण तरीके से रिपोर्टिंग करते हैं। मेरे लिए इंतजार न करें।
यही नहीं जब ये पत्रकार जंगल में ग्रामीणों से बात कर रहे थे, तभी उन्हें बताया गया कि कुछ हथियारबंद लोग आपको तलाश रहे हैं और अपनी सुरक्षा के लिए खुद जिम्मेदार होंगे।

बस्तर एक जंग का मैदान बन गया है।

इन दिनों माओवादियों के हाथों कई ग्रामीण मारे जा रहे हैं-मुखबिर होने के शक में, पुलिस ग्रामीणों को पीट रही है कि दादा लोगों को खाना ना दें। लोग पलायन कर रहे हैं। जेल में बंद निर्दोष लोगों की पैरवी करने वाले वकील नहीं मिल रहे हैं। जो कोई भी फर्जी कार्यवाहियों पर रिपोर्ट करे उनकी हालत प्रभात जैसी हो रही है। असल में यह लोकतंत्र के लिए खतरा है जहां प्रतिरोध या असहमति के स्वर को कुचलने के लिए तर्क का नहीं, वरन सुरक्षा बलों के बूटों का सहारा लिया जा रहा है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

How will the country's 10 crore population reduce?

                                    कैसे   कम होगी देश की दस करोड आबादी ? पंकज चतुर्वेदी   हालांकि   झारखंड की कोई भी सीमा   बांग्...