जल, जंगल और जमीन का जुनून: संजय कश्यप
वैसे तो वे एक वकील हैं, एक राजनीतिक दल के समर्पित कार्यकर्ता भी हैं, लेकिन उनके दिल और दिमाग में हर समय जो मचलता रहता है, वह है अपनी धरती को आधुनिकता से उपजे प्रदूषण से मुक्त करना। वे हिण्डन नदी बचाने के आन्दोलन में भी उतने ही सक्रिय रहते हैं जितना कि गौरेया संरक्षण में और उतना ही पाॅलीथीन प्रयोग पर पाबन्दी को लेकर। दिल्ली से सटे गाजियाबाद जिले में उनकी पहल पर कई ऐसे काम हो गये जो यहाँ के लाखों बाशिंदों को स्वच्छ हवा-पानी मुहैया करवाने में अनुकरणीय पहल हैं। संजय कश्यप ने एमबीए कर एक कम्पनी में प्रबंधन की नौकरी की और वह भी कश्मीर घाटी में वहाँ वे बाँध व जल प्रबंधन को नजदीक से देखते तो रहे, लेकिन कभी पर्यावरण संरक्षण जैसी कोई भावना दिल में नहीं उपजी।
अचानक पिता का स्वास्थ्य गडबड हुआ तो मजबूरी हुई कि अपने घर गाजियाबाद में ही रहना होगा। यहाँ जब वकालत शुरू की तो अचानक उन्हें बचपन के वे दिन याद आ गये जब शहर के तालाब पर रामलीला के खुद दृश्य मंचित किये जाते थे। लेकिन तब वह रमतेराम तालाब पूरी तरह राम को प्यारा हो चुका था। नगर निगम ने तो मरा घोषित कर उसे भरकर वहाँ एक बड़ा व्यावसायिक परिसर बनाने की ठान ली। संजय अभी भी तालाब के पर्यावरणीय महत्त्व के प्रति उतने भिज्ञ नहीं थे लेकिन वे उस परम्परा को जीवन्त रखना चाहते थे। छह महीने सड़कों पर अदालत में लड़ाई लड़ी गई, शहर के लोगों को भी पहली बार लगा कि तालाब हमारे लिये कितने जरूरी हैं। नगर निगम को अपना फैसला वापिस लेना पड़ा और पहली लड़ाई में ही जीत से कश्यप के हौसले बुलंद हो गये।
इस संघर्ष के दौरान संजय कश्यप राजेन्द्र सिंह, मेधा पाटकर, अनुपम मिश्र आदि के सम्पर्क में आये और उनकी पर्यावरण के प्रति सोच विकसित हुई। फिर ‘अरण्या’ संस्था का गठन, आगरा में यमुना के पानी पर सर्वे जैसे प्रयोग के सुखद परिणाम आने लगे। बरेली में जैविक कृषि को प्रोत्साहित करने के लिये एक केन्द्र खोला व उससे भी सकारात्मक किरणें आई। इस तरह एक अधिवक्ता के जीवन का अभिन्न अंग बन गया- पर्यावरण संरक्षण। उनकी सोच है कि पर्यावरण संरक्षण में एक सशक्त नागरिक हस्तक्षेप होना चाहिये और इसका प्रयोग उनकी संस्था ''अरण्या'' ने नब्बे के दशक में बरेली के तीन तालाबों के संरक्षण के अपने प्रयोग में किया। बगैर सरकारी मदद के जन संसाधनों से तीन तालाबों की गंदगी साफ कर जब जनता को लगा कि उन्होंने कुछ सकारात्मक किया है तो कश्यप ने पर्यावरण संरक्षण में जन भागीदारी के अपनी मुहीम को आगे बढ़ाया। गाजियाबाद के पक्का तालाब सहित कई मुद्दों पर उन्होंने सीएनएन आईबीएन के लिये सिटिजन्स जर्नलिस्ट बनकर शानदार रपट बनाईं।
सन 2004 में कश्यप ने अपने 150 मित्रों को इस बात के लिये तैयार किया कि 15 दिन में एक दिन बगैर पेट्रोल का दिन मनाएँगे व तब से आज तक यह कारवाँ बढ़ रहा है व कई हजार लोग महीने में कई दिन साईकिल पर चलते हैं। इसी दौर में 20 स्कूलों सहित कई भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग के प्रयोग हुये। सन 2006 से 2009 के बीच गाजियाबाद नगर निगम से उनकी टीम ने कुछ जेसीबी मशीन लीं व जिले के 22 तालाबों की सफाई कर डाली। बाद में गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के सर्वे में यह स्वीकार किया गया कि तालाबों से गाद निकालने के बाद उन इलाकों का भूजल स्तर अप्रत्याशित रूप से ऊँचा हुआ। हिण्डन नदी की स्वच्छता के लिये कश्यप के आंदोलन, सेमिनार आयोजन व जन जागरूकता अभियान के परिणाम भी अब सामने आने लगे हैं।
‘‘आप एक वकील हैं, गृहस्थ भी हैं और राजनीतिक कार्यकर्ता भी, एक ही दिन में ये तीनों काम कैसे कर पाते हैं?’’ इसके जवाब में कश्यप कहते हैं, ‘‘मैंने पूरे दिन को सेक्टर में बाँट रखा है। सुबह का समय मेरा अपना होता है, ध्यान, पूजा, मनन का। दिन में 10.30 से 3.30 बजे तक कोर्ट। शाम चार से छह परिवार और छह से देर रात तक समाज से जुड़े मुद्दे।’’ वे कहते हैं कि पर्यावरण के लिये कानूनी या प्रशासनिक लड़ाई एक पूरा टीम वर्क है, वे अदालत में नियमों व दस्तावेजों के लिये काम करते हैं तो उनके कुछ साथी लिखा-पढ़ी व फॉलोअप का।
कश्यप इन दिनों हिण्डन में गंदा पानी रोकने, उसे एसटीपी से गुजार कर गंदे पानी का भी वैकल्पिक प्रयोग करने, स्लज को जैविक कृषि के लिये इस्तेमाल करने की योजना पर काम कर रहे हैं। इससे पहले हिण्डन में मूर्ति विसर्जन रोकने की उनकी माँग पर प्रशासन व समाज का रूख सकारात्मक रहा है और अब मूर्तियाँ अलग से अस्थाई तालाबों में विसर्जित की जा रही हैं। कश्यप देश में तालाब संवर्धन प्राधिकरण के गठन तथा खेतों में छोटे निजी तालाबों के खोदने व उनके संरक्षण के लिये सतत काम कर रहे हैं और इसके लिये लोकसभा की संसदीय समिति के समक्ष भी अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत कर चुके हैं।
देश के कोने-कोने में ऐसे ही कई जमीनी कार्यकर्ता बगैर किसी लोभ, लालच के धरती को बचाने के लिये सक्रिय हैं और असल में पर्यावरण संरक्षण का काम सरकारी योजनाओं के वनिस्पत ऐसे ही लोगों की कर्मठता से साकार हो रहा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें