कब कम होगी देश की दस करोड आबादी ?
पंकज चतुर्वेदी
इन दिनों असम व पश्चिम बंगाल दो ऐसे राज्यों में चुनाव हैं जहां की सामाजिक संरचना को अवैध प्रवासी बांग्लादेशियों ने बुरी तरह छिन्न-भिन्न कर दिया है। कुछ राजनीतिक दलों ने इसे अपने एजेंडे में प्राथमिकता से भी रखा है। पिछले साल बांग्लादेष व भारत की कई कालेानियों की अदला बदली के बाद हालांकि उन रास्तों से अवैध घुसपैठ की संभावना क्षीण हुई है, लेकिन असली चुनौती तो इस देा में घुल-मिल गए बगैर बुलाए मेहमानों को पहचानने व उन्हें वापिस करने की है। उनकी भाषा, रहन-सहन और नकली दस्तावेज इस कदर हमारी जमीन से घुलमिल गए हैं कि उन्हें विदेशी सिद्ध करना लगभग नामुमकिन हो चुका है। ये लोग आते तो दीन हीन याचक बन कर हैं, फिर अपने देष को लौटने को राजी नहीं होते हैं । ऐसे लोगो को बाहर खदेड़ने के लिए जब कोई बात हुई, सियासत व वोटों की छीना-झपटी में उलझ कर रह गई । गौरतलब है कि पूर्वोत्तर राज्यों में अषांति के मूल में ये अवैध बांग्लादेषी ही हैं। आज जनसंख्या विस्फोट से देष की व्यवस्था लडखड़ा गई है । मूल नागरिकों के सामने भोजन, निवास, सफाई, रोजगार, षिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव दिनों -दिन गंभीर होता जा रहा है । ऐसे में अवैध बांग्लादेषी कानून को धता बता कर भारतीयों के हक नाजायज तौर पर बांट रहे हैं । ये लोग यहां के बाषिंदों की रोटी तो छीन ही रहे हैं, देष के सामाजिक व आर्थिक समीकरण भी इनके कारण गड़बड़ा रहे हैं ।
पिछले साल मेघालय हाई कोर्ट ने भी स्पश्ट कर दिया है कि सन 1971 के बाद आए सभी बांग्लादेषी अवैध रूप से यहां रह रहे है। अनुमान है कि आज कोई दस करोड़ के करीब बांग्लादेषी हमारे देष में जबरिया रह रहे हैं। 1971 की लड़ाई के समय लगभग 70 लाख बांग्लादेषी(उस समय का पूर्वी पाकिस्तान) इधर आए थे । अलग देष बनने के बाद कुछ लाख लौटे भी । पर उसके बाद भुखमरी, बेरोजगारी के षिकार बांग्लादेषियों का हमारे यहां घुस आना अनवरत जारी रहा । पष्चिम बंगाल, असम, बिहार, त्रिपुरा के सीमावर्ती जिलों की आबादी हर साल बैतहाषा बढ़ रही है । नादिया जिला (प बंगाल) की आबादी 1981 में 29 लाख थी । 1986 में यह 45 लाख, 1995 में 60 लाख और आज 65 लाख को पार कर चुकी है । बिहार में पूर्णिया, किषनगंज, कटिहार, सहरसा आदि जिलों की जनसंख्या में अचानक वृद्धि का कारण वहां बांग्लादेषियों की अचानक आमद ही है ।
अरूणाचल प्रदेष में मुस्लिम आबादी में बढ़ौतरी सालाना 135.01 प्रतिषत है, जबकि यहां की औसत वृद्धि 38.63 है । इसी तरह पष्चिम बंगाल की जनसंख्या बढ़ौतरी की दर औसतन 24 फीसदी के आसपास है, लेकिन मुस्लिम आबादी का विस्तार 37 प्रतिषत से अधिक है । यही हाल मणिपुर व त्रिपुरा का भी है । जाहिर है कि इसका मूल कारण बांग्लादेषियों का निर्बाध रूप से आना, यहां बसना और निवासी होने के कागजात हांसिल करना है । कोलकता में तो अवैध बांग्लादेषी बड़े स्मगलर और बदमाष बन कर व्यवस्था के सामने चुनौति बने हुए हैं ।
राजधानी दिल्ली में सीमापुरी हो या यमुना पुष्ते की कई किलोमीटर में फेैली हुई झुग्गियां, लाखेंा बांग्लादेषी डटे हुए हैं । ये भाशा, खनपान, वेषभूशा के कारण स्थानीय बंगालियों से घुलमिल जाते हैं । इनकी बड़ी संख्या इलाके में गंदगी, बिजली, पानी की चोरी ही नहीं, बल्कि डकैती, चोरी, जासूसी व हथियारों की तस्करी बैखौफ करते हैं । सीमावर्ती नोएडा व गाजियाबाद में भी इनका आतंक है । इन्हें खदेड़ने के कई अभियान चले । कुछ सौ लोग गाहे-बगाहे सीमा से दूसरी ओर ढकेले भी गए । लेकिन बांग्लादेष अपने ही लोगों को अपनाता नहीं है । फिर वे बगैर किसी दिक्कत के कुछ ही दिन बाद यहां लौट आते हैं । जान कर अचरज होगा कि बांग्लादेषी बदमाषों का नेटवर्क इतना सषक्त है कि वे चोरी के माल को हवाला के जरिए उस पार भेज देते हैं । दिल्ली व करीबी नगरों में इनकी आबादी 10 लाख से अधिक हैं । सभी नाजायज बाषिंदों के आका सभी सियासती पार्टियों में हैं । इसी लिए इन्हें खदेड़ने के हर बार के अभियानों की हफ्ते-दो हफ्ते में हवा निकल जाती है ।
सरकारी आंकड़ा है कि सन 2000 से 2009 के बीच कोई एक करोड़ 29 लाख बांग्लादेषी बाकायदा पासपोर्ट-वीजा ले कर भारत आए व वापिस नहीं गए। असम तो अवैध बांग्लादेषियों की पसंदीदा जगह है। सन 1985 से अभी तक महज 3000 अवैध आप्रवासियों को ही वापिस भेजा जा सका है। राज्य की अदालतों में अवैध निवासियों की पहचान और उन्हें वापिस भेजने के कोई 40 हजार मामले लंबित हैं। अवैध रूप से घुसने व रहने वाले स्थानीय लोगों में षादी करके यहां अपना समाज बना-बढ़ा रहे हैं।
दिनों -दिन गंभीर हो रही इस समस्या से निबटने के लिए सरकार तत्काल ही कोई अलग से महकमा बना ले तो बेहतर होगा, जिसमें प्रषासन, पुलिस के अलावा मानवाधिकार व स्वयंसेवी संस्थाओं के लेाग भी हों ं। साथ ही सीमा को चोरी -छिपे पार करने के रैक्ेट को तोड़ना होगा । वैसे तो हमारी सीमाएं बहुत बड़ी हैं, लेकिन यह अब किसी से छिपा नहीं हैं कि बांग्लादेष व पाकिस्तान सीमा पर मानव तस्करी का बाकायदा धंधा चल रहा है, जो कि सरकारी कारिंदों की मिलीभगत के बगैर संभव ही नहीं हैं ।
यहां बसे विदेषियों की पहचान और फिर उन्हें वापिस भेजना एक जटिल प्रक्रिया है । बांग्ला देष अपने लोगों की वापिसी सहजता से नहीं करेगा । इस मामले में सियासती पार्टियों का संयम भी महति है । यदि सरकार में बैठे लोग ईमानदारी से इस दिषा में पहल करते है तो एक झटके में देष की आबदी को कम कर यहां के संसाधनों, श्रम और संस्कारों पर अपने देष के लोगों का हिस्सा बढाया जा सकता है।
पंकज चतुर्वेदी
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