बर्बादी नहीं रुकी तो रुला सकता है पानीबीती बरसात में अल्प वर्षा से आहत देश के कोई 360 जिलों में अभी से पानी की मारामारी शुरू हो गई है.दुनिया के 1.4 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल पा रहा है. हम यह भूल जाते हैं कि प्रकृति जीवनदायी संपदा यानी पानी हमें एक चक्र के रूप में प्रदान करती है और इस चक्र को गतिमान रखना हमारी जिम्मेदारी है. इस चक्र के थमने का अर्थ है हमारी जिंदगी का थम जाना. प्रकृति के खजाने से हम जितना पानी लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना होता है. पानी के बारे में एक नहीं, कई चौंकाने वाले तथ्य हैं जिसे जानकर लगेगा कि सचमुच अब हममें थोड.ा सा भी पानी नहीं बचा है. कुछ तथ्य इस प्रकार हैं- मुंबई में रोज गाड.ियां धोने में ही 50 लाख लीटर पानी खर्च हो जाता है. दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे महानगरों में पाइपलाइनों के वॉल्व की खराबी के कारण 17 से 44 प्रतिशत पानी प्रतिदिन बेकार बह जाता है. भारत में हर वर्ष बाढ. के कारण हजारों मौतें व अरबों का नुकसान होता है. इजराइल में औसत बारिश 10 सेंटीमीटर है, इसके बावजूद वह इतना अनाज पैदा कर लेता है कि वह उसका निर्यात करता है. भारत में औसतन 50 सेंटीमीटर से भी अधिक वर्षा होने के बावजूद सिंचाई के लिए जरूरी जल की कमी बनी रहती है. पिछले 60 वर्षों में भारत में पानी के लिए कई भीषण संघर्ष हुए हैं, कभी दो राज्य नदी के जल बंटवारे पर भिड. गए तो कहीं सार्वजनिक नल पर पानी भरने को ले कर हत्या हो गई. खेतों में नहर से पानी देने को हुए विवादों में तो कई पुश्तैनी दुश्मनियों की नींव रखी हुई हैं. यह भी कड.वा सच है कि हमारे देश में औरतें पीने के पानी की जुगाड. के लिए हर रोज ही औसतन चार मील पैदल चलती हैं. पानीजन्य रोगों से विश्व में हर वर्ष 22 लाख लोगों की मौत हो जाती है. पूरी पृथ्वी पर एक अरब 40 घन किलोलीटर पानी है. इसमें से 97.5 प्रतिशत पानी समुद्र में है जोकि खारा है, शेष 1.5 प्रतिशत पानी बर्फ के रूप में ध्रुवीय प्रदेशों में है. बचा एक प्रतिशत पानी नदी, सरोवर, कुआं, झरना और झीलों में है जो पीने के लायक है. इस एक प्रतिशत पानी का 60वां हिस्सा खेती और उद्योगों में खपत होता है. बाकी का 40वां हिस्सा हम पीने, भोजन बनाने, नहाने, कपडे. धोने एवं साफ-सफाई में खर्च करते हैं. यदि ब्रश करते समय नल खुला रह गया है तो पांच मिनट में करीब 25 से 30 लीटर पानी बर्बाद होता है. बाथ टब में नहाते समय धनिक वर्ग 300 से 500 लीटर पानी गटर में बहा देते हैं. मध्यम वर्ग भी इस मामले में पीछे नहीं हैं जो नहाते समय 100 से 150 पानी लीटर बर्बाद कर देता है. हमारे समाज में पानी बर्बाद करने की राजसी प्रवृत्ति है जिस पर अभी तक अंकुश लगाने की कोई कोशिश नहीं हुई है. हकीकत में जबसे देश आजाद हुआ है तब से आज तक इस दिशा में कोई भी काम गंभीरता से नहीं हुआ है. विश्व में प्रति 10 व्यक्तियों में से 2 व्यक्तियों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल पाता है. ऐसे में प्रति वर्ष 6 अरब लीटर बोतलबंद पानी मनुष्य द्वारा पीने के लिए प्रयुक्त किया जाता है. पानी का स्रोत कही जाने वाली नदियों में बढ.ते प्रदूषण को रोकने के लिए विशेषज्ञ उपाय खोजने में लगे हुए हैं, किंतु जब तक कानून में सख्ती नहीं बरती जाएगी तब तक अधिक से अधिक लोगाों को दूषित पानी पीने को विवश होना पड. सकता है. यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया तो संभव है पानी केवल हमारी आंखों में ही बच पाए. हमारा देश वह है जिसकी गोदी में हजारों नदियां खेलती थीं, आज वे नदियां हजारों में से केवल सैकड.ों में रह गई हैं. आखिर कहां गई ये नदियां कोई नहीं बता सकता. नदियों की बात छोडे.ं, हमारे गांव-मोहल्लों तक से तालाब गायब होते जा रहे हैं. ल्ल■ भारत में औसतन 50 सेंटीमीटर से भी अधिक वर्षा होने के बावजूद सिंचाई के लिए जरूरी जल की कमी बनी रहती है. ती बरसात में अल्प वर्षा से आहत देश के कोई 360 जिलों में अभी से पानी की मारामारी शुरू हो गई है.दुनिया के 1.4 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल पा रहा है. हम यह भूल जाते हैं कि प्रकृति जीवनदायी संपदा यानी पानी हमें एक चक्र के रूप में प्रदान करती है और इस चक्र को गतिमान रखना हमारी जिम्मेदारी है. इस चक्र के थमने का अर्थ है हमारी जिंदगी का थम जाना. प्रकृति के खजाने से हम जितना पानी लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना होता है. पानी के बारे में एक नहीं, कई चौंकाने वाले तथ्य हैं जिसे जानकर लगेगा कि सचमुच अब हममें थोड.ा सा भी पानी नहीं बचा है. कुछ तथ्य इस प्रकार हैं- मुंबई में रोज गाड.ियां धोने में ही 50 लाख लीटर पानी खर्च हो जाता है. दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे महानगरों में पाइपलाइनों के वॉल्व की खराबी के कारण 17 से 44 प्रतिशत पानी प्रतिदिन बेकार बह जाता है. भारत में हर वर्ष बाढ. के कारण हजारों मौतें व अरबों का नुकसान होता है. इजराइल में औसत बारिश 10 सेंटीमीटर है, इसके बावजूद वह इतना अनाज पैदा कर लेता है कि वह उसका निर्यात करता है. भारत में औसतन 50 सेंटीमीटर से भी अधिक वर्षा होने के बावजूद सिंचाई के लिए जरूरी जल की कमी बनी रहती है. | ||
My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्ठ ब्लाॅग के पुरस्कार से सम्मानित
गुरुवार, 17 मार्च 2016
save the water
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