आसमानी हमलों का बेताज बादशाह भारत
पंकज चतुर्वेदीभारत दुनिया का ऐसा पहला देश बन गया है जिसकी वायु सेना के लड़ाकू विमान सुपर सोनिक क्रूज मिसाईल से लैस हांेंगे। भारत ने यह परियोजना सन 2009 में षुरू की थी और दिनांक 26 जून 2016, रविवार को नासकि की वायुसेना हवाई पट्टी पर से उड़ै विमान में इसका सफल परीक्षणस किया गया। हालांकि अभी तक चलते विमान से मिसाईल चलाने का प्रयोग नहीं किया गया, लेकिन जल्द ही यह भी संभव होगा। सन 2014 में हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड ने दो सुखोई जेट में ब्रहमोस मिसाईल लगाने का काम षुरू किया था। उल्ल्ेखनीय है कि यह विमान और मिसाईल देानेा ही रूस की मदद से भारत में ही निर्मित की गई हैं।
सुखाई एसयू-30 एसएम चौथी पीढ़ी का दो सीटों वाला लड़ाकू विमान है। यह लड़ाकू विमान 16,300 मीटर की ऊँचाई पर अधिकतम 3,000 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है। यह विमान लगभग 2500 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकता है। इस जहाज में अलग-अलग किस्म के बम तथा मिसाइल ले जाने के लिये 12 स्थान बनाए गए है। इसके अतिरिक्त इसमे एक 30 मिमि की तोप भी लगी है। यह हवा र्में इंधन भर सकता है। तीन हजार किमी दूरी तक जा कर हमला करने की क्षमता वाला यह बहु-उपयोगी लड़ाकू विमान रूस के सैन्य विमान निर्माता सुखोई तथा भारत के हिन्दुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड के सहयोग से बना है। इस के नाम में स्थित एम के आई का अर्थ मॉडर्नि रोबान्बि कॉमर्स्कि इंडिकि यानि आधुनिक व्यावसायिक भारतीय (विमान)। यह विमान ने सन 1997 में पहली उड़ान भरी थी। सन 2002 मे इसे भारतीय वायुसेना मे सम्मिलित कर लिया गया। सन 2004 से इनका निर्माण भारत मे ही हिन्दुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है। सन 2009 के अक्तूबर से ऐसे 105 जहाजों को भारत की वायु सेना में हैं।
ब्रह्मोस मिसाईल डीआरडीओ, भारत द्वारा रूस के सहयोग से विकसित अब तक की सबसे आधुनिक प्रक्षेपास्त्र प्रणाली है । ब्रह्मोस मिसाइल का पहला उड़ान परीक्षण एकीकृत परीक्षण क्षेत्र से 12 जून, 2001 को किया गया था और इसी स्थान से 5 सितंबर, 2010 को अंतिम सफल परीक्षण किया गया। इस मिसाइल की मारक क्षमता 290 किलोमीटर है और यह 300 किलोग्राम विस्फोटक सामग्री अपने साथ ले जा सकता है। मिसाइल की गति ध्वनि की गति से करीब तीन गुना अधिक है। यह परमाणु बम ले जाने में भी सक्षम है। यह इतनी सटीक है कि ज़मीनी लक्ष्य को दस मीटर की उँचाई तक से प्रभावी ढंग से निशाना बना सकती है। तभी इसके राडार से पकड़ना असंभव होता है। ब्रह्मोस मिसाइल को पनडुब्बी, जहाज, विमान और ज़मीन स्थित मोबाइल ऑटोनॉमस लांचर से दागा जा सकता है । भारतीय सेना में 290 किलोमीटर के दायरे वाली ब्रह्मोस-1 की एक रेजीमेंट पहले से ही संचालित है जिसमें 67 मिसाइलें, 12 गुणा 12 के तत्र वाहनों पर पाँच मोबाइल ऑटोनामस लांचर और दो चलित कमान चौकियों के अलावा कुछ अन्य उपकरण शामिल हैं। भारतीय नौसेना ने 2005 से अग्रिम मोर्चे के अपने सभी जंगी जहाजों पर ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली के पहले संस्करण की तैनाती शुरू कर दी थी। और अब इसे वायु सेना में भी स्थान मिल गया है।
ऐसे दो बेमिसाल हथियार, वह भ्ी भारत में विकसित हुए का इस तरह से सम्मिलन भारत की रक्षा पंक्ति को तो मजूबत करता ही है, देश के हथियारों की दुनिया के दूसरे देशेां में निर्यात की संभावनाएं भी प्रबल करता है। ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड (बीएपीएल) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं प्रबंध निदेशक सुधीर कुमार मिश्र ने कहा कि विश्व में ऐसा पहली बार हुआ, जब किसी लड़ाकु विमान पर इतनी भारी (2500 किलोग्राम) सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल लगाई गई। एचएएल की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया कि विमान 45 मिनट तक हवा में रहा। इस विमान को विंग कमांडर प्रशांत नायर और विंग कमांडर एमएस राजू ने उड़ाया। दोनों एयरक्राफ्ट एंड सिस्टम टेस्टिंग इस्टेब्लिशमेंट के परीक्षण उड़ान चालक दल के सदस्य थे। इस सफल प्रयोग के बाद करीब 40 सुखोई 30 एमकेआई विमानों में यह प्रणाली लगाई जाएगी।
हाल ही में एनएसजी में भारत के प्रवेश के चीनी विरेाध के पीछे एक बड़ा कारण ब्रहमोस मिसाईल व इस मिसाईल के सुखोई से छोड़ने के भारतीय प्रयोग भी है। असल में भारत की देशी ब्रहमोस मिसाईल तकनीकी दुनिया के कई देशेां को लुभा रही है और सुखोई के साथ इसके सफल प्रयोग से इसकी मांग और बढ़नी है। दक्षिणी चीन सागर में भारत के मित्र और चीन के धुर विरोधी वियतनाम को ब्रहमोस बेचे जाने का अंतिम निर्ण इसी साल अप्रैल में हो गया था। दक्षिणी चीन सागर के देश वियतनाम के रक्षा और कूटनीतिक संबंध भारत और रूस दोनों से ही अच्छे रहे हैं और भारतीय कंपनी ओएनजीसी को दक्षिणी चीन सागर में तेल खोज की अनुमति दिए जाने के चलते वियतनाम चीन की आंखों की किरकिरी बना हुआ है। अब वियतनाम को भारत द्वारा इस अत्यंत घातक मिसाईल के बेचे जाने के कदम को चीन के इस क्षेत्र में बढते दबदबे के चलते एक रणनीतिक साझेदारी के रूप में देखा जा रहा है। संभावना है कि इस साल के ंअत तक दोनों देशों के बीच इस पर औपचारिक करार भी हो जाएगा। वियतनामी नौसना में पहले से मौजूद रूस निर्मित युद्धपोतों और पनडुब्बीयों पर इन मिसाईलों को लगाया जाएगा।
यह उपलब्धि भारत के अंतरराश्ट्रीय व्यापार के नए मार्ग खोल रही है, साथ ही एशिया में चीन के बढ़ते दबदबे को चुनौती भी दे रही है। यह प्रयोग दुनिया के सामरिक संतुलन की दिशा में भारत के दखल का महत्वपूर्ण व निर्णायक कदम है।
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