दलाल अब तालाब भी नहीं छोड रहे हैं
बुंदेलखंड के उप्र के महोबा जिले की रिवई पंचायत के तीन गांव हैं पास पास ही, वहां खेतों में तालाब बनाने की योजना के तहत 26 तालाब बन गए जिसमें किसानों को उनके खाते में सीधे 52 हजार पांच सौ का भुगतान हुआ.बहरहाल यह अलब बहस है कि क्या केवल चौरस खोदा गया गढडा तालाब कहलाएगा या नहीं . जिसमें मवेशी या इंसान नीचे तक नहीं उतर सकता. लेकिन यहां चार पुराने तालाब भी हैं जो लगभग समाप्त हो रहे हैं, एक में गांव की गंदी नालियां जा रही हैं, तालाब प्रेमी बन कर उभरे कतिपय समाजसेवियों को उनकी चिंता नहीं रही. इसमें कारपोरेट भी घुस आयाा. नोएडा का एक समूह है धरमपाल सत्यपाल = रजनीगंधा के नाम से उत्पाद हैं उनके. उनका भी इलाके में कारपोरेट सोशल रिस्पोंसेबिलीटी के तहत प्रोजेक्ट है. सुनेचा गांव के बाहर एक पुराना तालाब है भगवत सागर, शायद चार सौ साल पुराना मालगुजारी तालाब, लगभग 22 बीघे का होगा. इसमें पानी अाने के पारंपरिक हिस्से को घेर कर खेत बना लिया गया. पुलिया में पत्थर फंसा दिए गए, लेकिन जैसे ही खबर मिली कि दिल्ली से कुछ पत्रकार आ रहे हैं तो चार दिन जेसीबी व पोकलैंड मशीन लगा कर उसकी बेतरतीब खुदाई करवा दी गई. कहीं एक फुट गहरा तो कहीं पांच फुट, कहीं बिल्कुल नहीं. फिर काम बंद कर दिया गया. कोई सामान्य नजर से भी देखेगा तो पता चल जाएगा कि पुराने बुंदेली मालगुजारी तालाब के बडे हिस्से पर लेाग कब्जा कर चुके हैं और यह पूरी तरह खाली पडा है. इसमें खुदाई के नाम पर दखिावा भी हुआ, लेकिन इसमें पानी कभी नहीं भरेगा. यह है तालाब बाजों के कारनामे जाे अब कारपोरेटों को सामाजिक जिम्मेदारी के नाम पर तालाबों के साथ इस तरह की छेडछाड करने के लिए आमंति्रत कर रहे हैं और दो हजार गडढे खुदवाने का काम तो चल ही रहा है. जरा इन चित्रो में देखें, तालाब का जो हिस्सा उंचा हैं वहां मिट्रटी खोदक र डाल दी और जहां से निकासी होना चाहिए उसे खुला छोड दिया गया. गांव के पास स्थित मंगल तालाब जिसका रकवा आठ हेक्टेयर से अधिक है मोती तालाब का रकवा पांच हेक्टेयर से अधिक है तथा हनुमान तलैया का रकवा भी चार हेक्टेयर के आसपास है। फिर भी इन तालाओं के गहरीकरण कराये जाने की शासन प्रशासन सुध नही ले रहा है।ऐसे ही दलाल आज फोन कर गाली दे रहे हैा मुझे,धमकी दे रहे है, मैं सन 1986 से बुंदेलखंड के तालबों पर लखि रहा हूं और दलाल मुझे घटिया लेखक कह रहे हैं जिन्होंने इस इलाके को अभी दो साल पहले ही देखा होगा. यह उनकी खीज है, आगे भी और ऐसे ही खुलासे करूंगा.यहां भी और अन्य माध्यमों पर भी.
यहां कर्जा दिलवाने, मशीने किराये पर लाने, कारपोरेट के अधूरे कामों को वाह वाही दिलवाने के बाकायदा दलाल सक्रिय हैं जिनके चैहरे जल्द ही बेनकाब होंगे
बुंदेलखंड के उप्र के महोबा जिले की रिवई पंचायत के तीन गांव हैं पास पास ही, वहां खेतों में तालाब बनाने की योजना के तहत 26 तालाब बन गए जिसमें किसानों को उनके खाते में सीधे 52 हजार पांच सौ का भुगतान हुआ.बहरहाल यह अलब बहस है कि क्या केवल चौरस खोदा गया गढडा तालाब कहलाएगा या नहीं . जिसमें मवेशी या इंसान नीचे तक नहीं उतर सकता. लेकिन यहां चार पुराने तालाब भी हैं जो लगभग समाप्त हो रहे हैं, एक में गांव की गंदी नालियां जा रही हैं, तालाब प्रेमी बन कर उभरे कतिपय समाजसेवियों को उनकी चिंता नहीं रही. इसमें कारपोरेट भी घुस आयाा. नोएडा का एक समूह है धरमपाल सत्यपाल = रजनीगंधा के नाम से उत्पाद हैं उनके. उनका भी इलाके में कारपोरेट सोशल रिस्पोंसेबिलीटी के तहत प्रोजेक्ट है. सुनेचा गांव के बाहर एक पुराना तालाब है भगवत सागर, शायद चार सौ साल पुराना मालगुजारी तालाब, लगभग 22 बीघे का होगा. इसमें पानी अाने के पारंपरिक हिस्से को घेर कर खेत बना लिया गया. पुलिया में पत्थर फंसा दिए गए, लेकिन जैसे ही खबर मिली कि दिल्ली से कुछ पत्रकार आ रहे हैं तो चार दिन जेसीबी व पोकलैंड मशीन लगा कर उसकी बेतरतीब खुदाई करवा दी गई. कहीं एक फुट गहरा तो कहीं पांच फुट, कहीं बिल्कुल नहीं. फिर काम बंद कर दिया गया. कोई सामान्य नजर से भी देखेगा तो पता चल जाएगा कि पुराने बुंदेली मालगुजारी तालाब के बडे हिस्से पर लेाग कब्जा कर चुके हैं और यह पूरी तरह खाली पडा है. इसमें खुदाई के नाम पर दखिावा भी हुआ, लेकिन इसमें पानी कभी नहीं भरेगा. यह है तालाब बाजों के कारनामे जाे अब कारपोरेटों को सामाजिक जिम्मेदारी के नाम पर तालाबों के साथ इस तरह की छेडछाड करने के लिए आमंति्रत कर रहे हैं और दो हजार गडढे खुदवाने का काम तो चल ही रहा है. जरा इन चित्रो में देखें, तालाब का जो हिस्सा उंचा हैं वहां मिट्रटी खोदक र डाल दी और जहां से निकासी होना चाहिए उसे खुला छोड दिया गया. गांव के पास स्थित मंगल तालाब जिसका रकवा आठ हेक्टेयर से अधिक है मोती तालाब का रकवा पांच हेक्टेयर से अधिक है तथा हनुमान तलैया का रकवा भी चार हेक्टेयर के आसपास है। फिर भी इन तालाओं के गहरीकरण कराये जाने की शासन प्रशासन सुध नही ले रहा है।ऐसे ही दलाल आज फोन कर गाली दे रहे हैा मुझे,धमकी दे रहे है, मैं सन 1986 से बुंदेलखंड के तालबों पर लखि रहा हूं और दलाल मुझे घटिया लेखक कह रहे हैं जिन्होंने इस इलाके को अभी दो साल पहले ही देखा होगा. यह उनकी खीज है, आगे भी और ऐसे ही खुलासे करूंगा.यहां भी और अन्य माध्यमों पर भी.
यहां कर्जा दिलवाने, मशीने किराये पर लाने, कारपोरेट के अधूरे कामों को वाह वाही दिलवाने के बाकायदा दलाल सक्रिय हैं जिनके चैहरे जल्द ही बेनकाब होंगे
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