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सोमवार, 11 जुलाई 2016

The ignorance of traditinal tanks flooded Bhopal

दरिया में बदल गया एक स्मार्ट सिटी

चौबीस घंटे में ही 23 सेंटीमीटर वर्षा हुई और एक स्मार्ट सिटी दरिया में तब्दील हो गया। बेशक भोपाल में हुई यह बारिश सामान्य नहीं थी, लेकिन भोपाल का जो हाल हुआ, वह भी उम्मीदों के परे था। इस बारिश से हुए नुकसान का आकलन अभी जारी है।
इतनी बारिश में शायद देश के किसी बड़े शहर का यही हाल होता, पर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का यह हाल हैरत में इसलिए डालता है कि इस शहर के जल प्रबंधन को कभी स्विट्जरलैंड की तरह माना जाता था। पर एक ही घनी बारिश ने बता दिया कि किसी शहर की पारंपरिक जल व्यवस्था से छेड़छाड़ हमें किस संकट की ओर ले जा सकती है। यह उन तमाम शहरों के लिए चेतावनी भी है, जो अपनी कई परंपरागत व्यवस्थाओं को भूलकर स्मार्ट बनने की होड़ में शामिल हो गए हैं।
यह सच है कि भोपाल का जिस तरह से विस्तार हुआ, उसकी तुलना में वहां मूलभूत ढांचे का विकास नहीं हुआ। शहर में 723 नाले हैं, लेकिन उनमें से 80 प्रतिशत पर अवैध कब्जे हैं, सो उनकी कभी सफाई हो नहीं पाती। वहां हर रोज साढे़ सात सौ मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है, मगर नगर निगम की क्षमता महज ढाई सौ मीट्रिक टन कचरा उठाने की है। ऐसे में, कूड़ा बरसों से जमा हो रहा था और पानी का जोर पाकर यह अधमरे सीवरों में फंस गया। सनद रहे कि भोपाल की बसावट पहाड़ों के बीच है और इसी के बीच झीलों की प्राकृतिक संरचना है।
चाहे जितनी भी बदरी बरसे, पूरा पानी तालाबों की गोद में ही गिरेगा। पर आज लोग यह भी भूल चुके हैं कि भोपाल की विशाल ताजुल मस्जिद के पीछे तीन तालाबों की ऐसी शृंखला थी, जो इस शहर की बारिश के पानी का प्रबंधन करती थी। बड़े और छोटे तालाब तो थे ही, मोतिया तालाब, नवाब सिद्दीकी तालाब व मुंशी हुसैन तालाब- ये तीनों एक नहर से जुड़े हुए थे। ईदगाह हिल्स इलाके का बरसाती पानी सबसे पहले मोतिया तालाब में आता, फिर उससे अगले और फिर अगले तालाब में। जब तीनों तालाब भर जाते थे, तो एक और नहर थी मुंशी तालाब में, जो गुरुबख्श तलैया में गिरती थी। आज मोतिया तालाब तो गंदे पानी के निस्तार के कारण नाबदान बन गया है।
नवाब सिद्दीकी तालाब के 60 फीसदी हिस्से पर तो लोगों ने मिट्टी भरकर कॉलोनी बना ली। तीसरे तालाब में अब महज कीचड़ रह गया है। अब यह मान लिया गया है कि इन्हें जिलाना नामुमकिन है। फिर तालाब से ज्यादा महत्वपूर्ण उस पर बने निर्माण हैं। यही सोच शहर की बाकी जल व्यवस्था को लेकर भी है।
अब भी समय है, भोपाल को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए नक्शे तैयार करने वाले सबसे पहले यहां की पारंपरिक जल संरचनाओं के जल-आवक मार्ग और अतिरिक्त जल की निकासी के पारंपरिक सलीके को समझें, उनके अतिक्रमण हटाए जाएं। यह हो सका, तो भोपाल में अगर इससे दोगुने बादल भी बरसें, तब भी यह शहर दरिया नहीं बनेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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