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रविवार, 10 जुलाई 2016

Bundelkhand : flood in drought area

सूखे से बिलखते बुंदेलखंड में बरसात की तबाही 

                                                                                                                                            पंकज चतुर्वेदी

Raj express 11-7-16
जहां अभी कल तक सूखे का दर्द था, आज बरसात कहर बन गई है। जिसने खेत जोते व बोये, उसे बीज नश्ट होने का डर सता रहा है। याद हो कि मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश के लगभग 14 जिलों में फैले बंुदेलखंड के सैंकडों गांव बीते आठ महीने से पानी की कमी के चलते वीरान हो गए थे । लेकिन इस बार आशाढ़ के पहले ही पक्ष में दो दिन  ऐसा पानी बरसा कि बाढ़ के हालात बन गए। जो प्रशासन अभी तक सूखा राहत की गणित लगा रहा था, अब नाव, रस्सी व बाढ़ की जुगत में लग गया है। बारिश से उपजी तबाही में प्रकृति का असामयिक तेवर तो है ही इंसान ने आफत को खुद बुलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उल्लेखनीय है कि बुंदेलखंड में इस समय बरसात से तबाही वाले इलाके में बड़ा हिस्सा केन या उसकी सहाक नदियें के किनारों का है। आमतौर पर षांत कही जाने वाली छोटी सी नदी केन अचानक  क्यों  उफन गई ? वास्तव में यह इस नदी के जल ग्रहण क्षेत्र के पर्यावरण के साथ किए जा रहे छेड़छाड़ का नतीजा है ।
केन बांदा में खतरे के निशान से ऊपर 105.25 मीटर पर बह रही है। पन्ना जिले में कई गांव इसकी चपेट में आ कर पूरी तरह बर्बाद हो गए हैं। केन नदी जबलपुर के मुवार गांव से निकलती है । पन्ना की तरफ 40 किमी आ कर यह कैमूर पर्वतमालाओं के ढलान पर उत्तर दिशा में आती है । तिगरा के पास इसमें सोनार नदी मिलती है । पन्ना जिले के अमानगंज से 17 किमी दूर पंडवा नामक स्थान पर छह नदियों - मिठासन, बंधने, फलने, ब्यारमा आदि का मिलन केन में होता है और यहीं से केन का विस्तार हो जाता है ।यहां से नदी छतरपुर जिले की पूर्वी सीमा को छूती हुई बहती है । आगे चल कर नदी का उत्तर बहाव विध्य पर्वत श्रंखलाओं के बीच संकुचित मार्ग में होता है । इस दौरान यह नदी 40 से 50 मीटर ऊंचाई के कई जल प्रपात निर्मित करती है । पलकोहां(छतरपुर) के करीब इसमें सामरी नामक नाला मिलता है । कुछ आगे चल कर नोनापंाजी के पास गंगउ तालाब है । इस पर एक बांध बना हुआ है । यहां से नदी उतार पर होती है । सो इसका बहाव भी तेज होता है । एक अन्य बांध बरियारपुर पर है ।
छतरपुर जिले की गौरीहार तहसील को छूती हुई यह नदी बांदा(उ.प्र.) जिले में प्रवेश करती है । रास्ते में इसमें बन्ने, कुटनी, कुसियार, लुहारी आदि इसकी सहायक नदियां हैं । बांदा जिले में इसके बाएं तट पर चंद्रावल नदी और दाएं तट पर मिरासन नाला आ जुड़ता है । कोई 30 हजार वर्ग किमी जल-ग्रहण क्षमता वाली इस नदी को 1906 में सबसे पहले बंाधा गया । खजुराहो से कुछ ही किलोमीटर दूरी पर स्थित ,सन 1915 में बना गंगउ बांध इतना जर्जर हो चुका है कि किसी भी समय उसमें जमा अथाह जल-निधि दीवारें तोड़ कर बाहर आ सकती हैं। सनद रहे कि मध्यप्रदेश के छतरपुर की सीमा में पांच ऐसे बांध है जिनका मालिकाना हक उ.प्र. का है। लिहाजा इनमें जमा पानी तो उ.प्र. लेता है, लेकिन इनसे उपजे संकटों जैसे - सीलन, दलदल, बाढ़ आदि को म.प्र. झेलता है।
म.प्र. में केन और सिमरी नदी के मिलन स्थल पर बना गंगउ बांध गत कई सालों से बेकार घोशित हो चुका है। ऐसा नहीं है कि गंगउ की जर्जर हालत के बारे में उ.प्र. सरकार को जानकारी नहीं है। इस बांध की मुख्य वियर की निरीक्षण गैलेरी, चैनल गेट की रैलिंग और पुल नंबर चार की कोई 100 मीटर दीवार सन 2003 में ही खराब हो गई थी। चूंकि बांध के मुख्य हिस्से संरक्षित वन क्षेत्र‘ पन्ना राश्ट्रीय वन’ में आते हैं , सो सुप्रीम कोर्ट से इसकी मरम्म्त की अनुमति ली गई थी। कहा जाता है कि राज्य सरकार के पास बजट की कमी थी और मरम्मत का काम कामचलाउ किया गया। बीते चार सालों में कम बारिश के कारण यह बांध भरा ही नहीं सो इसके टूटे-फूटे हिस्सों पर किसी का ध्यान गया नहीं।
बगैर सोचे समझे नदी-नालों पर बंधान बनाने के कुप्रभावों का ताजातरीन उदाहरण मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में बहने वाली छोटी नदी ‘‘केन’’ है । बुंदेलखंड सदैव से वाढ़ सुरक्षित माना जाता रहा है । गत डेढ दशक से केन अप्रत्याशित ढंग से उफन रही है, और पन्ना, छतरपुर और बांदा जिले में जबरदस्त नुकसान कर रही है । केन के अचानक रौद्र हो जाने के कारणों को खोजा तो पता चला कि यह सब तो छोटे-बड़े बांधों की कारिस्तानी है । सनद रहे केन नदी, बांदा  जिले में चिल्ला घाट के पास यमुना में मिलती है । जब अधिक बारिश होती है, या किन्हीं कारणों से यमुना में जल आवक बढ़ती है तफ इसके बांधों के कारण इसका जल स्तर कुछ अधिक ही बढ़ जाता है । उधर केन और उसके सहायक नालों पर हर साल सैकड़ों ‘‘स्टाप-डेम’’ बनाए जा रहे हैं, जो इतने घटिया हैं कि थोड़ा ही जल संग्रहण होने पर टूट जाते है । केन में बारिश का पानी बढ़ता है, फिर ‘‘स्टाप-डेमों’’ के टूटने का जल-दबाव बढ़ता है । पन्ना जिले में इटवांखास गांव के पास निर्माणाधीन सिरस्वाहा बांध और बिलखुर बांध पहली ही बरसात में कच्ची मिट्टी के घंरोदों की तरह ढह गए हैं। फिर इस बर बरसात का जल रोकने के नाम पर गांव-गांव में खूब चैक डेब बना दिए गए, ना तो उसकी िडजाईन का ध्यान रखा गया और ना ही गुणवत्ता का। जो पहली बरसात हुई, ये संरचनांए बह गई व इससे नदियों में पानी का वेग तेज हो गया। बेतरतीब रेत निकालने और पत्थर निकाल कर स्टोन क्रशर में डालने, नदियों केजल ग्रहण क्षेत्र में वनस्पति कम होने और नंग ेपहाउ़ो ंसे जम कर मिट्टी बहने के चलते इलाके की नदियां पहले ही उथली हो गई हैं। ऐसे में वेग से आया पानी तबाही ही मचाताएगा।
यह भी तथ्य है कि साथ ही केन की राह पर स्थित पुराने ‘‘ओवर-एज’’ हो गए बांधों में भी टूट-फूट होती है । यानी केन क्षमता से अधिक पानी ले कर यमुना की और लपलपाती है । वहां का जल स्तर इतना उंचा होता है कि केन के प्राकृतिक मिलन स्थल का स्तर नीचे रह जाता है । रौद्र यमुना, केन की जलनिधि को पीछे ढकेलती है । इसी कशमकश में नदियों की सीमाएं बढ़ कर गांवों-सड़कों -खेतों तक पहुंच जाती हैं । इन दिनों  बांदा के भूरा गढ में केन का जल स्तर 108.20 मीटर पर है और इसके बेक-स्ट्रोक का ही प्रभाव है कि बांदा से पन्ना तक इसके व इसकी सहायक नदियों - मिढासन, ब्यारमा, पतने, गलका आदि के किनारे बसे खेत-गांव पानी-पानी हो गए हैं।
अचानक हुई तेज बरसात ने कई सउ़के बहा दीं, खेतांे ंमे ंपानी भरने से वहां बोया गया बीज मरने की संभावना है। यानि राहत की बरसात दुख का कारक बन गई। ऐसे हालातों से निबटने के लिए इलाके के पारंपरिक तालबों को गहरा कर उनके जल ग्रहण क्षेत्र को कब्जों से मुक्त करना, केन व उसकी सहायाक नदियों की गहराई पर ध्यान देना, मुख्य नदी को तालाबों से जोडना आदि ऐसे उपाय है जो कि बुंदेलखंड को प्राकृतिक आपदाओं की देहररी मार से बचा सकते हैं।



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