व्यापारिक ढाह की बानगी है स्कॉर्पीन पनडुब्बी लीक
पंकज चतुर्वेदीभारत की सीमाएं बर्फीले पहाड़, दुर्गम घाटियों, मरूस्थल, गहरे समुद्र और ढेर सरे दुश्मनों से घिरी हुई हैं। हमारे जांबाज सैनिकों के बदौलत उसकी निगहबानी उतना कठिन काम नहीं है जितना कि प्रतिरक्षा के लिए अनिवार्य आयुध सामानों की खरीद। आजादी के बाद से हमारे रक्षा सौदे विवादों में रहे। इससे उछले छींटों से प्रधानमंत्री की कुर्सी भी नहंी बच पाई। गत एक दशक के दौरान तो रक्षा सौदे इतने बदनाम व संवेदनशील हो गए कि अफसर इसमें हाथ उालने से ही बचते रहे। हालांकि विदेशी कंपनियों के सहयोग से पहले ब्रहमोस और उसके बाद स्कॉर्पीन पनडुब्बी का भारत में ही उत्पादन ऐसे प्रयाग रहे हैं जिसके चलते रक्षा उपकरणेां की खरीद में लिप्त महकमों में भरोसा जाग्रत हुआ। इसी बीच आस्ट्रेलिया के एक अखबार ‘‘ द आस्ट्रेलियन’’ ने भारतीय नौसेना और फ्रांसीसी कंपनी डीसीएनएस के बीच हुए स्कॉर्पीन पनडुब्बी समझौते की जानकारियांे के कोई बाईस हजार पन्ने सार्वजनिक कर दिए। इन दस्तावेजों में कई बेहद संवेदनशील और गोपनीय मसले हैं जो पनडुब्बी की मारक क्षमता और कई तकनीकी खूबियों पर प्रकाश डालते हैं। इसमें काई षक नहीं कि इस खुलासे से भारत की समुद्री प्रतिरक्षा की येाजना, फ्रांसिसी कंपनी की विश्वसनीयता पर अमिट धब्बा लगा है, लेकिन असल खेल तो आस्ट्रेलिया में खेला गया है और उसका असल उद्देश्य आस्ट्रेलियाई सरकार के इसी साल अप्रैल मंे किए गए ऐसी ही पनडुब्बी से संबंधित एक सौदे को पलीता लगाना था।
भारत सरकार ने फ्रांसीसी शिप बिल्डर डीसीएनएस के साथ सन 2005 में साढे तीन अरब अमेरिकी डॉलर का सौदा किया था जिसके तहत बनने वाली कुल छह पनडुब्बियों में से पहली आईएनएस कलवरी इस समय मुंबई के मझगांव डॉक में बनाई जा रही है। अखबार में लीक हुई जानकारी में पनडुब्बी किस फ्रीक्वेंसी को पकड़ती है, वह अलग अलग स्पीड के दौरान किस तरह का शोर करती है, उसकी गहराई क्षमता, रेंज और मजबूती जैसी बातें शामिल है। पनडुब्बी पर मौजूद क्रू किस जगह से सुरक्षित बात कर सकता है ताकि उसकी बातचीत दुश्मन की पकड़ में ने आए। मैग्नेटिक, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक और इंफ्रा-रेड डाटा और साथ ही पनडुब्बी के तारपीडो लॉन्च सिस्टम और कॉम्बैट सिस्टम की खासियतें, पेरिस्कोप के लिए किस तरह की रफ्तार और स्थिति की जरूरत होती है, शोर को लेकर विवरण और पनडुब्बी के पंखे और रेडिएशन के शोर के स्तर जब पनडुब्बी सतह पर होती है, ऐसे तथ्य भी उजागर हुए हैं। इसमें कोई षक नहीं कि ऐसी जानकारियां सार्वजनिक होने से हमारे दुश्मन इसकी काट खोजने में प्रयास कर सकजे हैं या सतक््र हो सकते हें, लेकिन यह भी तय है कि अंतरराश्ट्रीय बाजार में यह जानकारियां होती ही हैं। इस तरह की सबमेरिन मलेशिया, चिली और ब्राजील के पास हैं । सो यह मान लेना कि हमारी पनडुब्बी बेकार हो गई या प्रभावी नहीं रही, बेमानी है। जब तक हम भारत में खुद स्वदेशी तकनीक से पनडुब्बी नहीं बनाते तब तक जानकारियों के लीक होने या सार्वजनिक होने का ख़तरा मौजूद रहेगा.। सबसे बड़ी बात युद्ध में मशीन से ज्यादा व्यक्तिगत षौर्य व नीति कौशल काम आता ह जिसकी भारत में कोई कमी नहीं है।
बहरहाल सामरिक दृश्टि से भले ही इस लीक का ज्यादा असर भारत पर ना हो, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में दस्तावेजों का लीक होना ज्यादा चिंता की बात है। भारत का मानना है कि यह लीक फ्रांसीसी शिप बिल्डर डीसीएनएस के कंप्यूटरों से हुआ है, जबकि भारत इसका आरोप डीसीएनएस पर मढ़ रहा है। फिलहाल अनुमान यह है कि दस्तावेजों की यह चेारी सन 2011 के आसपास षुरू हुई थी और इसमें फा्रंसिसी सेना का एक पूर्व अधिकारी , जो कि इन दिनों डीसीएनएस का ठेकेदार है, ने यह कांड किया है। यह तो जांच से पता चलेगा कि लीक कहां से हुआ व इसका असल इरादा क्या था।, ंलेकिन गौरतलब है कि आस्ट्रेलियाई मीडिया में यह भी खबर तैर रही है कि इसी अप्रैल में ‘‘केनबेरा’’ ने इसी फ्रांसीसी कंपनी को 50 अरब डालर का 12 षार्टफिन बरकुडा ए-1 पनडुब्बी का आदेश दिया था। हालांकि यह पनडुब्बी का डिजाईन व क्षमता भारत वाली से अलग है, लेकिन वहां कतिपय लॉबी फ्रांस को यह ठेका देने की जगह किसी अन्य कंपनी के लिए लॉबिंग कर रही थी और उन्हीं लोगों ने हैकिंग के जरिये इन दस्तावेजों को सार्वजनिक किया है। लेकिन इस खुलासे के बाद आस्ट्रेलिया का रक्षा मंत्रालय फ्रांस की कंपनी की गोपनीयता बरकारार रखने की व्यवस्था पर उंगली उठा रहा है। याििन एक खुलासे से कई देशों के बीच आपसी संबंधो ंपर षक के बादल छा गए हैं। यह भी सब जानते हें कि आस्ट्रेलिया में आईएसआई इतना मजबूत नहीं है कि भारत के खिलाफ इतना बड़ा लेख कर ले, लेकिन समुद रक्षा के मामले में चीन की साजिश को नजरअंदाज नहीं किया जा कसता। चीन वैेसे भी ब्रहमोस के प्रयोग से खफाा है और उससे ज्यादा उसकी नाराजी इस भारतीय उत्पाद को वियेतनाम द्वारा खरीदने की संभावना से है।
वैसे इस पूरे ख्,ाुलासे से सबसे बड़ा संकट तो 380 से ज्यादा साल पुरानी कंपनी ‘‘डायरेक्शन देस कन्स्ट्रक्शन एट आर्मेस नवेल्स’’ या डीसीएएन पर मंडरा रहा हे। इस कंपनी के 10 देशों में कार्यालय है व कोई 13 हजार कर्मचारी इसमें काम करते हैं। हाल ही में इस कंपनी ने जर्मनी थायसेनउन समूह, जापान के मित्सुबिसी व कावासाकी से मुकाबला कर नार्वें और पौलेंड में भी बड़े ठेके पाए थे। यदि यह बात सामने आ जताी है कि कंपनी रक्षा तकनीक की गोपनीयता बना कर रखने में सक्षम नहीं है तो विश्वसनीयत के संकट के चलते उसका ढांचा गिर सकता है। अब कंपनी भी कह रही है कि यह लीक ‘‘ वित्तीय छद्म-युद्ध’’ का हिस्सा है और इसमें कई प्रतिद्वंदी कंपनियों की साजिश हो सकती है।
बहरहाल भातर के लिए यह चिंता की बात तो है, लेकिन अभी भी हमारे पास वक्त है कि षेश बची पांच पनडुब्ब्यिों में लीक हो गई जानकारी से अलग खासियतों का समावेश किया जा कसता हे। यह भी सोचने की बता है कि यदि यह महज व्यापारिक रंजिश है तो इसका गलत लाभ आतंकवादी भी सहजता से लगा सकते हें व इससे पैदा हुई गलतफहमी ुदनिया को व्यापक युद्ध में झोंक सकती है। अतः पूरे मामले की जांच व आरेपी को उजागर करना भी जरूरी है।
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