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मंगलवार, 20 सितंबर 2016

Kavery River : every one wants water but no one care pollution

किसे परवाह है कावेरी की लहर में जहर की

                                                                   
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने ओदश दिया और कर्नाटक सरकार को हर दिन कावेरी नदी का  12000 क्यूसेक पानी तमिलनाडु के लिए छोड़ना पड़ रहा है। इसके बाद कर्नाटक सुलग रहा है। हर रोज बंद, पथराव, तमिलनाउु के नेातओं के पुतले दहन व उने प्रतिश्ठानों पर हमले की खबरें आ रही हैं। कावेरी को चाहने का दावा करने वालों ने कई हजार करोड़ की संपत्ति फूंक दी है । हकीकत तो यह है कि कावेरी के पानी से ज्यादा उस पर सियासत में लेागों की ज्यादा रूचि है। तभी सन 1837 से चल रहा जल बंटवारे का विवाद आज तक नहीं निबट पाया हे। नदी का पानी कनार्टक , तमिलनाडु, केरल और पुदुचंेरी को कितना मिले, इसको तय करने के लिए सन 1990 में एक प्राधिकरण बना था, सुप्रीम केार्ट में चल रहे मामले अलग हैं, लेकिन जिस नदी को ‘मां’’ माना जाता है, उसके बंटवारे को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है। पानी और ज्यादा से ज्यादा पानी सभी को चाहिए, लेकिन कावेरी में किस तरह प्रदूशण की सडांध घर कर रही है, उस पर चिंता या जिम्मेदारी लेने को ना तो कोई संगठन तैयार है और ना ही सरकार ।
पौराणिक कथाआंे में कुर्गी-अन्नपूर्णा, कर्नाटक की भागरथी और तमिलनाडु में पौन्नई यानी स्वर्ण-सरिता कहलाने वाली कावेरी नदी के पानी के बंटवारे को लेकर विवाद से तो सभी परिचित हैं लेकिन इस बात की किसी को परवाह नहीं है कि यदि इसमेें घुलते जहर पर तत्काल ध्यान नहीं दिया गया तो जल्दी ही हालात काबू से बाहर हो जाएंगे। दक्षिण की जीवन रेखा कही जाने वाली इस नदी में कही कारखानें का रसायनयुक्त पानी मिल रहा है तो कहीं षहरी गंदगी का निस्तार सीधे ही इसमें हो रहा है, कहीं खेतों से बहते जहरीले रसायनयुक्त खाद व कीटनाशक इसमें घुल रहे हैं तो साथ ही नदी हर साल उथली होती जा रही है। बंगलूरू सहित कई विश्वविघालयों में हो रहे षोध समय-समय पर चेता रहे हैं कि यदि कावेरी को बचाना है तो उसमें बढ़ रहे प्रदूशण पर नियंत्रण जरूरी है, लेकिन बात कागजी घोड़ों की दौड़ से आगे बढ़ नहीं पा रही है।
कावेरी नदी कर्नाटक के कुर्ग जिले के पश्चिमी घाट के घने जंगलों में ब्रह्मगिरी पहड़ी पर स्थित तलकावेरी से निकलती है। कोई आठ सौ किलोमीटर की यात्रा के दौरान कई सहायक नदियां इसमें आकर मिलती हैं, लेकिन जब दो लाख घन मीटर से अधिक वार्शिक जल बहाव वाली कावेरी का समागम तमिलनाडु में थंजावरु जिले में बंगाल की खाड़ी में होता है तो यह एक शिथिल सी छोटी सी जल-धारा मात्र रह जाती है।   कावेरी के पानी को लकर दो राज्यों के बीच का विवाद संभवतया दुनिया के सबसे पुराने जल विवादों में से एक है। 17वीं सदी में टीपू सुल्तान के षासनकाल में जब तत्कालीन मैसूर राज्य ने इस पर बांध बनाया था तब मद्रास प्रेसीडंसी ने इस पर आपत्ति की थी। इस झगउ़े का एक पड़ाव सन 1916 में सर विश्वेसरैया की पहल पर बनाया गया कृश्णराज सागर यानी केआरएस बांध था।  पर जब दोनो राज्यों में पानी की मांग बढ़ी तो यह बांध भी विवादों की चपेट में आ गया।
कावेरी की लपटों मे ना जने क्या-क्या झुलसा, लेकिन पानी पर सियासत करने वालों ने इस बात की सुध कभी नहीं ली कि कावेरी का मैला होता पानी अब जहर बनता जा रहा है। कुछ साल पहले बंगलूरू विश्वविद्यालय ने वन और पर्यावरण मंत्रालय तथा राश्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय-एनआरडीसी की मदद से एक विस्तृत षोध किया था जिसमें बताया गया था कि केआरएस बांध से नीचे आने वाला पानी ऊपरी धारा की तुलना में बेहद दूशित हो गया है। गौरतलब है कि केआर नगर, कौल्लेगल और श्रीरंगपट्टनम नगरों की नालियों का गंदा पानी और नंजनगौडा षहर के कारखानों व सीवर की निकासी बगैर किसी षोधन के काबिनी नदी में मिला दी जाती है। काबिनी नदी आगे चल कर नरसीपुर के पास कावेरी में मिल जाती है। कहने को कोल्लेगल में एक ट्रीटमेंट प्लांट लगा है, लेकिन इसे चलते हुए कभी किसी ने नहीं देखा।
षहरी गंदगी के बाद कावेरी को सबसे बड़ा खतरा इसके डूब क्षेत्र में हो रही अंधाधुंध खेती से है। ज्यादा फसल लेने के लालच में जम कर रासायनिक खाद व कीटनााशकों के इस्तेमाल ने कावेरी का पानी जहर कर दिया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक बरसात के दिनों में कावेरी के पानी में हर रोज 1,051 टन सल्फेट, 21 टन फास्फेट और 34.88 टन नाईट्रेट की मात्रा मिलती है।  गर्मी के दिनों में जब पानी का बहाव कम हो जाता है तब सल्फर 79 टन, 2.41 टन फास्फेट और 3.28 टन नाईट्रेट का जहर हर रोज इस पावन कावेरी को दूशित कर रहा है।  याद रहे कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक नाईट्रेट के रूप में नाईट्रोजन की इतनी मात्रा वाला पानी बच्चों के लिए जानलेवा है।
कौललागेल क्षेत्र में षहरी सीवर के कारण कावेरी का पानी मवेशियों के लिए भी खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। यहां पर पानी में केडमियम, एल्यूमिनियम, जस्ता और सीसा की मात्रा निर्धारित स्तर को पार कर जाती हे।  ये नदी किनारे रहने वालों के लिए आए दिन नई-नई बीमारियों की सौगात ले कर आ रहे हैं।  वैसे तो अन्य नदियां की ही तरह कावेरी में भी खुद ब खुद षुद्धीकरण की विशेशता है, लेकिन आधुनिक जीवन षैली के लिए आवश्यक बन गए रासायनों की बढती मात्रा से नदी का यह गुण नाकाम हो गया है। कावेरी के किनारों पर रेत की बेतरतीब खुदाई, षौचकर्म और कपड़ों की ध्ुालाई ने भी नदी का मिजाज बिगाड़ दिया है।
कावेरी के दूशित होने की चेतावनियां 13 साल पहले 1995 में केद्रीय प्रदूशण नियंत्रण बोर्ड की एक रपट में दर्ज थीं। उसमें कहा गया था कि कावेरी का पानी अपने उद्गम  तालकावेरी से मैसूर षहर की सीमा तक सी ग्रेड का है, जबकि यह होना ए ग्रेड का चाहिए। विदित हो कि ए ग्रेड के पानी की 100 मिललीटर मात्रा में कॉलीफार्म बैक्टेरिया की मात्रा 50 होती है, जबकि सी ग्रेड में यह खतरनाक विशाणु छह हजार होता है। पानी की अम्लीयता का पैमाना कहे जाने वाले पीएच वैल्यू में काफी अंतर दर्ज किया गया था। प्रदूशण बोर्ड की उस रिपोर्ट यह भी बताया गया था कि केआर बांध से होगेनेग्गल तक और बंगलूर से ग्रेंड एनीकेट तक और उउसे आगे कुंभकोणम तक पानी की क्वालिटी ई ग्रेड की है। सनद रहे कि इस स्तर का पानी पीने के लिए कतई नहीं होता है।
सिंचाई, सफाई और सियासत के भ्ंावर में फंसी 770 किलामीटर लंबी कावेरी की सबसे ज्यादा दुर्गति कुर्ग  जिले में ही है। यह इलाका काफी उत्पादक हैं, और सरकारी रिकार्ड कहता है कि चार लाख पचहत्तर हजार टन कॉफी का कचरा सीधे नदी में जा रहा है। कुर्ग षहर की एक लाख आबादी का पूरा निस्तार बगैर सफाई के नदी में मिलता है। यह इलाका सुअर के गोश्त के व्यापार के लिए भी जाना जाता है और हजरों बूचड़ खाने का गंदा पानी इसमें सीधे मिलाने में कसिी को कोई संकोच नहीं होता।  पिछले साल प्रख्यात अंतरिक्ष वैज्ञानिक और राज्य ज्ञान आयोग के अध्यक्ष प्रो. के कस्तूरी रंगन ने राज्य षासन को एक रपट सोंपी थी जिसमें कावेरी को प्रदूशण मुक्त करनेे के लिए त्वरित विशेश प्रयास करने व उसके लिए अलग से बजट की बात की थी। रपट में बताया गया था कि कावेरी के किनारे उभर आए कई पर्यटन स्थल नदियों में सीवर की गंदगी बढ़ा रहे हैं, वहीं इससे रेत का अवैध खनन इसके अस्तित्व के लिए खतरा बन रहा है। दुखद है कि अपने पडोसी राजय को पानी देने पर आग लगाने वाले कीज्ञी इस तरह से नदी के क्षण पर सड़कों पर नहीं आते।
राज्य प्रदूशण बोर्ड की रपट को आए 15 साल बीत गए, कावेरी में ना जाने कितना पानी बह गया, उससे ढेर सारे विवाद और हंगामे उपज गए लेकिन उसका प्रदूशण दिन दुगना-रात चौगुना बढता रहा। उस पर राजनीति की बिसात बिछी है। कावेरी गवाह है कि आधुनिक विकास की कितनी बड़ी कीमत नदियां चुका रही हैं। कावेरी में जब तक पानी है , वह जीवनदायिनी है और उस दिन तक उसके पानी को ले कर दो राज्य लड़ते रहेंगे, लेकिन जिस दिन उसमें घुलता जहर खतरे की हद को पार कर जाएगा, उस दिन से यही लोग इस नदी को अपने राज्य की सीमा में घुसने से रोकने का झंडा उठा लेगें।
पंकज चतुर्वेदी
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पंकज चतुर्वेदी

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