तंत्र की काहिली से बढ़ता मर्ज
डेंगू का डंक
पंकज चतुर्वेदी
इस साल 31 अगस्त तक देश में डेंगू के कुल 27889 मामले सामने आए, जिनमें से 60 की मौत हो गई। इसका कुछ कमजोर स्वरूप चिकनगुनिया भी अपने शबाब पर है और वह अभी तक 1255 मरीजों को अपनी चपेट में ले चुका है। राजस्थान के कई जिलों से लेकर बंगाल के दूरस्थ इलाकों तक, राऊरकेला जैसे औद्योगिक शहर से लेकर महाराष्ट्र के कोकण क्षेत्र तक हर इलाके में औसतन हर रोज दस मरीज अस्पताल पहुंच रहे हैं। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले ही चेता चुका था कि इस साल दिल्ली में डेंगू महामारी बन सकता है। स्थानीय प्रशासन विभाग इंतजार कर रहा है कि कुछ ठंड पड़े तो समस्या अपने आप खत्म हो जाएगी।
गाजियाबाद जैसे जिलों के अस्पताल तो बुखार-पीड़ितों से पटे पड़े हैं। अब तो इतना खौफ है कि साधारण बुखार का मरीज भी बीस-पच्चीस हजार रुपए दिए बगैर अस्पताल से बाहर नहीं आता है। वहीं डेंगू के मच्छरों से निपटने के लिए दी जा रही दवाएं उलटे उन मच्छरों को ताकतवर बना रही हैं। डेंगू फैलाने वाले एडीज’ मच्छर सन् 1953 में अफ्रीका से भारत आए थे। उस समय कोई साढ़े सात करोड़ लोगों को मलेरिया वाला डेंगू हुआ था, जिससे हजारों मौतें हुई थीं। अफ्रीका में इस बुखार को डेंगी कहते हैं। यह तीन प्रकार को होता है। एक वह, जो कि चार-पांच दिनों में अपने आप ठीक हो जाता है, लेकिन मरीज को महीनों तक बेहद कमजोरी रहती है। दूसरे किस्म में मरीज को हेमरेज हो जाता है, जो उसकी मौत का कारण भी बनता है। तीसरे किस्म के डेंगू में हेमरेज के साथ-साथ रोगी का ब्लड प्रेशर बहुत कम हो जाता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक डेंगू के वायरस भी चार तरह के होते हैं- सीरो-1,2, 3 और 4। यदि किसी मरीज को इनमें से किन्हीं दो तरह के वायरस लग जाएं तो उसकी मौत लगभग तय होती है। ऐसे मरीजों के शरीर पर पहले लाल-लाल दाने पड़ जाते हैं। इसे बचाने के लिए शरीर के पूरे खून को बदलना पड़ता है। सनद रहे कि डेंगू से पीडि़त मरीज को 104 से 107 डिग्री बुखार आता है। डेंगू का पता लगाने के लिए मरीज के खून की जांच करवाई जाती है, जिसकी रिपोर्ट आने में दो-तीन दिन लग जाते हैं। तब तक मरीज की हालत लाइलाज हो जाती है। यदि इस बीच गलती से भी बुखार उतारने की कोई उलटी-सीधी दवा ले ली तो लेने के देने पड़ जाते हैं।
भारतीय उपमहाद्वीप में मच्छरों की मार बढ़ने का बड़ा कारण यहां बढ़ रहे दलदली क्षेत्र को कहा जा रहा है। यही एडीज’ मच्छर का आश्रय-स्थल बनते हैं। ठीक यही हालत देश के महानगरों की है जहां थोड़ी-सी बारिश के बाद सड़कें भर जाती हैं। ब्रिटिश गवर्नमेंट पब्लिक हेल्थ लेबोरेट्री सर्विस (पीएचएलसी) की एक अप्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के गर्म होने के कारण भी डेंगू रूपी मलेरिया प्रचंड रूप धारण कर सकता है। जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि गर्म और उमस भरा मौसम खतरनाक और बीमारियों को फैलाने वाले कीटाणुओं और विषाणुओं के लिए संवाहक जीवन-स्थिति का निर्माण कर रहे हैं।
सरकारी लाल बस्तों में दर्ज है कि हर साल करोड़ों रुपए के डीडीटी, बीएचसी, गेमैक्सिन, वीटेकस और वेटनोवेट पाउडर का छिड़काव हर मोहल्ले में हो रहा है। हालात इतने बुरे हैं कि पाइलेथाम’ और मेलाथियान’ दवाएं फिलहाल तो मच्छरों पर कारगर हैं, लेकिन दो-तीन साल में ही ये मच्छरों को और जहरीला बनाने वाली हो जाएंगी। डेंगू के इलाज में प्राइमाक्वीन कुछ हद तक सटीक है, लेकिन इसका इस्तेमाल तभी संभव है, जब रोगी के शरीर में जी-6 पी.डी.” नामक एंजाइम की कमी ना हो। यह दवा रोगी के यकृत में मौजूद परजीवियों का सफाया कर देती है। इस दवा के इस्तेमाल से डाक्टर भी परहेज करते हैं। इसके अलावा क्वीनाइन ” नामक एक महंगी दवा भी उपलब्ध है।
यह मान लेना चाहिए कि डेंगू से निपटने के लिए सारे साल तैयारी करनी होगी और प्रयास यह करना होगा कि यह बीमारी कम से कम लोगों को अपनी गिरफ्त में ले। जरूरत इस बात की है कि मच्छरों की पैदावार रोकने, उनकी प्रतिरोध क्षमता का आकलन कर नई दवाएं तैयार करने का काम त्वरित और प्राथमिकता से होना चाहिए।
इस
बार बारिश भी ढंग से हुई नहीं। भादौ में गर्मी अपना पूरा रंग दिखा रही है।
इतना ज्यादा जलभराव भी नहीं हुआ, लेकिन उमस, गंदगी और लापरवाही के चलते
मच्छर और उससे उपजे डेंगू का असर दिनोंदिन गहरा होता जा रहा है। दिल्ली में
एक बच्चे की मौत व उसके गम में उसके माता-पिता द्वारा आत्महत्या करने की
घटना ने तो पूरे देश को हिला दिया है। अकेले दिल्ली-एनसीआर में बीते एक
हफ्ते में कई सौ मरीज सरकारी अस्पताल पहुंचे हैं।पंकज चतुर्वेदी
इस साल 31 अगस्त तक देश में डेंगू के कुल 27889 मामले सामने आए, जिनमें से 60 की मौत हो गई। इसका कुछ कमजोर स्वरूप चिकनगुनिया भी अपने शबाब पर है और वह अभी तक 1255 मरीजों को अपनी चपेट में ले चुका है। राजस्थान के कई जिलों से लेकर बंगाल के दूरस्थ इलाकों तक, राऊरकेला जैसे औद्योगिक शहर से लेकर महाराष्ट्र के कोकण क्षेत्र तक हर इलाके में औसतन हर रोज दस मरीज अस्पताल पहुंच रहे हैं। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले ही चेता चुका था कि इस साल दिल्ली में डेंगू महामारी बन सकता है। स्थानीय प्रशासन विभाग इंतजार कर रहा है कि कुछ ठंड पड़े तो समस्या अपने आप खत्म हो जाएगी।
गाजियाबाद जैसे जिलों के अस्पताल तो बुखार-पीड़ितों से पटे पड़े हैं। अब तो इतना खौफ है कि साधारण बुखार का मरीज भी बीस-पच्चीस हजार रुपए दिए बगैर अस्पताल से बाहर नहीं आता है। वहीं डेंगू के मच्छरों से निपटने के लिए दी जा रही दवाएं उलटे उन मच्छरों को ताकतवर बना रही हैं। डेंगू फैलाने वाले एडीज’ मच्छर सन् 1953 में अफ्रीका से भारत आए थे। उस समय कोई साढ़े सात करोड़ लोगों को मलेरिया वाला डेंगू हुआ था, जिससे हजारों मौतें हुई थीं। अफ्रीका में इस बुखार को डेंगी कहते हैं। यह तीन प्रकार को होता है। एक वह, जो कि चार-पांच दिनों में अपने आप ठीक हो जाता है, लेकिन मरीज को महीनों तक बेहद कमजोरी रहती है। दूसरे किस्म में मरीज को हेमरेज हो जाता है, जो उसकी मौत का कारण भी बनता है। तीसरे किस्म के डेंगू में हेमरेज के साथ-साथ रोगी का ब्लड प्रेशर बहुत कम हो जाता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक डेंगू के वायरस भी चार तरह के होते हैं- सीरो-1,2, 3 और 4। यदि किसी मरीज को इनमें से किन्हीं दो तरह के वायरस लग जाएं तो उसकी मौत लगभग तय होती है। ऐसे मरीजों के शरीर पर पहले लाल-लाल दाने पड़ जाते हैं। इसे बचाने के लिए शरीर के पूरे खून को बदलना पड़ता है। सनद रहे कि डेंगू से पीडि़त मरीज को 104 से 107 डिग्री बुखार आता है। डेंगू का पता लगाने के लिए मरीज के खून की जांच करवाई जाती है, जिसकी रिपोर्ट आने में दो-तीन दिन लग जाते हैं। तब तक मरीज की हालत लाइलाज हो जाती है। यदि इस बीच गलती से भी बुखार उतारने की कोई उलटी-सीधी दवा ले ली तो लेने के देने पड़ जाते हैं।
भारतीय उपमहाद्वीप में मच्छरों की मार बढ़ने का बड़ा कारण यहां बढ़ रहे दलदली क्षेत्र को कहा जा रहा है। यही एडीज’ मच्छर का आश्रय-स्थल बनते हैं। ठीक यही हालत देश के महानगरों की है जहां थोड़ी-सी बारिश के बाद सड़कें भर जाती हैं। ब्रिटिश गवर्नमेंट पब्लिक हेल्थ लेबोरेट्री सर्विस (पीएचएलसी) की एक अप्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के गर्म होने के कारण भी डेंगू रूपी मलेरिया प्रचंड रूप धारण कर सकता है। जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि गर्म और उमस भरा मौसम खतरनाक और बीमारियों को फैलाने वाले कीटाणुओं और विषाणुओं के लिए संवाहक जीवन-स्थिति का निर्माण कर रहे हैं।
सरकारी लाल बस्तों में दर्ज है कि हर साल करोड़ों रुपए के डीडीटी, बीएचसी, गेमैक्सिन, वीटेकस और वेटनोवेट पाउडर का छिड़काव हर मोहल्ले में हो रहा है। हालात इतने बुरे हैं कि पाइलेथाम’ और मेलाथियान’ दवाएं फिलहाल तो मच्छरों पर कारगर हैं, लेकिन दो-तीन साल में ही ये मच्छरों को और जहरीला बनाने वाली हो जाएंगी। डेंगू के इलाज में प्राइमाक्वीन कुछ हद तक सटीक है, लेकिन इसका इस्तेमाल तभी संभव है, जब रोगी के शरीर में जी-6 पी.डी.” नामक एंजाइम की कमी ना हो। यह दवा रोगी के यकृत में मौजूद परजीवियों का सफाया कर देती है। इस दवा के इस्तेमाल से डाक्टर भी परहेज करते हैं। इसके अलावा क्वीनाइन ” नामक एक महंगी दवा भी उपलब्ध है।
यह मान लेना चाहिए कि डेंगू से निपटने के लिए सारे साल तैयारी करनी होगी और प्रयास यह करना होगा कि यह बीमारी कम से कम लोगों को अपनी गिरफ्त में ले। जरूरत इस बात की है कि मच्छरों की पैदावार रोकने, उनकी प्रतिरोध क्षमता का आकलन कर नई दवाएं तैयार करने का काम त्वरित और प्राथमिकता से होना चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें