My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

when question answered by mother-sister slang

क्या सवाल खडा करना देशद्रोह होता है ?

जब कभी देश-दुनिया में कुछ ऐसी हलचल होती है जिसमें विचारों और मान्यताओं में विविधता होती है, फेसबुक पर बहुत से लेागों को मुझे अलविदा कहना होता है, कुछ मेरे मित्र सूची में होते हैं , कुछ ऐसे ही आगंतुक। जाहिर है कि यह एक आभासी दुनिया है व कहा जाता है कि इसमें रि्श्‍ते ना तो भावनात्मक है और ना चिरस्थाई और ना ही यहां बने रिश्‍तों का कोई महत्व है। यह सभी मानते हैं कि फेसबुक जैसे सोशल यानि सामाजिक (?) मंच विचारों के निर्वाध प्रवाह के माध्यम हैं लेकिन जब असहमति के विचार असामाजिकता की चरम सीमा तक चले जाएं तो अपने यहां होने की जरूरत पर एक दोराहे पर खड़ा पाता हूं।
हाल का मसला है पाकिस्तान में घुस कर भारतीय सेना की कार्यवाही को ले कर। शुरूआत में जो खबर आई, उससे अच्छा लगा कि भारतीय सेना ने आतंकवादियों पर सीधे कार्यवाही कर एक दृढ संदेश दिया। कहने की जरूरत नहीं है कि देश पर सभी का हक है और देशहित पर सभी एक हैंं। भारतीय सेना किसी दल की नहीं हैं और सरकारे बदलने के साथ सेना का चरित्र नहीं बदलता।
कल शाम पाकिस्तान के अखबारों ने अपना पक्ष रखा और एक खबर लगाई कि भारत का एक जवान उनके कब्जे में है। उसका नाम, पहचान सभी कुछ पाकिस्तान की साईट पर था। यहां से सवाल उठा कि भारतीय फौज दावा कर रही थी कि उसको कोई नुकसान नहीं हुआ, क्या यह संदेहास्पद तो नहीं है? क्योंकि सुबह होते-होते भारतीय सेना का बयान आ गया कि वह जवान मय हथियार के रास्ता भटक कर पाकिस्तान पहुंच गया था।अब तनाव के दिनों में सीमा पर कभ्‍ज्ञी कोई भी फौजी अकेले तो घूमता नहीं है, वह एक चार या ऐसी ही बटालियन में होता हैा उसके बाद जंग के भय के बीच खाली करवाए जा रहे सीमावर्ती गांवों में सामान ढोने, इलाके में पेट्रोल-डीजल की लंबी-लंबी लाईने लगने, कालाबाजारी होने की खबरें भी आईं। मैंने लिखा कि असल में जंग की मांग करने वालें ऐसे कालाबाजारी और मनमाने दाम वसूलने वाले सबसे ज्यादा होते हैं, लेकिन यदि जंग के हालात हों तो पूरा देश एक होता है।
मेरे सवाल थे:-
1. क्या कथित सर्जिकल स्ट्राईक ठीक वैसी ही थी जैसा दावा किया जा रहा है या फिर पाकिस्तान का दावा, जिसमें हमारे कुछ जवानों के शहीद होने की बात है, वह सच है ।
2. सीमावर्ती इलाकों में गांव खाली करवाने में सरकारी गाड़िया क्यों नहीं पुहंच रही कि लोगों को पांच गुना पैसा दे कर लोडर बुक करने पड रहे हैं।
इस पोस्ट के बाद कई एक लेाग मुझे वामपंथी कह रहे थे व गालियां दे रहे थे तो कुछ लोग जिनकी दीवार जयश्रीराम के नारों व संघ के सेवकों के चित्रों से सजी थीं, मां-बहन की गालियां दे रहे थे।
क्या वामपंथी सरकारों का देश के विकास में कोई योगदान नहीं है? क्‍या कथित देशभक्‍तों ने कभी वामपंथियों के सहयोग से सरकारे नहीं चलाईं ,क्या यह कामना करना कि युद्ध को टालना चाहिए, देशद्रोह है? जो युद्धोन्माद फैला रहे हैं उनके घर आाजादी की लड़ाई से ले कर अभी तक कभी तिरंगे में लिपटी लाश आई नहीं। उन्हे पता नहीं कि किसी घर का एक कमाने वाला सदस्य जब शहीद होता है तो उसके बाद उनका जीवन कैेस चलता है। नारेबाजों ने कभी मथुरा जिले में जा कर हेमराज के परिवार को पूछा नहीं कि उस समय किए गए कितने वायदे पूरे हुए। वे तो सम्मान में झुके शस्त्र, हवा में गोली, नारे और मत विरोधियों को मां-बहन की गालियां बक कर अपने देशप्रेम का वजीफा हासिल कर लेते हैं। ये वहीं --नानस्टेट एक्टर’ हें जिनसे पाकिस्तान अपने कुकर्मों का पल्ला झाड़ता रहा है।
जो लेाग सवाल करने से डरते हैं, जो लोकतंत्र के अभिन्न अंग, प्रतिरोध से भयभीत रहते हैं, तो तर्क, तथ्य और तंत्र से बच कर नारों में भरोसा करते हैं, वे सवालों पर मां-बहन की गालियों क्यों देने लगते हैं ?
यदि आप युद्ध समर्थक हैं तो जान लें कि आप देश के विकास के समर्थक तो नहीं हैं। एक बात और यदि युद्ध थोपा जाए तो उसका ताकत से जवाब देना देश का सबसे बड़ा कर्तव्य होता है। इससे पहले हमें अपने प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करना जरूरी है कि कोई ऐरा-गैरा पठानकोट या उड़ी के सेन्य इलाके में घुस न सके।
सवाल फिर वहीं खड़ा है कि क्या सवाल करना, इतना तकलीफदेह होता है कि प्रश्‍नकर्ता की मां-बहन को गालियां दी जाएं? सवाल इतने गैरजरूरी है कि उसको उठाने वाले को वामपंथी कह कर सवाल को मोथरा कर दो। अभी रिहाई मंच वाली पोस्ट पर मंच के मिश्राजी कह गए कि आप तो छुपे संघी थे, अब खुल कर आ गए, अपने स्वार्थ के कारण और नेकरधारी मेरे सवालों का जवाब मां-बहन की गालियों में तलाश रहे हैं।
क्या हर सवाल को गाली दे कर , किसी दल का लेबल लगा कर, धौंस व धमकी दे कर दबा देने से उसमें निहित देशहित के मसले गौण हो जाते हैं ? क्या यह एक ऐसा अघेाषित आापातकाल है जिसमें लंपटों को जिम्मा दे दिया गया है कि असहमति के स्वरों को गालियों की बौछार, देशप्रेम के नारों से कुचल कर रख दो? याद रखें यह भारत की संस्थाओं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लोकतंत्रात्मक मूल्यों को दफन करने का एक कदम है, जब सेकुलर होने को गाली करार दिया जा रहा है, जब सवालों को देशद्रोह कहा जा रहा है। जब मीडिया हिस्‍टीरिया की तरह वह सबकुछ दखिा रहा है जो समाज के मूल सवालों को मोथरा बना कर एक आभ्‍ीसी देशप्रेम के उम्‍नाद को उकसाता है ा

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