बीमारी से पर्दादारी क्यों ?
पंकज चतुर्वेदी;
अभी तक 44 मुकदमें कायम हो चुके हैं। आठ गिरफ्तार हो चुके हैं। सात लोग खुदकुशी कर चुके हैं। लाखों लोगों की जिंदगी की उम्मीद कहे जाने वाले चैन्नई के अपोलो अस्पताल में रहस्यमयी सन्नाटा, तनाव व शंका का माहौल है। दीगर मरीजों को वहां से दूर रखा जा रहा है। अस्पताल के डॉक्टर व अन्य स्टाफ को भीतर मोबाईल ले जाने की इजाजत नहीं हैं। राज्य पुलिस का बड़ा हिस्सा या तो अस्पताल में सुरक्षा ड्यूटी पर है या फिर अस्पताल के कर्मचारियों व रिश्तेदारों के मोबाईल व अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाईस की निगरानी की ड्यूटी पर मुस्तैद है। अगले साल चैन्नई सहित कई जिलों को तबाह करने वाले उत्तर-पूर्वी मानसून के भी जल्दी आने की संभावना है और इसको लेकर आम नागरिक भयभीत हैं, लेकिन देश की संवेदनशील समुद्री सीमा पर स्थित बड़े व व्यावसायिक तौर पर प्रतिष्ठित राज्य का पूरा प्रशासन बीते लगभग एक महीने से केवल इस काम पर लगा है कि ‘अम्मा’ की बीमारी के बारे में सही खबर किसी को ना लगे। यहां तक कि पिछले महीने कावेरी जलविवाद बाबत एक प्रेसनोट बाकायदा जे. जयललिता, मुख्यमंत्री के नाम से जारी कर दिया गया, जबकि वे अस्पताल के आईसीयू में बेसुध थी। सियासत भी शुरू हुई व शंकाएं भी।
बीते 22 सितंबर से तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता बीमार हैं। उनकी गैरमौजूदगी में शासन चलाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 166 के खंड तीन के तहत, पहले भी उनकी जगह मुख्यमंत्री रहे राज्ये के वित्त मंत्री ओ. पनेरसेल्वम को मुख्यमंत्री के पास मौजूद विभागों का अतिरिक्त चार्ज दे दिया गया है। पिछले दिनों उन्होंने अपने सामने मुख्यमंत्री का बड़ा सा चित्र रख कर कैबिनेट की बैठक की अध्यक्षता भी की, लेकिन फिलहाल राज्य मुख्यमंत्री-विहीन है। जयललिता की बीमारी को लेकर अफवाहें ही राज्य की सबसे बड़ी सूचना का जरिया हैं। मुख्यमंत्री को जल्दी से ठीक करने के लिए दिल्ली में एम्स से लेकर अमेरिका व सिंगापुर तक के डॉक्टर आ चुके हैं। हालांकि आम लेागों, खासकर अन्नाद्रमुक कार्यकर्ताओं को सबसे बड़ा भरोसा भगवान, अनुष्ठान व अंधविश्वास पर है। तभी पिछले कई दिनों से राज्य में तरह-तरह के हवन, पूजा चल रही हैं। मदुरई में तो सिर पर दूध के घड़े ले कर बड़ी यात्रा निकाली गई जोकि तिरूचेंडा मंदिर तक गई व हजरों लीटर दूध भगवान के नाम पर बहा दिया गया। कोई अपने मुंह में गालों से आरपार त्रिशूल किए है तो कोई भूख रह रहा है। कई एक तो खुदकुशी भी कर चुके हैं, लेकिन निष्ठुर शासन सत्ता हाथ से फिसलने के भय से ना तो कुछ कह रहा है ना ही सत्ता के वैकल्पिक केंद के बारे में विचार कर रहा है। अस्पताल का तो कहना है कि उन्हें थोड़ा सा निर्जलीकरण हुआ व बुखार है लेकिन अपुष्ट सूत्र उनके मल्टीपल आर्गन फेल होने की बातें कर रहे हैं। तमिलनाडु में जब लगा कि जनता को समझाना मुश्किल है तो एक बड़ा राजनीतिक ड्रामा रचा गया, सभी राजनीतिक दलों के लोगों को पीछे के दरवाजे से ‘अम्मा ’ को देखने के लिए अस्पतााल बुलाया गया। पड़ेासी राज्य पुदुचेरी के मुख्यमंत्री व कभी पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के करीबी रहे नारायणसमी पहुंचे व उसके तत्काल बाद उप्र की खाट यात्रा समाप्त करने के अगले दिन ही राहुल गांधी पहुंच गए। अमित शाह व वित्त मंत्री भी चैन्नई गए व सभी ने बाहर आ कर कहा कि उनकी तबीयत ठीक है व जल्द ही वे घर आ जाएंगी। इस बीच किसी ने हाई कोर्ट में मुख्यमंत्री की बीमारी का खुलासा करने के लिए जनहित याचिका भी लगा दी। मामले में सियासत भी हो रही है है और राज्य के एक रिटायर्ड आईएएस मुख्यमंत्री की गैरमौजूदगी में ताकत से शासन चला रहे हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की बीमारी भी इसका एक उदाहरण है। हालांकि जयललिता लंबे समय से बीमार हैं यह बात किसी से छुपी नहीं है। इस साल 23 मई को जयललिता छठी बार मुख्यमंत्री बनी थीं। उन्होंने तमिलनाड़ु में 32 साल से चली आ रही हर बार सरकार बदलने की परंपरा का राजनीतिक अतीत को धता बताते हुए लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए इसी साल 23 मई 2016 को छठी बार मुख्यमंत्री बनीं थीं। कर्नाटक के मंड्या जिले के पांडवपुरा तालुका के मेलुरकोट गांव में 24 फरवरी 1948 को एक ‘अय्यर’ परिवार में जन्मी जयललिता पिछले एक साल में कई बार बीमार रहने के बाद मई 2015 में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले भी सात महीने तक सार्वजनिक जीवन से दूर रही थीं। यह कैसी विडंबना है कि राहुल गांधी से लेकर अमित शाह तक को अस्पताल बुलाया गया लेकिन किसी की भी बीमार मुख्यमंत्री से मुलाकात नहीं हुई। उन्हें दूर से आईसीयू में बस उन्हें दिखा दिया गया व बयान दिलवा दिया गया कि वे ठीक हैं।
हालांकि तमिलनाडु में इतिहास स्वंय को दोहरता दिख रहा है। जयललिता को फिल्मों की दुनिया से राजनीति में लाने वाले एमजीआर भी खुद सेलुलाईड की दुनिया से आए थे। उनके मुख्यमंत्री के तौर पर तीसरे कार्यकाल से ठीक पहले वे गंभीर बीमार हुए थे और इस डर से कही उनकी बीमारी की चर्चा से लोकप्रियता पर असर ना पड़े, सबकुछ छुपा कर रखा गया। 1985 में बतौर मुख्यमंत्री तीसरा कार्यकाल ग्रहण करने के बाद उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता रहा और इलाज के लिए एमजीआर को बार -बार विदेश जाना पड़ा। तब भी ना तो ठोस जानकारी दी गई ना ही विकल्प। पूरा राज्य अफवाहों व आशंकाओं में झूलता रहा। ऐसे ही बीमार रहते हुए वे तीन साल तक मुख्यमंत्री का पद संभाले रहे और 24 दिसम्बर 1987 को गुर्दे खराब होने, डायबीटिज और हार्ट अटैक के चलते उनका निधन हो गया। उम्मीद व दुआ यही की जाती है कि जयललिता जल्द ही स्वस्थ्य हो जाएंगी।
देश के अधिकांश राजनीतिक दल व्यक्ति केंद्रित होते जा रहे हैं, वहां नेतृत्व की दूसरी पंक्ति को इतना मजबूत नहीं किया जा रहा कि किसी गंभीर हालात में वह तत्काल अपने दल व सरकार का जिम्मा संभाल सके, तभी बीमारी जैसी स्वाभाविक परिस्थिति को भी गोपनीय रखने या उसके बारे में सही जानकारी ना देने की अजीब रवायत शुरू हो गई है। जिन नेताओं पर हजारों -हजार लोग देश या राज्य के संचालन का भरोसा करते हैं, जिनसे लोग उम्मीदें करते हें जिनके लिए लोग जान तक देने की हद तक भावुक होते हैं, उनकी बीमारी की वास्तविकता जानने का लोकतांत्रिक हक उन्हें क्यों नहीं हैं। क्या किसी राज्य को या किसी मंत्रीमंडल को लंबे समय तक बगैर किसी कुशल राजनीतिक नेतृत्व के अदृश्य या प्रशासनिक हाथों में सौंप देना क्या लोकतंत्रात्मक प्रणाली की हत्या नहीं है ? क्या राजनीतिक दलों की नीतियां, उनके करिश्माई चेहरों से कमतर होती है कि उन्हें एक व्यक्ति के सहारे ही सरकार व दल चलाने पर मजबूर होना पड़ता है ? यदि हमारे नेता का इलाज जनता के धन से हो रहा है, यदि उनकी बीमारी से प्रशासन व सरकार अस्त-व्यस्त होती है तो बीमारी की जानकारी देना और पूर्ण स्वस्थ होने तक सुदृढ वैकल्पिक व्यवस्था ना करने के पीछेे क्या सरोकार या स्वार्थ होते हैं ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें