यमुना का यह हाल क्यों है
संसदीय समिति ने भी कहा था कि यमुना सफाई के नाम पर व्यय 6500 करोड़ रुपए बेकार हो गए हैं
क्योंकि नदी पहले से भी ज्यादा गंदी हो चुकी है।
पिछले
एक सप्ताह से दिल्ली के अतिविशिष्ट इलाके लुटियन जोन के नल रीते थे, कारण हरियाणा से दिल्ली में प्रवेश कर रही यमुना इतनी जहरीली हो गई थी कि
वजीराबाद व चंद्रावल के जल परिशोधन संयंत्र की ताकत उन्हें साफ कर पीने लायक बनाने
के काबिल नहीं रह गई थी। वैसे तों दिल्ली भी यमुना को ‘रिवर’
से ‘सीवर’ बनाने में कोई
कसर नहीं छोड़ती, लेकिन इस बार हरियाणा के कारखानों का गंदा
पानी इतनी अधिक मात्रा में यमुना में घुल गया कि पानी में अमोनिया की मात्रा 3.81
पीपीएम से अधिक हो गई। इसके चलते 120 एमजीडी
वाला वजीराबाद और 90 एमजीडी वाला चंद्रावल जलशोधन संयंत्र ठप
हो गया। हालांकि इन दोनों में यमुना का जल महज पंद्रह फीसद हो जाता है। अभी कुछ ही
महीने पहले उत्तर प्रदेश सरकार दिल्ली को खत लिख कर धमका चुकी है कि यदि यमुना में
गंदगी घोलना बंद नहीं किया तो राजधानी का गंगा-जल रोक देंगे। हालांकि दिल्ली सरकार
ने इस अमोनिया बढ़ोतरी या उससे पहले के खत को कतई गंभीरता से नहीं लिया, न ही इस पर कोई प्रतिक्रिया दी है, लेकिन जब कभी
यमुना का मसला उठता है, सरकार बड़े-बड़े वादे करती है। अलबत्ता
क्रियान्वयन के स्तर पर कुछ होता नहीं है।
किसी को याद
भी नहीं होगा कि फरवरी-2014 के अंतिम हफ्ते में शरद यादव की अगुआई वाली
संसदीय समिति ने भी कहा था कि यमुना सफाई के नाम पर व्यय 6500 करोड़ रुपए बेकार हो गए हैं क्योंकि नदी पहले से भी ज्यादा गंदी हो चुकी
है। समिति ने यह भी कहा कि दिल्ली के तीन नालों पर इंटरसेप्टर सीवर लगाने का काम
अधूरा है। गंदा पानी नदी में सीधे गिर कर उसे जहर बना रहा है। विडंबना यह है कि इस
तरह की चेतावनियां तथा रपटें न तो सरकार को और न ही समाज को जागरूक कर पा रही हैं।
एक सपना राष्ट्रमंडल खेलों के पहले दिखाया गया था कि अक्तूबर-2010 तक लंदन की टेम्स नदी की ही तरह दिल्ली में वजीराबाद से लेकर ओखला तक
शानदार लैंडस्केप, बगीचे होंगे, नीला
जल कल-कल कर बहता होगा, पक्षियों और मछलियों की रिहाइश होगी।
लेकिन राष्ट्रमंडल खेल तो बदबू मारती, कचरे व सीवर के पानी
से लबरेज यमुना के तट पर ही हुए। याद करें, 10 अप्रैल 2001
को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि 31 मार्च
2003 तक दिल्ली में यमुना की न्यूनतम जल गुणवत्ता प्राप्त कर
ली जानी चाहिए, ताकि यमुना को ‘मैली’
न कहा जा सके। उस समय-सीमा को बीते ग्यारह सालों के बाद भी दिल्ली
क्षेत्र में बहने वाली नदी में आॅॅक्सीजन का नामोनिशान नहीं रह गया है।
यमुना की
देश के शक्ति-केंद्र दिल्ली में ही सबसे अधिक दूषित होती है। यमुना की पावन धारा
दिल्ली में आकर एक नाला बन जाती है। आंकड़ों और कागजों पर तो इस नदी की हालत
सुधारने को इतना पैसा खर्च हो चुका है कि यदि उसका ईमानदारी से इस्तेमाल किया जाता
तो उससे एक समानांतर धारा की खुदाई हो सकती थी।यमुना दिल्ली में अड़तालीस किलोमीटर
बहती है। यह नदी की कुल लंबाई का महज दो फीसद है। जबकि इसे प्रदूषित करने वाले कुल
गंदे पानी का 71 प्रतिशत और बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड यानी बीओडी
का पचपन प्रतिशत यहीं से इसमें घुलता है। अनुमान है कि दिल्ली में हर रोज 3297
एमएलडी गंदा पानी और 132 टन बीओडी यमुना में
घुलता है। दिल्ली की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर कही जाने वाली यमुना का राजधानी
में प्रवेश उत्तर में बसे पल्ला गांव से होता है। पल्ला में नदी का प्रदूषण का
स्तर ‘ए’ होता है। लेकिन यही उच्च
गुणवत्ता का पानी जब दूसरे छोर जैतपुर पहुचता है तो ‘ई’
श्रेणी का हो जाता है। सनद रहे कि इस स्तर का पानी मवेशियों के लिए
भी अनुपयुक्त कहलाता है। हिमालय के यमुनोत्री ग्लेशियर से निर्मल जल के साथ
आने वाली यमुना की असली दुर्गति दिल्ली में वजीराबाद बांध को पार करते ही होने
लगती है। इसका पहला सामना होता है नजफगढ़ नाले से, जो कि
अड़तीस शहरी व चार देहाती नालों की गंदगी अपने में समेटे वजीराबाद पुल के पास यमुना
में मिलता है। इसके अलावा दिल्ली महानगर की कोई डेढ़ करोड़ आबादी का मल-मूत्र व अन्य
गंदगी लिये इक्कीस नाले यमुना में मिलते हैं।
दिल्ली में
यमुना को साफ-सुथरा बनाने की कागजी कवायद कोई चालीस सालों से चल रही है। सन अस्सी
में एक योजना नौ सौ करोड़ की बनाई गई थी। दिसंबर, 1990 में
भारत सरकार ने यमुना को बचाने के लिए जापान सरकार के सामने हाथ फैलाये थे। जापानी
संस्था ओवरसीज इकोनोमिक कारपोरेशन फंड आॅफ जापान का एक सर्वे-दल जनवरी,
1992 में भारत आया था। जापान ने 403 करोड़ की
मदद देकर 1997 तक कार्य पूरा करने का लक्ष्य रखा था। लेकिन
यमुना का मर्ज बढ़ता गया और कागजी लहरें उफनती रहीं। अभी तक कोई 1800 करोड़ रुपए यमुना की सफाई के नाम पर साफ हो चुके हैं। इतना धन खर्च होने के
बावजूद केवल मानसून में यमुना में आॅॅक्सीजन का बुनियादी स्तर देखा जा सकता है।
यमुना की सफाई के दावों में उत्तर प्रदेश सरकार भी कभी पीछे नहीं रही। सन 1983 में उ.प्र. सरकार ने यमुना सफाई की एक कार्ययोजना बनाई। 26 अक्तूबर 1983 को मथुरा में उ.प्र. जल निगम के प्रमुख आरके भार्गव की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय बैठक हुई थी। इसमें मथुरा के सत्रह नालों का पानी परिशोधित कर यमुना में मिलाने की सत्ताईस लाख रुपए की योजना को इस विश्वास के साथ मंजूरी दी गई थी कि काम 1985 तक पूरा हो जाएगा। न तो उस योजना पर कोई काम हुआ, और न ही अब उसका कोई रिकार्ड मिलता है। उसके बाद तो कई-कई करोड़ के खेल हुए, लेकिन यमुना दिन-दुगुनी रात-चौगुनी मैली होती रही। आगरा में कहने को तीन सीवर शोधन संयंत्र काम कर रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी 110 एमएलडी सीवरयुक्त पानी हर रोज नदी में मिल रहा है। संयंत्रों की कार्यक्षमता और गुणवत्ता अलग ही बात है। तभी आगरा में यमुना के पानी को पीने के लायक बनाने के लिए 80 पीपीएम क्लोरीन देनी होती है। सनद रहे दिल्ली में यह मात्रा आठ-दस पीपीएम है।
यमुना की सफाई के दावों में उत्तर प्रदेश सरकार भी कभी पीछे नहीं रही। सन 1983 में उ.प्र. सरकार ने यमुना सफाई की एक कार्ययोजना बनाई। 26 अक्तूबर 1983 को मथुरा में उ.प्र. जल निगम के प्रमुख आरके भार्गव की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय बैठक हुई थी। इसमें मथुरा के सत्रह नालों का पानी परिशोधित कर यमुना में मिलाने की सत्ताईस लाख रुपए की योजना को इस विश्वास के साथ मंजूरी दी गई थी कि काम 1985 तक पूरा हो जाएगा। न तो उस योजना पर कोई काम हुआ, और न ही अब उसका कोई रिकार्ड मिलता है। उसके बाद तो कई-कई करोड़ के खेल हुए, लेकिन यमुना दिन-दुगुनी रात-चौगुनी मैली होती रही। आगरा में कहने को तीन सीवर शोधन संयंत्र काम कर रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी 110 एमएलडी सीवरयुक्त पानी हर रोज नदी में मिल रहा है। संयंत्रों की कार्यक्षमता और गुणवत्ता अलग ही बात है। तभी आगरा में यमुना के पानी को पीने के लायक बनाने के लिए 80 पीपीएम क्लोरीन देनी होती है। सनद रहे दिल्ली में यह मात्रा आठ-दस पीपीएम है।
चार साल पहले
एक बार फिर यमुना को अपने जीवन के लिए सरकार से उम्मीद बंधी थी, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निर्देश पर यमुना नदी विकास
प्राधिकरण(वाईआरडीए) का गठन किया गया था। दिल्ली के उपराज्यपाल की अध्यक्षता में
दिल्ली जल बोर्ड, प्रदूषण बोर्ड सहित कई सरकारी व गैर-सरकारी
संगठनों को साथ लेकर एक तकनीकी सलाहकार समूह का गठन हुआ था। उस समय सरकार की मंशा
थी कि एक कानून बना कर यमुना में प्रदूषण को अपराध घोषित कर राज्यों व स्थानीय
निकायों को इसका जिम्मेदार बना दिया जाए। लेकिन वह सबकुछ कागजों से आगे बढ़ा ही
नहीं।आज यमुना का अस्तित्व ही खतरे में है। मथुरा और दिल्ली में हर साल कुछ
संस्थाएं नदी के किनारे का कीचड़ व गंदगी साफ करने के आयोजन करती हैं। हो सकता है
कि उनकी भावना पावन हो, लेकिन उनके इन प्रयासों से नदी की
सफाई में कहीं कोई इजाफा नहीं होता है। यदि यमुना को बचाना है तो इसके उद्धार के
लिए मिले सरकारी पैसों का ईमानदारी से इस्तेमाल जरूरी है। यह हमेशा याद रखना चाहिए
कि मानव-सभ्यता का अस्तित्व नदियों का सहयात्री है और इसी पर निर्भर है।
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