पिछले कई से "ज्ञानोदय " में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित बाल साहित्य पुस्तकों की सूची में मेरी एक पुस्तिका " महामना मदन मोहन मालवीय" का विज्ञापन जा रहा था, लेकिन किताब देखने को नहीं मिली. मेले के आखिरी दिन तमाम पुस्तकें खरीदने के बाद भारतीय ज्ञानपीठ के स्टाल की और निकला तो रास्ते में ही मेरे अग्रज और ज्ञानपीठ के निदेशक लीलाधर मंडलोई जी मिल गए . उन्होंने अपने सहकर्मियों से कह कर तीन पुस्तकें दिलवायीं . आपसे साझा कर रहा हूँ.
असल में यह पुस्तक महामना की जीवनी नहीं हें , इसमें उनके जीवन के कुछ ऐसे रोचक प्रसंग हे जो उनके राष्ट्र प्रेम, समाज प्रेम, शिक्षा प्रेम के प्रमाण हें .
असल में यह पुस्तक महामना की जीवनी नहीं हें , इसमें उनके जीवन के कुछ ऐसे रोचक प्रसंग हे जो उनके राष्ट्र प्रेम, समाज प्रेम, शिक्षा प्रेम के प्रमाण हें .
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