कश्मीर में अपने खुफिया तंत्र को मजबूत करना होगा
पंकज चतुर्वेदी
बीते कुछ घंटे कश्मीर में भारत के सुरक्षा बलों के लिए बेहद दुखदायक रहे हैं। कुछ आतंकियों को मारने के लिए हमारे सात जाबांज जवान श् हीद हुए, वह भी इस लिए कि आतंकियों से मुठभेड़ में आम लोगों को कोई नुकसान ना हो। बुरहान वाणी के मारे जाने के बाद से ही कश्मीर शांत नहीं हो पाया है। वहीं आतंकी सुरक्षा बलों का कसता षिकंजा देख कर अपनी पुरानी कायराना हरकत कर रहे हैं- आम लोगों की भीड़ एकत्र करना, उनसे पथराव करवाना और उसकी आड़ में सुरक्षा बलों पर हमला करना। लगे। यह किसी से छिपा नहीं है कि भारत-पाकिस्तान के बीच विश्वास शब्द की कोई जगह नहीं है और कश्मीर में अस्थिरता, आतंकियों को घुसाने और एक कमजोर सेना द्वारा अपना छद्म मनोबल बढ़ाने के प्रयासों के तहत पाकिस्तान ऐसी हरकतें करता रहता है। अपने सैनिकों की मौत पर दुख होना, गुस्सा होना लाजिमी है, लेकिन अब समय आ गया है इस बात पर विचार करने का कि आखिर क्यों हमारे सैनिक इतनी बड़ी संख्या में सीमा पर इस तरह धोखे से बार-बार मारे जा रहे हैं। याद करें कि तीन साल पहले तत्कालीन सेना प्रमुख विक्रम सिंह ने यह पता लगाने के आदेश दिए थे कि हमारी रणनीति में कहां कमजोरी है कि घुसपैठियें हमारी सीमा में भीतर घुस कर हमला कर सुरक्षित वापिस जा रहे हैं। पता नहीं उस जांच के क्या नतीजे निकले, लेकिन यह कटु सत्य है कि पिछले कई दिनों से आतंकियों की तुलना में हमारे सैनिक ज्यादा मारे जा रहे हैं।इस मसले पर मेरा आलेख आज "राज एक्सप्रेस" मध्य प्रदेश में . इसे मेरे ब्लॉग पर भी पढ़ सकते हैं pankajbooks.blogspot.in
11 फरवरी की रात कुलगाम जिले के यारीपुर में एक घर में आतंकियों के छुपें होने की खबर पर फौज ने दबिष दी। कुछ लेग जुड़कर सेना के खिलाफ नारे लगाने लगे, पत्थर चलाने लगे। उन लोगों को बचाते हुए जब सेना ने आतंकियों पर धावा बोला तो हमारे तीन जवान षहीद हुए। हालांकि इस मुठभेड़ में सभी चर आतंकी भी मारे गए। 14 फरवरी के तड़के बांदीपुरा जिले मुहल्ला हाजन में तलाषी अभियान के दौरान आतंकियों ने सीआरपीएफ की टुकड़ी पर पहले हथगोले फैंके और फिर एसाल्ट रईफलों से गोलियां चलाईं। इससे सीआरपीएफ के कमांडेंट चेतन थापा व अन्य तीन जवान षहीद हो गए। यहां केवल एक आतंकी मारा गया,षेश आतंकी आम लोगों की भीड़ की ढाल बना कर भाग गए। जान लें कि कष्मीर में बांदीपुरा और कुपवाड़ा जिले आतंकियों की घुसपैठ के लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनषील हैं। यहां सीमा पर ऊचें पहाड़ हें व पाकिस्तान के आतंकियों के सबसे ज्यादा लांचिंग पेड यहीं होने की पुख्ता सूचना हमारे सुरक्षा बलों के पास हैं। ठीक उसी तरह कुलगाम पीरपंजाल पर्वतमाला से घिरा है और यहां से आतंकियों के घुसने की संभावना ज्यादा रहती हे। कष्मीर में पीओके यानि पाकिस्तान के कब्जे वाले कष्मीर की सीमा कोई तीन सौ किलोमीटर है।
इस साल के अभी दो महीने पूरे नहीं हुए है और अकेले कष्मीर में सेना व अन्य सुरक्षा बलों के 12 जवान षहीद हो चुके हैं और लगभग सभी हमारी सीमा में, और कुछ मुठभेड़ों को छोड़ दें तो घात लगा कर किए गए हमलों में। सनद रहे आमतौर पर पाकिस्तान से जुड़ी हमारी लगभग 3300 किलोमीटर की सीमा पर कंटीले तार लगाने का काम हो चुका है। वैसे नियम यह है कि सीमा पर सीमा सुरक्षा बल की टुकड़ियां गष्त करती है, टकराव होने पर अर्ध सैनिक बल पीछे आते हैं और सेना सीधे मुकाबले पर आती है, ऐसा हम छह देषों की सीमाओं पर करते हैं, लेकिन पंजाब व कष्मीर के बड़े हिस्से में हमारी सेना ही फ्रंट पर रहती है यानी सीमा की रखवाली और दुष्मन से मुकाबला दोनो फौज के हाथों में ही है। सीमा पर फौज का अपना खुफिया तंत्र है जिसे एमआई युनिट यानी मिलेट्री इंटेलीजेंस कहा जाता है। इसके अलावा आईबी व रॉ का भारीभरकम महकमा वहां बहाल है। इन सभी संस्थाओं का काम दुष्मन की हर हरकत पर नजर रखना तथा किसी हमले के लिए पहले से तैयारी करना होता है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि अफगानिस्तान को आधा-अधूरा तोड़-फोड़ कर अमेरिका व मित्र देषों की फौजें धीरे-धीरे लौट रही हैं और इससे तालिबान व अन्य आतंकी संगठन एक बार फिर फैल रहे हैं। इसके अलावा सत्ता में लौटे नवाज षरीफ को कुर्सी पर बने रहने के लिए आईएसआई व पाक सेना का समर्थन जरूरी है और इसकी एक बड़ी षर्त होती है कि कष्मीर को सुलगाए रखो। यह बात अमेरिका सहित कई अंतरराश्ट्रीय एजेंसियां समय -समय पर भी कहती रही हैं कि कष्मीर में आतंकवाद बढ़ सकता है।
इतना सबकुछ होने के बावजूद सीमा पर अंदर घुस कर कोई हमारे जवानों की गरदनें उड़ा जाता है और हम छोटे बच्चे जैसे रोते रह जाते हैं कि देखो पड़ोसी ऐसा कर रहा है; षर्मनाक है। हम सर्जिकल स्ट्राईक की गौरव गाथा तो गाते हें लेकिन यह नहीं बता पाते कि सेना के उस अदभ्य साहस के प्रदर्षन के बाद हमें हासिल क्या हुआ, यदि घुसपैठ व षहदत यथावत जारी है। जवानों के पास हथियार हैं, हमारा सुरक्षा तंत्र है, हमारा खुफिया तंत्र है इसके बावजूद हम पाकिस्तान को गाली बकते हें कि वह षैतानी हरकतें कर रहा है। असल में तो हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि किस लापरवाही के चलते ऐसा होता है कि हम कारगिल में महीनों से बंकर बना रहे घुसपैठियों की खबर नहीं रख पाते हैं, हम हमारी सीमा में चौकसी के बावजूद कई-कई किलोमीटर घुस कर हत्या करने वाले आतंकियों पकड़ नहीं पाते हैं।
यह जान लें कि हमारी सेना व उसके तंत्र पर हमारा मुल्क जो पैसा खर्च करता है , वह कई लाख लोगों की षिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य मूलभूत जरूरतों की कीमत के बराबर होता है। सुरक्षा का अर्थ ‘हमला’ कतई नहीं होता है। कहीं ना कहीं हमारे सुरक्षा तंत्र में खामी तो है ही कि सीमा पर चौकसी की कमी के चलते देष युद्ध के मुहाने पर पहुंच जाने को बेताब हो जाता हे। याद रहे एक युद्ध की कीमत इतनी बड़ी होगी कि हमारी आने वाली कई पीढ़ियां उसके नीचे दबी होंगी। इसके कतई यह अर्थ नहीं है कि हमें युद्ध के डर से किसी की बदतमीजियों को सहना चाहिए, लेकिन यह जरूर है कि सीमा पर तैनात बटालियनों की कौन सी कमियां हैं, हमारी खुफिया एजेंसियां कहां मात खा रही हैं ; जिसके चलते वे मारे जा रहे हैं, उन कारणों को तलाषना, जिम्मेदार लोगों को कसना और तंत्र को और मजबूत बनाना जरूरी है। वरना हम ऐसे ही तिरंगे में लिपटे जवानों के षवों के सामने हवा में गोली चलाने के दृष्य, नेताओं की बयानबाजी झेलते रहेंगे और किसी दिन जंग छिड़ गई तो अपने विकास-पथ पर खुद ही कंटक बिछा लेंगे।
पंकज चतुर्वेदी
बीते कुछ घंटे कश्मीर में भारत के सुरक्षा बलों के लिए बेहद दुखदायक रहे हैं। कुछ आतंकियों को मारने के लिए हमारे सात जाबांज जवान श् हीद हुए, वह भी इस लिए कि आतंकियों से मुठभेड़ में आम लोगों को कोई नुकसान ना हो। बुरहान वाणी के मारे जाने के बाद से ही कश्मीर शांत नहीं हो पाया है। वहीं आतंकी सुरक्षा बलों का कसता षिकंजा देख कर अपनी पुरानी कायराना हरकत कर रहे हैं- आम लोगों की भीड़ एकत्र करना, उनसे पथराव करवाना और उसकी आड़ में सुरक्षा बलों पर हमला करना। लगे। यह किसी से छिपा नहीं है कि भारत-पाकिस्तान के बीच विश्वास शब्द की कोई जगह नहीं है और कश्मीर में अस्थिरता, आतंकियों को घुसाने और एक कमजोर सेना द्वारा अपना छद्म मनोबल बढ़ाने के प्रयासों के तहत पाकिस्तान ऐसी हरकतें करता रहता है। अपने सैनिकों की मौत पर दुख होना, गुस्सा होना लाजिमी है, लेकिन अब समय आ गया है इस बात पर विचार करने का कि आखिर क्यों हमारे सैनिक इतनी बड़ी संख्या में सीमा पर इस तरह धोखे से बार-बार मारे जा रहे हैं। याद करें कि तीन साल पहले तत्कालीन सेना प्रमुख विक्रम सिंह ने यह पता लगाने के आदेश दिए थे कि हमारी रणनीति में कहां कमजोरी है कि घुसपैठियें हमारी सीमा में भीतर घुस कर हमला कर सुरक्षित वापिस जा रहे हैं। पता नहीं उस जांच के क्या नतीजे निकले, लेकिन यह कटु सत्य है कि पिछले कई दिनों से आतंकियों की तुलना में हमारे सैनिक ज्यादा मारे जा रहे हैं।इस मसले पर मेरा आलेख आज "राज एक्सप्रेस" मध्य प्रदेश में . इसे मेरे ब्लॉग पर भी पढ़ सकते हैं pankajbooks.blogspot.in
11 फरवरी की रात कुलगाम जिले के यारीपुर में एक घर में आतंकियों के छुपें होने की खबर पर फौज ने दबिष दी। कुछ लेग जुड़कर सेना के खिलाफ नारे लगाने लगे, पत्थर चलाने लगे। उन लोगों को बचाते हुए जब सेना ने आतंकियों पर धावा बोला तो हमारे तीन जवान षहीद हुए। हालांकि इस मुठभेड़ में सभी चर आतंकी भी मारे गए। 14 फरवरी के तड़के बांदीपुरा जिले मुहल्ला हाजन में तलाषी अभियान के दौरान आतंकियों ने सीआरपीएफ की टुकड़ी पर पहले हथगोले फैंके और फिर एसाल्ट रईफलों से गोलियां चलाईं। इससे सीआरपीएफ के कमांडेंट चेतन थापा व अन्य तीन जवान षहीद हो गए। यहां केवल एक आतंकी मारा गया,षेश आतंकी आम लोगों की भीड़ की ढाल बना कर भाग गए। जान लें कि कष्मीर में बांदीपुरा और कुपवाड़ा जिले आतंकियों की घुसपैठ के लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनषील हैं। यहां सीमा पर ऊचें पहाड़ हें व पाकिस्तान के आतंकियों के सबसे ज्यादा लांचिंग पेड यहीं होने की पुख्ता सूचना हमारे सुरक्षा बलों के पास हैं। ठीक उसी तरह कुलगाम पीरपंजाल पर्वतमाला से घिरा है और यहां से आतंकियों के घुसने की संभावना ज्यादा रहती हे। कष्मीर में पीओके यानि पाकिस्तान के कब्जे वाले कष्मीर की सीमा कोई तीन सौ किलोमीटर है।
इस साल के अभी दो महीने पूरे नहीं हुए है और अकेले कष्मीर में सेना व अन्य सुरक्षा बलों के 12 जवान षहीद हो चुके हैं और लगभग सभी हमारी सीमा में, और कुछ मुठभेड़ों को छोड़ दें तो घात लगा कर किए गए हमलों में। सनद रहे आमतौर पर पाकिस्तान से जुड़ी हमारी लगभग 3300 किलोमीटर की सीमा पर कंटीले तार लगाने का काम हो चुका है। वैसे नियम यह है कि सीमा पर सीमा सुरक्षा बल की टुकड़ियां गष्त करती है, टकराव होने पर अर्ध सैनिक बल पीछे आते हैं और सेना सीधे मुकाबले पर आती है, ऐसा हम छह देषों की सीमाओं पर करते हैं, लेकिन पंजाब व कष्मीर के बड़े हिस्से में हमारी सेना ही फ्रंट पर रहती है यानी सीमा की रखवाली और दुष्मन से मुकाबला दोनो फौज के हाथों में ही है। सीमा पर फौज का अपना खुफिया तंत्र है जिसे एमआई युनिट यानी मिलेट्री इंटेलीजेंस कहा जाता है। इसके अलावा आईबी व रॉ का भारीभरकम महकमा वहां बहाल है। इन सभी संस्थाओं का काम दुष्मन की हर हरकत पर नजर रखना तथा किसी हमले के लिए पहले से तैयारी करना होता है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि अफगानिस्तान को आधा-अधूरा तोड़-फोड़ कर अमेरिका व मित्र देषों की फौजें धीरे-धीरे लौट रही हैं और इससे तालिबान व अन्य आतंकी संगठन एक बार फिर फैल रहे हैं। इसके अलावा सत्ता में लौटे नवाज षरीफ को कुर्सी पर बने रहने के लिए आईएसआई व पाक सेना का समर्थन जरूरी है और इसकी एक बड़ी षर्त होती है कि कष्मीर को सुलगाए रखो। यह बात अमेरिका सहित कई अंतरराश्ट्रीय एजेंसियां समय -समय पर भी कहती रही हैं कि कष्मीर में आतंकवाद बढ़ सकता है।
इतना सबकुछ होने के बावजूद सीमा पर अंदर घुस कर कोई हमारे जवानों की गरदनें उड़ा जाता है और हम छोटे बच्चे जैसे रोते रह जाते हैं कि देखो पड़ोसी ऐसा कर रहा है; षर्मनाक है। हम सर्जिकल स्ट्राईक की गौरव गाथा तो गाते हें लेकिन यह नहीं बता पाते कि सेना के उस अदभ्य साहस के प्रदर्षन के बाद हमें हासिल क्या हुआ, यदि घुसपैठ व षहदत यथावत जारी है। जवानों के पास हथियार हैं, हमारा सुरक्षा तंत्र है, हमारा खुफिया तंत्र है इसके बावजूद हम पाकिस्तान को गाली बकते हें कि वह षैतानी हरकतें कर रहा है। असल में तो हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि किस लापरवाही के चलते ऐसा होता है कि हम कारगिल में महीनों से बंकर बना रहे घुसपैठियों की खबर नहीं रख पाते हैं, हम हमारी सीमा में चौकसी के बावजूद कई-कई किलोमीटर घुस कर हत्या करने वाले आतंकियों पकड़ नहीं पाते हैं।
यह जान लें कि हमारी सेना व उसके तंत्र पर हमारा मुल्क जो पैसा खर्च करता है , वह कई लाख लोगों की षिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य मूलभूत जरूरतों की कीमत के बराबर होता है। सुरक्षा का अर्थ ‘हमला’ कतई नहीं होता है। कहीं ना कहीं हमारे सुरक्षा तंत्र में खामी तो है ही कि सीमा पर चौकसी की कमी के चलते देष युद्ध के मुहाने पर पहुंच जाने को बेताब हो जाता हे। याद रहे एक युद्ध की कीमत इतनी बड़ी होगी कि हमारी आने वाली कई पीढ़ियां उसके नीचे दबी होंगी। इसके कतई यह अर्थ नहीं है कि हमें युद्ध के डर से किसी की बदतमीजियों को सहना चाहिए, लेकिन यह जरूर है कि सीमा पर तैनात बटालियनों की कौन सी कमियां हैं, हमारी खुफिया एजेंसियां कहां मात खा रही हैं ; जिसके चलते वे मारे जा रहे हैं, उन कारणों को तलाषना, जिम्मेदार लोगों को कसना और तंत्र को और मजबूत बनाना जरूरी है। वरना हम ऐसे ही तिरंगे में लिपटे जवानों के षवों के सामने हवा में गोली चलाने के दृष्य, नेताओं की बयानबाजी झेलते रहेंगे और किसी दिन जंग छिड़ गई तो अपने विकास-पथ पर खुद ही कंटक बिछा लेंगे।
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